20 september ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 20 सितम्बर 2023 (20 september ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – तुम्हें पुरुषार्थ कर एयरकन्डीशन की टिकेट खरीद करनी है, एयरकन्डीशन टिकेट लेना अर्थात् माया की गर्म हवा अथवा वार से सेफ रहना”
प्रश्नः-तुम बच्चों को महाविनाश का दु:ख होगा या नहीं? इसका पाप किस पर चढ़ता है?
उत्तर:-तुम्हें इस महाविनाश का दु:ख हो नहीं सकता क्योंकि तुम तो फरिश्ता बनते हो। तुमको नॉलेज है कि अब सभी आत्माओं को मच्छरों सदृश्य वापिस घर जाना है। तुम्हें किसी की मौत पर दु:ख नहीं होता क्योंकि तुम साक्षी हो देखते हो, तुम जानते हो आत्मा तो सदा अमर है। इस विनाश का पाप किसी पर भी नहीं लगता, यह तो जैसे लड़ाई का यज्ञ रचा हुआ है। सभी लड़ मरकर घर वापस जायेंगे। यह भी ड्रामा की भावी है।गीत:-महफिल में जल उठी शमा……..
ओम् शान्ति। बच्चों ने एक लाइन गीत की सुनी। यह महफिल है किसकी? ज्ञान सागर की। जिसको फिर मनुष्य इन्द्र की महफिल कहते हैं – इन्द्रसभा। बहुत मनुष्य समझते हैं – इन्द्र पानी की वर्षा बरसाते हैं। बच्चे समझते हैं यह ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा की सभा है, इसमें परवाने बैठे हैं, जीते जी इनके बन जाने अर्थात् इस दुनिया से मर जाने के लिये क्योंकि जीव आत्माओं को यह पुरानी दुनिया पसन्द नहीं है। इसमें सब एक-दो से लड़ते रहते हैं। बाप कहते हैं – मैं स्वर्ग स्थापन करता हूँ। तो बच्चों में भी नम्बरवार हैं। कोई पुखराजपरी, कोई नीलम परी है। नाम तो बहुत हैं। यह भेंट की हुई है। कोई बच्चे अच्छे सेन्सीबुल बन औरों की सर्विस में लग जाते हैं। सर्विस पर भी तत्पर कौन होंगे? जो शमा पर पूरा फिदा हुए होंगे। यह बहुत बड़ी महफिल है। तुम जानते हो बाबा आत्माओं की महफिल में आया हुआ है। परन्तु इनको जो अच्छी रीति जानते हैं, वह इनके सम्मुख प्रैक्टिकल में हैं। इस समय कोटो में कोई ही जानते हैं। जो परवाने हैं वही जानेंगे, जो फिदा हो जाते हैं, बाबा के बन जाते हैं।
यह तो समझाया गया है – यह है जीते जी मरना। बाबा, मैं आपका हूँ। पहले हम आपके पास अशरीरी रहते हैं। फिर यहाँ आकर शरीर लेते हैं। 20 september ki Murli बच्चों को जो भी ज्ञान मिलता है यह और कोई दे नहीं सकता क्योंकि बाप को नहीं जानते। तुम बच्चों को परमपिता परमात्मा आकर पढ़ाते हैं। गाया हुआ है – सभी वेद-शास्त्र आदि गीता के पत्ते हैं। सब मनुष्य मात्र इस माण्डवे में किसके पत्ते हैं? इस देवी-देवता धर्म से ही सब निकले हैं इसलिए तुम झाड़ के चित्र में देखेंगे कि शुरू में पत्ते नहीं हैं। पत्ते बाद में ही पैदा होते हैं। तो उन्हों को ऊपर दिखाया हुआ है।20 september ki Murli फाउन्डेशन देवी-देवता धर्म का है। पहले थुर एक होता है फिर उनसे टाल-टालियां निकलती हैं, फिर पत्ते। बच्चों की बुद्धि में है कि यह विराट मनुष्य सृष्टि के धर्मों का झाड़ है। आजकल की गवर्मेन्ट धर्म को नहीं मानती। कहते हैं हम सब आपस में रह सकते हैं। परन्तु आपस में ठक-ठक कितनी है। लड़ाई आपस में चलती ही रहती है, जैसेकि लड़ाई का यज्ञ रचा हुआ है। कहाँ न कहाँ लड़ते-झगड़ते रहते हैं। यह भी ड्रामा में नूंध है। युक्ति ऐसी करते हैं कि आपस में लड़ मरें। आगे हिन्दुस्तान-पाकिस्तान अलग-अलग थोड़ेही था। सब इकट्ठे थे। गवर्मेन्ट भी मजबूत थी। आपस में कोई लड़ नहीं सकते थे क्योंकि ऊपर में बड़े-बड़े नवाब होते थे। जैसे अब सारी दुनिया के लिये यू.