8 August ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 8 अगस्त 2023 (8 august ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहे हैं.
“मीठे बच्चे – संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कल्याणकारी है इसलिए सदा फखुर में रहना है, किसी बात का फिक्र नहीं करना है”
प्रश्नः-जिनकी अवस्था अच्छी है, उनकी निशानियां क्या होंगी?
उत्तर:-उन्हें किसी भी बात में रोना नहीं आयेगा। मुरझायेंगे नहीं, गम वा अफसोस नहीं होगा। हर सीन साक्षी होकर देखेंगे। कभी क्यों, क्या के प्रश्न नहीं करेंगे। किसी के नाम रूप को याद नहीं करेंगे, एक बाबा की याद में हर्षितमुख रहेंगे।
(मातेश्वरी के शरीर त्याग करने पर 25-06-65 को यह महावाक्य बापदादा ने सुनाये हैं, कृपया उसी ध्यान से पढ़ें)गीत:-माता ओ माता ….
ओम् शान्ति। मीठे बच्चों को फरमान है कि बेहद के बाप को याद करते रहो। जो भी नाम रूप वाले बच्चे बाप की सर्विस में हैं, उनसे यह ज्ञान और योग सुनना है। वह भी यही सुनायेंगे कि बाप को याद करो क्योंकि वर्सा उनसे मिलता है। मम्मा भी तो वही सुनाती है, बच्चे भी वही सुनाते हैं कि शिवबाबा को याद करो। तुम बच्चे यहाँ शिवबाबा की याद में बैठे हो, तुम्हें कोई फिकर नहीं करना है क्योंकि तुम बेहद के बाप से यह वर्सा ले रहे हो। इनमें कोई भी शरीर छोड़कर जाते हैं तो हम कहेंगे कि यह भी भावी है। कल्प पहले भी यह हुआ था क्योंकि ड्रामा के ऊपर भी तो चलना पड़े ना, जिससे कोई फिक्र नहीं रहे। आज मम्मा गई, कल और भी कोई चले जायेंगे फिर भी बाप को मुरली सुनानी है जरूर। बाबा तुम बच्चों को नई-नई प्वाईन्ट्स सुनाते, उनका अर्थ समझाते रहते हैं और यही सबको कहते हैं कि बच्चे बाप को याद करो, कोई भी नाम रूप में फसों मत। यह तो सब बच्चों के लिए ज्ञान है। आगे चल करके और भी बहुत कुछ वन्डरफुल बातें देखने की हैं। इस समय तो हैं ही दु:ख की बातें, परन्तु उस दु:ख का हमें कोई फिकर नहीं है। देखो, यह बाबा (साकार) तो कोई फिकर में नहीं है क्योंकि जानते हैं कि हमको तो बाबा को ही याद करना है, हमको बाबा से वर्सा लेना है। बाबा ने समझाया है कि क्रियेशन से कोई वर्सा नहीं मिलता है, क्रियेशन को क्रियेटर से वर्सा मिलना है इसलिये जो भी क्रियेशन (बच्चे और बच्चियां) हैं, उन्हें एक क्रियेटर को याद करना है। चाहे कुछ भी हो जाये। समझो कोई भी ऐसा विघ्न पड़ता है तो उसमें संशय की तो कोई बात ही नहीं है क्योंकि एक शिवबाबा को ही याद करना है, इसमें ही बच्चों का कल्याण है। अगर कोई अच्छी सर्विस करते-करते चला जाता है तो समझना चाहिए कि जो भी कोई जाता है, उसे जा करके और कहाँ पार्ट बजाना है। कोई न कोई कल्याण के कारण यह सब कुछ होता है क्योंकि बाप कल्याणकारी है और यह संगमयुग ब्राह्मणों का है ही कल्याणकारी। हर एक बात में कल्याण समझ फखुर में ही रहना है क्योंकि हम ईश्वरीय सन्तान हैं। ईश्वर से वर्सा लेते हैं, वर्सा लेते-लेते कोई चले जाते हैं तो जरूर उनका कोई और पार्ट होगा, इससे भी जास्ती कोई कार्य करना है।
