21 October ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 21 अक्टूबर 2023 (21 October ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – सदा खुशी में तब रह सकेंगे जब पूरा निश्चय होगा कि हम भगवानुवाच ही सुनते हैं, स्वयं भगवान हमें पढ़ा रहे हैं”प्रश्नः-ड्रामा अनुसार इस समय सभी प्लैन क्या बनाते हैं और तैयारी कौन सी करते हैं?उत्तर:-इस समय सभी प्लैन बनाते हैं इतने साल में इतना अनाज पैदा करेंगे। नई दिल्ली, नया भारत होगा। लेकिन तैयारियां मौत की करते रहते हैं। सारी दुनिया के गले में मौत का हार पड़ा हुआ है। कहावत है नर चाहत कुछ और, भई कुछ औरे की और….. बाप का प्लैन अपना है, मनुष्यों का प्लैन अपना है।गीत:-किसी ने अपना बना के मुझको…… Audio Player
ओम् शान्ति। निराकार भगवानुवाच ब्रह्मा तन द्वारा। यह पहली बात तो पक्की कर लेनी चाहिए कि यहाँ कोई मनुष्य नहीं पढ़ाते, निराकार भगवान् पढ़ाते हैं। उनको हमेशा परमपिता परमात्मा शिव कहा जाता है। 21 october ki Murli बनारस में शिव का मन्दिर भी है ना। पहले-पहले आत्मा को यह निश्चय होना चाहिए कि बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं। जब तक यह निश्चय नहीं तो मनुष्य कोई काम का नहीं है। कौड़ी तुल्य है। बाप को जानने से हीरे तुल्य बन जाते हैं। कौड़ी तुल्य भी भारत के मनुष्य बनते हैं, हीरे तुल्य भी भारत के मनुष्य बनते हैं। बाप आकर मनुष्य से देवता बनाते हैं। पहले जब तक यह निश्चय नहीं है कि भगवान् पढ़ाते हैं, वह जैसे कि इस कॉलेज में बैठते भी कुछ नहीं समझते हैं। वह खुशी का पारा नहीं चढ़ता। वह है हमारा मोस्ट बिलवेड बाप, जिसको भक्ति मार्ग में दु:ख के समय पुकारते थे – हे परमात्मा, रहम करो। यह आत्मा कहती है, मनुष्य तो समझते नहीं कि लौकिक बाप होते हुए भी हम कौन-से बाप को याद करते हैं? आत्मा मुख द्वारा कहती है यह हमारा लौकिक बाप है, यह हमारा पारलौकिक बाप है। तुम अब देही-अभिमानी बने हो, बाकी मनुष्य हैं देह-अभिमानी। उनको आत्मा और परमात्मा का पता ही नहीं है। हम आत्मायें उस परमपिता परमात्मा के बच्चे हैं – यह ज्ञान कोई को भी नहीं है। बाप पहले-पहले यह निश्चय कराते हैं भगवानुवाच, मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। तुम देह सहित देह के जो भी सम्बन्ध हैं, उनको भूल अपने को आत्मा निश्चय कर मुझ बाप को याद करो। कोई मनुष्य वा कृष्ण आदि ऐसे कह न सकें। यह है ही झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार। एक भी सच्चा नहीं। सचखण्ड में फिर एक भी झूठा नहीं होता। यह लक्ष्मी-नारायण सचखण्ड के मालिक थे, पूज्य थे। अभी भारतवासी धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन पड़े हैं इसलिए नाम ही है भ्रष्टाचारी भारत। श्रेष्ठाचारी भारत सतयुग में होता है। वहाँ सब सदैव मुस्कराते हैं, कभी बीमार, रोगी नहीं होते। यहाँ भल कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा। परन्तु जानते कोई भी नहीं हैं। इस समय का राज्य भी मृगतृष्णा के समान है। एक हिरण की कहानी है ना – पानी समझ अन्दर गया और दलदल में फँस गया। तो इस समय है दुबन का राज्य। जितना श्रृंगारते हैं उतना और ही गिरते जाते हैं। कहते रहते हैं भारत में अनाज बहुत होगा, यह होगा…….। 