इतिहास में आंबेडकर के कई किस्से हैं लोकप्रिय
जब इंसान महान व्यक्तियों में शामिल हो जाता है तो इतिहास में उसके नाम के कई किस्से भी प्रचलित होते हैं और अनगिनत अफवाहें भी। ठीक इसी तरह भारतीय इतिहास में बाबा साहब डॉ. भीम राव आंबेडकर के बारे में भी कई चीजें लोकप्रिय हैं। बाबा साहब की जाति देखकर कभी कोई उनको खाना खिलाने से मना कर देता था तो कभी कुछ लोग उनको अपने घर में रुकने की अनुमति नहीं देते थे।
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- सच है या फिर एक अफवाह?
उस समय ऐसा सिर्फ आंबेडकर के साथ ही नहीं होता था बल्कि बहुजन समाज के हर इंसान के साथ समाज में ऐसा बर्ताव होते रहता था। बहुजन समाज और दलितों के लिए प्राचीन भारत में एक ऐसा ही नियम था जो उन्हें किसी भी हिन्दू मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देता था। बाबा साहब के बारे में भी ऐसा ही कहा जाता है कि जब वो नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ के मंदिर में गए थे तो उन्हें प्रवेश करने से मना कर दिया गया था। आज हम यह जानने की कोशिश करेंगे की आंबेडकर के इस किस्से में कितनी सच्चाई है और कितनी अफवाह।
आंबेडकर और नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर का किस्सा
इतिहास के पन्नों में बाबा साहब डॉ. भीम राव आंबेडकर के बारे में एक किस्सा बहुत प्रचलित है और वो यह है कि आंबेडकर जब नेपाल गए थे तो उन्हें काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ के मंदिर में जाने से रोक दिया गया था। किस्से की शुरुआत होती है साल 1956 में यानि की बाबा साहब की मृत्यु से पहले और बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने के बाद, जब वह वाराणसी के सारनाथ में थे तो उसी समय उनके बारे में एक खबर फ़ैल रही थी। खबर यह थी की आंबेडकर को काठमांडू के पशुपतिनाथ के मंदिर में एंट्री करने से वहां के स्थानीय लोगों और सरकार ने मना कर दिया था।
- शरारत-भरा-प्रचार-मात्र
कुछ समय बाद बाबा साहब इस बात को साफ़ करते हुए लिखते हैं कि, “मैं किसी भी हिन्दू मंदिर में नहीं जाता, ये समाचार गलत है की मुझे काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ के मंदिर में प्रवेश करने से मना कर दिया गया। आंबेडकर आगे कहते है कि मुझसे कोई सौ बार भी विनती या प्राथना करे तो भी मैं पशुपतिनाथ के मंदिर में नहीं जाऊंगा।
उन्होंने आगे लिखा था कि रोका उसे जाता है, जिसके अंदर कही जाने की इच्छा होती है या फिर उसने कही जाने का संकल्प किया हो अथवा कहीं जाने का प्रयत्न कर रहा हो। मैंने तो कभी मंदिर में जाने की इच्छा ही नहीं रखी, तो मुझे कोई कैसे रोक सकता है। उन्होंने इस खबर को शरारत-भरा-प्रचार-मात्र बताया था।
कुछ सिंहली भिक्षुक को रोका गया था एंट्री से
बाबा साहब ने इसे और स्पष्ट करते हुए आगे बताया है कि जब मैं नेपाल में था तो मेरे व्यक्तिगत सचिव को नेपाल सरकार द्वारा यह जरूर कहा गया था, “डॉ, बाबा साहब को पशुपतिनाथ मंदिर में नहीं ले जाइएगा, क्यूंकि अभी नेपाल की स्थिति ऐसी नहीं है की हिन्दू मंदिर में किसी बौद्ध को अंदर जाने की अनुमती दी जाये।” आंबेडकर ने नेपाल और मंदिर से जुड़े अपने व्याख्या में बताया था कि जब मैं नेपाल में था तब कुछ नेपाली भारतीय तथा सिंहली भिक्षुक मंदिर में जाना की इच्छा रखते थे, लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर के गार्ड्स ने उन्हें अंदर जाने नहीं दिया था।
बौद्ध के लिए हिन्दू मंदिर में प्रवेश है पाप
बाबा साहब आगे लिखते है कि यह सही भी है। कोई इंसान अगर किसी ईश्वर पर भरोसा नहीं करता तो उसे उसके मंदिर में भी जाने का कोई अधिकार नहीं है, हाँ अगर वह टूरिस्ट बन कर संग्रहालय देखने की इच्छा से जाये तो उस पर कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए। आंबेडकर ने इस व्याख्या को बौद्ध धर्म से जोड़ते हुए कहा था कि अगर कोई बौद्ध हिन्दू धर्म के मंदिर में प्रवेश की इच्छा रखता है और उसे रोक दिया जाता है तो ये उसके लिए पाप समान है। जबकि किसी बौद्ध मंदिर में सबका प्रवेश समान हो और किसी के साथ भी दोहरापन ना किया जाये।
सारनाथ में ही आंबेडकर ने अपने एक भाषण में कहा था कि सभी बुद्ध अनुवाइयों को हर रविवार बुद्ध मंदिर में जाना चाहिए और वहां अच्छे धर्मोपदेशों को पढ़ना या सुनना चाहिए। इसी भाषण में उन्होंने जगह-जगह पर बौद्ध मंदिर निर्माण का निवेदन भी किया था। इससे आपको ये तो साफ़ हो गया होगा की बाबा साहब की नेपाल में पशुपतिनाथ के मंदिर वाली कहानी एक अफवाह मात्र थी और यहां तक की आंबेडकर किसी हिन्दू मंदिर में प्रवेश की इच्छा भी नहीं रखते थे।