20 December ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 20 दिसम्बर 2023 (20 December ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – अपनी रॉयल चलन से सेवा करनी है, श्रीमत पर बुद्धि को रिफाइन बनाना है, माताओं का रिगॉर्ड रखना है” |
|
प्रश्नः- | कौन-सा कर्तव्य एक बाप का है, किसी मनुष्य का नहीं? |
उत्तर:- | सारे विश्व में पीस स्थापन करना, यह कर्तव्य बाप का है। मनुष्य भल कितनी भी कान्फ्रेन्स आदि करते रहें पीस हो नहीं सकती। शान्ति का सागर बाप जब बच्चों से पवित्रता की प्रतिज्ञा कराते हैं तब पीस स्थापन होती है। पवित्र दुनिया में ही शान्ति है। तुम बच्चे यह बात सबको बड़ी युक्ति से और भभके से समझाओ तब बाप का नाम बाला हो। |
गीत:- | मैं एक नन्हा सा बच्चा हूँ……..
|
ओम् शान्ति। यह गीत तो भक्ति मार्ग का गाया हुआ है क्योंकि एक तरफ भक्ति का प्रभाव है दूसरे तरफ अब ज्ञान का प्रभाव है। भक्ति और ज्ञान में रात-दिन का फ़र्क है। कौन-सा फ़र्क है? यह तो बहुत सहज है। भक्ति है रात और ज्ञान है दिन। भक्ति में है दु:ख, जब भक्त दु:खी होते हैं तो भगवान् को पुकारते हैं। फिर भगवान् को आना पड़ता है दु:खियों का दु:ख दूर करने। फिर बाप से पूछा जाता है – ड्रामा में क्या कोई भूल है? बाप कहते हैं – हाँ, बड़ी भूल है, जो तुम मुझे भूल जाते हो। कौन भुलाते हैं? माया रावण। बाप बैठ समझाते हैं – बच्चे, यह खेल बना हुआ है। स्वर्ग और नर्क होता तो भारत में ही है। भारत में ही कोई मरता है तो कहते हैं बैकुण्ठवासी हुआ। 20 December ki Murli यह तो जानते नहीं कि स्वर्ग अथवा बैकुण्ठ कब होता है? जब स्वर्ग होता है तो मनुष्य पुनर्जन्म जरूर स्वर्ग में ही लेंगे। अभी तो है ही नर्क तो पुनर्जन्म भी जरूर नर्क में ही लेंगे, जब तक स्वर्ग की स्थापना हो। मनुष्य यह बातें नहीं जानते हैं। एक है ईश्वरीय अथवा राम सम्प्रदाय, दूसरा है रावण सम्प्रदाय। सतयुग-त्रेता में है राम सम्प्रदाय, उनको कोई दु:ख नहीं है। अशोक वाटिका में रहते हैं। फिर आधाकल्प बाद रावण राज्य शुरू होता है। अब बाप फिर से आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं। वह है सबसे सर्वोत्तम धर्म। धर्म तो सब हैं ना। धर्मों की कान्फ्रेन्स होती है। भारत में अनेक धर्म वाले आते हैं, कान्फ्रेन्स करते हैं। अब जो भारतवासी धर्म को मानने वाले ही नहीं, वह कान्फ्रेन्स क्या करेंगे? वास्तव में भारत का प्राचीन धर्म तो है ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म। हिन्दू धर्म तो है नहीं। सबसे ऊंच है देवी-देवता धर्म। अब कायदा कहता है सबसे ऊंच ते ऊंच धर्म वाले को गद्दी पर बिठाना चाहिए। सबसे आगे किसको बिठायें? इस पर भी कभी उन्हों का झगड़ा लग पड़ता है।20 December ki Murli जैसे एक बार कुम्भ के मेले में झगड़ा हो गया था। वह कहे पहले हमारी सवारी चले, वह कहे पहले हमारी। लड़ पड़े थे। तो अब इस कान्फ्रेन्स में बच्चों को यह समझाना है कि ऊंच ते ऊंच कौन-सा धर्म है? वह तो जानते नहीं। बाप कहते हैं आदि सनातन है ही देवी-देवता धर्म। जो अब प्राय: लोप हो गया है और अपने को हिन्दू कहलाने लग पड़े हैं।