जब हम किसी भी इंसान से पहली बार मिलते है तो उसे क्या पूछते है… साधारण सी बात है उसका नाम… लेकिन नाम पूछने के पीछे क्या कारण होता है?? उनके बारे में जाना ? या उनकी जाति के बारे में जाना? आजकल लोग जब किसी से पहली बार मिलते है तो सामने वाले का पूरा नाम पूछते है ताकि उनके नाम से पता लगे कि वह कौन सी जाति का है… फिर उसी हिसाब से उनके बारे में आगे की राय बनाई जाती है. एक तरफ लोग खुद को ओपन माइंडेड कहते है दूसरी तरफ जाति के हिसाब से दूसरी को ट्रीट करते है. यह दोगलापन हमारे समाज में हमेशा से ही है. इन्ही समाजिक मुद्दों को लेकर काफी फिल्मे, किताबे और गाने भी बनाए गए है, जिन्हें सुनना, पढ़ा और देख तो जाती है लेकिन अपनाया नहीं जाता. रह रह कर लोगो का दोगलापन निकलता है. ऐसे वही कुछ फिल्मे जत्यी व्यवस्था जैसे मुद्दों के बारे में बात करती है जो आज भी हमारे समाज की कमजोरियों को बयान करता है. कुछ फिल्मे हमारे समाज के ऊपर तमाचे का काम करती है. इन फिल्मों को देख कर सिनेमा की असली ताकत का अंदाजा लगा सकते है. आज हम कुछ ऐसी फिल्मे लेकर आए है जो समाज में जातिगत भेदभाव को उजागर करती है. इस लेख से आज हम आपको ऐसी ही फिल्मों से वखिद करंगे.
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पूंजीवादियों के शोषण और दलितों के संघर्ष का दिखाती ये फिल्मे
आर्टिकल 15
आर्टिकल 15, एक भारतीय अपराध ड्रामा है जो 2019 में अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित की गयी थी. यह फिल्म समाज में जाति व्यवस्था को लेकर लोगों के नजरिये को बयान करती है. इस फिल्म में मुख्य भूमिका आयुष्मान खुराना जिसने एक पुलिस जासूस की भूमिका निभाई है. इस फिल्म में दिर्शाया गया है कि भारतीय सविधान के आर्टिकल 15 सबको समानता का अधिकार देता है लेकिन आजादी के इतने वर्षो के बाद भी हमारे समाज में जातिगत भेदभाव होते है इस फिल्म में एक गाव की तीन दलित लडकियां गायब हो जाती है. दो की लाश मिलती है एक का कुछ पता नहीं चलता. अयान यानि आयुष्मान खुराना जब इस केस की जाँच करता है तो उसे पता चलता है कि दलितों के साथ कितना अन्याय हो रहा है. उन दलित लडकियों के साथ गैंगरेप हुआ क्यों कि उन्होंने अपनी मजदूरी तीन रुपये बढ़ाने को बोल दिया था. इस फिल्म ने समाज में हो दलित के साथ दुर्व्यवहार हो दर्शाया गया है.
शूद्र-द राइजिंग
शूद्र-द राइजिंग देश में दलितों की दुर्दशा को दिखाती है. यह उन लोगों पर सवाल उठाता है जो जाति व्यवस्था में विश्वास करते हैं. यह फिल्म 2012 की भारतीय हिंदी भाषा की फिल्म है. इसके निर्देशन संजीव जयसवाल है , जिन्होंने इस फिल्म को बाबा साहेब को समर्पित किया है. यह फिल्म उन असहाय जाति के लोगो की कहानी है जो अपराधो को बर्दाश करना बंद करने का फैसला करते है. एक गाव के कुछ दलित ज़मीदार का विरोध करते है जो ज़मीदार उनकी लडकियों और महिलाओं का बलत्कार करता है जो दलितों का शोषण करता है. यह फिल्म एक शानदार फिल्म हा जो समाज में दलितों के विरोध को बयां करती है.
परियेरम पेरुमल
परियेरम पेरुमल एक तमिल भाषा की फिल्म है जो तमिल निर्देशक मारी सेल्वराज द्वारा बनाई गयी है. यह फिल्म दिखाती है की कोई इंसान कितनी जिल्लत सह सकता है, किनी बेज्जती सह सकता है. इस फिल्म पेरारियातवर का तमिल में अर्थ होता है ‘सम्मानित व्यक्ति’. इस फिल्म के मुख्य किरदार को हर तरह से नुकसान पहुचाया जाता है. शारीरिक. मानसिक तौर पर उसे तोड़ दिया जाता है लेकिन फिल्म की खास बात यह है कि वह अपने प्रतिनिधि उच्च जाति के लोगो से ऊपर उठ कर दिखता है. यह एक सामाजिक बन्धनों के साथ प्रेम कहानी है.
जैत रे जैत
जैत रे जैत भाषा एक मराठी भाषा की फिल्म है जो मराठी निर्देशक जब्बार पटेल द्वारा बनाई गई है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि हर कोई अपने जीवन का कुछ न कुछ मकशद तलाशता है. इस फिल्म ने नाग्या अपने जीवन का मकशद तलाशता है. उसके दलित जीवन से ऊपर उठा कर अपने लिए एक उच्च जीवन सोचा है, लेकिन इस फिल्म में वह वहां तक पहुचने की कोशिश करता है. वही दूसरी तरफ अभिनेत्री अपने शराबी पति को छोड़ का कर आ जाती है वही उसे नाग्या मिलता है दोनों साथ मिलकर अपने जीवन के मकशद तक पहुचने की कोशिश करते है यह एक छोटे बजट की बेहतरीन फिल्म है. जो दलितों की जीवन शैली को ऊपर उठाने के मुद्दे को दर्शाती है.
पेरारियातवर
पेरारियातवर मलयालम भाषा में बनी फिल्म है जिसका मलयालम निर्देशन बीजू कुमार दामोदर ने किया है. यह एक सत्य घटना पर आधारित फिल्म है. यह फिल्म एक खतरनाक मैसेज दिखाती है. इस फिल्म में एक ऐसी दुनिया दिखाई गयी है, जिससे हमारा समाज कब का मुहं मोड़ चुका है. इस फिल्म में एक सफाईकर्मी पर उसके बेटे की आंखो से दुनिया को दिखाते है. उनकी रोजमर्रा के जीवन को दिखाती है. इस फिल्म की की आवाज को आप अनसुना नहीं कर पाते. यह एक शानदार, छोटे बजट की फिल्म है.
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