सिखों में पहली बार गुरु हरगोविंद सिंह जी ने धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठाए थे. उनके हिसाब से लडाई केवल धर्म की रक्षा के लिए होनी चाहिए. गुरु जी ने कभी भी बदला लेने, फायदे के लिए लड़ाई नहीं लड़ी थी. न ही किसी भी युद्ध में किसी को बंधी बनाया था, न कभी किसी के धार्मिक स्थान को नुकसान पहुचाया. गुरु हरगोविंद सिंह जी से पहले सिख धर्म आध्यात्मिकता पर केन्द्रित धर्म था लेकिन उनके पिता की हत्या के बाद गुरु हरगोविंद सिंह जी ने हथियार उठाया और धर्म की रक्षा की. जिसके बाद सारे सिख गुरुओं ने अपने जीवन में मानवता की भलाई के लिए लड़ाईयां लड़ी. और यह लड़ाई सिख गुरुओं के बाद भी चलती रही. सिखों के मुगलों, हिन्दुओ और अफगानियों के साथ युद्ध हुए थे. आज हम आपको इस लेख से सिखों के साथ हुआ हिन्दुओं के युधों के बारे में बात करेंगे.
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सिख गुरुओं ने हिंदुओं से लड़े युद्ध
जम्मू की लड़ाई
जम्मू की लड़ाई की लड़ाई 1808 में सिखों और डोगरा के राजपूतों द्वारा लड़ी गई थी. यह लड़ाई सिखों और डोगरा राजपूतों के बीच कश्मीर को लेकर हुई थी. इसद लड़ाई में सिखों की विजय हुई थी. जिसके बाद डोगरा राजपूतों के बाद हुकुम सिंह ने कश्मीर का राज्य संभाल लिया था. जिसके बाद सिखों के लिए कश्मीर के रस्ते पूरी तरह से खुल गए थे. बाद में 1819 में महाराजा रणजीत सिंह ने सेना के साथ जाकर कश्मीर पर कब्जा भी कर लिया था. लेकिन इसके विरोधमें बहुत से लोग आ गए थे, जिसके चलते 1820 में गुलाब सिंह को कश्मीर का राजा और रणजीत सिंह का जागीरदार बना दिया था.
भिम्बल की लड़ाई
भिम्बल की लड़ाई 1812 में खड़क सिंह की सिख सेना और राजा सुल्तान खान चिब की चिब राजपूत सेना द्वारा लड़ी गई थी. इसके पीछे 2 साल पहले की घटना है 1810 में महाराजा रणजीत सिंह ने राजा सुल्तान खान के साथ मिलकर गुजरात पर कब्जा किया था. फिर महाराजा ने राजा सुल्तान खान को अपन एय्हा बुला लेकिन राजा नहीं गया क्यों कि उसे डर था कि कहीं महाराजा मुझे बुला कर पकड़ न ले. जिसके बाद राजा सुल्तान खान के न आने पर महाराजा रणजीत सिंह को बहुत गुस्सा आया. इसीलिए महाराजा रणजीत सिंह ने खड़क सिंह के साथ मिलकर राजा सुल्तान खान पर हमला कर दिया था. और इस युद्ध में 600 लोगों से भी अधिक की जान गई थी. इस युद्ध में सिखों की विजय हुई थी.
आनदपुर की लड़ाई
आनदपुर की लड़ाई की लड़ाई 1812 में सिखों और राजपूतों के बीच हुआ था. जिसमे सोढ़ी सुरजन सिंह की सिख सेना और राजा महान चंद की कहलूर की राजपूत सेना द्वारा लड़ी गई थी. हम आपको बता दे कि सिखों और राजपूतों के बीच कोह्लुर को लेकर 16वीं शताब्दी से विवाद चलता आ रहा था. दोनों समुदाय इस जगह को अपना बता रहे थे. जिसके बाद 1812 में सिखों और राजपूतों के बीच लड़ाई हुई थी. जिसमे सिखों की जीत हुई, परिणाम स्वरूप अब राजपूतों को कर देना पड़ता था. इस लड़ाई के बाद पहाड़ी सेना यानि राजपूतों को बड़ी हर का सामना करना पड़ा था.
कटोच-सिख युद्ध
कटोच-सिख युद्ध 1801 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद कटोच के बीच हुई थी. राजा संसार चंद सदा कौर के क्षेत्र पर कब्जा करना चाहता था. राजा संसार चंद ने सदा कौर के क्षेत्र में हमला करते हुए आगे बाद रहे थे. सदा कौर एक सिख नेता था. जिसकी मदद करते के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने 6000 सैनिको को भेजा था. जिसके बाद सिख सेना ने राजा संसार चंद को खदेड़ दिया था. इस युद्ध का परिणाम सिख सेना की विजय हुई.
नेपाल सिख युद्ध
नेपाल सिख युद्ध 1809 में नेपाल सम्राज्य में राजा अमर सिंह थापा और सिख सम्राज्य के बीच हुआ था. नेपाल और सिखों के बीच विवाद की शुरुवात अधिक क्षेत्र अंग्रेजो के हाथ न जाने की नीति से हुई थी. 1791 में कमाऊ को नेपाल में मिलाने के बाद, पहाड़ी राज्यों को सतलुज नदी तक सारी जगह को आपने राज्य में जोड़ने का प्रयास किया था. इस विवाद का परिणाम था नेपाल सिख युद्ध, इस युद्ध में नेपाली सेना पीछे किले की ओर हट गयी थी. इस युद्ध में 1000 सिख सैनिक मारे गए और 12000 नेपाली सैनिक मारे गए थे. इस युद्ध में दोनों तरफ से भारी नुकसान हुआ था.
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