8 November ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 8 नवंबर 2023 (8 november ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – देह सहित यह सब कुछ ख़त्म होने वाला है, इसलिए तुम्हें पुरानी दुनिया के समाचार सुनने की दरकार नहीं, तुम बाप और वर्से को याद करो”
प्रश्नः- श्रीमत के लिए गायन कौन-सा है? श्रीमत पर चलने वालों की निशानी सुनाओ?
उत्तर:- श्रीमत के लिए गायन है – जो खिलायेंगे, जो पहनायेंगे, जहाँ बिठायेंगे…….. वही करेंगे। श्रीमत पर चलने वाले बच्चे बाप की हर आज्ञा का पालन करते हैं। उनसे सदा श्रेष्ठ कर्म होते हैं। वे कभी श्रीमत में अपनी मनमत मिक्स नहीं करते। उनमें राइट और रांग की समझ होती है।
गीत:- बनवारी रे……..
ओम् शान्ति। यह गीत किसका है? बच्चों का। कोई गीत ऐसे भी होते हैं जिसमें बाप बच्चों को समझाते हैं लेकिन इस गीत में बच्चे कहते हैं कि बाबा, अब तो हम समझ गये, दुनिया को तो पता नहीं कि कैसी यह झूठी दुनिया है, झूठे बंधन हैं। यहाँ सब दु:खी हैं तब तो ईश्वर को याद करते हैं। सतयुग में तो ईश्वर से मिलने की बात ही नहीं है। यहाँ दु:ख है तब आत्माओं को याद पड़ता है परन्तु ड्रामा अनुसार बाप मिलते ही तब हैं जब स्वयं आते हैं। बाकी और जो भी पुरुषार्थ करते हैं सब व्यर्थ है क्योंकि ईश्वर को सर्वव्यापी मानते हैं, ईश्वर का रास्ता ग़लत बताते हैं। अगर कहें कि ईश्वर और उनकी रचना के आदि, मध्य, अन्त को हम नहीं जानते हैं तो यह बोलना सच है। 8 november ki Murli आगे ऋषि-मुनि आदि सच बोलते थे, उस समय रजोगुणी थे। उस समय झूठी दुनिया नहीं कहेंगे। झूठी दुनिया नर्क, कलियुग अन्त को कहते हैं। संगम पर कहेंगे – यह नर्क है, वह स्वर्ग है। ऐसे नहीं द्वापर को नर्क कहेंगे। उस समय फिर भी रजोप्रधान बुद्धि है। अभी है तमोप्रधान। तो हेल और हेविन संगम पर लिखेंगे। आज हेल है, कल हेविन होगा। 8 november ki Murli यह भी बाप आकर समझाते हैं, दुनिया नहीं जानती कि इस समय कलियुग का अन्त है। सब अपना-अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर अन्त में सतोप्रधान बनते हैं फिर सतो, रजो, तमो में आना ही है। जिनका एक-दो जन्म का पार्ट है, वह भी सतो, रजो, तमो में आते हैं। उन्हों का पार्ट ही थोड़ा है। इसमें बड़ी समझ चाहिए। दुनिया में तो अनेक मत वाले मनुष्य हैं। सबकी एक मत तो नहीं होती। हरेक का अपना-अपना धर्म है। मत अपनी-अपनी है। बाप का आक्यूपेशन अलग है। हरेक आत्मा का अलग है। धर्म भी अलग है। तो उनके लिए समझानी भी अलग चाहिए। नाम, रूप, देश, काल सबका अलग है। देखने में आता है यह फलाने का धर्म है। हिन्दू धर्म में तो सब कहते हैं परन्तु उनमें भी सब भिन्न-भिन्न हैं। कोई आर्य समाजी, कोई संन्यासी, कोई ब्रह्म समाजी। संन्यासी आदि जो भी हैं सबको हिन्दू धर्म में मानते हैं। हम लिखें कि हम ब्राह्मण धर्म के हैं अथवा देवता धर्म के हैं तो भी वे हिन्दू में लगा देते हैं क्योंकि और कोई सेक्शन तो उन्हों के पास है ही नहीं। तो हरेक का फार्म अलग-अलग होने से मालूम पड़ जायेगा। और कोई धर्म वाला होगा तो इन बातों को मानेगा नहीं। फिर उनको इकट्ठा समझाना मुश्किल है। वे तो समझेंगे कि यह तो अपने धर्म की महिमा करते हैं। इनमें द्वैत है। समझाने वाले बच्चे भी नम्बरवार हैं। सब एक समान तो हैं नहीं इसलिए महारथियों को बुलाते हैं।