अहो सौभाग्य! जो हमारा ही पार्ट है कल्प पहले मुआफिक बाप के मददगार बनने का। मददगार बनते-बनते कोई जनरल भी मर पड़ते हैं। हम समझते हैं ड्रामा अनुसार ही यह सब कुछ होता है, कोई गया तो क्या हुआ। हमें उनके लिए कुछ करना नहीं है। हमारा तो सब कुछ गुप्त है। वास्तव में अवस्था उनकी अच्छी है, जिन्हें कभी आंसू न आये। कभी ऐसे भी न समझे कि मम्मा का शरीर छूट गया, अब क्या होगा! ऑसू आये तो नापास हो जायेंगे क्योंकि बाप बैठा है ना, जो हम सबको वर्सा दे रहे हैं। वह तो अमर ही है, उसके लिये कभी कोई ऑसू आने की दरकार भी नहीं है। हम तो खुद भी खुशी से शरीर छोड़ने के लिये पुरुषार्थ कर रहे हैं। मम्मा का भी कोई कार्य अर्थ इस समय जाने का था, यह भी ड्रामा है। कोई भी अपनी अवस्था अनुसार शरीर छोड़े तो उनका कल्याण है। बहुत अच्छे घर में जन्म लेकरके वहाँ भी कुछ अपनी खुशी देंगे। छोटे-छोटे बच्चे भी सबको खुश कर देते हैं। सभी उनकी बहुत महिमा करते हैं। तो बच्चों का ड्रामा के ऊपर और बाप के ऊपर मदार है। जो कुछ भी होता है, सेकण्ड बाय सेकण्ड.. वह ड्रामा की नूँध है, ऐसा समझ करके खुशी में, सदा हर्षित रहना चाहिए।
कोई भी नाम रूप में हम लोगों को फंसना नहीं है। पता है यह शरीर है, इसको तो जाना ही है। हरेक का पार्ट नूँधा हुआ है, हम रोयेंगे तो क्या रोने से उनका पार्ट बदल सकता है, इसलिये बच्चों को बिल्कुल अशरीरी, शान्त और फिर हर्षितमुख रहना है। अटल, अखण्ड राज्य लेना है तो ऐसा बनना भी है। कोई भी इत़फाक हो जावे तो कहेंगे भावी है ड्रामा की, अफसोस की तो कोई बात नहीं। कल्प पहले भी ऐसे ही हुआ था। इतफाक तो होने ही हैं, चलते-चलते अर्थक्वेक्स हो जाते हैं। ऐसे नहीं है कि तुम्हारे में से कोई नहीं मरने हैं, नहीं। कोई भी मर सकते हैं, कोई भी इत़फाक हो सकता है इसलिए बाबा समझाते हैं कि बच्चे हमेशा बाप की याद में, फ़खुर में रहो। इसमें जो पार्ट जिसको मिला हुआ है वह बजाता है, उसमें हमको क्या करना है। हमारा ज्ञान ही ऐसा है – अम्मा मरे तब भी हलुआ खाना, यानि ज्ञान रत्न देना। समझो बाबा कहता है, यह बाबा भी चला जाये… तो तुम बच्चों को फिर भी नॉलेज तो मिली हुई है कि हमको शिवबाबा से वर्सा लेना है, इनसे तो नहीं लेने का है। बाप कहते हैं यह सब बच्चे जो हैं मेरे से वर्सा ले करके दूसरों को रास्ता बताते हैं। तुम बच्चों को अन्धों की लाठी बनना है, बाप का परिचय देना है। हरेक के ऊपर मेहर करना है। तुम्हारा यही पुरुषार्थ है कि यह बिचारे दु:खी हैं, इनको सुख का रास्ता बतायें। इस दुनिया में सिवाए एक बाप के और कोई भी सुख का रास्ता बताने वाला है ही नहीं। लिबरेटर, दु:ख हर्ता सुख कर्ता एक ही है, उनको ही याद करना है।
यहाँ दु:ख की कोई भी बात नहीं होनी चाहिए, कुछ भी हो जाये। भले हम जानते हैं तुम्हारी मम्मा सर्विसएबुल सबसे नम्बरवन गाई जाती है। उनके हाथ में सितार दिखाते हैं, बरोबर जगदम्बा यानि मातेश्वरी वह बहुत अच्छा समझाती थी। वह भी कहती थी कि शिवबाबा को याद करो। मुझे नहीं याद करना। मनमनाभव, मध्याजीभव – यह दो अक्षर मशहूर हैं। बाकी तो डिटेल है।
