29 December ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 29 दिसम्बर 2023 (29 December ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – प्रश्नों में मूझंना छोड़ मनमनाभव रहो, बाप और वर्से को याद करो, पवित्र बनो और बनाओ” |
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प्रश्नः- | शिवबाबा तुम बच्चों से अपनी पूजा नहीं करवा सकते हैं, क्यों? |
उत्तर:- | बाबा कहते – मैं तुम बच्चों का मोस्ट ओबीडियन्ट सर्वेन्ट हूँ। तुम बच्चे मेरे मालिक हो। मैं तो तुम बच्चों को नमस्ते करता हूँ। बाप है निरहंकारी। बच्चों को भी बाप समान बनना है। मैं तुम बच्चों से अपनी पूजा कैसे कराऊंगा। मेरे पैर भी नहीं हैं, जिसको तुम धुलाई करो। तुम्हें तो खुदाई खिदमतगार बन विश्व की सेवा करनी है। |
गीत:- | निर्बल से लड़ाई बलवान की……..
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ओम् शान्ति। निराकार शिव भगवानुवाच। शिवबाबा निराकार है और आत्मायें जो शिवबाबा कहती हैं वह भी असुल में निराकार हैं। निराकारी दुनिया में रहने वाले हैं। यहाँ पार्ट बजाने के लिए साकार बने हैं। अब हम सबको तो पैर हैं। श्रीकृष्ण को भी पांव हैं। पैर पूजते हैं ना। शिवबाबा कहते हैं मैं तो हूँ ओबीडियन्ट, मेरे पैर हैं नहीं जो तुमसे पैर धुलाऊं वा पूजा कराऊं। संन्यासी पैर धुलाते हैं ना। गृहस्थी लोग जाकर उनके पैर धोते हैं। 29 December ki Murli पैर तो मनुष्यों के हैं। शिवबाबा को पैर ही नहीं हैं, जो तुमको पैर की पूजा करनी पड़े। यह है पूजा की सामग्री। बाप कहते हैं मैं तो ज्ञान का सागर हूँ। मैं अपने बच्चों से कैसे पैर धुलाऊंगा? बाप तो कहते हैं वन्दे मातरम्। माताओं को फिर क्या कहना है? हाँ, खड़े होकर कहेंगे शिवबाबा नमस्ते। जैसे सलाम मालेकम् कहते हैं ना। सो भी बाप को पहले नमस्ते करना पड़ता है। कहते हैं आई एम मोस्ट ओबीडियन्ट। बेहद का सर्वेन्ट हूँ। निराकार और निरहंकारी कितना है। पूजा की तो बात ही नहीं। मोस्ट बील्वेड चिल्ड्रेन, जो मिलकियत के मालिक बनते हैं, उनसे कैसे पूजा करायेंगे? हाँ, छोटे बच्चे बाप के पांव पड़ते हैं क्योंकि बाप बड़ा है। परन्तु वास्तव में तो बाप बच्चों का भी सर्वेन्ट है। जानते हैं कि बच्चों को माया बहुत तंग करती है। बहुत कड़ा पार्ट है। बहुत अपार दु:ख अजुन आने वाले हैं। यह सारी बेहद की बात है, तब ही बेहद का बाप आते हैं। बाप कहते हैं दाता मैं एक ही हूँ, अन्य किसी को भी दाता नहीं कह सकते। बाप से सब मांगते हैं। साधू लोग भी मुक्ति मांगते हैं। भारत के गृहस्थी लोग भगवान् से जीवनमुक्ति मांगते हैं। तो दाता एक हो गया। गाया भी हुआ है – सर्व का सद्गति दाता एक। साधू लोग जब खुद ही साधना करते हैं तो औरों को फिर गति-सद्गति कैसे दे सकते हैं? मुक्ति-धाम और जीवनमुक्तिधाम दोनों का प्रोपराइटर एक ही बाप है। वह अपने समय पर आते हैं एक ही बार। और सभी जन्म-मरण में आते रहते हैं। यह एक ही बार आते हैं जबकि रावण का राज्य खत्म होना होता है। उसके पहले आ नहीं सकते। ड्रामा में पार्ट ही नहीं है। तो बाप कहते हैं तुमने मेरे द्वारा मुझे अब पहचाना है। मनुष्य नहीं जानते तो सर्वव्यापी कह दिया है।
