5 January ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 5 जनवरी 2024 (5 January ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – बाप समान रूहानी टीचर बनो। जो बाप से पढ़ा है वह दूसरों को भी पढ़ाओ, धारणा है तो किसको भी समझाकर दिखाओ।” | |
प्रश्नः- | किस बात में बाबा को अटल निश्चय है? बच्चों को भी उसमें अटल बनना है? |
उत्तर:- | बाबा को ड्रामा पर अटल निश्चय है। बाबा कहेंगे जो पास्ट हुआ ड्रामा। कल्प पहले जो किया था वही करेंगे। ड्रामा तुम्हें ऊपर नीचे नहीं करने देगा। परन्तु अभी तक बच्चों की अवस्था ऐसी बनी नहीं है इसलिए मुख से निकलता – ऐसे होता तो ऐसा करते, पता होता तो यह नहीं करते.. बाबा कहते बीती को चितओ नहीं, आगे के लिए पुरूषार्थ करो कि ऐसी कोई भूल फिर से न हो। |
ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहानी बच्चों को बैठ समझाते हैं। बाप खुद कहते हैं मैं जब आता हूँ तो किसको पता नहीं पड़ता क्योंकि मैं हूँ गुप्त। गर्भ में भी जब आत्मा प्रवेश करती है तो प्रवेश होने का मालूम थोड़ेही पड़ता है। तिथि तारीख निकल न सके। जब गर्भ से बाहर निकलती है तब वह तिथि तारीख निकलती है। तो बाबा की प्रवेशता की तिथि तारीख का भी पता नहीं लगता, कब प्रवेश किया, कब रथ में पधारे – कुछ पता नहीं पड़ता। कोई को देखते थे तो वह नशे में चले जाते थे। समझा कुछ प्रवेशता है या कुछ ताकत आई है। ताकत कहाँ से आई? मैंने खास कोई जप तप तो नहीं किया। इसको कहा जाता है गुप्त। तिथि तारीख कुछ नहीं। सूक्ष्मवतन की भी स्थापना कब होती है, यह कुछ नहीं कह सकते। मुख्य बात है मनमनाभव। बाप कहते हैं हे आत्मायें तुम मुझ अपने बाप को बुलाती हो कि आकर पतितों को पावन बनाओ, पावन दुनिया बनाओ। बाप समझाते हैं ड्रामा प्लैन अनुसार जब मुझे आना होता है तो चेन्ज जरूर होती है। सतयुग से लेकर जो कुछ पास हुआ सो फिर रिपीट करेंगे। सतयुग त्रेता फिर ज़रूर रिपीट करेंगे। सेकेण्ड-सेकेण्ड पास होता जाता है। संवत भी पास होता जाता है। कहते हैं सतयुग पास्ट हुआ। देखा तो नहीं। बाप ने समझाया है तुमने पास किया है। तुम ही पहले-पहले हमसे बिछुड़े हो। तो इस पर गौर करना है, कैसे हमने 84 जन्म लिये हैं जो फिर हूबहू लेने पड़ेंगे अर्थात् दु:ख और सुख का पार्ट बजाना पड़ेगा। सतयुग में होता है सुख, जब मकान पुराना होता है तो कहाँ से छत बहती है, कहाँ से कुछ होता रहता है। तो फुरना हो जाता है कि इसकी मरम्मत करनी है। जब बहुत पुराना हो जाता है तो समझा जाता है यह मकान रहने लायक नहीं है। नई दुनिया के लिए ऐसे नहीं कहेंगे। अब तुम नई दुनिया में चलने के लायक बनते हो। हर चीज़ पहले नई फिर पुरानी होती है।