तो कोई भी हालत में, कोई भी संशय किसको पड़े, यह क्या हुआ, ऐसा क्यों हुआ… तो इससे अपना ही नुकसान कर देंगे। तुम बच्चों को कोई भी हालत में दु:ख की महसूसता नहीं आनी चाहिए। भले बीमारी हो, कुछ भी हो… यह तो कर्मभोग है। बाबा से पूछते हैं – बाबा यह क्या है? बाबा कहेंगे यह तुम्हारा कर्मभोग है। अगर कोई बात ड्रामा में पहले से बताने की नहीं है तो मैं कैसे बताऊं…! यह बाबा भी साक्षी हो करके देखते हैं, तो बच्चों को भी साक्षी हो करके देखना है और बाप की याद में फ़खुर में रहना है कि हम ईश्वर की सन्तान हैं, ईश्वर के पोत्रे और पौत्रियाँ हैं। ईश्वर से वर्सा ले रहे हैं। बरोबर हम जानते हैं मम्मा ने भी ईश्वर का वर्सा लेते-लेते, शरीर छोड़ दिया। हम हर एक को तो बस बाप और वर्से को याद करना है। सारा मदार पुरुषार्थ पर है। यह बच्चे भी महसूस कर सकते हैं कि जितना हम पढ़ेंगे उतना ऊंचा पद पायेंगे। ऊंचा प्रिन्स बनेंगे। सूर्यवंशी भी प्रिन्स और चन्द्रवंशी भी प्रिन्स एण्ड प्रिन्सेस हैं। तो बच्चों को पढ़ाई पढ़ना ही है, कुछ भी हो जाये पढ़ना जरूर है। ऐसे थोड़ेही है – कोई का माँ/बाप मरता है तो बच्चा पढ़ाई छोड़ देगा, नहीं। तो तुमको भी पढ़ाई रोज़ पढ़ना है। तुम्हें एक दिन भी पढ़ाई नहीं छोड़नी है, सर्विस भी हर हालत में जरूर करनी है। हर वक्त बुद्धि में वही एक बाबा याद रहे। तुम्हें वही पढ़ा रहे हैं और उनसे ही वर्सा लेना है। उसने ही हमारी बुद्धि का ताला खोला है। सारे ब्रह्माण्ड, सूक्ष्मवतन और फिर सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान हमारे बुद्धि में है। इसी ज्ञान से हम चक्रवर्ती बनते हैं। बस, उसी नशे में, मौज में रह सबको सुनाना भी ऐसे ही है क्योंकि तुम बच्चे जो पक्के ब्राह्मण बने हो, तुन्हें कोई फिक्र नहीं है। इसमें कोई मुरझाने की, फिक्र करने की बात ही नहीं है। ऐसी अच्छी अवस्था चाहिए।
तुम समझते हो कि अन्त में विजय हमारी होनी ही है, ढेर के ढेर अपना वर्सा लेने के लिये आयेंगे। कुछ भी हो, तुम्हारे सर्विस की वृद्धि होती ही रहेगी, सिर्फ तुम्हारी एक्टिविटी दैवी चाहिए। उसमें कोई भी आसुरी गुण नहीं चाहिए। किससे लड़ना, झगड़ना, किससे कडुवा बोलना या अन्दर में कुछ लालच, लोभ, क्रोध ..आदि अगर होगा तो बहुत कड़ी सजा खानी पड़ेगी इसलिए कोई को भी दु:ख नहीं देना है। सबको सुख का रास्ता बताना है। कोई छोटे बच्चे हैं, चंचलता करते हैं तो भी चमाट नहीं मारनी है। उन्हें भी प्यार से चलाना है। घर में भी बड़ा युक्ति से चलना है। कई हैं जो यहाँ बहुत अच्छी तरह से समझते हैं, घर में जाते हैं तो उन्हें माया हैरान करती है। यह भी बाप समझाते हैं कि बच्चे तूफान जोर से आते रहेंगे, दिनप्रतिदिन तूफान और विघ्न पड़ते रहेंगे, तुम्हें घबराना नहीं है। बाप कहते हैं इस हमारे रूद्र ज्ञान यज्ञ में अथाह विघ्न पड़ेंगे, क्योंकि यह नई नॉलेज है।
कोई पूछते हैं तुम शास्त्रों को मानते हो? बोलो हाँ, मानते हैं यह सब भक्तिमार्ग के शास्त्र हैं। यह ज्ञान मार्ग है। ज्ञानेश्वर बाप कहते हैं मुझे याद करो बस, हम भी तुमको कहते हैं बाप को याद करो। करो न करो तुम्हारी मर्जी। अभी नर्क है, रावण राज्य है। अब बाप और स्वर्ग को याद करो। तुम गंगा में स्नान तो जन्म-जन्मान्तर करते आये हो, फिर भी दुनिया पतित बनती आई है। अभी बाप कहते हैं बस, मुझे याद करो। जो यहाँ के होंगे उनके संस्कार ही देखने में आयेंगे, वह झट समझ जायेंगे।
