
11 साल पहले छावला (Chhawla gang rape) में कुछ दरिंदों ने एक 18 साल की युवती का अपहरण किया था, चलती कार में उन राक्षसों ने युवती का तब तक रेप किया जब तक उसके शरीर से जान अलग ना हो गया। हवशी दरिंदे घंटों तक उसके शरीर को नोचते रहे, मुंह पर कसती हथेलियां और जिस्म पर बढ़ते बोझ के बीच चीखें घुटती रहीं और सांस हलकी होती रही। ऐसे घिनौने अपराध के बाद भी इन दरिंदों की रूह नहीं कांपी, बल्कि इन लोमड़ियों ने उसके शरीर को तब तक नोचा जब तक उस लड़की के प्राण नहीं निकल गए। वो दरिंदे यहीं पर नहीं रुके इसके बाद भी उन हवश के पुजारियों का हवस शांत नहीं हुआ, उन लोगों ने लोहे की पेंच को आग में गर्म कर उस लड़की के मृत शरीर को भी दागा । वारदात के कई दिनों बाद 14 फरवरी को लड़की की बॉडी हरियाणा के रेवाड़ी में एक खेत में मिली थी। बॉडी को उन दरिदों ने जला भी दिया था ताकि शव की पहचान ना हो सके।
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सोमवार, 8 नवंबर को देश के उच्च न्यायालय ने इस गैंगरेप और हत्या के 3 आरोपियों को बरी कर दिया। 2014 में इसी केस में निचली अदालत ने रवि, राहुल और विनोद नामक इन आरोपियों को दोषी बताया था, यहां तक की तीनों को फांसी की सजा भी सुनाई गई थी। इसके बाद अगस्त में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इन तीनों रेप के आरोपियों के लिए फांसी की सजा बरकरार राखी थी। उस समय अदालत ने कहा था- ये वो हिंसक जानवर हैं, जो सड़कों पर शिकार ढूंढते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट कर देश की जनता को चौंका दिया।
आरोपियों को अपनी बात कहने का मौका नहीं मिला
उच्च अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अदालतें सबूतों पर चलकर फैसले लेती है ना कि भावनाओं में बहकर। अदालतें ऐसे सबूतों के आभाव में अगर इन जैसे दरिंदों को छोड़ दिया तो इन राक्षसों का मन और भी बढ़ जायेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि आरोपियों को अपनी बात कहने का पूरा मौका नहीं मिला, दूसरी तरफ गवाहों ने भी आरोपियों की पहचान नहीं की। यहां तक की कुल 49 गवाहों में दस का क्रॉस एक्जामिनेशन भी नहीं कराया गया।
उच्च न्यायालय ने निचली अदालतों से सवाल पूछते हुए कहा कि निचली अदालतों ने प्रक्रिया का पालन नहीं किया। निचली अदालत भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत सच्चाई की तह तक पहुंचने के लिए आवश्यक कार्यवाही कर सकता था, ऐसा क्यों नहीं किया गया?
मीडिया से बात चीत के दौरान पीड़िता के माता-पिता ने कहा कि हम उच्च न्यायालय से सहमत नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय के ही बड़े पीठ के पास जायेंगे। पीड़िता के माता-पिता की यह बात भी सही है क्यूंकि वो लगभग एक दसक से अपने बच्ची को न्याय दिलाने की कोशिश में लगे थे, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने ये कह कर आरोपियों को बरी कर दिया कि उन्हें अपनी बात कहने का पूरा मौका नहीं मिला। एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों से सवाल किया वहीं दूसरी तरफ उसके खुद के फैसले पर भी जनता ने सवाल उठाना शुरू कर दिया हैं।
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