उदयपुर कन्हैया लाल हत्याकांड (Udaipur Kanhaiya lal Murder) में जब से पाकिस्तान के सुन्नी मुसलमान के (Dawat e islami) के इस्लामिक संगठन का नाम सामने आया है, तब से इस हत्याकांड ने नया मोड़ ले लिया है। रिपोर्ट्स के अनुसार कन्हैया लाल दर्जी को मरने वाला रियाज अतारी और गौस मुहम्मद ने दावत ए इस्लामी संगठन के ऑनलाइन कोर्स किया था। जहां से इन दोनों मुस्लिम युवकों में जेहादी कट्टरवाद पनपा और कन्हैया लाल के सर कलम तक पहुंच गया।
दावत-ए-इस्लामी आखिर है क्या ?
दावत-ए-इस्लामी (Dawat e islami) एक सुन्नी मुस्लिम संगठन है जिसका गठन 1981 में मौलाना इलियास अत्तारी ने पाकिस्तान के कराची में पैंगबर मोहम्मद साहब के संदेशों का प्रचार-प्रसार करने के लिए किया था। दावत-ए-इस्लामी संगठन पाकिस्तान के कराची से संचालित होता है। सुन्नी कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिए यह संगठन दुनियाभर में कई तरह के ऑनलाइन कोर्स संचालित करता है। इस संगठन का दुनिया के 194 देशों में इसका विशाल नेटवर्क फैला हुआ है। मौलाना इलियास अत्तारी की वजह से ही दावत-ए-इस्लामी संगठन से जुड़े लोग अपने नाम के साथ अत्तारी लगाते हैं।
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कैसे ट्रेनिंग देकर बनाते हैं जेहादी
(Dawat-e-Islami) कट्टर मुसलमान बनने के लिए इस्लामी शिक्षाओं का ऑनलाइन प्रचार-प्रसार करता है। संगठन की वेबसाइट पर 32 तरह के इस्लामी कोर्स उपलब्ध हैं। वेबसाइट पर महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए अलग-अलग तरह के कोर्स हैं। दावत-ए-इस्लामी पर कई बार धर्मांतरण के आरोप भी लगे हैं। दावत-ए-इस्लामी संगठन पर ये आरोप लगते रहें हैं कि इनके ऑनलाइन कोर्स के जरिए जिहादी बनाने की स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है। भारत में यह संगठन पिछले चार दशकों से सक्रिय है। इसका प्रमुख कार्य शरिया कानून का प्रचार-प्रसार करना और उसकी शिक्षा को लागू करना संगठन का उद्देश्य है। यह संगठन दुनिया भर में सुन्नी कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है।
(Dawat-e-Islami) पाकिस्तान के इस्लामिक संगठन की अपनी खुद की वेबसाइट है। वेबसाइट के माध्यम से यह इस्लामिक संगठन कट्टर मुसलमान बनने के लिए शरिया कानून के तहत इस्लामी शिक्षाओं का ऑनलाइन प्रचार-प्रसार कर रहा है। दावत-ए-इस्लामी के करीब 32 तरह के इस्लामी कोर्स इसकी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। महिलाओं व पुरुषों दोनों के लिए अलग-अलग तरह के कोर्स हैं। इसके अलावा यह संगठन कुरान पढ़ने और मुसलमानों को हर तरीके से शरिया कानून के लिए तैयार करता है। यह संगठन अपनी वेबसइट पर एक न्यू मुस्लिम कोर्स भी चलाता है, जो पूरी तरह से ऑनलाइन है। इसका उद्देश्य धर्मांतरण कर नए-नए मुसलमानों को इस्लामी शिक्षाओं से रूबरू कराना है। इस कोर्स के माध्यम से धर्मांतरण करने वालों को जिहादी बनने की स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है।
1989 में भारत पहुंचा था संगठन और ऐसे बढ़ता गया
भारत में इस संगठन की जड़ें 1989 में फैली शुरू हुईं। यह वो साल था जब पहली बार पाकिस्तान से उलेमा का प्रतिनिधिमंडल भारत पहुंचा था। उस दौर में हाफिज अनीस अत्तारी ने साथियों के साथ मिलकर यह तय किया कि जब तबलीगी जमात के लोग काफिला लेकर चल सकते हैं तो हम क्यों नहीं। इसके बाद भारत में इस संगठन ने विस्तार करना शुरू किया। वर्तमान में ‘दावत-ए-इस्लामी’ का हेडक्वार्टर दिल्ली और मुंबई में है। भारत में ‘दावत-ए-इस्लामी संगठन की कमान सेयद आरिफ अली के हाथ में है। संगठन भारत में अपना विस्तार करने के लिए सालाना जलसा भी करता है। जिसे सालाना इज्तिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। इस जलसे में बड़ी संख्या में समुदाय के लोग पहुंचते हैं और जुड़ते हैं।
पाकिस्तानी चैनल के जरिए विचारधारा का प्रसार करते हैं।
(Dawat e islami) संगठन अपनी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने के लिए चैनल का इस्तेमाल करता है। चैनल का नाम है मदनी इस चैनल का संचालन पाकिस्तान से किया जाता है। इस चेनल के जरिए उर्दू, अंग्रेजी ओर बांग्ला जैसी भाषाओं में भी कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। इस संगठन के सदस्य हरी पगड़ी बांधते हैं, जिसे हरा अमामा भी कहा जाता है।