अभी तो है रावण राज्य। भारतवासी ही रावण को जलाते रहते हैं। तो सिद्ध है रावण राज्य भारत में है, रामराज्य भी भारत में हैं। यह बातें रामराज्य स्थापन करने वाला ही समझाते हैं कि कैसे अब रावण राज्य है। यह कौन समझाते हैं? निराकार शिव भगवानुवाच। आत्मा को शिव नहीं कहेंगे। आत्मायें हैं सब सालिग्राम। शिव एक को ही कहा जाता है। सालिग्राम तो अनेक होते हैं। यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ। वह ब्राह्मण लोग जो यज्ञ रचते हैं, उसमें एक बड़ा शिवलिंग और छोटे-छोटे सालिग्राम बनाकर पूजा करते हैं। देवियों आदि की पूजा तो वर्ष-वर्ष होती है। यह तो रोज़ मिट्टी के बनाते हैं और पूजा करते हैं। रुद्र का बड़ा मान होता है। सालिग्राम कौन है, वह तो जानते नहीं। तुम शिवशक्ति सेना पतितों को पावन बनाती हो। शिव की पूजा तो होती है। सालिग्राम कहाँ जायें? तो बहुत मनुष्य रुद्र यज्ञ रच सालिग्रामों की पूजा करते हैं। शिवबाबा के साथ बच्चों ने भी मेहनत की है। शिवबाबा के मददगार हैं। उन्हों को कहा जाता है खुदाई खिदमगार। खुद निराकार भी जरूर कोई शरीर में आयेंगे ना। स्वर्ग में तो खिदमत की दरकार नहीं। 29 December ki Murli शिवबाबा कहते हैं देखो यह मेरे खिदमतगार बच्चे हैं। नम्बरवार तो हैं ना। सबकी पूजा तो कर न सकें। यह यज्ञ भी भारत में ही होते हैं। यह राज़ बाप ही समझाते हैं। वह ब्राह्मण लोग वा सेठ लोग थोड़ेही जानते हैं। वास्तव में यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ। बच्चे पवित्र बन भारत को स्वर्ग बनाते हैं। यह बड़ी हॉस्पिटल है, जहाँ योग द्वारा हम एवरहेल्दी बनते हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो। देह-अहंकार पहला नम्बर विकार है जो योग तोड़ता है। बॉडीकान्सेस होते हो, बाप को भूलते हो तब ही फिर और विकार आ जाते हैं। यह योग निरन्तर लगाना बड़ी मेहनत है। मनुष्य श्रीकृष्ण को भगवान् समझ उनकी पूजा करते हैं। परन्तु वह पतित-पावन तो है नहीं, जो उनके पैर पूजे जायें। शिव तो है ही बिगर पांव। वह तो आकर माताओं का सर्वेंन्ट बनते हैं और कहते हैं बाप और स्वर्ग को याद करो तो फिर तुम 21 जन्म राज्य करेंगे। 21 पीढ़ी गाई हुई हैं। और धर्मों में नहीं गायी जाती। किसी भी धर्म वाले को 21 जन्म स्वर्ग की बादशाही नहीं मिलती है। यह भी ड्रामा बना हुआ है। देवता धर्म वाले जो और धर्मो में मिक्स हो गये हैं वह फिर निकल आयेंगे। स्वर्ग के सुख तो अपरमपार हैं। नई दुनिया, नये मकान में अच्छा सुख होता है। थोड़ा पुराना होने में कुछ न कुछ दाग हो जाते हैं फिर रिपेयर किया जाता है। तो जैसे बाप की महिमा अपरमपार है वैसे स्वर्ग की महिमा भी अपरमपार है, जिसका मालिक बनने का तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। और कोई स्वर्ग का मालिक बना न सके।
