
दिल्ली में नगर निगम के चुनाव होने वाले हैं और इन चुनाव को लेकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी, केंद्र की बीजेपी पार्टी और विपक्ष की कांग्रेस पार्टी के बीच जंग शुरू हो गयी है. वहीँ कई मायनों में सभी पार्टी इन चुनाव को जीतने के लिए अपना दम दिखा रही है. वहीं इस बीच इस पोस्ट के जरिये हम आपको इस बात की जानकरी देने जा रहे हैं नगर निगम के चुनाव क्या होते हैं और कैसे इनकी शुरुआत हुई.
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MCD का गठन संसद द्वारा पारित दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के तहत किया गया। भारत की आजादी के एक दशक बाद नीति निर्माता जब एमसीडी के बारे सोच रहे थे तो तो इसे 'बॉम्बे नगर निगम' की तर्ज दिल्ली नगर निगम के गठित करने का फैसला लिया गया था। वहीं इस एमसीडी की यात्रा 64 साल पहले दिल्ली चांदनी चौक स्थित ऐतिहासिक टाउनहॉल से शुरू हुई थी.
साल 1958 में एमसीडी में पार्षदों की संख्या 80 थी। इसके बाद बाद 134 और 2007 में यह संख्या 272 तक पहुंच गई और साल 2011 में नगर निगम में तीन हिस्सों उत्तरी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में बाँट दिया गया. वहीँ इस हिसाब से 104-104 वहीं पूर्वी दिल्ली दिल्ली में 64 वार्ड पर चुनाव हुए हैं और तीनों ही जगह के लिए अलग-अलग मेयर चुने गए। वहीं अब करीब 11 साल बाद एमसीडी को मोदी सरकार ने एक कर दिया गया। इसके लिए जब विधेयक पारित किया उसमें इस बात का जिक्र था कि वार्ड की संख्या 250 से अधिक नहीं होगी।
मोदी सरकार द्वारा जब से तीनों नगर निगम को एक करने की घोषणा करी गयी है उसके बाद से नगर निगम का एक ही सदन होगा। एक ही मेयर, एक ही स्टैंडिंग कमिटी। इसके अलावा अब हाउस टैक्स, लाइसेंस आदि के लिए एक ही नीति होगी।
दिल्ली नगर निगम के चुनाव की वोटिंग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) के जरिए होती है और एक लाख से ज्यादा स्टाफ एमसीडी चुनाव को करवाता है. वहीं चुनाव का ऐलान होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है.
दिल्ली की MCD यहां पर स्ट्रीट लाइट, प्राइमरी स्कूल, प्रॉपर्टी और प्रोफेशनल टैक्स कलेक्शन, टोल टैक्स कलेक्शन सिस्टम, शमशान और जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र, डिस्पेंसरीज, ड्रेनेज सिस्टम, बाजारों की देखरेख आदि का काम करती है.
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