2 september ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 2 सितम्बर 2023 (2 september ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – अभी तुम्हारी ज्योति जगी है, ज्योति जगना अर्थात् बृहस्पति की दशा बैठना, बृहस्पति की दशा बैठने से तुम विश्व के मालिक बन जाते हो”
प्रश्नः-सतयुग में हर घर की विशेषता क्या होगी, कलियुग में हर घर क्या बन गये हैं?
उत्तर:-सतयुग में हर घर में खुशियां होंगी। सबकी ज्योति जगी हुई होगी। कलियुग में तो घर-घर में ग़मी, चिंता है। हर घर में अंधियारा है। आत्मा की ज्योति उझाई हुई है। बाप आये हैं अपनी ज्योति से सबकी ज्योति जगाने, जिससे फिर घर-घर में दीवाली होगी।गीत:-माता ओ माता……..
ओम् शान्ति। बच्चों ने माँ की महिमा सुनी। यूं वास्तव में उपमा तो एक की ही होती है। माँ को भी जगत अम्बा बनाने वाला, जन्म देने वाला फिर भी कोई और है। ऐसी माँ को भी जन्म किसने दिया? कहेंगे पतित-पावन परम-पिता परमात्मा शिव ने दिया। फिर भी महिमा हो जाती है एक ही ज्ञान सागर, पतित-पावन परमपिता परमात्मा शिवबाबा की। वह बैठ बच्चों को अपना और अपनी रचना के आदि-मध्य-अन्त का और पतितों को पावन बनाने का राज़ समझाते हैं। यह तो बच्चे समझ गये हैं इस समय पतित राज्य है, जिसको रावण राज्य कहा जाता है। अभी दशहरा आता है ना। यह तो समझाया गया है – यह सब अन्धश्रधा के उत्सव हैं। ऐसे तो कोई है नहीं कि एक रावण था, लंका थी। लंका सीलॉन को कहा जाता है। दिखाते हैं वहाँ सागर पर बन्दरों ने पुल बनाई….. । वास्तव में यह सब हैं दन्त कथायें। ऐसे तो है नहीं कि 10 शीश वाला कोई रावण था, लंका में राज्य करता था। फिर तो उनकी एफीजी लंका में ही जलानी चाहिए। रावण को जलाने का भारत में ही रिवाज है और कोई जगह नहीं जलाते।2 september ki Murli अ़खबार में भी यहाँ के लिए ही पड़ता है। सबसे जास्ती उत्सव मैसूर का महाराजा मनाते हैं। उनका शायद इस दन्त कथा से प्रेम दिखाई पड़ता है। अब इस पर समझाना तुम बच्चों का काम है। एफीजी तो दुश्मन का बनाकर जलाया जाता है। जैसे आगे हिटलर का एफीजी बनाकर जलाते थे। दुश्मन तो बहुतों के होते हैं। अब रावण किसका दुश्मन था? भारतवासियों का दुश्मन था। परन्तु दुश्मन को भी एक बार जलाया जाता है। ऐसे तो कोई भी नहीं करते जो हर वर्ष दुश्मन का एफीजी (बुत) बनाकर जलाते। दुश्मन का एफीजी तो बनाते हैं परन्तु वर्ष-वर्ष तो नहीं जलाते। यह रावण फिर कौन है जिसका भारत में बहुत समय से 10 शीश वाला एफीजी बनाकर जलाते रहते हैं? यह दुश्मन कब से हुआ है जो मरता ही नहीं? आखरीन ख़त्म होगा या सदैव रहेगा ही? तुम बच्चे जानते हो भारत ही पवित्र था फिर भारत को ही रावण ने अपवित्र बनाया है। अभी रावण राज्य है। अगर लंका का राजा था तो रानी भी होगी। तुम तो यह बातें मानेंगे नहीं। रावण अभी तक जीता है वा क्या, कुछ भी समझते नहीं। जीता है फिर उनकी