एन. आदि बड़ी-बड़ी कमेटी हैं। परन्तु इन सबके लिये धणीधोरी तो कोई है नहीं। दो टुकड़े हो गये हैं। दु:ख वृद्धि को पाता ही रहता है। एक-दो को मारते ही रहते हैं। ड्रामा में देखो कैसा राज़ है। एक-दो से लड़ेंगे तो बाप पर थोड़ेही पाप लगेगा। हम साक्षी हो देखते हैं। तुम जानते हो सब लड़कर ख़त्म ही हो जाने वाले हैं। कोई बड़ा आदमी मर जाता है तो 8-10 रोज़ उसके लिये थोड़ा बहुत कार्यक्रम चलता है। हॉली डे आदि करते हैं। तुम्हारे लिये तो कुछ नहीं है। तुम तो फरिश्ते बन रहे हो। तुमको विनाश का भी दु:ख नहीं होता है। अब तो मच्छरों सदृश्य मरेंगे फिर कौन किसको देखेंगे! यह राज़ तुम बच्चे ही जानते हो।
नई दुनिया में रहने वाले तो बहुत फर्स्टक्लास चाहिए। यहाँ कोई मरे तो तुमको थोड़ेही दु:ख होगा। तुम तो साक्षी हो देखते हो – इसने जाकर दूसरा शरीर लिया अपना पार्ट बजाने के लिये। तुम्हारे में भी सब निश्चयबुद्धि नहीं हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते पांव से चोटी तक अब खुशी का पारा चढ़ रहा है, 20 september ki Murli फिर कोई का कम, कोई का जास्ती। कोई को फिर पाई का भी नहीं चढ़ता, जैसे आटे में नमक। उनको फ़ीका ही कहेंगे। मालूम पड़ता है कि किन्हों को नारायणी नशा चढ़ता है। मात-पिता की सर्विस करते हैं। ऐसे नहीं, गृहस्थ व्यवहार में रह सर्विस नहीं कर सकते। 20 september ki Murli वह तो और ही जास्ती सर्विस करेंगे, और ही जास्ती माँ-बाप का नाम भी बाला करते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहकर कमलफूल समान अचल-अडोल बनकर फिर औरों को भी बनाते हैं। तो उन्हों की महिमा जास्ती है। तुम तो शुरूआत में निकल पड़े। वह भी ड्रामा। भट्ठी बननी थी। उसमें से भी कोई कच्ची ईट निकली, कोई पक्की भी निकली। आई.सी.एस.के इम्तहान में सब थोड़ेही पास होते हैं क्योंकि गवर्मेन्ट को बहुत पगार देना पड़ता है। यहाँ भी ऐसे है। बड़ी जायदाद देनी पड़ती है। मुख्य 8 पास होते हैं, फिर 108 की माला बनती है। पुरुषार्थ कर ऊंच पद पाना है। रिजर्व कराया जाता है ना – फर्स्टक्लास, एयरकन्डीशन। एयर कन्डीशन में कभी गर्म हवा नहीं लगेगी। तुमको कोई भी इस दुनिया की गर्म हवा अर्थात् माया का वार न लगे, इतना मजबूत होना चाहिए। आठ तो बिल्कुल फर्स्टक्लास हैं फिर 108 हैं। नाम भी है महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे। हर एक समझ सकते हैं कि हम कौन-सी टिकेट खरीद कर रहे हैं। हर एक को टिकेट लेनी है। पुरुष को अपनी, स्त्री को अपनी टिकेट लेनी है। स्त्री को चांस जास्ती है क्योंकि पुरुष जो करते हैं तो उसका आधा हिस्सा स्त्री को मिल जाता है। स्त्री जो सौदा करती है, वह कुछ भी देती है तो उसका हिस्सा पति को नहीं मिलता है क्योंकि पुरुष तो रचयिता है। पैसे उनके हाथ में रहते हैं। वह जो करेगा उसका हिस्सा स्त्री को मिल जाता है। स्वर्ग में तो दोनों मालिक रहते हैं। बच्चा एक होता है, वर्सा भी वह पाता है। कन्या भी अपना हिस्सा कायदे अनुसार ले लेती है। कल्प पहले जो कायदा चला है वही चलेगा। वहाँ की रस्म-रिवाज का ख्याल नहीं करना चाहिए। बाबा ने बहुत तो साक्षात्कार करा दिया है – कैसे राजधानी ट्रांसफर होती है। यहाँ ट्रांसफर होती है तो ब्राह्मण गुरूओं आदि को बुलाया जाता है। आगे की रस्म-रिवाज बहुत अच्छी थी। जब वानप्रस्थ लेते थे तो बच्चे को बड़े प्रेम से गद्दी पर बिठाते थे कि अब तुम कारोबार सम्भालो।