20 October ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 20 अक्टूबर 2023 (20 October ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – देह सहित सब कुछ भूल एक बाप को याद करो तब कहेंगे मातेले बच्चे, इस पुरानी दुनिया से अब तुम्हारी बुद्धि हट जानी चाहिए”
प्रश्नः-बाप का ज्ञान किन बच्चों की बुद्धि में सहज ही बैठ जाता है?
उत्तर:-जो गरीब बच्चे हैं, जिनका मोह नष्ट है और बुद्धि विशाल है उनकी बुद्धि में सारा ज्ञान सहज बैठ जाता है। बाकी जिनकी बुद्धि में रहता – हमारा धन, हमारा पति…….. वह ज्ञान को धारण कर ऊंच पद नहीं पा सकते। बाप का बनने के बाद भी लौकिक सम्बन्धों को याद करना माना कच्ची सगाई है, उन्हें सौतेला कहा जाता है।गीत:-मरना तेरी गली में .
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे बच्चों ने गीत का अर्थ तो आपेही समझा होगा। अब जीते जी आकर के बाप का बनना है और पुरानी दुनिया जिसको रौरव नर्क कहा जाता है, उनको भूलना भी है और छोड़ना भी है ही। रौरव नर्क को भूल फिर स्वर्ग को याद करना है। 20 october ki Murli अपने को आत्मा समझ अपने बाप को याद करना है। पुरानी दुनिया बुद्धि से हट जानी चाहिए। उनके लिए पुरुषार्थ चाहिए। यह है जन्म-जन्मान्तर का कर्मबन्धन। एक जन्म का नहीं, जन्म-जन्मान्तर का कर्मबन्धन है। कितने पाप, किस-किस के साथ किये हैं, वह सब जन्म ले भोगने पड़ते हैं। तो इस कर्मबन्धन की दुनिया को भूल जाना है। यह छी-छी दुनिया है, पतित शरीर है ना, इससे मोह मिटाना है। गरीबों का मोह सहज मिट जाता है, साहूकारों का मुश्किल मिटता है। वह समझते हैं हम स्वर्ग में सुखी बैठे हैं, गरीब दु:खी हैं। यूँ तो सारा भारत गरीब है फिर उनमें भी जो गरीब हैं वह झट उठाते हैं। उन्हों के लिए ही बाप आते है। गरीबों को जास्ती वर्सा मिलता है। सब सेन्टर्स में देखो साहूकार कोई मुश्किल ठहर सकते हैं। स्त्रियां भी गरीब घरों की ही आती हैं। धनवान को तो पति से सुख मिलता है, इसलिए उनसे बुद्धियोग टूट नहीं सकता। गरीब ही अक्सर करके ज्ञान लेते हैं। बाप है ही गरीब निवाज़। जिस बाप को सब याद करते हैं। परन्तु ड्रामा अनुसार भक्त भगवान् को जानते नहीं हैं। भगवान् तो है ही भक्तों का रक्षक। भक्ति का फल देने वाला, सद्गति दाता एक बाप है। तुम बच्चे बाप द्वारा अभी ज्ञान की बातें सुन रहे हो। 20 october ki Murli यह ज्ञान उन्हीं बच्चों की बुद्धि में बैठता है जिनकी बुद्धि विशाल है, मोह नष्ट है। जिनकी बुद्धि में रहता है कि हमारा पति, हमारा धन आदि है, वह ऊंच पद पा नहीं सकते। पद वह पाते हैं जो रचता और रचना का परिचय देते हैं। बाप को पहचाने बिगर वर्सा कैसे मिले? साजन को सिर्फ साजन कहने से फायदा नहीं हो सकता है। जाने पहचाने बिगर साजन से सगाई कैसे हो सकती है? कन्या की सगाई होती है तो उनको चित्र आदि दिखाते हैं। फलाने का बच्चा है, यह आक्यूपेशन है। आगे दिखलाते नहीं थे, ऐसे ही शादी करा देते थे। तो भी उनका आक्यूपेशन तो बताते हैं ना। यहाँ कोई-कोई बच्चे अपने बाप को अथवा साजन को जानते ही नहीं हैं तो सगाई कैसे हो? नम्बरवार हैं। कईयों की कच्ची सगाई है। पारलौकिक साजन को याद नहीं करते, लौकिक साजन को लौकिक सम्बन्धियों आदि को याद करते रहते तो गोया कच्ची सगाई है। उनको सौतेले बच्चे कहा जाता है। पक्के को मातेले बच्चे कहा जाता है। मातेले बच्चे बहुत थोड़े हैं। भट्ठी में इतने पड़े उनमें से कितने कच्चे निकल पड़े। अपने साजन को पहचानते ही नहीं। जैसे पारा हथेली पर ठहरता ही नहीं है ना, वैसे ही याद भी इतनी मुश्किल है। घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। 25-30 वर्ष वाले भी पूरा याद नहीं कर सकते हैं। तुम जानते हो पारलौकिक साजन स्वर्ग के 21 जन्म लिए महारानी-महाराजा बनाने वाला है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानने वाला है। सजनियों को इतना समझाते हैं तो भी बुद्धि में बैठता नहीं है। बुद्धि पुरानी दुनिया के बन्धनों में भटकती रहती है। समझते नहीं हैं कि मैं बन्धन में हूँ। सम्बन्ध तो चाहिए एक का। बाकी सब हैं बन्धन। बच्चों को समझाया जाता है – एक से सम्बन्ध रखो, वह तुमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की शिक्षा देते हैं।
