21 August ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 21 अगस्त 2023 (21 august ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहे है.
“मीठे बच्चे – यह पुरानी दुनिया अब मिट्टी में मिल धूलछाई हो जायेगी, इसलिए इस धूल में मिलने वाली दुनिया से अपना बुद्धियोग निकाल दो”
प्रश्नः-मनुष्यों की कौन-सी चाहना एक बाप ही पूरी कर सकते हैं?
उत्तर:-मनुष्य चाहते हैं शान्ति हो। लेकिन अशान्त किसने बनाया है, यह नहीं जानते हैं। तुम उन्हें बतलाते हो कि 5 विकारों ने ही तुम्हें अशान्त किया है। भारत में जब पवित्रता थी तो शान्ति थी। अब बाप फिर से पवित्र प्रवृत्ति मार्ग स्थापन करते हैं, जहाँ सुख-शान्ति सब होगी। मुक्ति-जीवनमुक्ति की राह बाप के सिवाए कोई बतला नहीं सकता।गीत:-इस पाप की दुनिया से……..
21 August ki Murli ओम् शान्ति। यह किसका सतसंग है? मनुष्य सतसंगों में जब जाते हैं तो कोई न कोई साधू सन्त महात्मा आदि गद्दी पर बैठ शास्त्र आदि सुनाते हैं परन्तु वहाँ एम ऑबजेक्ट कुछ भी नहीं रहती। सतसंग से क्या प्राप्ति है, यह कोई को पता नहीं। ऐसे भी नहीं गुरू के सिर्फ फालोअर्स ही उनके पास आते हैं। नहीं, जो चाहे जाकर बैठ जाते हैं, फालोअर्स हो या कोई भी हो, किसी भी धर्म वाला हो। समझते हैं फलाना महात्मा आया है, झट भागते हैं। उसको कहा जाता है सतसंग। महात्मा आदि कोई न कोई वेद-शास्त्र की ही बातें समझाते हैं। वास्तव में सत परमात्मा तो एक ही है। बाकी है मनुष्यों का संग। सत परमात्मा ही नर से नारायण बनने की सत्य कथा सुनाते हैं। सत्य नारायण की कथा होती है पूर्णमासी के दिन। अभी तुम जानते हो कि सच्ची-सच्ची पूर्णमासी यह है जबकि रात से दिन होता है। तुम 16 कला सम्पूर्ण बनते हो। वास्तव में ज्ञान सूर्य को कभी ग्रहण नहीं लग सकता। ग्रहण तो इन सूर्य-चांद आदि को लगता है, जो पृथ्वी को रोशनी देते हैं। ज्ञान सूर्य तो है ही सबको रोशनी देने वाला। उसकी ही महिमा गाते हैं ज्ञान सूर्य प्रगटा……. यहाँ तो तुम सब बच्चे बैठे हो। बाहर वाले को एलाउ नहीं किया जाता है। वह तो कुछ समझेंगे नहीं। बाप कहते हैं – मैं तुम बच्चों के ही सम्मुख आता हूँ, पाप आत्माओं को आकर पुण्य आत्मा बनाता हूँ, मन्दिर में रहने लायक बनाता हूँ। वह है पावन दुनिया शिवालय। शिव ने स्वर्ग की रचना की, उसमें कौन रहते हैं? देवी-देवतायें, जिन्हों के चित्र मन्दिरों में रखते हैं। तुम जानते हो कि 5 हजार वर्ष पहले यह देवी-देवतायें भारत में रहते थे, स्वर्ग में राज्य करते थे। 21 August ki Murli कब राज्य किया, कैसे राज्य पाया – यह दुनिया नहीं जानती। तुम बच्चे जानते हो – वह नई दुनिया थी, यह पुरानी दुनिया है। भारतवासी कहते हैं नई दुनिया, नया भारत हो, वर्ल्ड ऑलमाइटी राज्य हो। आत्मा को बुद्धि में आता है – यहाँ देवी-देवताओं का राज्य था। परन्तु यह बिचारों को पता नहीं कि यह आलमाइटी अथॉरिटी का राज्य कब और किसने स्थापन किया? कोई समय तो था जरूर। जानते हो कि भारत सोने की चिड़िया था। तुम अब किसके संग में बैठे हो? कौन-सा महात्मा आया हुआ है? श्रीकृष्ण तो नहीं कहेंगे कि भगवानुवाच, मैं तुम्हें राजयोग सिखलाता हूँ। तुम बच्चों की बुद्धि का ताला अब खुल गया है, जानते हो इतनी सारी पुरानी दुनिया मिट्टी में मिल धूलछांई हो जायेगी। मनुष्य शान्ति चाहते हैं परन्तु शान्ति कौन