21 December ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 21 दिसम्बर 2023 (21 December ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – शिवबाबा के सिवाए तुम्हारा यहाँ कुछ भी नहीं, इसलिए इस देह के भान से भी दूर खाली बेगर होना है, बेगर ही प्रिन्स बनेंगे” | |
प्रश्नः- | ड्रामा की यथार्थ नॉलेज कौन-से ख्यालात समाप्त कर देती है? |
उत्तर:- | यह बीमारी क्यों आई, ऐसा नहीं करते तो ऐसा नहीं होता, यह विघ्न क्यों पड़ा. . . . बंधन क्यों आया…. यह सब ख्यालात ड्रामा की यथार्थ नॉलेज से समाप्त हो जाते हैं क्योंकि ड्रामा अनुसार जो होना था वही हुआ, कल्प पहले भी हुआ था। पुराना शरीर है इसे चत्तियां भी लगनी ही है इसलिए कोई ख्यालात चल नहीं सकते। |
गीत:- | हमें उन राहों पर चलना है…….. Audio Player
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ओम् शान्ति। उन राहों पर चलना है, कौन-सी राहें? राह कौन बताता है? बच्चे जानते हैं कि हम किसकी राय पर चल रहे हैं। राय कहो, राह कहो वा श्रीमत कहो – बात एक ही है। अब श्रीमत पर चलना है। लेकिन श्रीमत किसकी? लिखा हुआ है श्रीमत भगवत गीता, तो जरूर श्रीमत की तरफ हमारा बुद्धियोग जायेगा। अब तुम बच्चे किसकी याद में बैठे हो? अगर श्रीकृष्ण कहते हो तो उनको वहाँ याद करना पड़े। तुम बच्चे श्रीकृष्ण को याद करते हो या नहीं? वर्से के रूप में याद करते हैं। यह तो जानते हो हम प्रिन्स बनेंगे। ऐसे तो नहीं, जन्मते ही लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। बरोबर हम शिवबाबा को याद करते हैं क्योंकि श्रीमत उनकी है, श्रीकृष्ण भगवानुवाच कहने वाले श्रीकृष्ण को याद करेंगे, परन्तु कहाँ याद करेंगे? उनको तो याद किया जाता है वैकुण्ठ में। तो मनमनाभव अक्षर श्रीकृष्ण कह नहीं सकते,21 December ki Murli मध्याजी भव कह सकते हैं। मुझे याद करो वह तो वैकुण्ठ में ठहरा। दुनिया इन बातों को नहीं जानती। बाप कहते हैं – बच्चे, यह सब शास्त्र भक्ति मार्ग के हैं। सभी धर्म शास्त्रों में गीता भी आ जाती है। बरोबर गीता भारत का धर्म शास्त्र है। वास्तव में तो यह सभी का शास्त्र है। कहा भी जाता है श्रीमत सर्व शास्त्रमई शिरोमणि गीता। यानी सबसे उत्तम ठहरी। सभी से उत्तम है शिवबाबा श्री श्री, श्रेष्ठ से श्रेष्ठ। श्रीकृष्ण को श्री श्री नहीं कहेंगे। श्री श्री कृष्ण वा श्री श्री राम नहीं कहेंगे। उनको सिर्फ श्री कहेंगे। श्रेष्ठ से श्रेष्ठ जो है वही आकर फिर श्रेष्ठ बनाते हैं। श्रेष्ठ से श्रेष्ठ है भगवान्। श्री श्री अर्थात् सभी से श्रेष्ठ। श्रेष्ठ का नाम बाला है। श्रेष्ठ तो जरूर देवी-देवताओं को कहेंगे, जो अभी नहीं हैं। आजकल श्रेष्ठ किसको समझते हैं? अभी के लीडर्स आदि का कितना सम्मान करते हैं। परन्तु उन्हें श्री तो कह नहीं सकते। महात्मा आदि को भी श्री अक्षर नहीं दे सकते। अभी तुमको ऊंचे से ऊंचे परमात्मा से ज्ञान मिल रहा है। सबसे ऊंचा है परमपिता परमात्मा, फिर है उनकी रचना। फिर रचना में ऊंचे से ऊंचे हैं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। यहाँ भी नम्बरवार मर्तबे हैं। ऊंचे से ऊंचे प्रेजीडेंट फिर प्राइम मिनिस्टर, युनियन मिनिस्टर. . . .।
