फिल्म देश और समाज के लिए है आइना
फिल्म किसी भी देश और समाज के लिए एक आइना का काम करती है और भारत जैसे देश में जहां जनता को सिनेमा से इतना लगाव है, वहीं दूसरी तरफ राजनीति और सिनमे का भी अच्छा खासा लगाव है। आपको ‘गैंग्स ऑफ़ वैसेपुर’ का रामाधार सिंह का वह डायलाग तो याद ही होगा जिसमे वह कहते हैं, ‘काहे की हम सिनेमा नहीं देखते, हिन्दुश्तान में जब तक सिनेमा है, लोग चु ..** बनते ही रहेंगे’ और जब आपको ये डॉयलोग याद होगा तो आपको ये भी याद होगा की रामाधार सिंह 2012 के इस क्राइम ड्रामा में एक राजनेता है। हमारे रियल राजनेताओं को भी पता है की सिनेमा में क्या दिखना चाहिए, क्या नहीं। इसलिए बॉलीवुड में आज कल समाज के मुद्दों पर बात करती हुई कोई फिल्म नहीं दिखेगी। हाँ .. पर साउथ इंडियन मूवी देखे तो आपको जय भीम और कांतारा (Kantara)जैसी फिल्मे मिलेंगी जो राष्ट्रवाद, रोमांस और आइटम नंबर से आगे, आम जनता कैसे राजनीति, अदालत और पुलिस के चक्कर में पीस रही है ये भी दिखती है।
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एंटरटेनमेंट और जमीनी मुद्दों का मेल है कांतारा
आज हम बात करेंगे कांतारा की जो हमारे समाज के गहरी और भयानक सच्चाई को दिखाती है। डायरेक्टर ऋषभ शेट्टी (Rishabh Shetty) की यह फिल्म सरकार और आदिवासियों के बिच चल रहे एक लड़ाई का किस्सा है। पहले ऐसे फिल्म बॉलीवुड में भी दिखाई देती थी। पहले ‘जाने भी दो यारो और रंग दे बसंती’ जैसी मूवी बॉलीवुड में दिखाई पड़ती थी पर अब बॉलीवुड एक तरीके से इन सब मामलों में मतलब की सरकार के खिलाफ कम ही बोलते दिखती है। लेकिन आप साउथ इंडियन फिल्म देखे तो वो ‘जय भीम’ और ‘कांतारा’ जैसी फिल्मे सरकार और जनता के बीच के मुद्दे को गहराई से उठा रही है। हम आपको यहाँ कांतारा फिल्म के बारे में बता कर आपको spoiler नहीं देना चाहते पर अगर इस फिल्म का सार आपको बताये तो फिल्म में शिवा के किरदार में लीड रोल में आपको ऋषभ शेट्टी नजर आएंगे जो आदिवासियों और जंगल की परम्पाराओं के लिए लड़ते दिखेंगे। इस फिल्म में एंटरटेनमेंट के साथ समाज और आदिवासियों के जमीनी मुद्दों को जोड़ कर रखना आसान नहीं था, पर ऋषभ शेट्टी ने अपने निर्देशन और अदाकारी से इन दोनों चीजों को पूरे फिल्म में बहुत ही खूबसूरती से जोड़ कर रखा है।
आदिवासियों के संघर्ष की असली कहानी
फिल्म की शुरुआत कनार्टक के तटीय मेंगलोर इलाके में सन 1847 में घटी एक कहानी से शुरू होती है। उस दौरान एक राजा शांति के तलाश में जंगल चले जाते है, जिनको बहुत समय बाद पंजुरी देव से ये शांति प्राप्त होती है।पंजुरी देव को अपने घर लाने के लिए राजा वहां के ग्रामीणों को काफी बड़ी भूमि दान कर देते हैं। यही से शुरू होती है आदिवासियों के संघर्ष की असली कहानी। इसके बाद कभी सरकार तो कभी राजा के वंसज उन आदिवासियों को जमीन के लिए परेशान करते रहते है। अगर आप ट्राइबल राइट्स के बारे में थोड़ा बहुत पढ़ते हैं तो आपको ये फिल्म एक आइना ही नजर आएगी। निर्देशक ने आदिवासियों के मुद्दों को पौराणिक कथाओं से जोड़कर बहुत खूबसूरती के साथ पेश किया है।
बॉलीवुड के लिए छुपी है बड़ी सीख
इस फिल्म में जमीनी स्तर पर चल रहे जाती वर्ण की कुप्रथाओं को भी दिखाया गया है। जमींदार और सरकार आदिवासी को किस तरह देखते है, इस फिल्म में साफ़ तौर पर दर्शाया गया है। कैसे पढ़े-लिखे लोग अनपढ़ आदिवासियों का फायदा उठाते हैं ये भी इस फिल्म के जरिए काफी साफ़ करने की कोशिश की गई है। ये फिल्म बहुत ही कम बजट में बनाई गई मूवी है लेकिन बॉक्स ऑफिस पर अभी तक कांतारा ने अपने बजट से 10 गुना ज्यादा की कमाई कर के ये साबित कर दिया है की जनता अब बड़े बजट की मूवी पर नहीं अटकेगी अब उसको भी दमदार स्टोरीलाइन चाहिए। इसका प्रमाण आपको इससे पता चल जायेगा की आमिर खान की बड़े बजट की फिल्म लाल सिंह चड्डा बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो जाती है वहीं कांतारा जैसी छोटी बजट की समाजिक मुद्दों वाली फिल्म, जनता बॉक्स ऑफिस पर खुले दिल से स्वीकार करती है। इस फिल्म से बॉलीवुड भी बहुत कुछ सिख सकता है और अपने अंदर सुधार भी भी ला सकता है।
कन्नड़ सिनेमा की सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म
फिल्म के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन (Kantara Box Office Collection) की बात करें तो कांतारा कन्नड़ सिनेमा की अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई है। फिल्म रिलीज के तीन हफ्तों के भीतर ही भारत में 100 करोड़ क्लब में शामिल हो गई, वहीं वर्ल्ड वाइड कांतारा ने 150 करोड़ से ज्यादा की कमाई की है।