21 october ki Murli होता कुछ भी नहीं। इसको कहा जाता है – नर चाहत कुछ और, और की और भई। बाप कहते हैं यह कोई राज्य नहीं है। राज्य तो उनको कहा जाए जहाँ कोई किंग-क्वीन हो। यह तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है। इरिलीजस, अनराइटियस राज्य है। भारत में तो आदि सनातन देवी-देवताओं का राज्य था। अभी तो कितने धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन गये हैं। ऐसा और कोई देश नहीं जो अपने धर्म को नहीं जानते हो। कहा भी जाता है रिलीजन इज माइट। देवताओं का तो सारे विश्व पर राज्य था, अभी तो बिल्कुल ही कंगाल हैं। कितनी बाहर से मदद ले रहे हैं। उन्हों को है बाहुबल की मदद, तुमको है योगबल की मदद। तुम बच्चे जानते हो मोस्ट बिलवेड बाप है जिससे हमको 21 जन्म के लिए सदा सुख का वर्सा मिलता है। वहाँ कभी दु:ख की, रोने आदि की बात ही नहीं। कभी अकाले मृत्यु नहीं होती। न तो आजकल के मुआफिक इकट्ठे 4-5 बच्चे पैदा करते हैं, एक तरफ देखो खाने के लिए नहीं है, कहते हैं बर्थ कन्ट्रोल करो। नर चाहत कुछ और….। समझते हैं न्यु देहली, नया राज्य है। परन्तु है कुछ भी नहीं। मौत सबके गले में पड़ा है। मौत की पूरी तैयारी कर रहे हैं। बरोबर 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक यह वही महाभारत लड़ाई है। बाप कहते हैं यह तो कोई राज्य नहीं है, यह मृगतृष्णा मिसल है। द्रोपदी का भी मिसाल है ना। तुम सब द्रोपदियां हो। बाप का तुमको फ़रमान है कि इन विकारों पर जीत पहनो। हम प्रतिज्ञा करते हैं – हम सदा पवित्र रह भारत को पवित्र बनायेंगे। यह पुरुष लोग पवित्र रहने नहीं देते। कई गुप्त गोपिकायें कितना पुकारती हैं कि यह हमको मारते हैं।
तुम जानते हो यह काम महाशत्रु तो मनुष्य को आदि, मध्य, अन्त दु:ख देने वाला है। बाप कहते हैं इस पर तुम्हें जीत पानी है। गीता में भी है भगवानुवाच, काम महाशत्रु है। परन्तु मनुष्य समझते नहीं। बाप कहते हैं पवित्र बनो तब तुम राजाओं का राजा बनेंगे। अब बताओ, राजाओं का राजा बनना है या पतित बनना है? यह एक अन्तिम जन्म बाप कहते हैं मेरे ख़ातिर पवित्र बनो। अपवित्र दुनिया का विनाश, पवित्र दुनिया की स्थापना हो जायेगी।21 october ki Murli आधाकल्प तुमने विष पीते-पीते इतना दु:ख देखा है, तुम एक जन्म यह नहीं छोड़ सकते हो? अब पुरानी दुनिया का विनाश और नई दुनिया की स्थापना हो रही है। इसमें जो पवित्र बनेंगे और बनायेंगे वही ऊंच पद पायेंगे। यह राजयोग है। तुम कहते हो हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं तो बरोबर प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान भी हैं। ब्रह्मा शिव का बच्चा है, तुमको वर्सा देने वाला शिव है। यह इनकारपोरियल गॉड फादरली युनिवर्सिटी है। वह हेविन स्थापन करने वाला, वर्सा देने वाला शिव है। वही गॉड फादर ब्लिसफुल, नॉलेजफुल बाप बैठ पढ़ाते हैं। परन्तु जब देह-अभिमान निकले तब बुद्धि में बैठे। त़कदीर में नहीं है तो फिर धारणा नहीं होती। बरोबर जगत पिता के तुम बच्चे हो। ब्रह्माकुमार-कुमारियां राजयोग सीख रहे हैं। तुम्हारा ही यादगार खड़ा है। कितना अच्छा मन्दिर है! उनका अर्थ तुम बच्चों के सिवाए कोई भी नहीं जानते। पूजा करते, माथा टेकते सब पैसे गँवा दिये। अभी बिल्कुल ही कौड़ी तुल्य बन गये हैं। खाने के लिए अन्न नहीं। अब कहते हैं बच्चे कम पैदा करो। यह कोई मनुष्य की त़ाकत नहीं जो कह सके कि काम महाशत्रु है। यह तो जितना कहेंगे कम पैदा करो उतना ही जास्ती पैदा करेंगे। कोई की ताकत चल नहीं सकती।
