“शौचालय” जिसे टॉयलेट के नाम से भी काफी पुकारा जाता है ये आपको ज्यादातर जगहों पर देखने को मिलेगा. इसे लेकर देश में कई अभियान भी चलाए जाते हैं. कई राज्यों में तो सड़क पर बहुत सी जगह टॉयलेट बने हुए भी हैं. ऑफिस, मॉल या फिर किसी भी पब्लिक टॉयलेट का दरवाजा नीचे से खुला देखने पर पहली बार आपके भी शायद मन में ये ही ख्याल आया होगा कि टॉयलेट का दरवाजा नीचे से खुला हुआ क्यों है, और फिर खुदी इसका कोई जवाब समझकर अपने दिमाग में जोर देना जरूरी न समझा होगा, लेकिन आपको बता दें कि कि इस तरह का दरवाजा लगाने के पीछे एक कारण है जिसे आप शायद अंजान, तो आइए बताते हैं…
यहां बना टॉयलेट के लिए पहला दरवाजा
अमेरिका में पब्लिक टॉयलेट के लिए सबसे पहले छोटा दरवाजा बनवाया गया था. इस तरह से टॉयलेट में छोटा दरवाजा लगाने के पीछे का कारण पैसे बचना नहीं था बल्कि ये उनकी एक खोज थी. हालांकि इस खोज से उन्होंने कम लकड़ी का तो इस्तेमाल कर पैसे बचाए ही इसके साथ ही लोगों की प्राइवेसी का ध्यान भी रखा. दरअसल, टॉयलेट का दरवाजा छोटा होने से अंदर मौजूद व्यक्ति के थोड़े से पैर देखने पर ये पता चल जाता है कि अंदर कोई है.
इसलिए नीचे से खुला होता है टॉयलेट का दरवाजा
वहीं, जब पब्लिक टॉयलेट हो तो इसका इस्तेमाल पूरे दिन होता है, ऐसे में वहां का फर्श भी लगातार गंदा होगा ही. इसलिए फर्श और दरवाजे के बीच जगह होने पर टॉयलेट में पोंछा लगाना, वाइपर और मॉप घुमाने में बहुत सहूलियत होती है. इसके अलावा छोटे दरवाजे लगाने के पीछे का कारण ये भी है कि कोई पब्लिक टॉयलेट का गलत इस्तेमाल न करें क्योंकि ऐसा कई बार सामने आया है कि टॉयलेट में प्रेमी जोड़े या एक से ज्यादा कोई व्यक्ति घूस जाते हैं.
आपको बता दें कि किसी भी तरह के संबंध बनाने के लिए पब्लिक टॉयलेट्स में सख्त मनाही होती है, ये ही कारण है कि यहां के दरवाज़ा ऐसे रखे जाते हैं जिसके चलते प्राइवेसी केवल उतनी ही रहती है जितनी जरूरत है उसे ज्यादा देने पर गलत कार्य होने की संभावना है. इतना ही छोटे बच्चों को ध्यान में रखते हुए भी पब्लिक टॉयलेट के दरवाजों को फर्श से ऊपरी में बनाया जाता है, क्योंकि कई बार बच्चें अंदर से लॉक हो जाते हैं और उन्हें समझ नहीं आता कि वो लॉक कैसे खोलें. ऐसे में मदद न मिलने पर भी बच्चा दरवाजे के नीचे वाली खाली जगह से निकालकर आ सकता है.