अब तुम बच्चों को यह ख्याल में आता है और कोई तो इन बातों को समझ न सके। गीता रामायण आदि सुनाते रहते हैं, उसमें ही बिज़ी रहते हैं। तुम हम भी इन्हीं धन्धों में बिज़ी थे। अब बाप ने कितना समझदार बनाया है। बाबा कहते हैं बच्चे अब यह पुरानी दुनिया खत्म होने वाली है, अब नई दुनिया में चलना है। ऐसे भी नहीं सब चलेंगे। सब मुक्तिधाम में बैठ जायें यह भी कायदा नहीं है, प्रलय हो जाए। तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया और नई दुनिया का बहुत ही कल्याणकारी संगमयुग है। अब चेन्ज होनी है फिर शान्तिधाम में जायेंगे। वहाँ सुख के भासना की भी कोई बात नहीं। गायन है यज्ञ में विघ्न पड़े सो तो पड़ते रहते हैं। कल्प के बाद भी पड़ते रहेंगे। तुम अब पक्के हो गये हो। यह स्थापना विनाश का कोई छोटा काम नहीं है। विघ्न किस बात में पड़ते हैं? बाप कहते हैं काम महाशत्रु है, इस पर ही अत्याचार होते हैं। द्रोपदी की भी बात है ना। ब्रह्मचर्य पर ही सारी खिटपिट है। सतोप्रधान से तमोप्रधान बनना है ज़रूर। सीढ़ी उतरनी है, पुरानी दुनिया होनी है ज़रूर। इन सब बातों को तुम ही समझते हो और सिमरण भी करते हो और पढ़कर पढ़ाना भी है, टीचर बनना है। ज़रूर नॉलेज बुद्धि में है तब पढ़कर टीचर बनते हैं। फिर टीचर से जो सीखकर होशियार होते हैं तो गवर्मेन्ट उनको पास करती है। तुम भी टीचर हो। बाप ने तुमको टीचर बनाया है। एक टीचर क्या कर सकते हैं। तुम सब हो रूहानी टीचर। तो बुद्धि में नॉलेज होनी चाहिए। ज्ञान तो बिल्कुल एक्यूरेट है – मनुष्य से देवता बनने का।
अभी जितना तुम बच्चे बाप को याद करते हो तो लाइट आती रहती है। मनुष्यों को साक्षात्कार होता रहेगा क्योंकि आत्मा प्योर बनेगी ही याद से फिर किसको साक्षात्कार भी हो सकता है। बाप मददगार भी बैठा है, बाप हमेशा बच्चों का मददगार है। पढ़ाई में नम्बरवार हैं। हर एक अपनी बुद्धि से समझ सकते हैं मेरे में कितनी धारणा है। अगर धारणा है तो किसको समझाकर दिखाओ। यह है धन, धन देते नहीं तो कोई मानेंगे भी नहीं कि इनके पास धन है। धन दान करेंगे तो महादानी कहेंगे। महारथी, महावीर बात एक ही है। सब एक जैसे तो हो न सकें। तुम्हारे पास कितने आते हैं। एक-एक से बैठ माथा मारना होता है क्या? वो लोग अखबार द्वारा बहुत बातें सुनते हैं तो बहुत चमकते हैं। फिर जब तुम्हारे पास आकर सुनते हैं तो कहते हैं हमने परमत पर क्या किया, यहाँ तो बहुत अच्छा है। एक-एक को ठीक करने में मेहनत लगती है। यहाँ भी कितनी मेहनत लगी है। फिर भी कोई महारथी, कोई घोड़ेसवार, कोई प्यादा। यह ड्रामा में पार्ट है, यह तो समझते हो आखरीन जीत तुम्हारी होनी है, जो कल्प पहले बने थे वही बनेंगे। पुरूषार्थ तो बच्चों को करना ही है। बाप राय देते हैं समझाने की कोशिश करो। पहले तो शिवबाबा के मन्दिर में जाकर सर्विस करो। तुम पूछ सकते हो – यह कौन हैं? इस पर क्यों पानी चढ़ाते हैं? तुम अच्छी तरह जानते हो। कहते हैं गई टांडे पर (आग लेने) और मालिक होकर बैठ गई। यह दृष्टांत भी तुम्हारा ही है। तुम जाते हो जगाने के लिए। तुमको निमत्रण देकर बुलाते हैं, तो ऐसा निमंत्रण आये तो खुशी होनी चाहिए। काशी आदि में बड़े-बड़े टाइटल देते हैं। भक्ति में कितने ढेर मन्दिर हैं, यह भी एक धन्धा है। कोई अच्छी स्त्री देखी तो उनको गीता कण्ठ कराए आगे कर देते हैं, फिर जो कमाई होती है वह मिल जाती है। है कुछ भी नहीं। रिद्धि सिद्धि बहुत सीखते हैं। ऐसे स्थानों पर जाना चाहिए। तुम बच्चों को कभी शास्त्रार्थ नहीं करना चाहिए। तुमको तो जाकर बाप का परिचय देना है। मुक्ति