बाप बैठ सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं। भगवान् रचयिता है। अब रचयिता अक्षर कहने से मनुष्य पूछते हैं – सृष्टि कैसे रची गई? इसलिए यह जरूर कहना पड़ता है कि त्रिमूर्ति शिव रचयिता है। 21 December ki Murli वास्तव में रचयिता के बजाए रचवाने वाला कहना ठीक है। ब्रह्मा द्वारा दैवी कुल की स्थापना कराते हैं। ब्रह्मा द्वारा स्थापना किसकी? दैवी सम्प्रदाय की। शिवबाबा कहते हैं अभी तुम हो ब्रह्मा की ब्राह्मण सम्प्रदाय, वह हैं आसुरी सम्प्रदाय, तुम हो ईश्वरीय सम्प्रदाय फिर दैवी सम्प्रदाय बनेंगे। बाप ब्रह्मा द्वारा सभी वेद-शास्त्रों का सार भी समझाते हैं। मनुष्य बहुत मूंझे हुए हैं, कितना माथा मारते रहते हैं – बर्थ कन्ट्रोल हो। बाप कहते हैं मैं आकर भारत की यह सर्विस कर रहा हूँ। यहाँ तो है ही तमोप्रधान मनुष्य। 10-12 बच्चे पैदा करते रहते। झाड़ वृद्धि को जरूर पाना ही है। पत्ते निकलते रहेंगे। इसको कोई कन्ट्रोल कर न सके। सतयुग में कन्ट्रोल है – एक बच्चा, एक बच्ची, बस। यह बातें तुम बच्चे ही समझते हो। आगे चल आते रहेंगे, समझते रहेंगे। गाया भी हुआ है अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों से पूछो। यहाँ जब तुम सम्मुख सुनते हो तो सुख भासता है। फिर धन्धे-धोरी में जाने से इतना सुख नहीं भासता है। यहाँ तुमको त्रिकालदर्शी बनाया जाता है। त्रिकालदर्शी को स्वदर्शन चक्रधारी भी कहते हैं। मनुष्य कहते हैं फलाना महात्मा त्रिकालदर्शी था। तुम कहते हो वैकुण्ठनाथ राधे-कृष्ण को भी स्वदर्शन चक्र की वा तीनों कालों की नॉलेज नहीं थी। कृष्ण तो सभी का प्यारा सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स है। परन्तु मनुष्य न समझने कारण कह देते कि तुम श्रीकृष्ण को भगवान् नहीं मानते इसलिए नास्तिक हो। फिर विघ्न डालते हैं। अविनाशी ज्ञान यज्ञ में विघ्न पड़ते हैं। कन्याओं-माताओं पर भी विघ्न आते हैं। बांधेलियां कितना सहन करती हैं,21 December ki Murli तो समझना चाहिए ड्रामा अनुसार हमारा पार्ट ऐसा ही है। विघ्न पड़ गया फिर यह ख्यालात नहीं चलना चाहिए कि ऐसे नहीं करते तो ऐसा नहीं होता, ऐसे नहीं करते तो बुखार नहीं होता… हम ऐसे नहीं कह सकते। ड्रामा अनुसार यह किया, कल्प पहले भी किया था, तब तकलीफ हुई। पुराने शरीर को चत्तियां भी लगनी ही हैं। अन्त तक मरम्मत होती रहेगी। यह भी आत्मा का पुराना मकान है। आत्मा कहती है मैं भी बहुत पुरानी हूँ, कोई ताकत नहीं रही। ताकत न होने कारण कमजोर आदमी दु:ख भोगते हैं। माया कमजोर को बहुत दु:ख देगी। हम भारतवासियों को बरोबर माया ने बहुत कमजोर किया है। हम बहुत ताकत वाले थे फिर माया ने कमजोर बना दिया, अब फिर उन पर जीत पाते हैं तो माया भी हमारी दुश्मन बनती है। भारत को ही जास्ती दु:ख मिलता है। सबसे कर्जा ले रहे हैं। भारत बिल्कुल पुराना हो गया। जो बिल्कुल साहूकार था, उनको बहुत बेगर बनना है। फिर बेगर से प्रिन्स। बाबा कहते इस शरीर के भान से भी दूर खाली हो जाओ। तुम्हारा यहाँ कुछ है नहीं, सिवाए एक शिवबाबा दूसरा न कोई। तो तुमको बहुत बेगर बनना पड़े। युक्तियां भी बताते रहते हैं। जनक का मिसाल – गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल समान रहना है, श्रीमत पर चलना है, सब सरेन्डर भी कर देना है। जनक ने सब कुछ दिया फिर उनको कहा कि अपनी मिलकियत तुम सम्भालो और ट्रस्टी होकर रहो। हरिश्चन्द्र का भी दृष्टान्त है।
