प्रधानमंत्री ने दिया एक पुलिस यूनिफार्म पर तवज्जोह
भारत जैसे विशाल देश में अगर सभी को एक राष्ट्रीयता में बांधना है तो हमें लोगों के बीच अनेकों समानताएं पैदा करनी होगी। हाल ही में पधानमंत्री ने एक देश, एक पुलिस यूनिफार्म का जिक्र किया था, एक देश एक इलेक्शन का भी जिक्र देश में आये दिन होते रहता है। हम जहाँ एक तरफ एक देश, एक पुलिस यूनिफार्म की बात करते हैं लेकिन दूसरी तरफ हमारी पुलिस 1861 के इंडियन पुलिस एक्ट के तहत काम करती है। ये अंग्रेजों का वही कानून है जिसके जरिये उस समय के अधिकारी देश के स्वतंत्रता संग्रामी और जनता को दबाने के लिए इस्तेमाल करते थे, तो फिर आजाद भारत में जब अंग्रेजों द्वारा बनाई गई सभी नामों को और चिन्हों को बदला जा रहा, जब एक भारत एक पुलिस यूनिफार्म की बाते हो रही है तो फिर अंग्रेजों द्वारा बनाई गई इस इंडियन पुलिस एक्ट को क्यों नहीं बदला जा रहा है?
अभी भी देश की पुलिस शासक द्वारा बनाये गए कानून के अनुसार चल रही है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा में चल रहे सभी राज्यों के गृह मंत्रियों के लिए आयोजित दो दिवसीय ‘चिंतन शिविर’ को वीडियो कांफ्रेंस के जरिए संबोधित करते हुए कहते हैं कि पुलिस के लिए ‘‘एक राष्ट्र, एक वर्दी’’ होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इसे थोपना नहीं चाहिए बल्कि इस पर विचार करना चाहिए। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद ये मुद्दा लोगों के बीच जंगल की आग की तरह फ़ैल रहा है। इसके बाद देश के लिए सबसे बड़ा चिंता ये होना चाहिए की भाई जब भारत आजाद हो चूका है और भारतीय पुलिस को एक समान बनाने पर राय चल रही है तब आजाद भारत की पुलिस क्यों किसी डिक्टेटर या फिर शासक द्वारा बनाये गए कानून के अनुसार चल रही है?
इसके बाद दूसरा चिंता का विषय ये होना चाहिए की भारत एक विशाल देश है और यहाँ इतने सारे राज्य और राज्य सरकार काम कर रही है। ये सरकारें आपस में पुलिस के अधिकारों को लेकर हमेसा लड़ती हैं। सभी राज्यों ने पुलिस को खुद के अनुसार रखने के लिए अपना-अपना कानून बना रखा है। इससे ये भी आशय लगाया जा सकता है की भारत की पुलिस ना ही खुद आजाद है और ना ही जनता को पूर्ण आजादी मुहैया करवाने में सहयोग करते दिखती है।
आजादी के बाद इंडियन पुलिस एक्ट में नहीं हुआ कोई बड़ा बदलाव
आप राजाओं या जमींदारों के समय से ही देखे तो पुलिस एक ऐसी तीर थी जो हर समय शासकों के कमान में रहती थी। ठीक इसी तरह वर्तमान में भी पुलिस आजाद तरीके से जनता की मित्रता पाने में नाकाम रही है। आज भी पुलिस जनता की सुविधा से ज्यादा नेताओं की इच्छा का ख्याल रखते दिखती है। 1861 में बनी पुलिस एक्ट उस समय हो रहे आंदोलन को दबाने के लिए बना था। अगर वर्तमान में पुलिस की स्थिति देखे तो उस समय की पुलिस और आज की पुलिस में ज्यादा फर्क नहीं दीखता। हाँ लेकिन जहां आजाद भारत में इस कानून के साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं की गया, वहीं अंग्रेजों ने इस पुलिस एक्ट को समय-समय पर संसोधित करते रहे है। जैसे की 1861 के इस कानून में एक साल बाद ही इंडियन पीनल कोड जोड़ा गया और 1872 में एविडन्स एक्ट (Evidence Act) लाया गया। 1917 में अंग्रेजों द्वारा ही इंडियन पुलिस सर्विस (IPS) का गठन हुआ। ये सारी पुलिस रिफॉर्म्स अंग्रेजों ने अपने सहूलियत के लिए किये थे जो वर्तमान में राजनेताओं को सहूलियत प्रदान कर रहा है जिस कारण आज के नेता इस पुलिस एक्ट में कोई बदलाव नहीं करना चाहते।
एक तरह के कपड़ों से एक सोच नहीं आ सकती
अगर आप आसान भाषा में समझना चाहते है तो लोगों को जैसे एक कपड़ा पहना कर एक सोच नहीं दे सकते हैं वैसे ही पुलिस को एक धागे में गुथे बिना केवल एक रंग के कपड़े पहना देने मात्र से उनकी सोच में बदलाव नहीं लाया जा सकता। इस लिए देश की सरकार को एक मत से पुलिस के लिए नई निति बनाने की जरूरत है जो पुलिस और जनता के बीच मित्रता का भाव पैदा करे। दूसरी तरफ इस निति से पुलिस अधिकारिओं को भी इस अस्त-व्यस्त और चिंता भरी जिंदगी में राहत के कुछ पल मिल सके।