जीवनमुक्ति दाता एक है, उनकी महिमा करनी है। वह कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। बाकी मनमनाभव का अर्थ यह नहीं है कि गंगा में जाकर स्नान करो। मामेकम् का अर्थ है मुझ एक को याद करो – मैं प्रतिज्ञा करता हूँ मैं तुमको सब पापों से मुक्त करूंगा। जब से रावण आया है तब से पाप शुरू हुए हैं। तो ऊंच पद पाने का बहुत पुरूषार्थ करना है। पोजीशन के लिए मनुष्य रात दिन कितना माथा मारते हैं, यह भी पढ़ाई है, इसमें कोई किताब आदि उठाने की बात नहीं है। 84 का चक्र तो बुद्धि में आ गया है। कोई बड़ी बात नहीं है। एक-एक जन्म की डीटेल थोड़ेही बताते हैं। 84 जन्म पूरे हुए अब हम आत्माओं को वापस घर जाना है। आत्मा जो पतित बनी है उनको पावन ज़रूर बनना है। सबको यही कहते रहो मामेकम् याद करो। बच्चे कहते हैं बाबा योग में नहीं रह सकते। अरे तुमको सम्मुख कह रहा हूँ – मुझे याद करो फिर योग अक्षर तुम क्यों कहते हो। योग कहने से ही तुम भूलते भी हो। बाप को याद कौन नहीं कर सकता। लौकिक माँ बाप को कैसे याद करते हो, यह भी माँ बाप हैं ना। यह भी पढ़ते हैं। सरस्वती भी पढ़ती है। पढ़ाने वाला एक बाप ही है। तुम जितना पढ़ते हो फिर औरों को समझाते हो। बाप कहते हैं बच्चे शास्त्र पढ़ने, जप तप करने से मुझे प्राप्त नहीं कर सकते हो, बाकी फायदा क्या है। सीढ़ी तो उतरते ही आते हो।
तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं। फिर भी तुमको समझाना है ज़रूर कि पाप और पुण्य कैसे जमा होता है। रावण राज्य के बाद ही तुमने पाप करना शुरू किया है। ऐसे भी बच्चे हैं जिनको नई दुनिया, पुरानी दुनिया क्या है यह भी समझाने नहीं आता है। अब बाप कहते हैं कि बेहद के बाप को याद करो, वही पतित-पावन है। बाकी तुमको कहाँ भी जाने की ज़रूरत नहीं है। भक्ति मार्ग में सदैव पैर घर से बाहर निकलता था। पति स्त्री को कहते हैं श्रीकृष्ण का चित्र घर में भी है फिर बाहर क्यों जाती हो? क्या फ़र्क है? पति परमेश्वर है इसको भी नहीं मानते। भक्ति मार्ग में बहुत दूर-दूर ऊंचा मन्दिर बनाते हैं, जो मनुष्यों का भाव बैठे। तुम समझाते हो मन्दिरों में कितना धक्का खाते हैं। यह एक रसम पड़ी है। शिव काशी में तीर्थ करने जाते हैं परन्तु प्राप्ति कुछ भी नहीं। अब तुमको तो बाप की श्रीमत मिलती है। तुमको कहाँ भी जाना नहीं है। पतियों का पति परमेश्वर वास्तव में वह एक ही है। जिसको तुम्हारे पति, काके, मामे सब याद करते हैं, वह है पति परमेश्वर अथवा पिता परमेश्वर। वह तुमको कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। तुम्हारी ज्योत अब जग रही है तो तुम्हारे से मनुष्यों को लाइट देखने में आती है। तो बच्चों का भी नाम बाला होना चाहिए। बाप बच्चों का नाम तो बाला करते हैं ना। सुदेश बच्ची समझाने में बड़ी तीखी है। पुरूषार्थ बहुत अच्छा किया है तो पुरानों से भी आगे गई है। इसमें भी जास्ती पुरूषार्थ कर आगे चली जायेगी। सारा मदार पुरूषार्थ पर है। हार्टफेल नहीं होना चाहिए। पिछाड़ी में आया तो भी सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पा सकते हैं। दिनप्रतिदिन ऐसे बहुत