दिल्ली में बाढ़ आई, जमकर बवाल मचा. इंडिया गेट से लेकर लाल किले तक हर जगह पानी ही पानी था. दिल्ली सरकार पर जमकर सवाल उठे, अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व पर सवाल उठे. मीडिया चैनल्स ने भी जमकर कवरेज की, कुछ चैनल के पत्रकारों ने तो सड़क के किनारे लगे नाले के पानी में गले तक डूबकर रिपोर्टिंग की. यमुना का जलस्तर बढ़ने से हालात बदतर हुए थे लेकिन आपको बता दें कि यमुना ही वह नदी है, जो यूपी और दिल्ली को कई जगहों पर अलग अलग हिस्सों में बांटती है. यमुना के जलस्तर बढ़ने का प्रभाव केवल दिल्ली में ही नहीं बल्कि दिल्ली से सटे यूपी के नोएडा में भी देखने को मिला. नोएडा के कई हिस्से डूब गए, कई जगहों पर जलभराव हो गया, लोगों की खेती डूब गई, लोगों के व्यापार डूब गए लेकिन मीडिया ने नोएडा की कवरेज न के बराबर की. हालांकि, कारण जो भी रहा हो लेकिन नोएडा में हुए जलभराव को प्रदर्शित नहीं किया गया. यमुना से सटे नोएडा के तमाम सेक्टर्स की हालत काफी बुरी हो चली है.
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एक्टिव नहीं था नोएडा प्रशासन
यमुना उफान पर है. यमुना से सटे कई इलाके जो पूरी तरह से फार्म लैंड या कृषि क्षेत्र हैं, वे पूरी तरह से तबाह हो गए है. कई सेक्टर्स में यमुना के बाढ़ का असर देखने को मिल रहा है. हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. यमुना खतरे के निशान से ऊपर थी और यह जानकारी सभी को थी. नोएडा प्रशासन भी इससे पूरी तरह से अवगत था, यह तबाही रोकी जा सकती थी. लेकिन हालात को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रशासन एक्टिव नहीं था. प्रशासन से चूक हो गई है. प्रशासन ने काफी लेट कार्रवाई शुरू की. हालांकि, NDRF की टीमें भी आई, पुलिस प्रशासन भी आया, नोएडा विकास प्राधिकरण के अधिकारी भी आए. वह बहुत कुछ कर सकते थे लेकिन कर नहीं पाए. इसे गैर जिम्मेदाराना व्यवहार भी कहा जा सकता है.
खास तौर पर यमुना के किनारे जो भी सेक्टर्स हैं, उनमें तमाम तरह की खेती होती है. कुछ लोगों ने वहां फॉर्म हाउस भी बनाए हैं. लोगों ने सरकारी नियमों का पालन करते हुए जमीनें खरीदी है, दाखिल खारिज कराया है और तब वहां रह रहे हैं, खेती कर रहे हैं. इन फॉर्म हाउस के मालिकों का कहना है कि उन्होंने वहां तमाम लोगों को रोजगार दिया है, क्षेत्र के बेहतरी में अपना योगदान दिया है. उस क्षेत्र को हाइलाइट किया है. इन बातों पर तमाम तरह की सहमतियां आ रही हैं. इनके अलावा तमाम तरह के छोटे उद्योगों को भी वहां जगह मिली है. बाढ़ के कारण इन क्षेत्रों में काफी तबाही हुई है.
गायों की मौत का जिम्मेदार कौन ?
इस क्षेत्र में एक सरकारी गौशाला है, जिसमें करीब 1 हजार गाये हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि उनमें से काफी गायों की मौत हो चुकी है. तबाही का हृदय विदारक मंजर है. रिपोर्ट्स की मानें तो प्रशासन ने उस इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया है. किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं है. जिन गायों की मौत हुई है, उन्हें उसी इलाके में 10 फीट का गड्ढा करके दफना दिया जा रहा. अब जरा सोचिए कि हालात को सामान्य बनाने के लिए प्रशासन की ओर से आनन फानन में गायों को वहीं दफनाया जा रहा है लेकिन जब कल होकर लोग वहां रहने जाएंगे और प्रशासन की इस गलती के कारण महामारी फैलेगी और लोग उसके शिकार होंगे, उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी ?