बाप समझाते हैं – बच्चे, तुम अगर बीज नहीं बोयेंगे तो तुम्हारा पद कम हो जायेगा। फालो फादर, तुम्हारे सामने यह दादा बैठा है। बिल्कुल ही शिवबाबा और शिव-शक्तियों को ट्रस्टी बनाया। 21 December ki Murli शिवबाबा थोड़ेही बैठ सम्भालेंगे। यह अपने पर थोड़ेही बलि चढ़ेगा। इनको माताओं पर बलि चढ़ना पड़े। माताओं को ही आगे करना है। बाप आकर ज्ञान अमृत का कलष माताओं को ही देते हैं कि मनुष्य को देवता बनायें। लक्ष्मी को नहीं दिया है। इस समय यह है जगत अम्बा, सतयुग में होगी लक्ष्मी। जगत अम्बा का गीत कितना अच्छा बना हुआ है। उनकी बहुत मान्यता है। वह सौभाग्य विधाता कैसे है, उनको धन कहाँ से मिलता है? क्या ब्रह्मा से? कृष्ण से? नहीं। धन फिर भी मिलता है ज्ञान सागर से। यह बड़ी गुप्त बातें हैं ना। भगवानुवाच है सबके लिए। भगवान् तो सबका है ना। सब धर्म वालों को कहते हैं मामेकम् याद करो। भल शिव के पुजारी भी बहुत हैं परन्तु जानते कुछ भी नहीं। वह हुई भक्ति। अब तुमको ज्ञान कौन देते हैं? मोस्ट बील्वेड फादर। श्रीकृष्ण को ऐसे नहीं कहेंगे, उनको सतयुग का प्रिन्स कहेंगे। भल श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं परन्तु यह ख्याल नहीं करते कि वह सतयुग का प्रिन्स कैसे बना? आगे हम भी नहीं जानते थे। तुम बच्चे अब जानते हो बरोबर हम फिर से प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे तब तो फिर बड़े होकर लक्ष्मी-नारायण को वरेंगे ना। यह नॉलेज है ही भविष्य के लिए। इसका फल 21 जन्म के लिए मिलता है। कृष्ण के लिए नहीं कहेंगे कि वह वर्सा देते हैं। 21 December ki Murli वर्सा बाप से मिलता है। शिवबाबा राजयोग सिखलाते हैं। ब्रह्मा के मुख से हजारों ब्राह्मण निकलते हैं, उन्हों को ही यह शिक्षा मिलती है। सिर्फ तुम ब्राह्मण हो कल्प के संगमयुग के, बाकी सारी सृष्टि है कलियुग की। वह सब कहेंगे अब हम कलियुग में हैं, तुम कहेंगे हम संगम पर हैं। यह बातें कहीं हैं नहीं। यह नई-नई बातें दिल में रखनी हैं। मुख्य बात है बाप और वर्से को याद करना। अगर पवित्र नहीं रहेंगे तो योग कभी नहीं लगेगा, लॉ नहीं कहता इसलिए इतना पद भी नहीं पा सकेंगे। थोड़ा योग लगाने से भी स्वर्ग में तो जायेंगे। बाप कहते हैं अगर पवित्र नहीं बनेंगे तो मेरे पास आ नहीं सकेंगे। भल घर बैठे भी स्वर्ग में आ सकते हैं, अच्छा पद पा सकते हैं, परन्तु तब, जबकि योग में रहें, पवित्र रहें। पवित्रता बिगर योग लगेगा नहीं। माया लगाने नहीं देगी। सच्चे दिल पर साहेब राज़ी होगा। जो विकार में जाते रहते हैं, कहते मैं शिवबाबा को याद करता हूँ, यह तो अपनी दिल खुश करते हैं। मुख्य है पवित्रता। कहते हैं बर्थ कन्ट्रोल करो, बच्चे पैदा मत करो। यह तो है ही तमोप्रधान दुनिया। अभी बाबा बर्थ कन्ट्रोल करा रहे हैं। तुम हो सभी कुमार-कुमारियां, तो विकार की बात नहीं। यहाँ तो विष पर बच्चियों को कितना सहन करना पड़ता है। बाबा कहते हैं बहुत परहेज रखनी है। यहाँ ऐसा तो कोई नहीं होगा जो शराब पीता होगा? 21 December ki Murli बाप बच्चों से पूछते हैं। अगर झूठ बोलेंगे तो धर्मराज की कड़ी सजा भोगनी पड़ेगी। भगवान् के आगे तो सच बोलना चाहिए। कोई जरा भी शराब किसी कारण से अथवा दवाई रीति से पीते हैं? कोई ने हाथ नहीं उठाया। यहाँ सच जरूर बोलना है। कोई भी भूल होती है तो फिर से लिखना चाहिए – बाबा, मेरे से यह भूल हुई, माया ने थप्पड़ मार दिया। बाबा को तो बहुत लिखते भी हैं आज हमारे में क्रोध का भूत आ गया, थप्पड़ मार दिया। आपकी तो मत है थप्पड़ नहीं मारना चाहिए। दिखलाते हैं कृष्ण को ओखरी से बांधा। यह तो सब झूठी बातें