मुनव्वर राणा के 50 सबसे मशहूर शेर

Munawwar Rana
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Munawwar Rana ke Sher in Hindi – आजकल के समय में भी कई लोग हैं जो शायरी सुनना या लिखना पसंद करते हैं. शायरी में दर्द होता है जो हालात को कुछ खुबसूरत शब्दों में सुनाए या लिखे जाते हैं और इन शायरियों के सभी लोग फैन हैं. ऐसे ही एक मशहूर शायर हैं. मुनव्वर राणा (Munawwar Rana) जो रायबरेली, उत्तर प्रदेश में जन्में हैं और उनकी श्य्यारी खूब मशहूर हैं. मुनव्वर राणा उर्दू साहित्य के अज़ीम शायर हैं. वहीं इस पोस्ट के जरिए हम आपको मुनव्वर राणा के  के 50 सबसे मशहूर शेर के बारे में बताने जा रहे हैं.

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मुनव्वर राणा के 50 मशहूर शायरी – Munawwar Rana ke Sher

  1. तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
    तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है.
  2. आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
    इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए.
  3. अपनी फजा से अपने जमानों से कट गया
    पत्‍थर खुदा हुआ तो चट्टानों से कट गया.
  4. बदन चुरा के न चल ऐ कयामते गुजरां
    किसी-किसी को तो हम आंख उठा के देखते हैं.
  5. झुक के मिलते हैं बुजुर्गों से हमारे बच्चे
    फूल पर बाग की मिट्टी का असर होता है.
  6. कोई दुख हो, कभी कहना नहीं पड़ता उससे
    वो जरूरत हो तलबगार से पहचानता है.
  7. एक क़िस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया
    इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझे.
  8. भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
    मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है.
  9. हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
    जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं.
  10. अँधेरे और उजाले की कहानी सिर्फ़ इतनी है
    जहाँ महबूब रहता है वहीं महताब रहता है.
  11. किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
    मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई.
  12. मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
    अब इस से ज़यादा मैं तेरा हो नहीं सकता.
  13. वो बिछड़ कर भी कहाँ मुझ से जुदा होता है
    रेत पर ओस से इक नाम लिखा होता है.
  14. मैं भुलाना भी नहीं चाहता इस को लेकिन
    मुस्तक़िल ज़ख़्म का रहना भी बुरा होता है.
  15. ये हिज्र का रस्ता है ढलानें नहीं होतीं
    सहरा में चराग़ों की दुकानें नहीं होतीं.
  16. नये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है
    परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है.
  17. मोहाजिरो यही तारीख है मकानों की
    बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा.
  18. तुझसे बिछड़ा तो पसंद आ गयी बे-तरतीबी
    इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था.
  19. तुझे अकेले पढूँ कोई हम-सबक न रहे
    मैं चाहता हूँ कि तुझ पर किसी का हक न रहे.
  20. सिरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं
    हम तो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं.

मुनव्वर राणा की माँ पर शायरी – Munawwar Rana ke Sher

  1. मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
    मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना.
  2. लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
    बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती.
  3. जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
    मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा.
  4. किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
    मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई.
  5. ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
    माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
  6. इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
    माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है.
  7. मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
    माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ.
  8. ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
    माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे.
  9. अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
    मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है.
  10. दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
    कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है.

    मुनव्वर राणा के जबरदस्त शेर

  11. आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
    इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए.
  12. ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
    टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए
  13. बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग
    इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी.
  14. एक क़िस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया
    इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझे
  15. भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
    मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है.
  16. ताज़ा ग़ज़ल ज़रूरी है महफ़िल के वास्ते
    सुनता नहीं है कोई दोबारा सुनी हुई
  17. हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
    जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं
  18. अँधेरे और उजाले की कहानी सिर्फ़ इतनी है
    जहाँ महबूब रहता है वहीं महताब रहता है.
  19. कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
    तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा
  20. किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
    मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई.
  21. मैं इस से पहले कि बिखरूँ इधर उधर हो जाऊँ
    मुझे सँभाल ले मुमकिन है दर-ब-दर हो जाऊँ.
  22. मसर्रतों के ख़ज़ाने ही कम निकलते हैं
    किसी भी सीने को खोलो तो ग़म निकलते हैं.
  23. मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
    अब इस से ज़यादा मैं तेरा हो नहीं सकता.
  24. मुख़्तसर होते हुए भी ज़िंदगी बढ़ जाएगी
    माँ की आँखें चूम लीजे रौशनी बढ़ जाएगी.
  25. वो बिछड़ कर भी कहाँ मुझ से जुदा होता है
    रेत पर ओस से इक नाम लिखा होता है
  26. मैं भुलाना भी नहीं चाहता इस को लेकिन
    मुस्तक़िल ज़ख़्म का रहना भी बुरा होता है.
  27. तेरे एहसास की ईंटें लगी हैं इस इमारत में
    हमारा घर तेरे घर से कभी ऊँचा नहीं होगा.
  28. ये हिज्र का रस्ता है ढलानें नहीं होतीं
    सहरा में चराग़ों की दुकानें नहीं होतीं.
  29. ये सर-बुलंद होते ही शाने से कट गया
    मैं मोहतरम हुआ तो ज़माने से कट गया.
  30. उस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर
    ये पेड़ सिर्फ़ बीच में आने से कट गया.

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