20 september ki Murli अभी तो बिल्कुल बूढ़े हो जाते हैं तो भी छोड़ते नहीं हैं। आगे बच्चे मातृ-स्नेही होते थे। अब तो मातृ-द्रोही बन पड़े हैं। माँ की भी चोटी पकड़ बाहर निकाल देते हैं। इसको कहा जाता है धुन्धकारी, मातृ-द्रोही। सतयुग में ऐसी बातें नहीं होती। तुमको तो बहुत खुशी होनी चाहिए। महफिल की महसूसता तुमको यहाँ आयेगी। यह ज्ञान सागर तो जहाँ होगा वहाँ मेला होगा। नदियों का मेला होता है ना। तुम नदियाँ तो आपस में मिलती रहती हो। यह तो है ज्ञान सागर और नदियों का मेला। यह है जगत अम्बा सरस्वती, उनका भी नाम बाला है। माँ के पास भी कितने मिलने आते थे क्योंकि उनकी मुरली बहुत अच्छी थी। बच्चियाँ भी महसूस करती हैं कि मम्मा की मुरली अच्छी खैंचती थी।
यह है सागर और नदियों की महफिल। बहुत बच्चे आ जाते हैं। पहले सागर, फिर नदियाँ, छोटी नदियाँ या बड़े कैनाल आदि आदि होते हैं ना। तुम हर एक समझ सकते हो कि हम छोटी नदी हैं या बड़ी नदी? बड़ी-बड़ी नदियों को बुलाते हैं कि आकर भाषण करो। तो जरूर वह तीखे हैं। मम्मा को कितना बुलाते थे। 20 september ki Murli शिवबाबा का मिला हुआ खज़ाना आकर दो। तुम बच्चियाँ जाकर ज्ञान-रत्नों का दान करती हो। ज्ञान का एक-एक वर्शन्स लाखों रूपयों का है। शास्त्रों में कोई ज्ञान के वर्शन्स नहीं हैं। अगर होते तो भारत बहुत साहूकार होता। तुमको तो रत्न मिलते हैं, जिनसे तुम 21 जन्म के लिये साहूकार बनते हो। अभी संगमयुग पर तुम सबसे ऊंचे हो। फिर सतयुग-त्रेता में तुम्हारी डिग्री कम हो जाती है। अब तुम ईश्वरीय दरबार में बैठे हो। तुम जानते हो बाबा 21 जन्मों का वर्सा देने वाला है। उनको ही सब याद करते हैं। दूसरे सब दु:ख देने वाले हैं। दु:ख देने वाली चीज़ को हमेशा भूला जाता है। हे बाबा, हमारे तो आप हो, दूसरा न कोई। परन्तु श्रीकृष्ण का नाम सुना है तो उनको ही याद करते हैं। तुम श्रीकृष्ण की राजधानी में थे। बाप इस कंसपुरी को श्रीकृष्णपुरी बना देते हैं। आसुरी पुरी से फिर दैवी पुरी बन जायेगी। फिर दिखाया है कि असुरों और देवताओं की लड़ाई लगी, देवताओं की जीत हुई। देवतायें रहते हैं स्वर्ग में। वास्तव में तुम्हारी लड़ाई है 5 विकारों से। अभी रामायण की बड़ी धुनी लगेगी क्योंकि दशहरा आता है। गवर्मेन्ट भी मनाती है। राम लीला करते हैं परन्तु यह जानते नहीं कि रावण क्या चीज़ है।
कई बच्चे कहते हैं नेष्ठा में बिठाओ। वास्तव में याद तो चलते-फिरते करना है। परन्तु जो सारे दिन में याद नहीं करते, उनको बिठाया जाता है कि यहाँ बैठने से कुछ न कुछ याद करें। बहुत हैं जो सेन्टर्स में जब आते हैं तो याद में रहते हैं, घर गये तो ख़लास। याद करने की प्रैक्टिस नहीं है। बुद्धि और-और तरफ भटकती रहती है। बच्चों को समझाया गया है कि आत्मा स्टॉर है जिसको बिन्दी भी कहते हैं। स्टॉर में तो ऐसे कोने होते हैं। 