बाबा ने समझाया है – मुझे याद करो, मेरी श्रीमत पर चलो। इसमें प्रेरणा आदि की कोई बात नहीं। अगर प्रेरणा से काम हो तो फिर बाप के आने की दरकार ही नहीं। शिवबाबा तो यहाँ है। 8 november ki Murli तो उनको प्रेरणा की क्या दरकार है। यह तो बाप की मत पर चलना होता है। प्ररेणा की बात नहीं। कोई-कोई सन्देशियां सन्देश ले आती हैं, उसमें भी बहुत मिक्स हो जाता है। सन्देशी तो सब एक जैसी हैं नहीं। माया का बहुत इन्टरफियर होता है। दूसरी सन्देशी से वेरीफाय कराना होता है। कई तो कह देते हैं हमारे में बाबा आते हैं, मम्मा आती है फिर अपना अलग सेन्टर खोल बैठते हैं। माया की प्रवेशता हो जाती है। यह बड़ी समझने की बात है। बच्चों को बहुत सेन्सीबुल बनना चाहिए। जो सर्विसएबुल बच्चे हैं, वही इन बातों को समझ सकते हैं। जो श्रीमत पर नहीं चलते, वह इन बातों को नहीं समझेंगे। श्रीमत के लिए गायन है कि आप जो खिलायेंगे, जो पहनायेंगे, जहाँ बिठायेंगे, वह करेंगे। ऐसे कोई तो बाप की मत पर चलते हैं, कोई फिर दूसरों की मत के प्रभाव में आ जाते हैं। कोई वस्तु नहीं मिली, कोई बात पसन्द नहीं आई तो झट बिगड़ पड़ते हैं। सब थोड़ेही एक जैसे सपूत बच्चे हो सकते हैं। दुनिया में तो ढेर की ढेर मत वाले हैं। अजामिल जैसी पाप आत्माएं, गणिकायें बहुत हैं।
यह भी समझाना पड़ता है कि ईश्वर सर्वव्यापी कहना रांग है। सर्वव्यापी तो पांच विकार हैं इसलिए बाप कहते हैं यह आसुरी दुनिया है। सतयुग में पांच विकार होते नहीं। कहते हैं शास्त्रों में यह बात ऐसे है। 8 november ki Murli परन्तु शास्त्र तो सब मनुष्यों ने बनाए हैं। तो मनुष्य ऊंच हुए या शास्त्र? जरूर सुनाने वाले ऊंच ठहरे ना। लिखने वाले तो हैं मनुष्य। व्यास ने लिखा वह भी मनुष्य था ना। यह तो निराकार बाप बैठ समझाते हैं। धर्म स्थापकों ने जो आकर के सुनाया उसका फिर बाद में शास्त्र बनता है। जैसे गुरुनानक ने सुनाया, बाद में ग्रंथ बनता है। तो जिसने सुनाया उसका नाम हो गया। गुरुनानक ने भी उनकी महिमा गाई है – सबका बाप वह एक है। बाप कहते हैं जाकर धर्म स्थापन करो। यह बेहद का बाप कहते हैं मुझे तो कोई भेजने वाला नहीं। शिवबाबा खुद बैठ समझाते हैं वह हैं मैसेज ले आने वाले, मुझे कोई भेजने वाला नहीं। मुझे मेसेन्जर वा पैगम्बर नहीं कहेंगे। मैं तो आता हूँ बच्चों को सुख-शान्ति देने। मुझे कोई ने कहा नहीं, मैं तो खुद मालिक हूँ। मालिक को भी मानने वाले होते हैं, परन्तु उनसे पूछना चाहिए कि तुमने मालिक का अर्थ समझा है। वह मालिक है, हम उनके बच्चे हैं तो जरूर वर्सा मिलना चाहिए। बच्चे कहते हैं – हमारा बाबा। तो बाप के धन के तुम मालिक हो। “मेरा बाबा” बच्चे ही कहेंगे। मेरा बाबा तो फिर बाबा का धन भी मेरा। अभी हम क्या कहते हैं? हमारा शिवबाबा। बाप भी कहेंगे यह हमारे बच्चे हैं। बाप से बच्चों को वर्सा मिलता है। बाप के पास प्रापर्टी होती है। बेहद का बाप है ही स्वर्ग का रच