तुम बच्चे जानते हो विनाश की सीन बड़ी दर्दनाक है। उनके पहले बाप से वर्सा ले लेना चाहिए। बाप कहते हैं अब मेरे बनो अर्थात् ईश्वरीय गोद लो। शिवबाबा बड़ा है ना। तो तुमको प्राप्ति बहुत है। स्वर्ग के सुख अपरमपार हैं। नाम सुनते ही मुख पानी होता है। कहते भी हैं फलाना स्वर्ग पधारा। स्वर्ग प्यारा लगता है ना। 29 December ki Murli यह तो है ही नर्क, जब तक सतयुग न हो तब तक स्वर्ग में कोई जा न सके। बाप समझाते हैं यह जगदम्बा जाकर फिर स्वर्ग की महारानी लक्ष्मी बनती है फिर बच्चे भी नम्बरवार बनते हैं। मम्मा-बाबा जास्ती पुरुषार्थ करते हैं। राज्य तो वहाँ बच्चे भी करेंगे ना। सिर्फ लक्ष्मी-नारायण तो नहीं करेंगे। तो बाप आकर मनुष्य से देवता बनाते हैं, पढ़ाते हैं। अगर कहते श्रीकृष्ण बनाते हैं तो फिर श्रीकृष्ण को तो ले गये हैं द्वापर में। द्वापर में तो देवता होते नहीं। संन्यासी कह न सकें कि हम स्वर्ग जाने के लिए रास्ता बताते हैं। उसके लिए तो भगवान् चाहिए। कहते हैं मुक्ति-जीवनमुक्ति के द्वार कलियुग के अन्त में खुलेंगे। यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ। मैं हूँ शिव, रुद्र और यह हैं सालिग्राम। यह सब शरीरधारी हैं। मैंने शरीर का लोन लिया हुआ है। यह सब ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण बिगर यह ज्ञान कोई में होता नहीं। शूद्रों में भी नहीं है। सतयुग में देवी-देवतायें तो पारसबुद्धि थे, जो बाप ही अब बनाते हैं। संन्यासी किसको पारसबुद्धि बना न सकें। भल खुद पवित्र हैं फिर भी बीमार हो पड़ते हैं। स्वर्ग में कभी बीमार नहीं पड़ेंगे। वहाँ तो अपार सुख हैं इसलिए बाप कहते हैं पूरा पुरुषार्थ करो। रेस होती है ना। यह है रुद्र माला में पिरोने की रेस। अहम् आत्मा को दौड़ी लगानी है योग की। जितना योग लगायेंगे तो समझेंगे यह तीखा दौड़ रहा है। उनके विकर्म विनाश होते जायेंगे। तुम उठते-बैठते, चलते-फिरते यात्रा पर हो। बुद्धियोग की यह बहुत 29 December ki Murli अच्छी यात्रा है। तुम कहते हो ऐसे स्वर्ग के अपरमपार सुख पाने के लिये पवित्र क्यों नहीं रहेंगे। हमको माया हिला नहीं सकती। प्रतिज्ञा करनी होती है। अन्तिम जन्म है, मरना तो है ही, तो क्यों नहीं बाप से वर्सा ले लेवें। कितने बाबा के बच्चे हैं। प्रजापिता है, तो जरूर नई रचना रचते हैं। नई रचना होती है ब्राह्मणों की। ब्राह्मण हैं रूहानी सोशल वर्कर। देवता तो प्रालब्ध भोगते हैं। तुम भारत की सर्विस करते हो इसलिए तुम ही स्वर्ग के मालिक बनते हो। भारत की सर्विस करने में सबकी सर्विस हो जाती है। तो यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ। रुद्र शिव को कहा जाता है, न कि श्रीकृष्ण को। श्रीकृष्ण तो सतयुग का प्रिन्स है। वहाँ यह यज्ञ आदि होंगे नहीं। अभी है रावण राज्य। यह खलास होना है। फिर कभी रावण बनायेंगे ही नहीं। बाप ही आकर इन जंजीरों से छुड़ाते हैं। इस ब्रह्मा को भी जंजीरों से छुड़ाया ना। शास्त्र पढ़ते-पढ़ते क्या हालत हुई है! तो बाप कहते हैं अब मुझे याद करो। बाप को याद करने की हिम्मत नहीं है। पवित्र रहते नहीं, फालतू प्रश्न पूछते रहते हैं। तो बाप कहते हैं मनमनाभव। अगर किसी बात में मूंझते हो तो उसको छोड़ दो, मनमनाभव। ऐसे नहीं कि प्रश्न का रेसपॉन्स नहीं मिला तो पढ़ना ही छोड़ दो। कहते हैं भगवान् है तो रेसपॉन्स क्यों नहीं देते? बाप कहते हैं तुम्हारा काम है बाप और वर्से से। चक्र को भी याद करना पड़े। वह भी त्रिमूर्ति और चक्र दिखाते हैं। लिखते हैं – “सत्य मेव जयते” परन्तु अर्थ नहीं समझते। तुम समझा सकते हो – शिवबाबा को याद किया तो सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा-विष्णु-शंकर भी याद आयेंगे और स्वदर्शन चक्र को याद करने से विजयन्ति हो जायेंगे। ‘जयते’ माना माया पर जीत पहनेंगे। कितनी समझ की बात है। यहाँ कायदे हैं – हंसों की सभा में बगुले बैठ न सकें। बी.