तुम अभी बेहद के बुद्धिवान हो। सयाने को बुद्धिवान कहा जाता है। तो तुम्हें उसी नशे में रहना है। बाकी गम की कोई बात नहीं है, यह हम जान गये कि ड्रामा चल रहा है। तुम कहेंगे वाह! मम्मा गई! वह एक्टर दूसरा एक्ट करने गई। इसमें मूंझने की, रोने की, दु:ख की दरकार नहीं है। वह कोई ऊंची सर्विस करने के लिये गई। तुम दिन-प्रतिदिन ऊंचे बनते जाते हो। कोई शरीर छोड़ेगा तो भी ऊंची सर्विस जाके करेगा, इसलिए बच्चों को कोई भी दु:ख नहीं होना चाहिए। मम्मा क्या, सभी जायेंगे। हमको भी बाबा के पास जाना है, हमारा काम है बाबा से। सबका काम है बाबा से, मम्मा का काम था बाबा से। अभी उनसे वह नॉलेज पा करके सर्विस करके जाके कोई दूसरी सर्विस के लिये दूसरा पार्ट बजाने गई। हम साक्षी हो करके देखते हैं। ऐसे नहीं कि मम्मा चली गई, फलानी चली गई, यह चली गई… अरे आत्मा सर्विस के लिये गई। शरीर तो सब खाक में ही मिलने हैं इसलिये कभी भी बच्चों को कोई प्रकार का फिक्र नहीं करना है। हाँ, यह सत्य है, यह जो स्टूडेन्ट बाबा का था, यह बड़ा अच्छा था। अच्छा समझाता था… गाया जाता है। अगर कोई भी प्रकार का संशय आया तो यह खत्म हुआ, पद से भ्रष्ट हो जायेगा इसलिये बाबा बच्चों को समझाते रहते हैं बच्चे, कोई प्रकार का फिक्र नहीं करो। डायरेक्शन्स जो मिलते हैं उन्हें अमल में लाते रहो। ऐसे मत समझो कि यह क्या हो गया? फिक्र उनको होगा जो बाप को और नॉलेज को भूलेगा। तुम बच्चे सभी मास्टर नॉलेजफुल हो। जिसका जो पार्ट है, उसमें हम कर ही क्या सकते हैं?
अच्छा – रात्रि को तो सब याद में बैठे, अच्छी कमाई हो गई। बाबा यहाँ आ करके बच्चों को देखते हैं, खुश होते हैं कि यह बगीचा बन रहा है। अभी ब्राह्मण हैं, इसके पीछे देवी-देवताओं का बगीचा बनना है। अभी यहाँ सब पुरुषार्थी हैं। कोशिश कर रहे हैं अच्छा फूल बनने की। कांटे को फूल बनाने का शो करेंगे। तुम्हें यहाँ स्थेरियम होकर बैठना है। बाबा देखो कितना पक्का कराते हैं। बाबा का फरमान मिला हुआ है सिर्फ मुझे याद करो। कोई ने रोया तो बाबा कहेंगे जिन रोया तिन खोया। बाबा देख रहा है कोई मुरझाया हुआ फूल तो नहीं है? नहीं। सब महावीर हैं। ऐसे-ऐसे विघ्न तो आने ही हैं। ड्रामा है, भावी है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी दैवी एक्टिविटी बनानी है। कभी भी लड़ना, झगड़ना नहीं है, कडुवा नहीं बोलना है, लोभ लालच नहीं रखना है। कोई को दु:ख नहीं देना है। सबको सुख का रास्ता बताना है।
2) कोई भी विघ्न में संशय नहीं उठाना है, ड्रामा की निश्चित भावी समझ फखुर में रहना है, फिक्र नहीं करना है।
वरदान:-सच्ची दिल से बाप को राज़ी करने और सदा राज़ी रहने वाले राज़युक्त भव
जो बच्चे सच्ची दिल से बाप को राज़ी करते हैं, बापदादा उन्हें स्वयं के संस्कारों से, संगठन से सदा राज़ी अर्थात् राज़युक्त रहने का वरदान देते हैं। स्वयं के वा एक दो के संस्कारों के राज़ को जानना, परिस्थितियों को जानना, यही राज़युक्त स्थिति है। सच्चे दिल से बाप को अपना पोतामेल देने वा स्नेह की रूहरिहान करने से सदा समीपता का अनुभव होता है और पिछला खाता समाप्त हो जाता है।
स्लोगन:-सच्ची दिल से दाता, विधाता, वरदाता को राज़ी करने वाले ही रूहानी मौज में रहते हैं
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