तुम जानते हो – आधाकल्प है ज्ञान काण्ड, आधाकल्प है भक्ति काण्ड। ज्ञान काण्ड में तो 21 जन्मों का वर्सा मिलता है। वहाँ है सतोप्रधान फिर सतोप्रधान से नीचे सतो में फिर सतो से गिरकर रजो में आना है। जब सतो पूरा होता तो ज्ञान काण्ड पूरा हो जाता है। द्वापर से भक्ति शुरू होती है। वह भी पहले सतोप्रधान भक्ति होती है। फिर भक्ति भी सतो-रजो-तमो में आती है। व्यभिचारी होने से भक्ति फिर गिरती जाती है। 20 october ki Murli अब यह जानना और किसको समझाना तो बहुत सहज है। तुम बच्चों को रौरव नर्क से सम्बन्ध तोड़ एक से रखना चाहिए। एक बाप से सम्बन्ध रखने की प्रैक्टिस करो। बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे। गरीब अच्छी मेहनत करते हैं। तो बलिहारी गरीबों की है। बाप भी गरीबों पर बलिहार जाते हैं। शुरुआत में कितने गोप थे, कितनी मातायें थी! कितने ख़त्म हो गये, बाकी थोड़े रहे हैं। मातायें भी थोड़ी रही। हाँ, कोई कोई साहूकार घर की भी रह गई। जैसे क्वीन मदर, देवी आदि। अब तुम्हें मूल बात समझानी है कि जिस भगवान् को सब याद करते हैं, उसका परिचय क्या है? पतित-पावन बाप जो राजयोग सिखलाकर नर से नारायण बनाते हैं, उनको नहीं जानेंगे तो तुम पाप करते रहेंगे, बाप को गाली देते रहेंगे। सम्मेलन तो बहुत होते रहते हैं। वहाँ पर समझाने वाले बड़े तीखे चाहिए। समझाना चाहिए तुम वेदों की महिमा समझते हो, परन्तु इससे कोई फ़ायदा तो होता नहीं। फ़ायदा तो एक बाप से ही होता है, जिसको हम जानते हैं, तुम नहीं जानते हो। आओ तो हम आपको समझायें। बाप को पहचाने बिना वर्सा कैसे मिलेगा? बाप का वर्सा है मुक्ति-जीवनमुक्ति, गति-सद्गति। यह अक्षर सुनाते ही बाप हैं। तुम बच्चों को याद रखना चाहिए। और कोई चीज़ से फ़ायदा नहीं। बाप को और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानना है। इसमें भी आधाकल्प है भक्ति काण्ड, आधा-कल्प है सद्गति, ज्ञान काण्ड। भल सम्मेलन करते हैं, परन्तु खुद ही मूँझे हुए हैं। समझते कुछ भी नहीं। तुम्हें सबको बाप का परिचय देना है। जब बहुतों को परिचय मिल जायेगा तब कहेंगे कमाल है। यह तो सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ चित्रों सहित बतलाते हैं। माताओं को बड़ा नशा रहना चाहिए। पुरुष मदद करने लिए तैयार हैं, डायरेक्शन बाप देते हैं। 20 october ki Murli करना कन्याओं-माताओं को है। 20 october ki Murli आजकल कन्याओं-माताओं की महिमा जास्ती है। गवर्नर, प्राइममिनिस्टर भी मातायें बनती हैं। एक तरफ हैं वह मातायें, एक तरफ हो तुम पाण्डवों की मातायें। उन्हों की उछल जास्ती है क्योंकि उनका राज्य है। तुमको तो तीन पैर पृथ्वी के भी नहीं मिलते हैं।
बाप तुम बच्चों को अनेक राज़ समझाते रहते हैं। तुम अभी स्वर्ग का वर्सा पाते हो। साजन तुमको श्रृंगारते हैं, महारानी बना देते हैं। ऐसे साजन से बुद्धियोग न रखना, यह तो बड़ी भारी भूल है। बच्चों को समझाते तो बहुत हैं। तुम सिर्फ ज्ञान और भक्ति का कान्ट्रास्ट बताओ। भारत में ही गाया हुआ है – दु:ख में सिमरण सब करें, सुख में करे न कोई। सुख में क्यों याद करेंगे? अभी वह नई दुनिया स्थापन हो रही है। परन्तु सुख का वर्सा भी पूरा लेना चाहिए। मात-पिता जानते हैं हर एक कितना लायक है। मौत जब नज़दीक आयेगी तो बतायेंगे तुमने पुरुषार्थ पूरा नहीं किया है, तब तुम्हारा ऐसा हाल हुआ है। वह भी बतायेंगे कि तुम किस किस्म की प्रजा में जायेंगे, किस किस्म के नौकर-चाकर बनेंगे, सब बतायेंगे। अच्छा!
