End of Sikhs in Pakistan – बात है साल 2019 की जब पाकिस्तान ने अपनी ओर वैश्विक ध्यान उस समय आकर्षित किया जब इसने करतारपुर में भारत से आने वाले सिख श्रद्धालुओं के लिए गुरुद्वारा खोला. लेकिन सच तो ये है कि पकिस्तान में अब सिख समुदाय लगातार भेदभाव का शिकार हो रहा है. पाकिस्तान के अशांत उत्तर-पश्चिमी भाग में मुख्य तौर पर रहने वाले सिख डर के साए में जी रहे हैं. 500 वर्ष पुराने धर्म की स्थापना ननकाना साहिब में हुई थी जोकि सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी की जन्मस्थली है और अब यह पाकिस्तान में स्थित है.
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1947 में भारत के विभाजन के समय पाकिस्तान में 20 लाख से ज्यादा सिख रहते थे और लाहौर, रावलपिंडी और फैसलाबाद जैसे बड़े शहरों में सिख समुदाय की महत्वपूर्ण आबादी रहती थी. भारत-पाकिस्तान की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ज्यादातर सिखों ने पाकिस्तान को भारत के लिए छोड़ा. जबकि पाकिस्तान की नैशनल डाटा बेस एंड रजिस्ट्रेशन अथारिटी का दावा है कि पाकिस्तान में 6,146 पंजीकृत सिख हैं. एक एन.जी.ओ. सिख रिसोर्स एंड स्टडी सैंटर द्वारा करवाई गई जनगणना के अनुसार अभी भी वहां पर 50 हजार के करीब सिख रहते हैं.
Sikh Population in Pakistan
घटती आबादी के चलते आई, अधिकारों में गिरावट
End of Sikhs in Pakistan
- सिख समुदाय को पगड़ी और कड़ा पहनने के कारण भी प्रताडऩा झेलनी पड़ी है.
- 2011 में नसीरा पब्लिक स्कूल, कराची में 2 छात्रों को अपनी पगड़ी और कड़ा कुछ अज्ञात कारणों से उतारने के लिए उन पर दबाव डाला गया था.
- एक दूसरे मामले के तहत एक सिख व्यक्ति को एक कंपनी ने इसलिए निकाल दिया क्योंकि उस व्यक्ति ने सिख जीवन शैली को अपना रखा था. उसने अपनी कलाई में कड़ा और अपने लम्बे केश को ढंकने के लिए एक पगड़ी पहन रखी थी. वह हर समय कृपाण को अपने साथ रखता था. इसके नतीजे में सिख युवकों में साक्षरता दर भी कम हो गई.
- कुछ सिख युवकों के अनुसार विश्वविद्यालयों में एडमिशन पाने की उ मीद बेहद कम होती है. अगर किसी तरह वह अपनी शिक्षा पूरी करने में कामयाब हो जाएं तो नौकरियों के लिए पाकिस्तान में मात्र 5 प्रतिशत रोजगार कोटा सभी अल्पसंख्यक समुदायों के लिए आरक्षित है.
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- लगातार भेदभाव के नतीजे में सिख समुदाय (End of Sikhs in Pakistan) आर्थिक तौर पर अपंग हो चुका है. दस्तार, कड़ा, कृपाण पहनने में भी उनको डर लगता है. सिखों के साथ भेदभाव इतना ज्यादा हो चला है कि गुरुद्वारों को जबरन बंद करवा दिया गया है.
- 2016 में पेशावर में तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के सिख विधायक सोरन सिंह की हत्या की गई. इस हत्या की जम्मेदारी तालिबान ने ली. इस मामले में पुलिस ने एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और अल्पसंख्यक हिन्दू नेता बलदेव कुमार को गिरफ्तार कर लिया. क्योंकि पुलिस आतंकियों से डरती है इसलिए हत्याओं को वह अल्पसंख्यकों के बीच अंदरुनी झगड़े या कारोबारी शत्रुता बता देती है.
- लेखक हारून खालिद जिन्होंने पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों पर कई किताबें लिखी हैं जिसमें ‘वाकिंग विद नानक’ शामिल है, ने कहा कि इन हत्याओं के पीछे आतंकी ही जिम्मेदार हैं. तालिबान ने गैर-मुसलमानों पर जजिया भी लगा रखा है.
- 2009 में तालिबानों ने जजिया अदा न करने वाले 11 सिख परिवारों के घरों को तबाह कर दिया. 2010 में खैबर एजैंसी से संबंध रखने वाले सिख युवक जसपाल सिंह के परिवार द्वारा जजिया न देने के कारण उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया.
- कट्टरवादी तत्वों ने ननकाना साहिब गुरुद्वारा को घेर लिया और उसे ध्वस्त करने की धमकी दी. जबकि अनेकों सिख श्रद्धालु गुरुद्वारे के अंदर फंसे हुए थे. प्रदर्शनकारियों ने यह भी नारेबाजी की कि वह जल्द ही ननकाना साहिब गुरुद्वारे का नाम बदलकर गुलाम-ए-मुस्तफा रख देंगे.
- सिख युवतियों का जबरन धर्मांतरण भी सिख समुदाय के लिए एक वास्तविक खतरा है. लाहौर की जी.सी. कॉलेज यूनिवॢसटी के प्रोफैसर कल्याण सिंह का कहना है कि यही वजह है कि पाकिस्तान में सिखों की आबादी कम हो रही है.
- इसके अलावा एक बड़ा कारण जबरन धर्मांतरण भी है.
End of Sikhs in Pakistan – एक कार्यकारी सदस्य हरिन्द्र पाल सिंह का कहना है कि इससे इमरान सरकार का दोहरा चेहरा सामने आता है. एक ओर इमरान सिखों के हितैषी बनते हैं और दूसरी ओर उनके देश में सिख महिलाओं से ऐसा व्यवहार किया जाता है. इमरान के दावे शक के घेरे में आते हैं. मानवीय अधिकारों पर पाकिस्तान का ट्रैक रिकार्ड भी जग जाहिर है. ऐसे में पकिस्तान में सिख समुदाय का कम होना या विलुप्त होना कोई आम बात नहीं है बल्कि एक ऐसी समस्या है जिसपर UNO भी शांत बैठा हुआ है.
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