सिख vs दलित सिख की इन 5 लड़ाइयों से दहल उठा था पंजाब

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Sikh vs Dalit 5 Conflicts details in Hindi – भारत का पंजाब राज्य, 62% सिख आबादी के कारण एक सिख बहुल राज्य है. लेकिन क्या आप जानते है कि 72 फीसदी सिख पंजाब के ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. समाजशास्त्र की प्रोफेसर रविंदर कौर ने “जाट सिख: पहचान का प्रश्न” शीर्षक वाले अपने पेपर में कहा कि ‘श्रम के व्यावसायिक विभाजन के रूप में जाति ग्रामीण जीवन का एक हिस्सा थी और है’. इस बात से ऐसा लगता है कि सिख समुदाय ने जाति व्यवस्था को खत्म कर दिया है. लेकिन वास्तव में, जाति पंजाब के ग्रामीण और शहरी लोकाचार का बहुत बड़ा हिस्सा है.

अगर सिख अपने गुरुओं द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करते है, तो उन्हें उपनाम के रूप में जाति का प्रयोग नहीं करना चाहिए. बल्कि लिंग के अनुसार सिंह या कौर का उपयोग करना चाहिए. इससे अलग जनगणना के आकड़ों में पंजाब की एक अलग तस्वीर दिखाई देती है. सन 1881 से 1921 तक की जनगणनाओं में सिखों की 25 से अधिक जातियाँ दर्ज की गईं. जिसमे जाट, खत्री, अहलुवालिया, रामगढ़िया, अरोरा,  भापा, भट्टरा, रईस, सैनी, लोबाना, कंबोज, रामदासिया, रविदासिया, रहतिया, मज़हबी और रंगरेटा शामिल थे.

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जिसकी वजह से पंजाब में जातिव्यवस्था ने अपने पांव पसार लिए थे. जिसमे चलते जाट सिखों और दलित सिखों में समय समय पर कुछ मतभेद भी हुए. आईये आज हम आपको इनके बीच मतभेदों के बारे में बतायेंगे.

