कट्टरपंथी भिंडरावाले की मौत के बाद से अब तक खालिस्तानी आन्दोलन कई बार उठे हैं लेकिन उस प्रंचड रूप से नहीं जिस तरह से भिंडरावाले के वक़्त था. लेकिन अचानक से खालिस्तान समर्थन में एक बार फिर से नए शख्स का नाम जुड़ने से देश से लेकर विदेशों में भी इनका प्रदर्शन उग्र होता दिख रहा है. अमृतपाल सिंह के भगौड़े घोषित होने के बाद से ही विदेशो में खालिस्तानी समर्थकों ने कई तरह के भारत विरोधी नारे लगाये कभी इंडियन एम्बेसी के सामने तो कभी ट्विटर ऑफिस के बाहर.
कभी देश के प्रधानमंत्री का पोस्टर फाड़कर तो कभी भगत सिंह को आतंकवादी बताकर. हालांकि एकतरफा देखने में ये खालिस्तानी आन्दोलन सिर्फ सिख समुदाय से जुड़ा हुआ लगता है लेकिन पूरे विश्व भर में एक संगठन को ऑपरेट करने के लिए समुदाय से बाहर के लोगों का समर्थन भी बहुत जरूरी होता है. ठीक ऐसे ही जैसे पाकिस्तान सरकार द्वारा लश्कर को फंडिंग. खालिस्तानी भले ही अपने आप को पक्का सिख बताते हों लेकिन वास्तव में सच्चे सिखों से दूर दूर तक इनका कोई लेना देना नहीं है.
क्योंकि सच्चा हिन्दुस्तानी और सच्चा सिख कभी अपने देश को गाली नहीं देगा और न ही भगत सिंह जैसे वीर सपूत को आतंकवादी कहेगा. इसका साफ़ साफ़ ये मतलब हुआ कि इन खालिस्तानी आन्दोलनों की कमांड या यूं कह लें की रिमोट किसी और के पास ही है. इशारा तो आप समझ गए होंगे लेकिन आज इसकी पुष्टि के लिए आज आपको इस लेख के जरिए समझायेंगे. लेकिन उससे पहले ये समझना जरूरी है कि खालिस्तानी आंदोलनों की मांग क्या रही है और क्यों रही है ?
खालिस्तानी आन्दोलन
खालिस्तान आंदोलन एक सिखो द्वारा अलगाववादी आंदोलन है, जिसे विदेशो से संचालित किया जाता है. इसका प्रमुख उद्देश्य भारत के पंजाब राज्य को भारत से अलग करके एक सिख देश की स्थापना करना है, जिसका नाम खालसा पंथ के नाम पर खालिस्तान रखा जाना चाहिए. खालिस्तान का अर्थ आपको इससे समझ आएगा जिसमे खालसा का अर्थ होता है शुद्ध और खालिस्तान का अर्थ शुद्ध स्थान. जिसकी मांग है कि पंजाब को भारत से अलग करके एक नया राष्ट्र घोषित कर दिया जाए.
आपको साल 2022 की 26 जनवरी तो याद ही होगी जब खालिस्तानी आंदोलन समर्थक विदेशी संस्था सिख फॉर जस्टिस के चीफ गुरपतवंत सिंह पन्नू ने कहा था कि , 26 जनवरी को दिल्ली में रहने वाले लोग अपने घरों में तिरंगा फहराने के बजाय खालिस्तानी झंडा फहराया जाए. इनकी एक खास बात है कि लगातार विदेशी खालिस्तानी संस्थाओं द्वारा हर बार एक नया मानचित्र पेश किया जाता है. जिसमे वो पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड को अपने इलाके में लेना चाहते हैं.
आतंकवाद से तार
खालिस्तानी आंदोलन के तार आपको बड़े आराम से पाकिस्तानी आतंकवाद से जुड़े हुए मिल जायेंगे. 1980 से 1990 के दशक में खालिस्तान की मांग जोर पकड़ने लगी थी. साल 1984 ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद जो आम सिख थे वो भी इस आन्दोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगे थे. सिख भी इससे जुड़ने लगे.