स्थापन कर सकता है? पहले तो पूछा जाता है कि तुमको अशान्त किसने किया? कुछ बता नहीं सकते कि इन पाँच विकारों ने ही अशान्त किया है। भारत में शान्ति तब थी जबकि पवित्रता थी। पवित्र प्रवृत्ति मार्ग में ही मनुष्य बहुत-बहुत सुखी थे। अभी अपवित्र, पतित प्रवृत्ति मार्ग हो गया है। निशानियाँ भी हैं – मन्दिर में देवताओं की महिमा करते हैं हम नींच पापी हैं, हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं। मनुष्य गाते हैं परन्तु जानते नहीं। जब बाप आते हैं तब बच्चों पर मेहनत करते हैं। बाप आते ही हैं बच्चों के पास। यहाँ कोई साधू-सन्त आदि नहीं बैठा है। यह तो देह-धारी है। तुम्हारी नज़र ऊपर में है। हम शिवबाबा से सुनते हैं। किसी देहधारी तरफ दृष्टि नहीं है। कृष्ण भी देहधारी बच्चा है, गर्भ से जन्म लेता है। हर एक आत्मा को अपनी देह है। शिवबाबा को अपनी देह है नहीं। नाम तो देह (शरीर) पर पड़ता है। आत्मा का नाम तो आत्मा ही है। कहते भी हैं महान् आत्मा, पाप आत्मा। पाप परमात्मा तो कभी नहीं कहा जाता है। फिर अपने को परमात्मा कैसे कहला सकते? परमपिता परमात्मा तो एक ही है। वह है सुप्रीम बाप, परमधाम में रहते हैं। तुम कहते हो परम आत्मा, सुप्रीम, वह है निराकार। उनको मिलाकर नाम पड़ गया है – परमात्मा। उनको ही सभी याद करते हैं। नयन-हीन को राह दिखाओ प्रभु, बुद्धि ऊपर चली जाती है परमपिता तरफ। जबकि सब राज़ बताने वाला वह परमपिता परमात्मा ही है। निर्वाणधाम को मुक्तिधाम कहा जाता है। जो-जो आत्मायें पहले आती हैं वह जीवनमुक्ति में हैं, पीछे फिर जीवनमुक्ति से जीवनबन्ध में आती हैं। बच्चे जानते हैं पवित्रता, सुख, शान्ति है ही सतयुग में, जबकि एक राज्य होता है। उसको ही अद्वेत राज्य कहा जाता है। फिर द्वेत राज्य अर्थात् डेविल का राज्य होता है। पहले तो एक धर्म था, अभी तो अनेकानेक धर्म हैं। बच्चे इस सारे सृष्टि चक्र को अच्छी रीति नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हैं। और कहाँ एम ऑब्जेक्ट नहीं है।21 August ki Murli
21 August ki Murliतुम बच्चे जानते हो कि इस झाड़ का बीजरूप परमात्मा ऊपर में है। पहले-पहले सतयुग की रचना होती है। फिर सतयुग से त्रेता बनता है। सारी सृष्टि पुरानी तमोप्रधान बननी ही है। अब तुम पुरानी दुनिया में हो। नई नहीं कहेंगे। नई सृष्टि तो सतयुग थी, कलियुग को पुरानी सृष्टि कहा जाता है। पुरानी होने में भी टाइम लगता है। पहले नई थी अब पुरानी है। भारत में आजकल सब चाहते हैं नई दुनिया हो, उसमें नया भारत हो। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी राज्य हो। देवी देवताओं का राज्य आलमाइटी अथॉरिटी ने ही स्थापन किया था। उस समय दूसरा कोई राज्य हो न सके। हर एक मनुष्य आलमाइटी अथॉरिटी अर्थात् ज्ञान का सागर हो न सके। ज्ञान का सागर, सुख का सागर. . . . . यह महिमा एक परमात्मा की है। वर्सा भी तुमको उनसे ही मिलता है। बाप खुद कहते हैं कि मैं कल्प-कल्प आता हूँ, आकर इस भारत को स्वर्ग बनाता हूँ। फिर आधाकल्प बाद तुम वह राज्य भाग्य गवाँते हो, माया से हार खा लेते हो। मन से हारने की बात नहीं है। मन तो बिल्कुल घोड़ा बन जाता है, माया मन को उड़ा देती है। माया भी कहती है – वाह, हमारी सेना से कोई वहाँ कैसे जा सकता है? अच्छे-अच्छे महारथियों को भी जीत लेती है। तुम्हारी माया के साथ युद्ध है। बाकी यह कोई स्थूल हथियारों की लड़ाई की बात नहीं। यह तो माया पर जीत पाने की लड़ाई है। बाकी वह लड़ाईयाँ तो चलती आई हैं। पहले तलवारें थी, फिर बन्दूकें निकली, अब तो बाम्ब्स निकले हैं।