कई बच्चे समझते हैं आज हमने मुरली बहुत अच्छी चलाई। परन्तु नहीं, यह तो शिवबाबा आकर मदद करते हैं। अपना अहंकार नहीं होना चाहिए। तुमको तो बाप सिखलाते हैं जो तुम सुनाते हो। बाप न होता तो तुम्हारी मुरली काहे की। मुरलीधर के बच्चों को मुरलीधर बनना चाहिए, नहीं तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। भल कुछ न कुछ फ़ायदा हो जाता है, कोई सेन्टर खोलते हैं तो बहुत आशीर्वाद मिलती है। इतना समय पढ़ाई की है तो आपेही सर्विस कर सेन्टर जमाना चाहिए। खुद सीखते हैं तो क्या औरों को नहीं सिखला सकते? 20 october ki Murli ब्रह्माकुमारी की मांगनी करते हैं तो बाबा समझ जाते हैं, शायद खुद में इतना ज्ञान नहीं है। बाकी यहाँ आकर क्या करते हैं। बाबा तो समझाते हैं – बादल आयें, रिफ्रेश होकर जायें, वर्षा बरसायें। नहीं तो पद कैसे पायेंगे? मम्मा-बाबा कहते हो तो गद्दी पकड़कर दिखाओ। यह भी कोई को अहंकार नहीं आना चाहिए कि हमने दिया। तुम कुछ भी न दो, बाबा तुमको कौड़ी के बदले हीरा देने से भी छूट जायेगा। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
20 october ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एक के साथ सर्व सम्बन्ध रख बुद्धियोग अनेक बंधनों से निकाल लेना है। एक के साथ पक्की सगाई करनी है। बुद्धियोग भटकाना नहीं है।
2) बाप समान मुरलीधर बनना है, मैंने अच्छी मुरली चलाई – इस अहंकार में नहीं आना है। बादल भरकर वर्षा करनी है। पढ़ाई की है तो सेन्टर जमाना है।
वरदान:-बाप को सामने रख ईर्ष्या रूपी पाप से बचने वाले विशेष आत्मा भव
ब्राह्मण आत्माओं में हमशरीक होने के कारण ईर्ष्या उत्पन्न होती है, ईर्ष्या के कारण संस्कारों का टक्कर होता है लेकिन इसमें विशेष सोचो कि यदि हमशरीक किसी विशेष कार्य के निमित्त बना है तो उनको निमित्त बनाने वाला कौन! बाप को सामने लाओ तो ईर्ष्या रूपी माया भाग जायेगी। अगर किसी की बात आपको अच्छी नहीं लगती है तो शुभ भावना से ऊपर दो, ईर्ष्या वश नहीं। आपस में रेस करो, रीस नहीं तो विशेष आत्मा बन जायेंगे।स्लोगन:-बाप को अपना साथी बनाकर माया के खेल को साक्षी हो देखते चलो।हो।
मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य:
अपना असली लक्ष्य क्या है?
