चुनाव आयुक्त जिसके ऊपर देश में हो रहे सभी चुनाव को करवाने की जिम्मेंदारी होती है और इससे पहले प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल के साथ बैठकर चुनाव आयुक्त के पद पर विराजमान होने वाले व्यक्ति का नाम तय करता था. वहीं इस वजह से कई बार चुनाव आयुक्त कितना भी निष्पक्ष तरीके से चुनाव करवा लें हर चुनाव में उसके ऊपर कई तरह के आरोप लगते ही है लेकिन मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा चयन प्रक्रिया को खारिज कर दिया और CJI भी इस चयन प्रक्रिया में शामिल हो गयी. वहीं अब केंद्र सरकार ने गुरुवार को मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त बिल राज्यसभा में पेश किया है और इस बिल के अनुसार अब CJI इस प्रक्रिया में शामिल नहीं होगा जिसके बाद अब इस बिल को लेकर विवाद भी शुरू हो गया है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं कि मोदी सरकार द्वारा पेश किये इस बिल की वजह से क्या-क्या बदलाव होगा और क्यों इस बिल को लाने की जरूरत पड़ी.
इस वजह से पड़ी इस बिल को लाने की जरूरत
जानकारी के अनुसार, इस विधेयक के मुताबिक, अब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी करेगी. इस कमेटी में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री भी सदस्य होंगे लेकिन इस नए विधयेक के अनुसार CJI को इसमें शामिल नहीं किया गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा चयन प्रक्रिया को खारिज कर दिया था. जिसमें प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल द्वारा चुनाव आयुक्त का नाम तय कर दिया जाता था. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा चयन प्रक्रिया को खारिज करते हुए कहा कोर्ट ने फैसला दिया था कि अब मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का तरीका सीबीआई चीफ की नियुक्ति जैसा ही होगा. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया था कि मौजूदा व्यवस्था तब तक जारी रहेगी, जब तक संसद इस पर कानून ना बना दे. जिसके बाद अब राज्यसभा में ये बिल पेश किया गया हैं और इस बिल के मुताबिक, अब CJI का रोल अब खत्म हो जायेगा.
इस बिल के कारण बदल जाएंगे ये नियम
जहां इस बिल में CJI का रोल खत्म होने की बात कही गयी है और अब CJI की जगह चुनाव आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री की तीन सदस्यीय समिति करेगी. तो वहीं इस बिल में कई सारे नियम भी बदल जाएंगे.
इसी के साथ इस बिल में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष का ही होगा और दोबारा इन्ही मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त नियुक्ति नहीं होगी. वहीं चुनाव आयुक्तों का वेतन कैबिनेट सचिव के समान होगी. वहीँ इस बिल में सर्च कमेटी का भी जिक्र किया गया है. इस बिल के कहा गया है कि एक सर्च कमेटी का गठन किया जाएगा और इसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेगा. साथ ही इसमें दो अन्य सदस्य भी शामिल होंगे, जो सचिव रैंक के नीचे नहीं होंगे, इन्हें चुनाव से संबंधित ज्ञान और अनुभव होना जरूरी है. ये कमेटी पांच लोगों का एक पैनल बनाएगी जो निर्वाचन आयुक्त बनने के लिए योग्य होंगे.
इस तरह होगी तीन चुनाव आयोग के पदों की नियुक्ति
बिल के मुताबिक, इन पांच लोगों के पैनल को सेलेक्शन कमेटी के पास भेजा जाएगा. इस कमेटी में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे. कमेटी में शामिल केंद्रीय मंत्री को प्रधानमंत्री नामित करेंगे. ये कमेटी चुनाव आयोग के तीन महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति करेगी.
इस वजह से हो रहा है बिल का विरोध
इस सीईसी और ईसी की नियुक्ति वाले बिल को ‘असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित’ करार दिया. विपक्ष द्वारा कहा गया कि इस बिल के लागू होने के बाद चुनाव आयोग प्रधानमंत्री के हाथों में आ जायेगा. वहीँ टीएमसी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य साकेत गोखले ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि ‘भाजपा खुलेआम 2024 के चुनावों के लिए धांधली कर रही है.’ . वहीं माकपा नेता जॉन ब्रिटास ने कहा कि यह देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ध्वस्त करने का प्रयास है. उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति किसी स्वतंत्र प्रक्रिया से होनी चाहिए.
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