जात से नहीं कर्म से होते हैं ब्राह्मन
ऊँचे कुल के कारणै, ब्राह्मन कोय न होय। जउ जानहि ब्रह्म आत्मा, रैदास कहि ब्राह्मन सोय॥ इसका मतलब है “मात्र ऊँचे कुल में जन्म लेने के कारण ही कोई ब्राह्मण नहीं कहला सकता। जो ब्रहात्मा यानि की ब्रह्म को जानता है, रैदास कहते हैं कि वही ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी है।” भारत (India) तो हमेशा से ऐसे दोहों के विपरीत चलता आया है। देश में तो एक समय ऐसा भी था जब बहुजन समाज (Bahujan Samaj) के लोगों को अपने गले में मटका और कमर में झाड़ू लटका कर चलना होता था, यहाँ तक की उनकी परछाई भी सभ्य समाज के कहे जाने वाले लोगों पर नहीं पड़नी चाहिए थी।
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समाज में ऐसी घृणा फ़ैलाने वाले ऐतिहासिक कानूनों का टूटना बहुत जरुरी था और हमारे समाज के इन्ही सब कुरीतियों को मिटाने के लिए बहुत सारे नायक पैदा हुए, जिनमे से एक बाबा साहब डॉ. भीम राव अम्बेडकर थे । लेकिन आज हम बाबा साहब के किसी कहानी या किस्से के बारे में बात नहीं करेंगे… बल्कि आज हम एक ऐसी शख्सियत के बारे में बात करेंगे जिसे अंबेडकर (Baba Saheb Dr. Bhimrav Ambedkar_ भी अपना गुरु मानते थे। आज हम आपको बताएंगे आधुनिक भारत के शूद्रों-अतिशूद्रों, महिलाओं और किसानों के पहले हीरो के बारे में जिन्हें समाज जोतीराव फुले (Jyotirao Phule), या ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) के नाम से जानते हैं।
आज के ही दिन हुआ था महात्मा फुले का परिनिर्वाण
बाबा साहब डॉ भीम राव अंबेडकर ने अपने जीवन काल में तीन लोगों को अपना गुरु या फिर कहे प्रेरणास्रोत माना। इनमे महात्मा बुद्ध, कबीर दास और महात्मा ज्योतिबा फुले शामिल थीं। 11 अप्रैल 1827 को पुणे में ज्योतिबा फुले का जन्म हुआ था जबकि आज के ही दिन यानी की 28 नवंबर 1890 को उन्हें परिनिर्वाण यानि की मृत्यु प्राप्त हुआ था। महात्मा ज्योतिबा फुले का पूरा नाम महात्मा ज्योतिराव गोविन्दराव फुले है। अब आपके मन में एक सवाल यह भी होगा की आखिर क्यों बहुजन समाज महात्मा ज्योतिबा को इतना पूजता है और यहाँ तक की बाबा साहब ने तो इन्हे अपना गुरु मान लिया था।
- बचपन से ही थे ऐतिहासिक उत्पीड़न के शिकार
अंबेडकर की तरह ही ज्योतिबा फुले भी बचपन से ही जाति के अपमान का जहर पीती रही हैं। ज्योतिबा एक साधारण माली परिवार से आती थी और उनके पिता फूलों का दुकान चलाते थे, जहां ज्योतिबा अक्सर बैठा करते थे। वहीं से उनकी मित्रता एक लड़के से होती। जो कुछ दिनों बाद ज्योतिबा को अपने शादी का निमत्रण देता है। जोतिबा को पता नहीं था की लड़का उस समय के सभ्य कहे जाने वाले स्वर्ण समाज से आता है। महात्मा ज्योतिबा जब शादी में पहुंचते हैं तो उन्हें अपने जाती को लेकर सभ्य समाज के गुस्से का सामना करना पड़ता है। ज्योतिबा के साथ पहले भी जाति के नाम पर ऐसी बर्बरता हुई थी लेकिन इस अपमान ने ज्योतिबा फुले की आत्मा को झकझोर दिया। 1847 में जोतीराव स्कॉटिश मिशन के इंग्लिश स्कूल में पढ़ने गए, जहां आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से वो काफी प्रभावित हुए। साल 1847 में मिशन स्कूल की जो पढ़ाई थी उसे भी फुले ने पूरी की। तब तक वो जान चुके थे कि शिक्षा ही वह हथियार है, जिसके दम पर शूद्रों-अति शूद्रों और महिलाओं को मुक्ति दिलाई जा सकती है।