21 August ki Murli तो अब तुम बच्चों की बुद्धि में है हम सो देवी-देवता थे। और सतसंगों में कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि हम सो देवता थे, हमने 84 जन्म लिए। अभी हम पतित बन गये हैं, अब फिर पावन बन रहे हैं। तुम भी नयनहीन थे, इन ऑखों की बात नहीं है। यह ज्ञान के दिव्य चक्षु की बात है। आत्मा तो अपने बाप को भूल गई है। संन्यासियों ने तो आत्मा सो परमात्मा कह दिया है। बाप ही आकर तीसरा नेत्र खोलते हैं। वह फिर देवताओं को तीसरा नेत्र दिखाते हैं, जैसे विष्णु को अलंकार दिखाये हैं वैसे देवताओं को तीसरा नेत्र दे दिया है। परन्तु उनका ज्ञान का तीसरा नेत्र तो खुलता नहीं। सतयुग में अगर यह ज्ञान होता कि हम ऐसे गिरते जायेंगे, फिर हम नर्कवासी बन पड़ेंगे तो राज्य-भाग्य की खुशी ही चली जाती। यह नॉलेज अभी ही रहती है। तुम मीठे-मीठे सिकीलधे लाडले बच्चे जानते हो कि हम बाबा के पास 5 हजार वर्ष बाद आये हैं फिर से अपना राज्य-भाग्य लेने। फिर 5 हजार वर्ष बाद हमको आना है। हम आलराउण्ड एक्टर्स हैं। हम सो देवता बने थे, हम सो क्षत्रिय बनें, अभी हम सो फिर ब्राह्मण बने हैं। यह ज्ञान किसको नहीं है। गीता पाठशाला माना भगवान् की पाठशाला। भगवानुवाच है। उन लोगों ने फिर श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। फिर श्रीकृष्ण पर कितने कलंक लगा दिये हैं, कह देते हैं उनको इतने बच्चे थे, इतनी रानियाँ चुराई! यहाँ तो तुम सब आपेही भाग कर आये हो, कोई ने भगाया नहीं। गवर्मेन्ट के राज्य में अगर कोई किसको भगाये तो भी केस चल जाये। इन्हों का वण्डर हुआ, कितने बच्चे आये, भट्ठी बननी थी। बुढ़े, जवान, बच्चे सब वैराइटी भागकर आ गये। कोई झाड़ के झाड़ भी आये। तो यहाँ की बात श्रीकृष्ण के साथ लगाकर उल्टा-सुल्टा लिख दिया है। अ़खबारों में बड़ी धूमधाम हुई। अमेरिका के अ़खबार में भी पड़ गया कि एक कलकत्ते का जवाहरी कहता है कि मुझे 16108 रानियाँ चाहिए, अभी 400 मिली हैं। तो यह सब खेल है। नथिंगन्यु। कल्प बाद फिर भी ऐसे होगा। ऐसे ही तुम्हारी भट्ठी बनेगी। तुम देख रहे हो कि कैसे स्थापना होती है। तुम मनुष्य से देवता बन रहे हो। जीवनमुक्ति दाता को अपना बनाने से सेकेण्ड में तुम वर्सा पाने के हकदार बनते हो। जनक को भी सेकेण्ड में साक्षात्कार हुआ। कहते भी हैं हमको जनक मिसल ज्ञान दो। जनक ने तो त्रेता में राजाई पाई।
बाबा ने पहले-पहले समझाया अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हमारे सामने कौन बैठा है? शिव के मन्दिर के आगे बैल रख दिया है। बैल पर तो मनुष्य बैठेगा, निराकार शिव कैसे बैठेंगे? तो फिर शंकर को बिठा दिया है। कुछ भी समझते नहीं। गीत में भी सुना कि नैन हीन को राह दिखाओ… सब बुद्धिहीन अंधे हैं। प्रजा का प्रजा पर राज्य है। आगे राज्य राजा चलाते थे। कोई कड़ा विकर्म करते थे तो राजा फैंसला करते थे। अभी तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है। एक-दो को के ऊपर जज हैं। वन्डर है ना। यह बेहद का नाटक है। यह तुम जानते हो, और कोई कह न सके। जूँ मिसल यह ड्रामा चलता ही रहता है। टिक-टिक होती ही रहती