20 september ki Murli बिन्दी में नहीं होते। स्टॉर्स इसलिए कहते हैं क्योंकि भेंट की जाती है। लकी सितारे कहा जाता है। बिन्दी रूप आत्मा में ज्ञान की चमक है। आत्मा बिन्दी में सारा पार्ट है। बाप कहते हैं मुझ बिन्दी में यह-यह पार्ट है जो मैं भक्ति में बजाता आया हूँ। तुम बच्चों का सबसे जास्ती पार्ट है क्योंकि तुम आलराउन्ड चक्र लगाते हो। तो चक्रवर्ती राजा भी तुम बनेंगे। दु:ख हो, चाहे सुख हो – तुम ही पाते हो। मेरा पार्ट तुम्हारे जितना नहीं है। मैं वानप्रस्थ में चला जाता हूँ। फिर भक्ति मार्ग में मेरी सर्विस शुरू होती है। याद भी करते हैं ड्रामानुसार, जिस-जिस देवता की पूजा करते हैं साक्षात्कार फिर भी मैं कराता हूँ। यह ड्रामा में मेरा पार्ट है। वह समझते हैं हमको इनसे साक्षात्कार होता है, इनमें भी भगवान् है। समझते हैं गणेश से साक्षात्कार हुआ तो गणेश में भी परमात्मा है। इससे ही सर्वव्यापी का ज्ञान उठा लिया है। और तुम सब बच्चे कहते हो हम सब बाबा को याद करते हैं अर्थात् सबमें बाबा की याद है। तो इससे भी सर्वव्यापी समझ लेते हैं। बाप कहते हैं मेरी याद में भी सब नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार रहते हैं। जितना जो याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। बाकी आत्मा तो हर एक में अपनी-अपनी व्यापक है। मैं कोई बच्चे में भी प्रवेश कर किसका भी कल्याण कर सकता हूँ। 20 september ki Murliपरन्तु उन्होंने फिर उल्टा अर्थ कर दिया है। ड्रामा में वह भी नूँध है। ड्रामा अनुसार सबको पार्ट मिला हुआ है। यह शास्त्र आदि बनाने का भी ड्रामा में पार्ट है। बनायेंगे वही जिन्होंने आगे बनाये थे। गीता सुनाते हैं फिर कल्प बाद ऐसे ही सुनायेंगे। तो अब बच्चों की महफिल में बाप बैठे हैं। जो मुझे जानते हैं मैं उन्हों के बीच में ही शोभता हूँ। बाकी जो जानते ही नहीं उस महफिल में बैठ क्या करेंगे? तुम भाषण आदि करते हो तो बहुत आते हैं। 20 september ki Murli उनकी शमा के साथ महफिल नहीं कहेंगे। शमा के साथ महफिल तो यहाँ है। कोई फिदा होते हैं, फिर और तरफ बुद्धियोग चला जाता है। जब तक सम्पूर्ण बनें, बुद्धि जाती है। कर्मातीत अवस्था, सम्पूर्ण निर्विकारी अवस्था अभी नहीं कह सकते। वह अन्त में होगी। फिर यह पुराना शरीर छूट जायेगा। यह पुरानी खाल है। आत्मा इन पुरानी कर्मेन्द्रियों से काम लेती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
20 september ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शिवबाबा से मिला हुआ ख़ज़ाना सभी को बांटना है। अविनाशी ज्ञान-रत्नों का दान करके 21 जन्मों के लिये साहूकार बनना है।
2) अपनी अवस्था अचल-अडोल बनानी है। गृहस्थ व्यवहार में रहते भी कमल फूल समान बन बाप का नाम बाला करना है। सर्विस में तत्पर रहना है।
वरदान:-संगमयुग के इस नये युग में हर सेकण्ड नवीनता का अनुभव करने वाले फास्ट पुरुषार्थी भव
संगमयुग पर सब कुछ नया हो जाता है, इसलिए इसे नया युग भी कहते हैं। यहाँ उठना भी नया, बोलना भी नया, चलना भी नया। नया अर्थात् अलौकिक। स्मृति में भी नवीनता आ गई। बातें भी नई, मिलना भी नया, देखना भी नया। देखेंगे तो आत्मा, आत्मा को देखेंगे, शरीर को नहीं। भाई-भाई की दृष्टि से सम्पर्क में आयेंगे, दैहिक संबंध से नहीं। ऐसे हर सेकण्ड अपने में नवीनता का अनुभव करना, जो एक सेकण्ड पहले अवस्था थी वह दूसरे सेकण्ड नहीं, उससे आगे हो, इसको ही फास्ट पुरुषार्थी कहा जाता है।स्लोगन:-परमात्म प्यार द्वारा जीवन में सदा अतीन्द्रिय सुख व आनंद की अनुभूति करना ही सहजयोग है।
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