के. जो स्वर्ग की परी बनाती हैं, उन पर बड़ी रेसपॉन्सिबिलिटी है। 29 December ki Murli पहले जब कोई आते हैं तो उनसे हमेशा यह पूछो – आत्मा के बाप को जानते हो? प्रश्न जो पूछते हैं तो जरूर जानते होंगे। संन्यासी आदि ऐसे कभी नहीं पूछेंगे। वह तो जानते ही नहीं। तुम तो प्रश्न पूछेंगे – बेहद के बाप को जानते हो? पहले तो सगाई करो। ब्राह्मणों का धन्धा ही यह है। बाप कहते हैं – हे आत्मायें, मेरे साथ योग लगाओ क्योंकि मेरे पास आना है। सतयुगी देवी-देवतायें बहुतकाल से अलग रहे हैं तो पहले-पहले ज्ञान भी उनको ही मिलेगा। लक्ष्मी-नारायण ने 84 जन्म पूरे किये हैं तो उनको ही पहले ज्ञान मिलना चाहिए।
मनुष्य सृष्टि का जो झाड़ है, उसका पिता है ब्रह्मा और आत्मा का पिता है शिव। तो बाप और दादा है ना। तुम हो उनके पोत्रे। उनसे तुमको ज्ञान मिलता है। बाप कहते हैं मैं जब नर्क में आऊं तब तो स्वर्ग रचूं। शिव भगवानुवाच – लक्ष्मी-नारायण त्रिकालदर्शी नहीं हैं। उनको यह रचता-रचना का ज्ञान है नहीं, तो परम्परा कैसे चले? कई समझते हैं यह तो सिर्फ कहते रहते हैं – मौत आया कि आया। होता तो कुछ नहीं है। इस पर एक मिसाल भी है ना – उसने कहा शेर आया, शेर आया, परन्तु शेर आया नहीं। आखिर एक दिन शेर आ गया, बकरियाँ सब खा गया। यह बातें सब यहाँ की हैं। एक दिन काल खा जायेगा, फिर क्या करेंगे? भगवान् का कितना भारी यज्ञ है। परमात्मा के सिवाए तो इतना बड़ा यज्ञ कोई रच न सके। ब्रह्मा वंशी ब्राह्मण कहलाकर पवित्र न बना तो यह मरा। शिवबाबा से प्रतिज्ञा करनी होती है। मीठा बाबा, स्वर्ग का मालिक बनाने वाला बाबा मैं तो आपका हूँ, अन्त तक आपका होकर रहूँगा। ऐसे बाप को अथवा साजन को फारकती दी तो महाराजा-महारानी बन नहीं सकेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
29 December ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सच्चा खुदाई खिदमतगार बन भारत को स्वर्ग बनाने में बाप को पवित्रता की मदद करनी है, रूहानी सोशल वर्कर बनना है।
2) किसी भी प्रकार के प्रश्नों मे मूंझकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है। प्रश्नों को छोड़ बाप और वर्से को याद करना है।
वरदान:- | हदों से पार रह सबको अपने पन की महूसता कराने वाले अनुभवी मूर्त भव जैसे हर एक के मन से निकलता है मेरा बाबा। ऐसे सभी के मन से निकले कि यह मेरा है, बेहद का भाई है या बहन है, दीदी है, दादी है। कहाँ भी रहते हो लेकिन बेहद सेवा के निमित्त हो। हदों से पार रहकर बेहद की भावना, बेहद की श्रेष्ठ कामना रखना – यही है फालो फादर करना। अभी इसका प्रैक्टिकल अनुभव करो और कराओ। वैसे भी अनुभवी बुजुर्ग को पिता जी, काका जी कहते हैं, ऐसे बेहद के अनुभवी अर्थात् सबको अपनापन महसूस हो। |
स्लोगन:- | उपराम स्थिति द्वारा उड़ती कला में उड़ते रहो तो कर्म रूपी डाली के बंधन में फँसेंगे नहीं। |
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