20 December ki Murli अब चीन में रहने वाले अपना धर्म चीन तो नहीं कहेंगे, वो लोग तो जिसको नामीग्रामी देखते हैं उनको मुख्य करके बिठा देते हैं। कायदे अनुसार कान्फ्रेन्स में बहुत तो आ नहीं सकते। सिर्फ रिलीजन के हेड्स को ही निमंत्रण दिया जाता है। बहुतों से फिर बहुत बोलचाल हो जाता है। अब उन्हों को राय देने वाला तो कोई है नहीं। तुम हो ऊंच ते ऊंच देवी-देवता धर्म वाले। अब देवता धर्म की स्थापना कर रहे हो। तुम ही बता सकते हो भारत का जो मुख्य धर्म है, जो सब धर्मों का माई-बाप है उनके हेड को इस कान्फ्रेन्स में मुख्य बनाना चाहिए। गद्दी नशीन उनको करना चाहिए। बाकी तो सब हैं उनके नीचे। तो मुख्य बच्चे जो हैं उनकी बुद्धि चलनी चाहिए।
भगवान् अर्जुन को बैठ समझाते हैं। संजय यह है। अर्जुन तो है रथी। उनमें रथवान है बाप, वह समझते हैं रूप बदलकर श्रीकृष्ण के तन में आकर ज्ञान दिया है। परन्तु ऐसे तो है नहीं। अब प्रजापिता भी है, त्रिमूर्ति के ऊपर बहुत अच्छी रीति समझाया जा सकता है। त्रिमूर्ति के ऊपर शिवबाबा का चित्र जरूर चाहिए। वह है सूक्ष्मवतन की रचना। बच्चे समझते हैं यह विष्णु है पालन-कर्ता। प्रजापिता ब्रह्मा है स्थापन कर्ता।20 December ki Murli तो उनका भी चित्र चाहिए। यह बड़ी समझ की बात है। बुद्धि में रहता है प्रजापिता ब्रह्मा जरूर है। विष्णु भी तो चाहिए, जिससे स्थापना करायेंगे उससे ही पालना भी करायेंगे। स्थापना कराते हैं ब्रह्मा से। ब्रह्मा के साथ सरस्वती आदि बहुत बच्चे हैं। वास्तव में यह भी पतित से पावन बन रहे हैं। तो कान्फ्रेन्स में आदि सनातन देवी-देवता धर्म की हेड जगदम्बा होनी चाहिए क्योंकि माताओं का बहुत मान है। जगत अम्बा का मेला बड़ा भारी लगता है। वह है जगत पिता की बेटी। अब आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। गीता एपीसोड रिपीट हो रहा है। यह वही महाभारत की लड़ाई सामने खड़ी है। बाप भी कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ, भ्रष्टाचारी दुनिया को श्रेष्ठाचारी बनाने। जगत अम्बा गॉडेज ऑफ नॉलेज गाई हुई है। उनके साथ ज्ञान गंगायें भी हैं। उनसे पूछ सकते हैं कि उनको यह नॉलेज कहाँ से मिली हुई है! नॉलेजफुल गॉड फादर तो एक ही है, वह नॉलेज कैसे दे? जरूर उनको शरीर लेना पड़े। तो ब्रह्मा मुख कमल से सुनाते हैं। ये मातायें बैठ समझायेंगी। कान्फ्रेन्स में उन्हों को यह मालूम होना चाहिए ना कि बड़ा धर्म कौन-सा है? यह तो कोई समझते ही नहीं कि हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं। बाप कहते हैं यह धर्म जब प्राय: लोप हो जाता है तो मैं आकर फिर स्थापन करता हूँ। अभी देवता धर्म है नहीं। बाकी 3 धर्मों की वृद्धि होती जा रही है। तो जरूर देवी-देवता धर्म फिर से स्थापन करना पड़े। फिर यह सब धर्म रहेंगे ही नहीं। बाप आते ही हैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करने। 20 December ki Murli तुम बच्चियां ही बता सकती हो कि पीस कैसे स्थापन हो सकती है? शान्ति का सागर तो है ही परमपिता परमात्मा। तो पीस जरूर वही स्थापन करेंगे। ज्ञान का सागर, सुख का सागर वही है। गाते भी हैं पतित-पावन आओ, आकर के भारत को पावन रामराज्य बनाओ। पीसफुल तो वही बनायेंगे। यह बाप का ही कर्तव्य है। तुम उनकी मत पर चलने से श्रेष्ठ पद पाते हो। बाप कहते हैं जो मेरे बनेंगे, राजयोग सीखेंगे और पवित्रता की प्रतिज्ञा करेंगे कि बाबा