इसी दिन महात्मा फुले को एक चीज समझ आ गई की इस समाज और खासकर बहुजन समाज को अगर बदलना है तो शिक्षा ही एकमात्र औजार है।
बहुजन समाज में गुलामी की भावना को जागृत करने वाले पहले इंसान
इसी कारण बाबा साहेब ने अपनी किताब ‘शूद्र कौन थे?’ को महात्मा फुले को समर्पित किया, जिसमें उन्होंने लिखा है कि ‘जिन्होंने यानी की फुले ने हिन्दू समाज की छोटी जातियों को उच्च वर्णों के प्रति उनकी गुलामी की भावना के संबंध में जाग्रत किया और जिन्होंने सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना को विदेशी शासन से मुक्ति पाने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण बताया’। बाबा साहेब आगे लिखते है कि उस आधुनिक भारत के महान शूद्र महात्मा फुले की स्मृति में सादर समर्पित।’ बाबा साहब द्वारा लिखे गए इन शब्दों से आपको ये तो पता चल ही गया होगा की महात्मा ज्योतिबा फुले ही वो चिंगारी हैं, जिन्होंने हमारे समाज को जाति जैसे जहर से अवगत कराया और बहुजन समाज को भी शिक्षा जैसे औजार और इसकी शक्तियों से परिचय करवाया।
- घर से ही शुरुआत की महिला शिक्षा की
इसका पता आपको इससे भी चल जायेगा की महात्मा ज्योतिबा फुले ने बहुजन समाज में शिक्षा की शुरुआत अपने घर से ही की। उन्होंने सबसे पहले अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को शिक्षित किया और इसके बाद दोनों मिलकर पुणे के bhidewada में 1 जनवरी 1848 को महिलाओं के लिए देश का पहला महिला स्कूल का स्थापना किया। फिर सावित्रीबाई फुले, सगुणाबाई, फातिमा शेख और कई और साथियों के साथ ज्योतिबा ने तो जैसे लक्ष्य ही बना लिया की, हजारों सालों से ब्राह्मणों द्वारा शिक्षा से वंचित किए गए वर्ग को शिक्षित करना है तथा उनके मूल अधिकारों के लिए उन्हें जागरूक करना है। इसके बाद पुणे में ही महत्मा ज्योतिबा और उनकी पत्नी ने तीन और महिला स्कूल खोली। ज्योतिबा यह जानते थे की घर की महिलाएं शिक्षित होंगी तो पूरे-का-पूरा परिवार शिक्षा की तरफ तेज़ी से बढ़ेगा।
बहुजन समाज और महिला शिक्षा में ले थी क्रांति
महात्मा फुले के लिए यह सारा कुछ इतना आसान नहीं था। उस समय के धर्म के ठेकेदारों ने ज्योतिबा के इस शिक्षा के रास्ते में बहुत पत्थर फेंके, पर ज्योतिबा तो महात्मा ठहरे, उन्ही पत्थरो को चुन कर, उसका नींव बनाया जिसके बुनियाद पर उन्होंने समाज में महिला शिक्षा की स्थापना की। इसके बाद उन्होंने सत्यशोधक समाज की भी स्थापना की जिसका एक मात्र लक्ष्य था दलित और बहुजन समाज को जाति के ठेकेदारों से मुक्ति दिलाना। महात्मा फुले के सत्यशोधक समाज के कारण मानो उस समय दलितों और समाज के शोषित वर्गों में क्रांति की लहर आ गई हो। लोगों ने शादी और नामकरण जैसे परम्पराओं में पंडितों का त्याग करना शुरू कर दिया था। ऐसे ही महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपना पूरा जीवन समाज कल्याण के कामों में लगा दिया और बहुजन समाज में जाति जैसे कुप्रथाओं के खिलाफ क्रांति की स्थापना की। आज हम ज्योतिबा फुले के परिनिर्वाण दिवस पर तहे दिल से श्रद्धांजलि देते है, वैसे तो महात्मा ज्योतिबा को सच्ची श्रद्धांजलि तभी ,मिलेगी जब हम उनके बताये हुए मार्ग का अनुसरण करते हुए एक सभ्य और समानता वाले समाज का निर्माण करेंग।