भारत का कद बढ़ रहा है और यह इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि विरोधी देशों की रातों की नींद उड़ी हुई है. वैश्विक महाशक्तियां भारत के इशारे पर चलने को मजबूर हैं. वहीं, दुनिया के तमाम देश भारत के पीछे-पीछे चल रहे हैं. दुनिया में भारत की बढ़ती पकड़ ने विरोधियों को भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचने पर मजबूर कर दिया है. मौजूदा समय में देश विदेश में खालिस्तान को लेकर मच रहा बवाल भी उसी का हिस्सा है क्योंकि कई दशकों बाद खालिस्तान को लेकर इतनी उग्रता देखने को मिली है. इस लेख में हम आपको विस्तार से उन देशों के बारे में बताएंगे, जो खालिस्तानियों को पाले हुए हैं लेकिन उनकी स्थिति ऐसी हो चली है कि उन देशों में कभी भी खालिस्तान बन सकता है.
ब्रिटेन में ‘खालिस्तान’
पंजाब और उसके अगल बगल के हिस्से को भारत से काटकर खालिस्तान बनाने के सपने खालिस्तानी लंबे समय से देखते आ रहे हैं. आजादी के पूर्व से ही इसकी मांग उठने लगी थी. शिरोमणि अकाली दल ने तो 1929 में ही सिखों के लिए एक अलग प्रांत की मांग कर दी थी. आजादी के बाद यह मांग तेज हुई और 1947 में पंजाब सूबा आंदोलन शुरु हो गया. 19 वर्षों तक यह आंदोलन चला और 1966 में भाषाई आधार पर पंजाब का विभाजन हो गया. लेकिन खालिस्तान की मांग नहीं थमी. उसके बाद वर्ष 1969 में टांडा विधानसभा सीट से चुनाव हारने के बाद जगजीत सिंह (Jagjit Singh) टांडा ब्रिटेन चले गए और उसके बाद पहली बार वहां खालिस्तान आंदोलन (Khalistan Movement) की शुरुआत हुई.
धीरे-धीरे ब्रिटेन में खालिस्तानी बढ़ने लगे और भारत के खिलाफ ब्रिटेन की गिरी हुई मानसिकता और सोच ने खालिस्तानियों की मांग को हवा देने का काम किया. ब्रिटेन (Khalistan in Britain) में स्वतंत्र रूप से सड़कों पर उतर कर भारत के तिरंगे का अपमान करते हुए खालिस्तानी तत्वों ने भारत में खालिस्तान की मांग करना आरंभ कर दिया.
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खालिस्तानियों के पनाहगार बने हैं ये देश
धीरे-धीरे यह दुनिया के अन्य देशों में फैलने लगा और वहां की सराकारें मूक दर्शक बनी रहीं. उनकी चुप्पी को खालिस्तानियों के प्रति उनका समर्थन भी कहा जा सकता है क्योंकि आज के समय में भी खालिस्तानियों को लेकर विदेशी सरकारों के रूख में कुछ खास परिवर्तन नहीं आया है. ब्रिटेन पूर्ण रूप से खालिस्तानियों का गढ़ बना हुआ है, उनके खिलाफ वहां की सरकार चूं तक नहीं करती. अभी के समय में भी अमृतपाल सिंह प्रकरण के बाद ब्रिटेन में खालिस्तानियों ने बवाल मचाया है लेकिन भारत के प्रति कुंठा ने इस अंग्रेज देश को मानसिक गुलाम बना दिया है.
ब्रिटेन के अलावा पाकिस्तान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्पेन, इटली, स्विट्जरलैंड और कनाडा तक खालिस्तानी सक्रिय हैं. लेकिन उनके खिलाफ कहीं भी किसी भी कार्रवाई देखने को नहीं मिलती. भारत को आगे बढ़ते देखना इन विदेशी राष्ट्रों को चुभता है और शायद यही कारण है कि ये राष्ट्र भारत को तोड़ने का सपना देखने वाले खालिस्तानियों का अनाधिकारिक तौर पर समर्थन करते दिखते हैं. लेकिन ये भूल जाते हैं कि खालिस्तानी कब उन पर ही धावा बोल देंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि कनाडा में तो खालिस्तानी अपनी मंशा का प्रदर्शन भी कर चुके हैं.
कनाडा में खालिस्तानियों का वर्चस्व
इन राष्ट्रों के अलावा कनाडा भी खालिस्तानियों के घर समान है. कनाडा का शहर ब्रैम्पटन (Brampton) तो खालिस्तानियों का ‘गृह शहर’ है यानी उस जगह पर आपको केवल और केवल खालिस्तानी ही देखने को मिलेंगे. हाल ही में ब्रैमप्टन को स्वतंत्र कराने को लेकर वहां खालिस्तानियों ने विद्रोह कर दिया था. इसका मतलब साफ है कि जिस कनाडा (Canada) ने भारत के प्रति अपनी कुत्सित मानसिकता के कारण खालिस्तानियों को समर्थन देने का काम किया, खालिस्तानी उसी कनाडा के टुकड़े करने में लगे हुए हैं.
कनाडा में तो कई खालिस्तान समर्थक सत्ता में भी बैठे हुए हैं. वहीं, ब्रैम्पटन (Brampton) तो केवल उदाहरण है. कनाडा के कई हिस्सों में खालिस्तानी अपनी पकड़ मजबूत कर चुके हैं. ऐसे में आने वाले समय में इन देशों में भी खालिस्तान को लेकर मांग उठने लगे, तो आश्चर्यचकित मत होइएगा क्योंकि सांप को आप कितना भी दूध पिला ले, वह रहेगा सांप ही. बाकी तो सब समझदार ही हैं!
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