तुम बच्चों को पहले-पहले यह बात समझानी है कि यह गॉड फादरली युनिवर्सिटी है, भगवान् एक है। यह एक ही चक्र है जो फिरता रहता है। यह समझने की बातें हैं। मित्र-सम्बन्धियों आदि को भी यह रूहानी यात्रा का राज़ समझाना है। जिस्मानी यात्रा तो जन्म-जन्मान्तर की, यह रूहानी यात्रा एक ही बार होती है। सबको वापिस जाना है। कोई भी पतित यहाँ रहना नहीं है। अभी कयामत का समय है। इतने जो करोड़ों मनुष्य हैं, यह सब तो सतयुग में नहीं होंगे, वहाँ बहुत थोड़े होंगे। सबको वापिस जाना है। बाप आये ही हैं ले जाने – जब तक यह नहीं समझते हैं तब तक स्वीट होम और सुखधाम याद पड़ नहीं सकता। याद करना तो बहुत सहज है। बाप कहते हैं स्वीट होम चलो। मेरे सिवाए तुमको कोई ले नहीं जा सकता। मैं ही कालों का काल हूँ। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। परन्तु वन्डर है इतने वर्षों से रहते हुए भी धारणा नहीं होती। कोई तो बहुत होशियार हो जाते, कोई कुछ भी नहीं समझते। इसका मतलब यह नहीं कि पुरानों का ही ऐसा हाल है तो हमारा क्या होगा? नहीं, स्कूल में सभी नम्बरवन थोड़ेही होंगे। यहाँ भी नम्बरवार हैं। सबको समझाना है – बेहद के बाप से वर्सा लेने का अभी समय है। 21 जन्म के लिए सदा सुख का वर्सा पाना है। कितने ब्रह्माकुमार-कुमारियां पुरुषार्थ कर रहे हैं। नम्बरवार तो होते ही हैं।
तुम जानते हो पतित-पावन एक ही बाप है। बाकी सब हैं पतित। बाप कहते हैं सबका सद्गति दाता एक है, वही स्वर्ग की स्थापना करते हैं। फिर सिर्फ भारत ही रहेगा, बाकी सब विनाश हो जायेंगे। मनुष्यों की बुद्धि में इतनी बात भी नहीं बैठती है। बाप कहते हैं – बच्चे, मेरे मददगार बनो तो मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाऊंगा। हिम्मते मर्दा, मददे खुदा। गाते तो हैं खुदाई खिदमतगार। वास्तव में वह है जिस्मानी सैलवेशन आर्मी। सच्चे-सच्चे रूहानी सैलवेशन आर्मी तुम हो। भारत का बेड़ा जो डूबा हुआ है उनको सैलवेज करने वाली तुम भारत माता शक्ति अवतार हो। तुम गुप्त सेना हो। शिवबाबा गुप्त तो उनकी सेना भी गुप्त। शिव शक्ति, पाण्डव सेना। सच्ची-सच्ची सत्य नारायण की कथा यह है, बाकी सब हैं झूठी कथायें इसलिए कहते हैं सी नो ईविल, हियर नो ईविल, मैं जो समझाता हूँ वह सुनो।
