28 October ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 28 अक्टूबर 2023 (28 October ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – बेहद सर्विस के लिए तुम्हारी बुद्धि चलनी चाहिए। ऐसी बड़ी घड़ी बनाओ जिसके कांटों में रेडियम हो जो दूर से ही चमकता रहे।
प्रश्नः- सर्विस की वृद्धि के लिए कौन-सी युक्ति रचनी चाहिए?
उत्तर:- जो-जो महारथी होशियार बच्चे हैं उनको अपने पास बुलाना चाहिए। महारथी बच्चे चक्कर लगाते रहें तो सर्विस वृद्धि को पाती रहेगी, इसमें ऐसे नहीं समझना चाहिए कि हमारा मान कम हो जायेगा। बच्चों को कभी भी देह-अभिमान में नहीं आना चाहिए। महारथियों का बहुत-बहुत रिगार्ड रखना चाहिए।
गीत:- यह वक्त जा रहा है……..
ओम् शान्ति। घड़ी का नाम सुना तो बेहद की घड़ी याद पड़ी। यह है बेहद की घड़ी, इसमें सारी बुद्धि से समझने की बात है। उनका भी बड़ा कांटा और छोटा कांटा है। 28 october ki Murli सेकेण्ड का बड़ा कांटा चलता रहता है। अब रात के 12 बजे हैं यानी रात पूरी हो फिर दिन शुरू होना है। यह बेहद की घड़ी कितनी बड़ी होनी चाहिए। इसमें कांटे जो बनाये जाएं उसमें रेडियम भी देना चाहिए, जो दूर से चमकता रहे। घड़ी तो अपने आप समझाती है। कोई भी नया आये तो घड़ी आकर देखे। बुद्धि भी कहती है बरोबर कांटा अन्त में आकर पहुँचा है। कोई भी समझ सकता है कि विनाश जरूर होना चाहिए। फिर है सतयुग की आदि। सतयुग में बहुत थोड़ी आत्मायें होती हैं। तो इतनी सब आत्मायें जरूर वापिस जाती होंगी। चित्रों पर समझाना है बहुत सहज। ऐसी घड़ी कोई बनाये तो बहुत खरीद करके भी घर में रखें। इन पर समझाना है। यह कलियुगी भ्रष्टाचारी दुनिया है। अनेक धर्म भी हैं। विनाश भी सामने खड़ा है। नेचुरल कैलेमिटीज भी होनी है। अब इन लक्ष्मी-नारायण आदि को भी सतयुग की बादशाही कैसे मिली? जरूर बाप द्वारा मिली होगी। पतित-पावन आते ही हैं पतित दुनिया में, संगम पर। पावन दुनिया में तो बाप को आना नहीं है। यह गोले पर समझाने के लिए बड़ी फर्स्टक्लास बात है और इस पर समझाना किसको भी बड़ा सहज है। जिनके पास पैसे बहुत हैं वह तो आर्टिस्ट को झट ऑर्डर दे और झट चीज़ तैयार हो जाए। गवर्मेन्ट का काम तो इतने में हो जाता, यहाँ तो मुश्किल कोई काम करते हैं। कोई अच्छा आर्टिस्ट चित्र बनाता है तो वह शोभता भी है। आजकल आर्ट का मान बहुत है। डांस का आर्ट कितना दिखाते हैं, समझते हैं पहले ऐसे डांस होते थे। परन्तु ऐसे कोई है नहीं। तो यह बेहद की घड़ी फट से बनानी चाहिए। जो अच्छी रीति मनुष्य समझ जाएं। कलर भी ऐसा अच्छा हो जो चमकता रहे। पतित-पावन कोई मनुष्य तो हो नहीं सकता। मनुष्य पतित हैं ना तब तो गाते हैं। पावन दुनिया भी स्वर्ग है। मनुष्य तो नहीं समझते कि श्रीकृष्ण ही श्याम है फिर सुन्दर बनता है इसलिए नाम पड़ा है श्याम-सुन्दर। हम भी पहले नहीं समझते थे, अभी बुद्धि में है बरोबर काम चिता पर बैठने से काला हो जाता है अर्थात् आत्मा पतित हो जाती है। यह भी स्पष्ट करके लिखना है। 