Garuda Purana Niti: गरुड़ पुराण हिन्दू धर्म के लिए महत्व पुराण है. यह मृत्यु के बाद 13 दिन तक होने वाला शोक के बारे में है. हमारे हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का वर्णन मिलता है. जो सभी हिन्दुओं के लिए काफी महत्वपूर्ण होते है. इनमे पहला संस्कार ‘गर्भ धारण’ संस्कार है. वहीं ‘अंतिम संस्कार’ आखिरी संस्कार है. इसमें दाह संस्कार या पिंडदान और तेरहवीं जैसे कई कर्मकांड शामिल होते हैं. हिंदू परिवार में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो 13 दिनों तक शोक मनाया जाता है. इस दौरान कई कर्म कांड भी होते हैं, जिसमें तेरहवीं संस्कार को अंतिम संस्कार माना जाता है. मृतक की आत्मा की शांति के लिए तेरहवीं कराने को जरूरी माना गया है.
दोस्तों, आईये आज हम आपको बताएंगे कि हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों में से अंतिम संस्कार या गरुड़ पुराण के बारे में बताएंगे. हम आपको बताएंगे कि 13 दिनों तक शोक क्यों मनाते है ?
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तेरहवीं न करने पर मृत की आत्मा का क्या होता है?
गरुड़ पुराण हिन्दू धर्म के लिए महत्व पुराण है. यह पुराण विष्णु भगवान के कई गहरे रहस्यों के बारे में है. इस पूरण के अनुसार मृत्यु के 13 दिन बाद तक आत्मा घर में ही रहती है इसीलिए मृत्यु के 13 दिन बाद तक हम शोक मनाते है. ताकि मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिल सके. कहते है कि अगर मृत व्यक्ति का 13 दिन का शोक नहीं मनाते है तो उसकी आत्मा पिशाच की श्रेणी भटकती रहती है. इसीलिए 13 वीं करना बहुत जरूरी होता है. और उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन भी करवाना चाहिए.
गरुड़ पुराण में ऐसा बताया गया है कि, अगर तेरहवीं संस्कार में ब्राह्मणों को भोज न कराया जाए तो इससे मृत की आत्मा पर ब्राह्मणों का कर्ज चढ़ता है, और उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती. ऐसे में आत्मा प्रेत बनकर भटकती रहती है. तो 13 वीं के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाना भी अनिवार्य होता है.
पिंडदान का महत्व
हिन्दू धर्म में 13वीं में ब्राह्मण को भोजन करवाने के साथ ही पिंडदान करना भी बहुत जरूरी होता है. गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद मृतक के 13 दिनों तक कई कर्मकांड किए जाते हैं. इसमें पिंडदान को आत्मा के लिए जरूरी बताया गया है. पिंडदान से आत्मा को यमलोक की यात्रा कर्ण में मदद मिलती है और वह मृत्युलोक से यमलोक की यात्रा तय कर पाती है. वहीं अगर मृतक के पिंडदान न किया जाए तो इससे आत्मा को पिशाच की तरह भटकना पड़ता है.
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