यह है बेहद का बड़ा स्कूल। इस युनिवर्सिटी के लिए यह मकान बनाये हैं, पिछाड़ी में यहाँ बच्चे आकर रहेंगे। जो योगयुक्त होंगे वह आकर रहेंगे। इन आंखों से विनाश देखेंगे। जो स्थापना तथा विनाश का साक्षात्कार तुम अभी दिव्य दृष्टि से देखते हो फिर तुम इन आंखों से देखेंगे। इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। जितना बाप को याद करेंगे उतना बुद्धि का ताला खुलता जायेगा। अगर विकार में गया तो एकदम ताला बन्द हो जायेगा। स्कूल छोड़ दिया तो फिर ज्ञान बुद्धि से एकदम निकल जायेगा। पतित बना फिर धारणा हो न सके। मेहनत है। यह कॉलेज है – विश्व का मालिक बनने लिए। यह ब्रह्माकुमार-कुमारियां शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियां हैं। यह अब भारत को स्वर्ग बना रहे हैं। यह रूहानी सोशल वर्कर्स हैं जो दुनिया को पावन बना रहे हैं। मुख्य है ही प्योरिटी। श्रेष्ठाचारी दुनिया थी, अभी भ्रष्टाचारी है। यह चक्र फिरता रहता है। यह दैवी झाड़ का सैपलिंग लग रहा है जो आहिस्ते-आहिस्ते वृद्धि को पायेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
21 october ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सच्चे-सच्चे रूहानी सैलवेशन आर्मी बन भारत को विकारों से सैलवेज करना है। बाप का मददगार बन रूहानी सोशल सेवा करनी है।
2) एक बाप से ही सत्य बातें सुननी है। हियर नो ईविल, सी नो ईविल……..इन आंखों से पिछाड़ी की सीन देखने के लिए योगयुक्त बनना है।
वरदान:-अपसेट होने के बजाए हिसाब-किताब को खुशी-खुशी से चुक्तू करने वाले निश्चिंत आत्मा भव
यदि कभी कोई बात कहता है तो उसमें फौरन अपसेट नहीं हो जाओ, पहले स्पष्ट करो या वेरीफाय कराओ कि किस भाव से कहा है, अगर आपकी गलती नहीं है तो निश्चिंत हो जाओ। यह बात स्मृति में रहे कि ब्राह्मण आत्माओं द्वारा यहाँ ही सब हिसाब-किताब चुक्तू होने हैं। धर्मराजपुरी से बचने के लिए ब्राह्मण कहाँ न कहाँ निमित्त बन जाते हैं इसलिए घबराओ नहीं, खुशी-खुशी से चुक्तू करो। इसमें तरक्की (उन्नति) ही होनी है।स्लोगन:-“बाप ही संसार है” सदा इस स्मृति में रहना – यही सहजयोग है।
मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य “अजपाजाप अर्थात् निरंतर योग अटूट योग”
जिस समय ओम् शान्ति कहते हैं तो उसका यथार्थ अर्थ है मैं आत्मा उस ज्योति स्वरूप परमात्मा की संतान हूँ, हम भी उस पिता ज्योतिर्बिन्दू परमात्मा के मुआफिक आकार वाली हैं। बाकी हम सालिग्राम बच्चे हैं तो हमें अपने ज्योति स्वरूप परमात्मा के साथ योग रखना है, उससे ही योग रखकर लाइट माइट का वर्सा लेना है, तभी तो गीता में स्वयं भगवान के महावाक्य हैं, मनमनाभव। मुझ ज्योति स्वरूप पिता के समान तुम बच्चे भी निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाओ,21 october ki Murli इसको ही अजपाजाप कहा जाता है। अजपाजाप माना कोई भी मंत्र जपने के सिवाए नेचुरल उस परमात्मा की याद में रहना, इसको ही पूर्ण योग कहते हैं। योग का मतलब है एक ही योगेश्वर परमात्मा की याद में रहना। तो जो आत्मायें उस परमात्मा की याद में रहती हैं, उन्हों को योगी अथवा योगिनियां कहा जाता है। जब उस योग अर्थात् याद में निरंतर रहें तब ही विकर्मों और पापों का बोझ नष्ट हो और आत्मायें पवित्र बनें, जिससे फिर भविष्य जन्म में देवताई प्रालब्ध मिले। 21 october ki Murli अब यह चाहिए नॉलेज तब ही योग पूरा लग सकता है। तो अपने को आत्मा समझ परमात्मा की याद में रहना, यह है सच्चा ज्ञान। इस ज्ञान से ही योग लगता है। अच्छा। ओम् शान्ति।
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