एक ओर योगी सरकार नोएडा को वर्ल्ड क्लास बनाने की दिशा में बढ़ती जा रही है तो वहीं दूसरी ओर नोएडा प्रशासन अपनी गलतियों से नोएडा को तबाह करता नजर आ रहा है. प्रशासन को लोगों की सुरक्षा का इंतजाम पहले ही करना था लेकिन अब जब हालात बदतर हो गए तो दोषारोपण का गंदा खेल खेला जा रहा है. ऐसा कहा जा रहा है कि जो यहां फॉर्म हाउस बने हुए हैं या जो खेती हो रही है, वह अवैध है. लेकिन सवाल यह है कि जमीन तो सरकार ने दी है. उस जमीन की रजिस्ट्री हुई है, दाखिल खारज हुआ है. ऐसे में नोएडा अथॉरिटी की ओर से उस क्षेत्र की अनदेखी करना और बात बात में उसे अवैध बताना किसी भी दृष्टिकोण से उचित प्रतीत नहीं होता है.
नोएडा प्रशासन का दोमुंहापन
बता दें कि यमुना के किनारे वाले क्षेत्र यानी डूब क्षेत्र में करीब 2000 फॉर्म हाउस बने हुए हैं, जिनमें कुछ फॉर्म हाउस पूरी तरह से अवैध हैं. जिसे तोड़ने को लेकर काफी लंबे समय से खींचातानी चल रही है. कई अवैध फॉर्म हाउस पर नोएडा प्रशासन बुलडोजर तक चला चुकी है. लेकिन करीब 2000 फॉर्म हाउस में से 30 फीसदी फॉर्म हाउस ही वैसे हैं जो अवैध हैं. शेष 70 फीसदी फॉर्म हाउस का उपयोग लोग कृषि क्षेत्र से जुड़े कामों के लिए करते हैं.
अवैध फॉर्म हाउस पर नोएडा अथॉरिटी की कार्रवाई जायज है लेकिन उन चंद अवैध लोगों के चक्कर में नोएडा अथॉरिटी वहां के 70 फीसदी परिवारों की जान का सौदा क्यों कर रही है? प्रशासन ने इन 70 फीसदी लोगों को मरने के लिए क्यों छोड़ दिया गया ? प्रशासन ने इन लोगों के लिए कोई अलर्ट क्यों नहीं निकाला ? जमीन वैध है, उनके रहने और खेती की प्रक्रिया वैध है, हर तरह से कानून के दायरे में रहकर उन्होंने अपनी चीजें की है. वहां से संबंधित सारी फाइलें प्रशासन के नाक के नीचे से गुजर कर गई हैं, ऐसे में उनलोगों के साथ नोएडा प्रशासन यह दोहरा रवैया क्यों अपना रहा है, यह सवाल लोगों को परेशान कर रहा है.
ऋतु माहेश्वरी को पद से हटाया गया
हालांकि, आपको बता दें कि नोएडा अथॉरिटी की CEO ऋतु माहेश्वरी को पद से हटा दिया गया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक नोएडा के हालात को नहीं संभाल पाने के कारण उन पर एक्शन हुआ है. उनकी जगह पर अब कानपुर मंडलायुक्त लोकेश एम नोएडा के CEO बनाए गए हैं. ऋतु माहेश्वरी को नोएडा विकास प्राधिकरण से हटाकर आगरा विकास प्राधिकरण का सीईओ बनाया गया है. पिछले हफ्ते ही रितु माहेश्वरी से ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी का प्रभार भी वापस ले लिया गया था. ऋतु माहेश्वरी कुछ समय तक गौतमबुद्ध नगर की जिलाधिकारी भी रही हैं.12 जुलाई 2019 को नोएडा का सीईओ बनाया गया था और 4 साल के करीब वो इस पद पर रहीं और अब उन्हें हटा दिया गया है.