हैं। बच्चों को प्यार से शिक्षा देनी चाहिए, मार नहीं देनी चाहिए। भोजन बंद करना, मिठाई न देना… ऐसे सुधारना चहिए। थप्पड़ मारना, क्रोध की निशानी हो जाती है। सो भी महात्मा पर क्रोध करते हैं। छोटे बच्चे महात्मा समान होते हैं ना इसलिए थप्पड़ नहीं मारना चाहिए। गाली भी नहीं दे सकते। ऐसा कर्म नहीं करना चहिए जो ख्याल में आये – हमने यह विकर्म किया। अगर किया तो फौरन लिखना चाहिए – बाबा हमसे यह भूल हुई, हमें क्षमा करो। आगे नहीं करेंगे। तोबाँ करते हैं ना। वहाँ भी धर्मराज सजा देते हैं, तो तोबाँ करते हैं – आगे फिर नहीं करेंगे। बाबा बहुत प्यार से कहते हैं लाडले सपूत बच्चे, प्यारे बच्चे कभी झूठ नहीं बोलना।
क़दम-क़दम पर राय पूछना है। तुम्हारा पैसा अब लगता है भारत को स्वर्ग बनाने में, तो कौड़ी-कौड़ी हीरे समान है। ऐसे नहीं, हम कोई संन्यासियों आदि को दान-पुण्य करते हैं। मनुष्य हॉस्पिटल अथवा कॉलेज आदि बनाते हैं तो क्या मिलता है? कॉलेज खोलने से दूसरे जन्म में विद्या अच्छी मिलेगी, धर्मशाला बनाने से महल मिलेगा। यहाँ तो तुमको जन्म-जन्मान्तर के लिए बाप से बेहद का सुख मिलता है। बेहद की आयु मिलती है।21 December ki Murli इससे बड़ी आयु और कोई धर्म वाले की होती नहीं। कम आयु भी यहाँ की गिनी जाती है तो अब बेहद के बाप को चलते-फिरते, उठते-बैठते याद करेंगे तब ही खुशी में रहेंगे। कोई भी तकलीफ हो तो पूछो। बाकी ऐसे थोड़ेही गरीब होंगे, कहेंगे बाबा हम तो आपके हैं, अब हम आपके पास बैठ जाते हैं। ऐसे तो दुनिया में गरीब बहुत हैं। सब कहें हमको मधुबन में रख लो, ऐसे तो लाखों इकट्ठे हो जाएं, यह भी कायदा नहीं। तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहना है, यहाँ ऐसे रह नहीं सकते।
धन्धे में हमेशा ईश्वर अर्थ एक-दो पैसा निकालते हैं। बाबा कहते हैं – अच्छा, तुम गरीब हो, कुछ भी नहीं निकालो, नॉलेज को तो समझो और मनमनाभव हो जाओ। तुम्हारी मम्मा ने क्या निकाला, फिर वह ज्ञान में भी तीखी है। तन-मन से सेवा कर रही है। इसमें पैसे की बात नहीं। बहुत-बहुत करके एक रूपया दे देना, तुम्हें साहूकार जितना मिल जायेगा। पहले अपने गृहस्थ व्यवहार की सम्भाल करनी है। बच्चे दु:खी न हों। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। वन्दे मातरम्, सलाम मालेकम्। जय जय जय हो तेरी…. ओम् शान्ति।
21 December ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऐसा कोई कर्म नही करना है जिसके पीछे ख्याल चले, तोबा-तोबा (पश्चाताप्) करना पड़े। झूठ नहीं बोलना है। सच्चे बाप से सच्चा रहना है।
2) भारत को स्वर्ग बनाने में अपनी एक-एक कौड़ी सफल करनी है। ब्रह्मा बाप समान सरेन्डर हो ट्रस्टी बनकर रहना है।
वरदान:- | हर आत्मा के संबंध-सम्पर्क में आते सब प्रश्नों से पार रहने वाले सदा प्रसन्नचित भव हर आत्मा के संबंध-सम्पर्क में आते कभी चित के अन्दर यह प्रश>> उत्पन्न न हो कि यह ऐसा क्यों करता वा क्यों कहता, यह बात ऐसे नहीं, ऐसे होनी चाहिए। जो इन प्रश्नों से पार रहते हैं वही सदा प्रसन्नचित रहते हैं। लेकिन जो इन प्रश्नों की क्यू में चले जाते, रचना रच लेते तो उन्हें पालना भी करनी पड़ती। समय और एनर्जी भी देनी पड़ती, इसलिए इस व्यर्थ रचना का बर्थ कन्ट्रोल करो। |
स्लोगन:- | अपने नयनों में बिन्दुरुप बाप को समा लो तो और कोई समा नहीं सकता। |
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