निकलते रहेंगे। ड्रामा में तुम्हारा विजय का पार्ट तो है ही। विघ्न भी पड़ने हैं। और कोई सतसंगों में ऐसे विघ्न नहीं पड़ते हैं। यहाँ विकारों पर ही हंगामा होता है। गायन भी है अमृत छोड़ विष काहे को खाए। ज्ञान से एक देवी-देवता धर्म की स्थापना हो जाती है। सतयुग में रावण राज्य हो न सके। समझानी कितनी साफ है। राम राज्य के बाजू में ही रावण राज्य भी दिखाया है। तुम टाइम भी दिखाते हो। यह है संगम। दुनिया बदल रही है। स्थापना, पालना, विनाश कराने वाला एक बाप है। है बहुत सहज, परन्तु धारणा पूरी होती नहीं और सब बातें याद रहती हैं बाकी ज्ञान और योग भूल जाता है। तुम ऊंच ते ऊंच भगवान की सन्तान हो। दिन प्रतिदिन तुम सालवेन्ट होते जाते हो। धन मिलता है ना। खर्चा भी आता जाता है। बाबा कहते हैं हुण्डी भरती जायेगी। कल्प पहले मिसल ही तुम खर्चा करेंगे। कम ज्यादा ड्रामा करने नहीं देगा। ड्रामा पर बाबा का अटल निश्चय है। जो पास्ट हुआ ड्रामा। ऐसे नहीं कहना चाहिए ऐसा होता था, यह नहीं करते थे। अभी वह अवस्था आई नहीं है। कुछ न कुछ मुख से निकल जाता है, फिर फील होता है। बाबा कहते हैं बीती को चितओ नहीं, आगे के लिए पुरूषार्थ करो कि ऐसी भूल फिर न हो इसलिए बाबा कहते हैं चार्ट लिखो, इसमें बहुत कल्याण है। बाबा ने एक को देखा सारी जीवन कहानी लिख रहे थे, समझते हैं बच्चे सीखेंगे। यहाँ फिर श्रीमत पर चलने में ही कल्याण है। यहाँ झूठ भी चल न सके। नारद का मिसाल। चार्ट से फायदा बहुत है। बाबा फरमान करते हैं तो बच्चों को फरमान पर चलना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान धारण कर दूसरों को समझाना है। ज्ञान धन दान करके महादानी बनना है। किसी से भी शास्त्रार्थ न कर बाप का सत्य परिचय देना है।
2) तुम्हें बीती बातों का चिंतन नहीं करना है। ऐसा पुरूषार्थ करना है जो फिर कभी भूल न हो। अपना सच्चा-सच्चा चार्ट रखना है।
वरदान:- | योग द्वारा ऊंची स्थिति का अनुभव करने वाले डबल लाइट फरिश्ता भव आप राजयोगी बच्चे योग में ऊंची स्थिति का अनुभव करते हो, हठयोगी फिर शरीर को ऊंचा उठाते हैं। आप कहाँ भी रहते ऊंची स्थिति में रहते हो इसलिए कहते योगी ऊंचा रहते हैं। आपके मन की स्थिति का स्थान ऊंचा है क्योंकि डबल लाइट बन गये। वैसे भी कहा जाता कि फरिश्तों के पांव धरनी पर नहीं होते। फरिश्ता अर्थात् जिसका बुद्धि रूपी पांव धरती पर न हो, देहभान में न हो। पुरानी दुनिया से कोई लगाव न हो। |
स्लोगन:- | अभी दुआओं के खाते को सम्पन्न बना लो तो आपके चित्रों द्वारा सबको अनेक जन्म दुआयें मिलती रहेंगी। |
अव्यक्ति साइलेन्स द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो
फरिश्ता स्थिति का अनुभव करने के लिए अभी-अभी आवाज में आते, डिस्कस करते, कैसे भी वातावरण में रहते सेकण्ड में सर्व संकल्पों को स्टॉप कर आवाज से परे, न्यारे फरिश्ता स्थिति में टिक जाओ। अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी फरिश्ता अर्थात् आवाज से परे अव्यक्ति साइलेन्स की अनुभूति। यही अभ्यास लास्ट पेपर में विजयी बनायेगा।
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