मैं आपको कुछ सिख संगठनों का नाम बताने जा रहा हूं जिससे ये साफ़ पता चलता है कि खालिस्तान कि मांग वाले हर आन्दोलन की जड़ें कहीं न कहीं आतंकवाद से जुड़े हुए हैं.
बब्बर खालसा :- यह संगठन भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों में बैन है. इसने 27 जून 2002 को एयर इंडिया की फ्लाइट पर बमबारी की थी.
भिंडरांवाले टाइगर फोर्स, बीटीएफ :- इसकी स्थापना गुरबचन सिंह मनोचहल द्वारा 1984 में की गई. लेकिन इनकी मौत के बाद य संगठन बिखर सा गया.
खालिस्तान कमांडो फोर्स :- इसकी स्थापना सरबत खालसा ने 1986 में की जिसे बाद में अमेरिका ने आतंकी संगठन घोषित कर दिया. ऐसा माना जाता है की बेअंत सिंह की हत्या में इसका हाथ था.
खालिस्तान लिबरेशन फोर्स :- यह कश्मीर में अलगाववादियों का साथ भी देता है.
खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स :- यूरोपियन यूनियन ने इसे आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है.
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लेकिन ऐसा माना जाता है की असली खालसा सिख कभी भारत भूमि से अलग होने की बात कह ही नही सकता. लेकिन खालिस्तान की मांग में लगातार पाकिस्तानी जड़ों के हाथ होने के नाते साधारण सिंखों ने इनसे अपना रुख मोड़ लिया. और हमेशा से ही खालिस्तानी आन्दोलन में सबसे बड़ा हाथ हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान का हाथ है.
पाकिस्तान की नीति
शुरू से ही पाकिस्तान की नीति ‘ब्लीड इंडिया’ के तहत वो भारत के कई टुकड़े कर देना चाहता है. मतलब वही की एक तरफ भले ही वो बाकीदेशो से भीख मांग रहा हो लेकिन अगर बात भारत की आती है तो वो अपनी नकली मूछों को ताव देने में कभी पीछे नहीं हटा है. पाकिस्तान पूर्वी पाकिस्तान के माध्यम से पहले भारत के पूर्वी हिस्से पर कब्जा करना चाहता था और किसी भी कीमत पर कश्मीर को कब्जाना चाहता था.
आप खालिस्तान के प्रस्तावित नक्शे को देख सकते हैं जिसके अनुसार भारत का संपर्क कश्मीर से टूट जाएगा और पाकिस्तान से आसानी से कब्जा सकेगा. खालिस्तानी आंदोलन सबसे ज्यादा संचालित कनाडा अमेरिका और ब्रिटेन से होता है और वहीं पर इनकी संस्थाओं को आतंकी संस्था घोषित कर रखा है लेकिन फिर भी भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि वो चुपके से इन को बढ़ावा देने की कोशिश करते हैं.
जरनैल सिंह भिंडरांवाले और ऑपरेशन ब्लू स्टार का खालिस्तान संबंध
संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले को खालिस्तान का सबसे बड़ा समर्थक बताते है. कहा जाता है की 1984 के समय स्वर्ण मंदिर में मिसाइल लॉन्चर और गोला बारूद पाकिस्तान से आए थे. और उनके दम पर पाकिस्तान देश में ही भारत के लिए चुनौती खड़ा करना चाहता था.
जरनैल सिंह भिंडरांवाले इंदिरा गांधी द्वारा आदेशित भारतीय सेना द्वारा क्रियान्वित ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गए. लेकिन उन्होंने भारतीय सेना के कई जवानों को मार डाला और उसके बाद देश में भारी भीषण दंगे हुए.