हम पवित्र बन 21 जन्मों का वर्सा लेंगे वही मालिक बनेंगे, पतित से पावन बनेंगे। पावन हैं लक्ष्मी-नारायण सबसे ऊंच। फिर अभी पावन दुनिया की स्थापना हो रही है। तुम पीस के लिए कान्फ्रेन्स कर रहे हो परन्तु मनुष्य थोड़ेही पीस करेंगे। यह तो शान्ति के सागर बाप का काम है। कान्फ्रेन्स में बड़े आदमी आते हैं, बहुत मेम्बर्स बनते हैं तो उन्हों को राय भी देनी पड़े। फादर शोज़ सन। शिवबाबा के पोत्रे ब्रह्मा के बच्चे हैं गॉडेज ऑफ नॉलेज। उनको गॉड ने नॉलेज दी है। मनुष्य तो शास्त्रों की नॉलेज पढ़ते हैं। ऐसे भभके से समझाओ तो बड़ा मजा हो। युक्ति जरूर रचनी पड़ती है। एक तरफ उन्हों की कान्फ्रेन्स हो और दूसरे तरफ फिर तुम्हारी भी भभके से कान्फ्रेन्स हो। चित्र भी क्लीयर हैं, जिनसे झट समझ जायेंगे। उनका आक्यूपेशन अलग है, उनका अलग है। ऐसे थोड़ेही सब एक ही एक हैं। नहीं। सभी धर्मों का पार्ट अलग-अलग है। शान्ति के लिए मिल करके कार्य करते हैं,20 December ki Murli कहते हैं रिलीजन इज़ माइट। परन्तु सबसे ताकत वाला कौन? वही आकरके पहला नम्बर देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं। यह तुम बच्चे ही जानते हो। दिन-प्रतिदिन तुम बच्चों को प्वाइन्ट्स मिलती रहती हैं। समझाने की पॉवर भी है। योगी की पॉवर अच्छी होगी। बाबा कहते ज्ञानी तू आत्मा ही मुझे प्रिय हैं। ऐसे नहीं कि योगी प्रिय नहीं हैं। जो ज्ञानी होंगे वह योगी भी जरूर होंगे। योग परमपिता परमात्मा के साथ रखते हैं। योग बिगर धारणा नहीं होगी। जिनका योग नहीं है तो धारणा भी नहीं है क्योंकि देह-अभिमान बहुत है। बाप तो समझाते हैं – आसुरी बुद्धि को दैवी बुद्धि बनाना है। पत्थर-बुद्धि को पारस बुद्धि बनाने वाला बाप ईश्वर है। रावण आकरके पत्थरबुद्धि बनाते हैं। उन्हों का नाम ही है आसुरी सम्प्रदाय। देवताओं के आगे कहते हैं हमारे में कोई गुण नाही, हम कामी कपटी हैं। तुम मातायें अच्छी रीति समझा सकती हो। मुरली चलाने का इतना हौंसला चाहिए। बड़ी-बड़ी सभाओं में ऐसी-ऐसी बातें करनी पड़े। मम्मा है गॉडेज ऑफ नॉलेज। ब्रह्मा को कभी गॉड ऑफ नॉलेज नहीं कहा जाता है। सरस्वती का नाम गाया हुआ है। जिसका जो नाम है वही रखते हैं। माताओं का नाम बाला करना है। कई गोपों को बहुत देह-अभिमान है। समझते हैं हम ब्रह्माकुमार गॉड आफ नॉलेज नहीं हैं क्या! अरे, खुद ब्रह्मा ही अपने को गॉड आफ नॉलेज नहीं कहते। माताओं का बहुत रिगॉर्ड रखना पड़े। यह मातायें ही जीवन पलटाने वाली हैं।20 December ki Murli मनुष्य से देवता बनाने वाली हैं। मातायें भी हैं, कन्यायें भी हैं। अधर कुमारी का राज़ तो कोई समझते नहीं हैं। भल शादी की हुई है तो भी ब्रह्माकुमारियां हैं। यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं। जिन्हों को बाप से वर्सा लेना है वह समझते हैं। बाकी जिनकी तकदीर में नहीं है वह क्या समझेंगे, नम्बरवार दर्जे जरूर हैं। वहाँ भी कोई दास-दासियां होंगे, कोई प्रजा होंगे। प्रजा भी चाहिए। मनुष्य सृष्टि वृद्धि को पाती रहेगी तो प्रजा भी वृद्धि को पाती रहेगी। तो ऐसी-ऐसी कान्फ्रेन्स जो होती हैं उसके लिए जो अपने को मुख्य समझते हैं उनको तैयार रहना चाहिए। जिनमें ज्ञान नहीं है वह जैसे छोटे ठहरे। इतनी बुद्धि नहीं। देखने में भल बड़े हैं परन्तु बुद्धि नहीं है, वह छोटे हैं। कोई-कोई की बुद्धि बड़ी अच्छी है। सारा मदार बुद्धि पर है। छोटे-छोटे भी तीखे चले जाते हैं। कोई की समझानी में बड़ा मिठास होता है। बातचीत बड़ी रायॅल करते हैं। समझेंगे यह रिफाइन बच्चे हैं। चलन से भी शो होता है ना। बच्चों की चलन बहुत रायॅल होनी चाहिए। कोई अनरॉयल काम नहीं करना चाहिए। नाम बदनाम करने वाले ऊंच पद पा नहीं सकते। शिवबाबा का नाम बदनाम करते हैं तो बाप का भी हक है समझाने का। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
रात्रि क्लास
अब तुम बच्चे समझते हो कि हम जीव आत्मायें परमपिता परमात्मा के सम्मुख बैठे हैं। इसको ही मंगल मिलन कहा जाता है। गाया जाता है ना – ‘मंगलम् भगवान् विष्णु’। अभी मंगल है ना, मिलन का। भगवान् वर्सा देते हैं विष्णु कुल का, इसलिए उनको ‘मंगलम् भगवान् विष्णु’ कहा जाता है। जब बाप मिलते हैं जीव आत्माओं से, वह मिलन बड़ा सुन्दर है। तुम भी समझते हो अभी हम ईश्वरीय बच्चे बने हैं, ईश्वर से अपना वर्सा लेने लिए। बच्चे जानते हैं ईश्वर के वर्से बाद दैवी वर्सा मिलता है अर्थात् स्वर्ग में पुनर्जन्म मिलता है। तो तुम बच्चों को खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए। तुम जैसा खुशनसीब वा सौभाग्यशाली तो कोई नहीं। दुनिया में सिवाए ब्राह्मण कुल के और कोई भी भाग्यशाली हो नहीं सकता। 20 December ki Murli विष्णु कुल सेकेण्ड नम्बर में हो गया। वह दैवी गोद हो जाती। अभी ईश्वरीय गोद है। यह तो ऊंच ठहरे ना। देलवाड़ा मन्दिर ईश्वरीय गोद का मन्दिर है। जैसे अम्बा के भी मन्दिर हैं, वह इतना संगमयुग का साक्षात्कार नहीं कराते हैं, यह देलवाड़ा मन्दिर संगमयुग का साक्षात्कार कराता है। बच्चों को जितनी समझ है उतना और कोई मनुष्य मात्र को हो न सके। जितना तुम ब्राह्मणों को समझ है, उतनी देवताओं को भी नहीं। तुम संगमयुगी ब्राह्मण हो। वह संगमयुगी ब्राह्मणों की महिमा करते हैं। कहते हैं ब्राह्मण सो देवता बनते हैं। ऐसे ब्राह्मणों को नम:। ब्राह्मण ही नर्क को स्वर्ग बनाने की सर्विस करते हैं, ऐसे बच्चों (ब्राह्मणों) को नमस्ते करते हैं। अच्छा – गुडनाइट।
20 December ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप का प्रिय बनने के लिए ज्ञानी और योगी बनना है। देह-अभिमान में नहीं आना है।
2) मुरली चलाने का हौंसला रखना है। अपनी चलन से बाप का शो करना है। बातचीत बड़े मिठास से करनी है।
वरदान:- | कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन कर सेवा के निमित्त बनने वाले भाग्यवान भव तन का हिसाब-किताब कभी प्राप्ति वा पुरुषार्थ के मार्ग में विघ्न अनुभव न हो। तन कभी भी सेवा से वंचित होने नहीं दे। भाग्यवान आत्मा कर्मभोग के समय भी किसी न किसी प्रकार से सेवा के निमित्त बन जाती है। कर्मभोग चाहे छोटा हो या बड़ा, उसकी कहानी का विस्तार नहीं करो, उसे वर्णन करना माना समय और शक्ति व्यर्थ गंवाना। योगी जीवन माना कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन कर देना-यही है भाग्यवान की निशानी। |
स्लोगन:- | दृष्टि में रहम और शुभ भावना हो तो अभिमान व अपमान की दृष्टि समाप्त हो जायेगी। |
Also Read- बागेश्वर महाराज के प्रवचन: लाभ किसमें है? अमृत या भागवत, बाबा जी ने बता दिया उपाय.