है। दुनिया का चक्र फिरता ही रहता है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई नहीं जानते। कहते हैं पत्ता भी ईश्वर के हुक्म पर चलता है। परन्तु यह तो ड्रामा है। मक्खी यहाँ से पास हुई फिर कल्प बाद रिपीट होगा। ड्रामा को समझना है। मनुष्य ही समझेंगे। बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं। बाबा वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी है। कहते हैं मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ। मैं खुद आकर पतित को पावन बनाता हूँ। अभी तुम बाप से शक्ति लेते हो माया पर जीत पाने लिए। माया दुश्मन ने तुमको बिल्कुल कंगाल बना दिया है, न हेल्थ, न वेल्थ है। अभी तुम समझते हो कि हम विश्व के मालिक बनते हैं। वहाँ तो हेल्थ, वेल्थ, हैपी सब होगा।21 August ki Murli
परमात्मा को ही कहते हैं कि आकर राह बताओ, रहम करो, आकर मुक्ति-जीवनमुक्ति दो। आत्मा ही पुकारती है – ओ बाबा, आकर हमें दु:ख से छुड़ाए स्वर्ग में सुखी बनाओ। गाया भी है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता। बाप ने सुख दिया फिर उनको स्वर्ग में याद करने की दरकार नहीं रहती। सब बच्चों को सुखी बना देते हैं। आगे 60 वर्ष की आयु में बच्चों को राज्य-भाग्य दे खुद वानप्रस्थ में चले जाते थे। तो बेहद का बाप भी कहते हैं – मैं जानता हूँ तुम सबको माया ने बहुत दु:खी किया है, तो अब ले चलने आया हूँ। निर्वाणधाम वा वानप्रस्थ एक ही बात है। वानप्रस्थ अर्थात् वाणी से परे स्थान स्वीट साइलेन्स होम। फिर जायेंगे अपनी स्वीट राजधानी में। अभी तो दु:खधाम है। तुम कहते हो हम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं और बनाते रहते हैं। सम्पूर्ण तो अन्त में ही बनेंगे। कहते हैं स्वदर्शन चक्रधारी विष्णु वा श्रीकृष्ण है। यह कैसे हो सकता है? यह बातें तो तुम ही समझ सकते हो। स्वदर्शन पाधारियों को नशा होना चाहिए – शिवबाबा हमको स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं। हम सम्पूर्ण अन्त में बनेंगे, इसलिए अलंकार देवताओं को दे दिये हैं क्योंकि तुम अभी सम्पूर्ण नहीं बने हो। तुमको अलंकार शोभेंगे ही नहीं। देवतायें हैं सम्पूर्ण, इसलिए उन्हों को दे दिये हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
21 August ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बेहद ड्रामा के राज़ को बुद्धि में रख नथिंगन्यु का पाठ पक्का करना है। वाणी से परे रह वानप्रस्थ अवस्था में जाना है।
2) माया दुश्मन पर जीत पाने के लिए सर्वशक्तिमान बाप से शक्ति लेनी है। ज्ञान नयन हीन आत्माओं को ज्ञान नेत्र देना है।
वरदान:-मन को अमन वा दमन करने के बजाए सु-मन बनाने वाले दूरादेशी भव
भक्ति में भक्त लोग कितनी मेहनत करते हैं, प्राणायाम चढ़ाते हैं, मन को अमन करते हैं। आप सबने मन को सिर्फ एक बाप की तरफ लगा दिया, बिजी कर दिया, बस। मन को दमन नहीं किया, सु-मन बना दिया। अभी आपका मन श्रेष्ठ संकल्प करता है इसलिए सु-मन है, मन का भटकना बंद हो गया। ठिकाना मिल गया। आदि-मध्य-अन्त तीनों कालों को जान गये तो दूरादेशी, विशाल बुद्धि बन गये इसलिए मेहनत से छूट गये।स्लोगन:-जो सदा खुशी की खुराक खाते हैं वे सदा तन्दरूस्त और खुशनुम:रहते हैं।
और पढ़ें: प्रेमानंद जी के प्रवचन : नौकरी,व्यापार करने वाले इस तरह करें अपना काम.