Top 5 Women Dalit Activists in India – हमारे देश में जब भी समाज को अपनी ताकत दिखानी होती है तो उनका सारा जौर महिलाओं पर ही निकलता है. जिनका प्रमाण सामाजिक कुरतिया, महिलाओं पर हुई मानसिक व शारीरिक तौर पर उत्पीडन आदि है. लेकिन समय समय पर कुछ जाबाज महिलाये हुई है, जिन्होंने सामाजिक उत्पीडन के खिलाफ आवाज उठाई है. मैं अपने लेखों में बार-बार महिलओं को दलित महिलाएं कहकर इसलिए लिखती हूं क्यों कि जाति और पितृसत्ता के दोहरे दंश को दलित महिलाएं ही ज्यादा झेलती हैं. तो उनके बीती किसी को तो बातनी पड़ेगी. आज हम ऐसी ही दलित कार्यकर्ता महिलाओं के बारे में बात करेंगे. जिन्होंने राजनीति में खुद को निखारा है. हमारे देश के राजनीतिक इतिहास को देखे तो उसमे बहुत ही कम महिलाओं का वर्णन देखा जाता है, ख़ासकर दलित महिलाये तो ना के बराबर होती है
आईये आज हम ऐसे ही पांच दलित महिलाओं के बारे में बात करते है जिन्होंने अपने जीवन में दलितों के लिए काम किया. उनको हक दिलाने के लिए एक ऐसी लड़ाई लड़ते रहे जो शायद ही कभी खत्म हो सकती है.
दलितों के हक के लिए काम करने वाली 5 दलित महिलाएं
- बेबी रानी मौर्य : बेबी रानी का जन्म 15 अगस्त 1956 को एक दलित परिवार में हुआ था. गैर- राजनीतिक परिवार के आने वाली बेबी राजी अब भारतीय जनता पार्टी की दलित नेता है. इन्होने अपने राजनीतिक करियर की शुरुवात 1990 में की थी. 1997 में, बेबी राजी को भाजपा का अनुसूचित जाति शाखा में पदाधिकारिक नियुक्त किया गया था. राम नाथ कोविंद जी, हमारे पूर्व राष्ट्रपति रह चुके है वह उस समय उस अनुसूचित जाति की शाखा के अध्यक्ष थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन दलितों के लिए काम करने में लगा दिया. उनकी तुलना दलित नेता और समाज सुधारक मायावती के साथ किया जाता है.
- कुमारी शैलजा : कुमारी शैलजा एक दलित राजनेता है, जो मनमोहन सिंह जी की सरकार में कबिनेट मंत्री रह चुकी है. इनका जन्म 1962 में चंडीगढ़ में हुआ था. इनके पिता चौधरी दलबीर सिंह जो दलित कांग्रेस राजनेता थे, जो हरियाणा के सिरसा विधानसभा की चौथीं, पांचवी , छठी लोकसभा के लिए चुने गए थे. उनके देहांत के बाद ही कुमारी शैलजा राजनीति में आई थी. इनके पिता की तरह ही इन्होने भी दलित समाज के लिए काम किया था. शैलजा जी को हरियाणा की शक्तिशाली दलित महिला राजनेता में गिना जाता है.
- मायावती : इनका जन्म 16 जनवरी 1956 में दलित परिवार (Top 5 Women Dalit Activists) में हुआ था. बचपन से ही उन्हें दलित लोगो के साथ हो रहे जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठानी थी. इसीलिए उन्हें पहले आईपीएस अधिकारी बनाना था, लेकिन 1977 में कांशीराम के सम्पर्क में आते ही उन्होंने दलित राजनेता बन गई. जिसके चलते 1984 में बसपा की स्थापना हुई, 1989 में इन्होने लोकसभा के चुनाव में पहली जीत हासिल हुई उसके बाद आज तक इन्होने भारत की सबसे प्रभावशाली दलित राजनेता के रूप में जाना जाता है. मायावती की लोगो के बीच लोकप्रियता ऐसे ही नहीं है वह एक सच्ची दलित कार्यकर्ता के रूप में उभरी है.
- बेबीता कांबले : इनका जन्म 1929 में महार जाति में पैदा हुई थी. इनकी बेबीताई भी कहा जाता है. बेबीता कांबले दलित समाज के प्रमुख नेता डॉ. बाबा साहेब की बहुत बड़ी अनुयायी है. इन्हें अपनी चिन्तनशील नारीवाद शैली के लिए जाने वाली, उनकी आत्मकथा जीना अमुचा का मराठी से अंग्रेजी में ‘द प्रिज़न्स वी ब्रोक’ के रूप में अनुवाद किया गया था, और इसे 20 वीं शताब्दी में जाति व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि माना जाता है. उन्होंने दलित समुदाय के लिए अपने साहित्य से करुणा की भवना दिखाई है.
- गुलाब देवी: गुलाब जी का जन्म धोबी समुदाय से सम्बंधित एक अनुसूचित जाति में हुआ था. गुलाब देवी जी एक शिक्षिक, और दलित राजनेता है जो बीजेपी की सदस्य है. उन्होंने अपने जीवन में दलितों के लिए बहुत काम किया है. यह दलितों की लोकप्रिय नेताओ में से एक है. यह उत्तर परदेश में पांच बार विधानसभा की सदस्य बनने के लिए जानी जाती है. उनके पति रामपाल सिंह एक दलित समाज सुधारक के साथ एक राजनेता भी थे. दलित समाज के हकों की लड़ाई में इन्हें हमेशा ही आगे देखा जाता है. इनकी तीन बेटियां है, जिसमे से एक दलित समाज सुधारक है.
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