एफीजी बनाकर जलाते रहते। एक बार जलाया फिर क्या हुआ? हर वर्ष जलाते रहते हैं तो तुम बच्चों को समझाना चाहिए। कमेटी के बड़े जो बनते हैं जैसे मैसूर का महाराजा है, वह बहुत मनाते हैं। फारेनर्स को भी देखने के लिए बुलाते हैं। समझेंगे शायद ऐसा हुआ होगा। परन्तु ऐसा तो कभी हुआ नहीं है। नाटक बना देते हैं। रावण का भी नाटक बनाते हैं। तो इस रावण की बात पर समझाना है। बड़ी जबरदस्त बात है। अभी तुम रावण राज्य में बैठे हो। पतित दुनिया को ही रावण राज्य कहा जाता है। अभी राम राज्य और रावण राज्य का राज़ तुमको समझाया गया है। रावण 5 विकारों को कहा जाता है और कोई नहीं है।
तुम समझ गये हो रावण का राज्य अभी भारत में है। भारत में ही दशहरा, दीपमाला आदि मनाते हैं। तो समझाना पड़े। अगर रावण जीता है तो रावण राज्य ठहरा ना। रावण है पतित बनाने वाला। तुम जानते हो 5 विकार जो कि इस समय सर्वव्यापी हैं, उनको ही रावण कहा जाता है। रावण के चित्र तो आगे दशहरे में निकले थे, इसमें तिथि-तारीख भी डालनी पड़े। इस समय पतित का विनाश और पावन की स्थापना होती है। तुम पतित से पावन बन रहे हो, पावन बन जायेंगे फिर रावण सम्प्रदाय को आग लगेगी। रावण ख़त्म हो जायेगा फिर सतयुग में कोई एफीज़ी नहीं बनानी पड़ेगी। सब पावन बन जायेंगे। आत्मा में सतोप्रधानता की जब ताकत थी तो जागती ज्योत थी। पतित बनने से वह ज्योत उझा गई है। आत्मा ही पतित बनी है, उड़ने की ताकत नहीं है। 2 september ki Murli 5 विकारों से आत्मा आइरन एजड बन गई है। यह जरूर समझाना है। आत्मा को जागृत करने वाला एक बाप है। यह तो सब कहते हैं ज्योति स्वरूप परमपिता परमात्मा आयेगा। अब ज्योति स्वरूप तो तुम आत्मा भी हो, परमपिता परमात्मा भी ज्योति स्वरूप है। तुम्हारी आत्मा की ज्योति बुझ गई है। बाकी जाकर जरा सी रही है। मनुष्य मरते हैं तो रात-दिन उनका दीवा जलाते हैं। दीवे की बहुत सम्भाल करते हैं। घृत ख़त्म हो जाता है फिर और डालते हैं। आत्माओं का भी ऐसे है। बाप आकर सबकी ज्ञान से ज्योति जगाते हैं। ज्योति जगी हुई कितना समय चलती है? वह तो रात को जलाते हैं फिर घृत डालते जाते हैं। तुम्हारी अब ज्योति जग रही है। जगते-जगते फिर जग ही जायेगी। ज्योति बुझने में 5 हजार वर्ष लगता है फिर बाप आकर घृत डालते हैं। तुम्हारी अब ज्योति जगी है फिर धीरे-धीरे कला कम होती जायेगी। ज्योति उझाई जायेगी। तुम जानते हो अभी हमारी ज्योति जगती है फिर सतयुग में घर-घर में सोझरा होगा। भारत की ही बात है। अभी तो घर-घर में अन्धियारा है। खुशी है नहीं। तुम जानते हो सतयुग-त्रेता में हम बहुत खुश थे और खुशी मनाते थे। सभी की ज्योति जगी हुई रहती है फिर थोड़ी-थोड़ी कमती होती जाती है। इस समय तो बिल्कुल उझाई हुई है। खाद पड़ी हुई है। बाप आकर फिर ज्ञान का घृत डालते हैं जिससे तुम फिर जागती ज्योत बन जाते हो। तुम्हारे ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं। 2 september ki Murli