यिता। भारतवासियों को भी प्रापर्टी किससे मिलती है? शिवबाबा से। शिव जयन्ती भी मनाते हैं। शिव जयन्ती के बाद फिर होगी श्रीकृष्ण जयन्ती, फिर श्रीराम जयन्ती। बस, मम्मा-बाबा की जयन्ती वा जगदम्बा की जयन्ती तो कोई गाते नहीं। शिवजयन्ती फिर राधे-कृष्ण की जयन्ती फिर राम-सीता जयन्ती।
जब शिवबाबा आये तब शूद्र राज्य विनाश हो। यह राज़ भी कोई समझते नहीं। बाप बैठ समझाते हैं। वह आते हैं जरूर। बाप को क्यों बुलाते हैं? श्रीकृष्णपुरी स्थापन करने। तुम जानते हो शिवजयन्ती 8 november ki Murli बरोबर होती है। शिवबाबा नॉलेज दे रहे हैं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। शिवजयन्ती है बड़े ते बड़ी जयन्ती। फिर है ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। अब प्रजापिता ब्रह्मा तो मनुष्य सृष्टि में है। फिर रचना में मुख्य है लक्ष्मी-नारायण। तो शिव है मात-पिता, फिर मात-पिता ब्रह्मा और जगत अम्बा भी आ जाते हैं। यह समझने और धारण करने की बातें हैं। पहले-पहले समझाना है – बाप परमपिता परमात्मा आते हैं पतितों को पावन करने। वह नाम-रूप से न्यारा हो तो उनकी जयन्ती कैसे हो सकती। गॉड को फादर कहा जाता। फादर को तो सब मानते हैं। निराकार है ही आत्मा और परमात्मा। आत्माओं को साकार शरीर मिलता है, यह बड़ी समझने की बातें हैं। जो कुछ भी शास्त्र आदि नहीं पढ़ा हुआ हो तो उसके लिए और ही सहज है। आत्माओं का बाप वह परमपिता परमात्मा स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। स्वर्ग में होती है राजाई, तो जरूर उनको संगम पर आना पड़े। सतयुग में तो आ न सके। वह प्रालब्ध, 21 जन्मों का वर्सा संगम पर ही मिलता है। यह संगमयुग है ब्राह्मणों का। ब्राह्मण हैं चोटी, फिर है देवताओं का युग। हरेक युग 1250 वर्ष का है। अभी 3 धर्म स्थापन होते हैं – ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय क्योंकि फिर आधा कल्प कोई धर्म नहीं होता। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी पूज्य थे फिर पुजारी बन जाते हैं। वह ब्राह्मण तो किस्म-किस्म के होते हैं।
अभी तुम अच्छे कर्म कर रहे हो जो फिर सतयुग में प्रालब्ध पाओगे। बाप अच्छे कर्म सिखलाते हैं। तुम जानते हो हम श्रीमत पर जैसे कर्म करेंगे, औरों को आप समान बनायेंगे तो उसकी प्रालब्ध मिलेगी। अभी सारी राजधानी स्थापन होती है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म की राजधानी होती है। यह है प्रजा का प्रजा पर राज्य। 8 november ki Murli पंचायती राज्य है, अनेक पंच हैं। नहीं तो 5 पंच होते हैं। यहाँ तो सब पंच ही पंच हैं। सो भी आज हैं, कल नहीं। आज मिनिस्टर हैं, कल उनको उतार देते हैं। एग्रीमेंट कर फिर कैन्सिल कर देते हैं। यह है अल्पकाल का क्षण भंगुर राज्य। किसको भी उतारने में देरी नहीं करते हैं। कितनी बड़ी दुनिया है। अखबारों से कुछ ना कुछ पता पड़ता है। इतने सब अखबार तो कोई पढ़ नहीं सकता। हमको इस दुनिया के समाचार की दरकार ही नहीं। यह तो जानते हैं देह सहित सब कुछ इस दुनिया का ख़त्म हो जाने वाला है। बाबा कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो तो तुम मेरे पास आ जायेंगे। मरने के बाद सारा साक्षात्कार होगा। शरीर छोड़कर फिर आत्मा भटकती भी है। उस समय भी हिसाब-किताब भोग सकते हैं। साक्षात्कार सब होता है। अन्दर ही साक्षात्कार करते