‘सेम सेक्स मैरिज’ को कानूनी मान्यता देने की मांग कर रही याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने करते हुए कहा कि, “समलैंगिक संबंध सिर्फ शहरी विचारधारा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि शहरों में अपनी योंन पहचानने वाले लोग सामने आते हैं, लेकिन इसका यह मतलब ये कतई नहीं हुआ कि है कि इसे शहरी विचार कहा जाए.
BREAKING: Centre tells #SupremeCourt that same-sex marriage is an urban elitist concept which is far removed from social ethos of country. Extending same sex marriage beyond heterosexual unions will create a new institution, Centre says. pic.twitter.com/xT4SG2SiWr
— LawBeat (@LawBeatInd) April 17, 2023
सीजेआई ने यह भी कहा कि सरकार के पास कोई ऐसा कोई डेटा नहीं है, जिससे ये पता चले कि सिर्फ शहरों में ही समलैंगिक विवाह की मांग की जा रही है. इससे पहले केंद्र सरकार की तरफ से समलैंगिक विवाह की मांग के विरोध में एक एफिडेविट पेश कर कहा गया था कि यह सिर्फ कुछ शहरी वर्ग की सोच को दिखाता है.
‘समाज को ऐसे बंधन स्वीकार करने के लिए करें प्रेरित’
वहीँ दूसरी तरफ समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह अपने समाज को ऐसे बंधन को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करे ताकि एलजीबीटीक्यूआईए(LGBTQIA) समुदाय के लोग भी विषम लैंगिकों(heterosexuals) की तरह सम्मानजनक जीवन जी सकें. कुछ याचिकाकर्ताओं ने इसकी भी मांग की कि राज्यों को आगे आना चाहिए और सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देनी चाहिए.
एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने पांच सदस्यीय पीठ के सामने मांग रखते हुए विधवा पुनर्विवाह का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि विधवा पुनर्विवाह से जुड़े कानून को पहले स्वीकार नहीं किया गया, लेकिन कानून ने तत्परता से काम किया और आखिरकार इसे समाज की स्वीकृति मिली.
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साथ ही संविधान के अनुच्छेद 142 का भी जिक्र किया, ‘जो उच्चतम न्यायलय को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक किसी भी आदेश को पारित करने की पूर्ण शक्ति प्रदान करता है . उन्होंने कहा कि, “SC के पास इसके अलावा नैतिक अधिकार भी है और जनता का भरोसा भी हासिल है. हम ये सुनिश्चित करने के लिए अदालत की प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार पर निर्भर है कि हमें हमारा हक़ मिल सके’.
राज्यों को भी बनाना चाहिए पक्ष – केंद्र सरकार
वहीँ दूसरी तरफ इस याचिका के खिलाफ केंद्र सरकार इस मामले में घुस चुकी है. केंद्र की तरफ दायर याचिका में कोर्ट से ये आग्रह किया गया है कि इस मामले में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी पक्ष बनाया जाए. दलीलों पर लौटते हुए रोहतगी ने आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर किए जाने समेत अन्य फैसलों का जिक्र किया.
उन्होंने कहा, “अदालत किसी ऐसे विषय पर फिर से विचार कर रही है, जिसमें पहले ही फैसला किया जा चुका है.” उन्होंने कहा, “मेरा विषम लैंगिक समूहों के मामले में समान रुख है और ऐसा नहीं हो सकता कि उनका यौन ओरियेंटेशन सही हो और बाकी सभी का गलत. मैं कह रहा हूं कि एक सकारात्मक पुष्टि होनी चाहिए … हमें कमतर मनुष्य नहीं माना जाना चाहिए और इससे हमें जीवन के अधिकार का भरपूर आनंद मिल सकेगा.”
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 25 नवंबर को दो समलैंगिक जोड़ों की ओर से दायर अलग-अलग याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था. इन याचिकाओं में दोनों जोड़ों ने शादी के अपने अधिकार को लागू करने और संबंधित अधिकारियों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाह को पंजीकृत करने का निर्देश देने की अपील की थी.
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