28 october ki Murli वर्सा देते हैं परमपिता परमात्मा और श्राप देते हैं रावण। मनुष्यों की बुद्धि फिर चली जाती है रघुपति राघव राजा राम तरफ, परन्तु राम तो है परमपिता परमात्मा। यह सब बुद्धि चलाकर चित्र बनाना चाहिए क्योंकि आजकल अपने को भगवान् तो सब कहते रहते। तुम जानते हो बाप तो एक ही है। बाकी हम सब आत्मायें परमधाम में परमात्मा के साथ जाकर रहेंगी। उस समय बाप भी ब्रह्माण्ड का मालिक, हम भी ब्रह्माण्ड के मालिक हैं। फिर बाप कहते हैं तुम बच्चों को मैं विश्व का मालिक बनाता हूँ। और भल कोई कितना भी बड़ा राजा हो ऐसे नहीं कहेंगे कि हम विश्व के मालिक हैं। बाप तो विश्व का मालिक बना रहे हैं। तो ऐसे मात-पिता पर कितना कुर्बान जाना चाहिए। उनकी श्रीमत मशहूर है। उस पर चलते-चलते पिछाड़ी में आकर श्रीमत का पूरा पालन करते हैं। अभी अगर श्रीमत पर पूरा चलें तो श्रेष्ठ बन जाएं, कितना माथा मारना पड़ता है। जब तक यज्ञ है तब तक पुरुषार्थ चलता रहेगा।
यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ। वह भी रुद्र यज्ञ करते हैं शान्ति के लिए। उससे तो शान्ति हो न सके। बाप का तो एक ही यज्ञ है, जिसमें सारी सामग्री स्वाहा हो जाती है और सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिलती रहती है। वह कितने यज्ञ रचते हैं, फायदा कोई नहीं। तुम बच्चे हो नानवायोलेन्स। पवित्रता बिगर कोई स्वर्ग में जा न सके। यह है पिछाड़ी का समय। पतित दुनिया, भ्रष्टाचारी रावण की दुनिया, 100 प्रतिशत अपवित्रता, अशान्ति, दु:खी, रोगी…….. यह सब लिखना पड़े और फिर स्वर्ग में हैं श्रेष्ठाचारी, 100 प्रतिशत पवित्रता-सुख-शान्ति निरोगी। 28 october ki Murli वह है रावण का श्राप, यह है शिवबाबा का वर्सा – पूरी लिखत होनी चाहिए। भारत फलाने समय से फलाने समय तक श्रेष्ठाचारी था फिर फलाने समय से भ्रष्टाचारी बना है। लिखत ऐसी हो जो देखने से समझ जाएं। समझाने से भी बुद्धि में नशा चढ़ेगा। इस धन्धे में ही रहने से फिर प्रैक्टिस हो जायेगी। वह सर्विस 8 घण्टा करते हैं तो यह भी 8 घण्टा करनी चाहिए। सेन्टर पर बच्चियाँ जो हैं उनमें भी नम्बरवार हैं। कोई को तो सर्विस का बहुत शौक है। जहाँ-तहाँ भागते रहते हैं। कोई तो एक ही जगह पर आराम से बैठ जाते हैं, उनको आलराउन्डर नहीं कहेंगे। महारथियों को तो कुछ समझते नहीं हैं तो सर्विस भी ढीली पड़ जाती है। बहुतों को अपना अंहकार बहुत रहता है। हमारा मान हो, दूसरा कोई आयेगा तो हमारा मान कम हो जायेगा। यह नहीं समझते कि महारथी तो मदद करेंगे। अपना अहंकार रहता है, ऐसे भी बुद्धू हैं। बाप कहते हैं सच्ची दिल पर ही साहेब राज़ी होता है। बाबा के पास समाचार तो आते रहते हैं ना। बाबा हर एक की रग को समझते हैं। यह बाबा भी अनुभवी है।
तो यह गोले की समझानी बहुत अच्छी है। यह समझानी तुम्हारी निकलेगी तो तुम्हारी सर्विस बहुत अच्छी विहंग मार्ग की हो जायेगी। अभी तो चींटी मार्ग की सर्विस है। अपने ही देह-अभिमान में रहते हैं, इसलिए बुद्धि चलती नहीं। अभी यह है विहंग मार्ग की सर्विस। सर्विसएबुल बच्चों का माथा चलता रहेगा – क्या-क्या बनाना चाहिए। चित्रों पर समझाना बहुत सहज है। अभी कलियुग है, सतयुग स्थापन होता है। बाप ही सबको वापिस ले जायेंगे। वहाँ है सुख, यहाँ है दु:ख। सब पतित ह