हैं, भोगना भोगते हैं, बहुत पछताते हैं कि हमने नाहेक ऐसा किया। पश्चाताप होता है ना। कोई जेल बर्ड होते हैं, वह कहते हैं जेल में खाना तो मिलेगा। मतलब खाना खाने से काम है, इज्जत की परवाह नहीं करते। तुमको तो कोई तकल़ीफ नहीं। बाप है तो बाप की श्रीमत पर चलना है। ऐसे भी नहीं, किसको दु:ख देंगे। वह तो है ही सुखदाता। आज्ञाकारी बच्चे तो कहेंगे बाबा जो आप डायरेक्शन देंगे। तुम्हीं से बैठूं…….. यह शिवबाबा के लिए गाया हुआ है। भागीरथ अथवा नंदीगण भी मशहूर है। लिखा हुआ है ना माताओं के सिर पर कलष रखा। तो वह फिर गऊ दिखाते हैं। क्या-क्या बातें बना दी हैं।
इस दुनिया में कोई एवरहेल्दी हो नहीं सकता। अनेक प्रकार के रोग हैं। वहाँ कोई रोग नहीं है। न कभी अकाले मृत्यु होती है। समय पर साक्षात्कार होता है। 8 november ki Murli बुढ़ों को तो खुशी होती है। बुढ़े जब होते हैं तो खुशी से शरीर छोड़ते हैं। साक्षात्कार होता है कि हम जाकर बच्चा बनूँगा। अभी तुम जवानों को भी इतनी खुशी है कि हम शरीर छोड़ जाकर प्रिन्स बनेंगे। बच्चे हो वा जवान हो, मरना तो सबको है ना। तो सबको यह नशा रहना चाहिए कि हम जाकर प्रिन्स बनेंगे। जरूर जब सर्विस करो तब तो बनो। खुशी होनी चाहिए – अभी हम पुराना शरीर छोड़ बाबा के पास जायेंगे, बाबा फिर हमको स्वर्ग में भेज देंगे। सर्विस करनी चाहिए। बच्चों ने गीत सुना। बन्सी वाला श्रीकृष्ण तो है नहीं। मुरली तो बहुतों के पास होती है। बहुत अच्छी-अच्छी बजाते हैं। इसमें मुरली की बात नहीं। तुम तो कहते हो श्रीमत एक बाप ही देते हैं। जब तक कोई बच्चा नहीं बनता तब तक यह बातें समझ भी नहीं सकता और इसमें फिर श्रीमत पर चलने की बात है। अपनी मत पर चलने से थोड़ेही ऊंच पद पा सकेंगे। बाप को जो जानते हैं वह बाप का परिचय औरों को भी देंगे। बाप और रचना का परिचय देना है। किसको बाप का परिचय नहीं देते तो गोया खुद जानते नहीं। अपने को नशा चढ़ा हुआ है तो औरों को भी चढ़ाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
8 november ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) श्रीमत पर सदा श्रेष्ठ कर्म करने हैं। दूसरों की मत के प्रभाव में नहीं आना है। सपूत बन हर आज्ञा का पालन करना है। जो बात समझ में नहीं आती है, उसे वेरीफाय जरूर कराना है।
2) सदा इसी नशे वा खुशी में रहना है कि हम यह पुराना शरीर छोड़ प्रिन्स बनेंगे। नशे में रह ईश्वरीय सेवा करनी है।
वरदान:- निंदक को भी अपना मित्र समझ सम्मान देने वाले ब्रह्मा बाप समान मास्टर रचयिता भव
जैसे ब्रह्मा बाप ने स्वयं को विश्व सेवाधारी समझ हर एक को सम्मान दिया, सदा मालेकम् सलाम किया। ऐसे कभी नहीं सोचा कि कोई सम्मान देवे तो मैं दूं। निंदक को भी अपना मित्र समझकर सम्मान दिया, ऐसे फालो फादर करो। सिर्फ सम्मान देने वाले को अपना नहीं समझो लेकिन गाली देने वाले को भी अपना समझ सम्मान दो क्योंकि सारी दुनिया ही आपका परिवार है। सर्व आत्माओं के तना आप ब्राह्मण हो इसलिए स्वयं को मास्टर रचयिता समझ सबको सम्मान दो तब देवता बनेंगे।
स्लोगन:- माया को सदा के लिए विदाई देने वाले ही बाप की बधाईयों के पात्र बनते हैं।
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