सिख बनाम दलित सिख – Sikh vs Dalit 5 Conflicts

  • 1699 खालसा का गठन हुआ था, जिससे सिख धर्म का जन्म हुआ. गुरु गोविंद सिंह जी ने बिना किसी जातिगत भेदभाव सभी जातियों को अपने मर्ज़ी से इसमें शामिल होने की घोषणा की गयी थी, जिसकी वजह से गुरु जी के इस आदेश का विरोध भी किया गया था. दलित पंजाब की आबादी का एक तिहाई हिस्सा है, जो सिख धर्म में शामिल हो गया था. लेकिन उच्च जाति के सिख दलितों के साथ भेदभव करते थे. 15वीं  शताब्दी में जब रविदास संत बने, तो दलित खास कर चमार उनकी पूजा करने लगे. और खुद को रविदासिया धर्म का घोषित करने लगे. ऐसे रविदासिया धर्म का आगमन हुआ था. 20वीं शताब्दी के आस पास दलित सिख भी शिक्षा ग्रहण करने लगे थे, उनको समझ आता था कि कौन सा धर्म उन्हें कितना सामाजिक अधिकार देता है. उस हिसाब से उच्च जाति के सिखों द्वारा दलितों के साथ किए गए, जातिगत भेदभाव के कारण उनमे मतभेद होते रहे.
  • 31 मई 2018 को मेघालय की राजधानी, शिलांग के मध्य में बारा बाजार के पास स्थित पंजाबी लाइन पर हिंसा भड़की, यह शिंगा सार्वजनिक परिवहन सेवा में नाबालिग समुदाय के एक ड्राइवर और कुछ पंजाबियों के बीच विवाद के बाद हुई. उस दिन स्थानीय बोर्ड पुलिस स्टेशन में प्रभावकारी समझौता कर लिया. जिसके बाद अचानक हिंसा जब शुरूय हुई, जब एक आदिवासी ने एक सिख बस्ती पर हमला कर दिया था. इस हिंसा ने काफी बड़ा रूप ले लिया था, जिसके चलते सिखों की सुरक्षा के लिए सेना को तैनात कर दी गयी थी.
  • यह बात 2003 की है, जब पंजाब के तल्हान में जाट-सिखों और मज़हबी सिखों के बीच का मतभेद देश भर में सुर्खियों में था. 5 जून, 2003 को शहीद बाबा निहाल सिंह तीर्थ के प्रबंधन को लेकर दलित सिख और जाट सिख आमने सामने आ गए. इस झगड़े से करीब एक दशक पहले, गुरूद्वारे के लिए विदेशी पंजाबियों से दान आना शुरू हो गया था. दलितों ने मंदिर के प्रबंधन में अपने प्रतिनिधित्व की मांग की और जिसे जाट सिखों ने अस्वीकार कर दिया. यह मामला कोर्ट में गया और फ़ैसला दलित सिखों के हक़ में आया. लेकिन जाट सिखों ने इसे फिर से अस्वीकार कर दिया. यह मामला फिर से अदालत में गया और इस बार फिर फैसला दलितों के पक्ष में आया, जिससे जाट सिख पूरी तरह से प्रबंधन से बाहर हो गए. परिणाम यह हुआ कि जातिगत दंगे हुए, और दलितों के साथ बुरा व्यवहार होने लगा. 5 जून को दोनों समुदायों का आमना सामना हुआ, जिसमे दो लोगों की मौत हुई और दर्जनों लोग घायल हुए.
  • पंजाब के संगरूर जिले में सौ से अधिक गावं में दलित सिखों द्वारा जाट सिखों और प्रशासन के खिलाफ कृषि भूमि के लिए आन्दोलन चलाया था, इस आन्दोलन की शुरुवात 2014 में हुई थी. जिसमे दलित सिख सरकारी जमीन तानी पंचायती जमीन में अपना हक़ मान रही थी, इसे साथ ही अमीर किसानो द्वारा डेमी दलित उम्मीदवारो को हटा देना चाहिए. यह आंदोलन कई साल चला, इस आन्दोलन में कई बार दलित सिखों के साथ जाट सिखों की मुतभेड हुई, तो कभी दलित सिखों के साथ पुलिस की मुतभेड हुई. जिसके बाद फिर से 5 अक्टूबर 2016 को पंजाब के संगरूर जिले के एक गाव में दलित सिखों और जाट सिखों के बीच एक झगड़ा हुआ था, जिसकी वजह पंचायत की श्यामलात जमीन में से रिजर्व कोटे की जमीन को ठेके पर देने के अधिकार था. पंजाब विल्लेगे कॉमन लैंड्स एक्ट 1961 के मुताबित पंचायती जमीन के से एक तिहाई हिस्सा दलित सिखों के लिए रिसर्व था. यह जमीन केवल दलितों को ही ठेके पर दी जाती थी. लेकिन उस जमीन को दलितों तक जाने नहीं देते थे. बड़े जमीदार या जाट सिख उनके रिज़र्व जमीन को ठेके पर ले लेते थे, जिससे दलित सिखों और जाट सिखों के बीच मुतभेड हुई, जिसके चलते एक दिन जाट सिखों ने एक दलित सिख के घर घुसकर उसकी माँ के पैर काट दिए थे.
  • बठिंडा से 10 किलो दूर एक गाव में जाट सिख और दलित सिख (Sikh vs Dalit 5 Conflicts) दोनों समान आबादी में है, लेकिन एक गाव में रहकर भी दोनों लग अलग इलाकों में रहते है, इस गाव को पंजाब का जातिगत अड्डा माना जाता है. जिसे हर दिन जातिगत मुतभेड होती रहती है. कुछ दलित सिख चार दिन तक पुलिस स्टेशन के आगे धरने पर बठे रहे थे, उनकइ मांग थी कि उनकी औरत के साथ जाट सिखों ने छेड़छाड़ की है उनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए. पुलिस ने उनकी शिकायत लिख तो ली थी लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हो रही थी. दलितों और जाटों के बीच तनाव का माहोल जब बना, जब दलित सिख लगातार शिकायत करते रहे, उनका कहना था कि आते जाते जाट सिख खेतों में काम करती हमारी महिलओं के साथ छेड़छाड़ करते है.

और पढ़ें : हिंदी साहित्य में ‘जातिवाद के विष’ को जनता के सामने लाने वाली इकलौती दलित लेखिका 

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