पहले पहले यह जानना जरूरी है कि अपना असली लक्ष्य क्या है? वो भी अच्छी तरह से बुद्धि में धारण करना है तब ही पूर्ण रीति से उस लक्ष्य में उपस्थित हो सकेंगे। अपना असली लक्ष्य हैं – मैं आत्मा उस परमात्मा की संतान हूँ। असुल में कर्मातीत हूँ फिर अपने आपको भूलने से कर्मबन्धन में आ गई, अब फिर से वो याद आने से, इस ईश्वरीय योग में रहने से अपने किये हुए विकर्म विनाश कर रहे हैं। तो अपना लक्ष्य हुआ मैं आत्मा परमात्मा की संतान हूँ। बाकी कोई अपने को हम सो देवता समझ उस लक्ष्य में स्थित रहेंगे तो फिर जो परमात्मा की शक्ति है वो मिल नहीं सकेगी। और न फिर तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे, अब यह तो अपने को फुल ज्ञान है, मैं आत्मा परमात्मा की संतान कर्मातीत हो भविष्य में जाकर जीवनमुक्त देवी देवता पद पायेंगे, इस लक्ष्य में रहने से वह ताकत मिल जाती है। अब यह जो मनुष्य चाहते हैं हमको सुख शान्ति पवित्रता चाहिए, वो भी जब पूर्ण योग होगा तब ही प्राप्ति होगी। बाकी देवता पद तो अपनी भविष्य प्रालब्ध है, अपना पुरुषार्थ अलग है और अपनी प्रालब्ध भी अलग है। तो यह लक्ष्य भी अलग है, अपने को इस लक्ष्य में नहीं रहना है कि मैं पवित्र आत्मा आखरीन परमात्मा बन जाऊंगी, नहीं। परन्तु हमको परमात्मा के साथ योग लगाए पवित्र आत्मा बनना है, बाकी आत्मा को कोई परमात्मा नहीं बनना है।
इस अविनाशी ज्ञान पर अनेक नाम रखे हुए हैं
इस अविनाशी ईश्वरीय ज्ञान पर अनेक नाम धरे गये हैं (रखे गये हैं)। कोई इस ज्ञान को अमृत भी कहते हैं, कोई ज्ञान को अंजन भी कहते हैं। गुरुनानक ने कहा ज्ञान अंजन गुरू दिया, कोई ने फिर ज्ञान वर्षा भी कहा है क्योंकि इस ज्ञान से ही सारी सृष्टि सब्ज (हरी भरी) बन जाती है। जो भी तमोप्रधान मनुष्य हैं वो सतोगुणी मनुष्य बन जाते हैं और ज्ञान अंजन से अन्धियारा मिट जाता है। इस ही ज्ञान को फिर अमृत भी कहते हैं जिससे जो मनुष्य पाँच विकारों की अग्नि में जल रहे हैं उससे ठण्डे हो जाते हैं। देखो गीता में परमात्मा साफ कहता है कामेषु क्रोधेषु उसमें भी पहला मुख्य है काम, जो ही पाँच विकारों में मुख्य बीज है। बीज होने से फिर क्रोध लोभ मोह अहंकार आदि झाड़ पैदा होता है, उससे मनुष्यों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। अब उस ही बुद्धि में ज्ञान की धारणा होती है, जब ज्ञान की धारणा पूर्ण बुद्धि में हो जाती है तब ही विकारों का बीज खत्म हो जाता है। लोग तो सिर्फ ऐसे ही कहते हैं कि मर्यादा में रहो, परन्तु असुल मर्यादा कौनसी थी? वो मर्यादा तो आजकल टूट गई है, कहाँ वो सतयुगी, त्रेतायुगी देवी देवताओं की मर्यादा, जो गृहस्थ में रहकर कैसे निर्विकारी प्रवृत्ति में रहते थे। अब वो सच्ची मर्यादा कहाँ है? आजकल तो उल्टी विकारी मर्यादा पालन कर रहे हैं, एक दो को ऐसे ही सिखलाते हैं कि मर्यादा में चलो। मनुष्य का पहला क्या फर्ज है, वो तो कोई नहीं जानता, बस इतना ही प्रचार करते हैं कि मर्यादा में रहो, मगर इतना भी नहीं जानते कि मनुष्य की पहली मर्यादा कौनसी है? मनुष्य की पहली मर्यादा है निर्विकारी बनना, अगर कोई से ऐसा पूछा जाए तुम इस मर्यादा में रहते हो? तो कह देते हैं आजकल इस कलियुगी सृष्टि में निर्विकारी होने की हिम्मत नहीं है। अब मुख से कहना कि मर्यादा में रहो, निर्विकारी बनो इससे तो कोई निर्विकारी बन नहीं सकता। निर्विकारी बनने के लिये पहले इस ज्ञान तलवार से इन पाँच विकारों के बीज को खत्म करना है तब ही विकर्म भस्म हो सकेंगे। अच्छा। ओम् शान्ति।
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