ैं। पतित मनुष्य कोई को भी मुक्ति-जीवनमुक्ति दे नहीं सकते हैं। यह सब हैं भक्ति मार्ग की कारोबार सिखलाने वाले। गुरू सब हैं भक्ति मार्ग के। ज्ञान मार्ग का गुरू कोई है नहीं। यहाँ तो कितनी मेहनत करनी पड़ती। भारत को स्वर्ग बनाने में जादूगरी का खेल हैं ना इसलिए उनको जादूगर भी कहते हैं। श्रीकृष्ण को कभी जादूगर नहीं कहेंगे। श्रीकृष्ण को भी श्याम से सुन्दर बनाने वाला वह बाप है। समझाने का बड़ा नशा चाहिए। बाहर में जाना चाहिए। गरीब ही अच्छा उठाते हैं। साहूकारों में उम्मीद कम रहती है। 100 गरीब तो एक-दो साहूकार, 5-7 साधारण निकलेंगे। ऐसे ही काम चलता है। धन की इतनी दरकार नहीं रहती, गवर्मेन्ट ने देखो कितना बारूद बनाया है। दोनों समझते हैं विनाश हो जायेगा, हम विनाश को पायेंगे, तब मलूक (शिकारी) कौन बनेंगे? 28 october ki Murli कहानी है ना दो बिल्ले लड़े मक्खन बीच में बन्दर को मिल गया। श्रीकृष्ण के मुख में मक्खन दिखाते हैं। है यह स्वर्ग रूपी मक्खन। यह बातें मुश्किल कोई समझ सकते हैं। यहाँ 20-25 वर्ष रहने वाले भी कुछ नहीं समझते। पहले-पहले भट्ठी बनी, उसमें कितने आये, कितने चले गये। कोई जम गये हैं। ड्रामा में कल्प पहले भी ऐसे ही हुआ था। अब भी ऐसे हो रहा है। चित्र जितने बड़े होंगे उतना कोई को भी समझाना सहज होगा। लक्ष्मी-नारायण का चित्र भी जरूरी है। झाड़ से पता पड़ता है भक्ति कल्ट कब से शुरू होता है। ब्रह्मा की रात दो युग फिर ब्रह्मा का दिन दो युग। मनुष्य तो समझते नहीं फिर कहेंगे ब्रह्मा तो सूक्ष्मवतन में है। परन्तु प्रजापिता तो जरूर यहाँ ही होगा। कितने गुह्य राज़ हैं जो शास्त्रों में तो हो नहीं सकते। मनुष्यों ने सब उल्टे चित्र देखे हैं, उल्टा ज्ञान सुना है। ब्रह्मा को भी बहुत भुजायें दी हैं। यह जो भी शास्त्र आदि हैं वह सब हैं भक्ति मार्ग की सामग्री। यह कब से शुरू होती है, दुनिया नहीं जानती। मनुष्य भक्ति कितनी करते हैं, समझते हैं भक्ति बिगर भगवान् मिल नहीं सकता। लेकिन जब पूरी दुर्गति हो तब तो भगवान् मिलेगा सद्गति के लिए। यह हिसाब-किताब तुम जानते हो। आधाकल्प से भक्ति शुरू होती है। बाप कहते हैं – यह वेद, उपनिषद, यज्ञ-तप आदि सब हैं भक्ति मार्ग के। 28 october ki Murli यह सब ख़त्म होने हैं। सबको काला बनना ही है फिर गोरा बनाने बाप को आना पड़े। बाप कहते हैं मैं कल्प के संगम युगे-युगे आता हूँ, न कि युगे-युगे। दिखाते हैं कच्छ अवतार, मच्छ अवतार, परशुराम अवतार……..। यह भगवान् के अवतार हैं, फिर पत्थर-भित्तर में भगवान् कैसे हो सकता है। मनुष्य कितने बेसमझ हो गये हैं। बाप ने आकर कितना समझदार बनाया है। महिमा भी करनी पड़े – परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर है। श्रीकृष्ण की यह महिमा हो नहीं सकती। श्रीकृष्ण के भक्त फिर श्रीकृष्ण के लिए कह देते हैं कि सर्वव्यापी है। कितना चटक पड़ते हैं। उनसे निकालकर फिर बाप का परिचय देते हैं सब आत्मायें भाई-भाई हैं, सब फादर थोड़ेही हो सकते हैं, फिर याद किसको किया जाता है? गॉड फादर को बच्चे याद करते हैं, समझाने वाला भी बेहद बुद्धि वाला चाहिए। बच्चों की बुद्धि हद में फंस पड़ती है। एक जगह ही बैठ जाते हैं। बिजनेसमैन जो होते हैं वह बड़ी-बड़ी ब्रान्चेज खोलते हैं। जितना जो सेन्टर्स खोले वह मैनेजर अच्छा। फिर सेन्टर पर भी मदार है। यह है अविनाशी ज्ञान रत्नों की दुकान। किसकी? ज्ञान सागर की। प्वाइन्ट तो बहुत हैं, जो धारण कर समझानी हैं। सभा में चित्र रखे हों जो सब देखें। घड़ी का चित्र (सृष्टि चक्र का) बहुत अच्छा है। इस चक्र को जानने से चक्रवर्ती बनेंगे। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। घड़ी पर समझाना बहुत सहज है। कितने पुराने बच्चे लायक ही नहीं बनते। अपने को मिया मिट्ठू समझ बैठते, फालतू खुश होते। सर्विस नहीं करेंगे तो कौन समझेंगे कि यह दानी हैं। दान भी अशर्फियों का करना चाहिए या पाई पैसे का? यह चित्र अन्धों के आगे आइना है। आइने में अपना मुख देखेंगे। 28 october ki Murli पहले बन्दर की शक्ल थी, अभी मन्दिर की शक्ल बन रही है। मन्दिर में रहने लायक बनने का पुरुषार्थ करना है। यह है पतित दुनिया, वह है पावन दुनिया, जो शिवबाबा स्थापन कर रहे हैं। जो श्रीमत पर नहीं चलते उनकी बुद्धि में कभी धारणा हो नहीं सकती। बाप कहते हैं प्रतिदिन तुमको गुह्य बताता हूँ तो जरूर ज्ञान की वृद्धि होती जायेगी।
कोई-कोई प्रश्न उठाते हैं – 8 बादशाही कैसे चलेगी? इस हिसाब से इतनी बादशाही होनी चाहिए। बाप कहते हैं तुम लोग इन बातों में क्यों पड़ते हो? पहले बाप और उनके वर्से को तो याद करो। वहाँ की जो रस्म रिवाज होगी वह चलेगी। बच्चे जिस रीति से पैदा होते होंगे, उस रीति से होंगे। तुम क्यों इसमें जाते हो? विकार की बात मुख पर क्यों लाते हो? यह चित्र किसको सौगात में देना बहुत अच्छा है। यह गॉड फादरली गिफ्ट है। ऐसी गॉड फादरली गिफ्ट कौन नहीं ले जायेंगे। क्रिश्चियन लोग और किसका लिटरेचर आदि नहीं लेते, उनको अपने धर्म का नशा रहता है। बाप तो कहते हैं देवता धर्म सबसे ऊंच है। वह समझते हैं कि हमको इन क्रिश्चियन से बहुत पैसे मिलते हैं। परन्तु यह तो ज्ञान की बातें हैं। जो ज्ञान उठाते हैं वही बाप से वर्सा पाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
28 october ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विश्व का मालिक बनाने वाले मात-पिता पर दिल से कुर्बान जाना है। उनकी श्रीमत पर अच्छी रीति चल श्रेष्ठ बनना है।
2) अपनी दिल सदा सच्ची रखनी है। अहंकार में नहीं आना है। अशर्फियों का दान करना है। ज्ञान दान करने में महारथी बनना है। 8 घण्टा ईश्वरीय सर्विस जरूर करनी है।
वरदान:- सर्व प्राप्तियों की अनुभूति द्वारा माया को विदाई दे बधाई पाने वाले खुशनसीब आत्मा भव
जिनका साथी सर्वशक्तिमान बाप है, उनको सदा ही सर्व प्राप्तियां हैं। उनके सामने कभी किसी प्रकार की माया आ नहीं सकती। जो प्राप्तियों की अनुभूति में रह माया को विदाई देते हैं उन्हें बापदादा द्वारा हर कदम में बधाई मिलती है। तो सदा इसी स्मृति में रहो कि स्वयं भगवान हम आत्माओं को बधाई देते हैं, जो सोचा नहीं वह पा लिया, बाप को पाया सब कुछ पाया ऐसी खुशनसीब आत्मा हो।
स्लोगन:- स्वचिन्तन और प्रभुचिन्तन करो तो व्यर्थ चिंतन स्वत: समाप्त हो जायेगा।
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