तुम जानते हो अभी हमारी सारी काया ख़लास हो गई है, राहू का ग्रहण लग गया है। तुमको काला होने में कितना समय लगता है? शुरू से लेकर थोड़ा-थोड़ा होते फिर माया का प्रवेश होने से ही बहुत काले बन जाते हो। अभी तुम्हारे ऊपर राहू की दशा है। सबसे कड़ी है राहू की दशा। अभी फिर बृहस्पति की दशा बैठती है क्योंकि अभी विश्व का मालिक बनने के लिए तुम वृक्षपति गुरू द्वारा पुरुषार्थ कर रहे हो। वह है अविनाशी गुरू। किसका? अविनाशी आत्माओं का। वह मनुष्य लोग आत्माओं का गुरू नहीं बनते हैं। वह मनुष्य का गुरू बनते हैं। अभी बाप तुम्हारी आत्माओं का गुरू आकर बने हैं। वृक्षपति परमपिता परमात्मा है। तुम समझते हो अब हमारे ऊपर बृहस्पति की दशा है। स्वर्ग के मालिक तो बनेंगे। अविनाशी सुख रहता है, परन्तु उसके लिए पुरुषार्थ अब करना है कि हम सुखधाम के महाराजा-महारानी बनें। पुरुषार्थ तो हर एक का अपना चलता है। यह है रुद्र शिव की पाठशाला। वह है ज्ञान सागर। तुम उनकी पाठशाला में पढ़ रहे हो। भगवानुवाच – मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। अविनाशी आत्माओं का अविनाशी बाप मैं हूँ।2 september ki Murli एक है जिस्मानी बाप, एक है रूहानी बाप। दोनों कान्ट्रास्ट भी बताना है। रूहानी बाप कब मिलते हैं, जिसको भक्ति मार्ग में सभी रूहें याद करती हैं। जिस्मानी बाप तो है विनाशी। आत्मायें तो विनाशी नहीं होती हैं। तुम जानते हो हमारा जो लौकिक बाप है वह तो जन्म बाई जन्म हम बदलते आये। बाप बिगर तो बच्चे का जन्म हो नहीं सकता। तुम बच्चों को अब विशालबुद्धि मिली है। तुम समझ सकते हो कि कब से हम दो बाप वाले बनते हैं। सतयुग में तो एक ही लौकिक बाप होता है उनको ही याद करते हैं। आत्माओं को उस रूहानी बाप को याद करने की दरकार नहीं रहती। आत्माओं को सतयुग में तो एक ही लौकिक बाप होता है। वहाँ शरीर भी गोरा मिलता है, प्रालब्ध भोगते हैं ना इसलिए वहाँ बाप को याद नहीं करते। तो तुमको यह समझाना है। भक्ति मार्ग में एक है विनाशी लौकिक बाप, वह तो हर जन्म में दूसरा मिलता है। तुम आत्मा तो अविनाशी हो, अविनाशी बाप को याद करती हो। कहते भी हैं परमपिता परमधाम में रहने वाले पिता। लौकिक पिता को कभी परमपिता नहीं कहेंगे। यह दो बाप का राज़ समझाना बहुत जरूरी है। रावण का राज़ भी समझाना है। रावण राज्य अर्थात् पतित राज्य अभी है इसलिए पतित-पावन बाप को बुला रहे हैं। वह अविनाशी बाप है। दो बाप जरूर सिद्ध करने हैं। आत्माओं का भी बाप है इसलिए पारलौकिक परमपिता परमात्मा को याद करते हैं। हर जन्म में लौकिक बाप और और मिलता है फिर भी उस रूहानी बाप को जरूर याद करते हैं। वह कभी बदलता नहीं। बाप भी कहते हैं बरोबर तुम मुझे याद करते थे – हे परमपिता परमात्मा।2 september ki Murli कब तक तुमको याद करना है, फिर बाप कब मिलता है? यह तुम अभी जान गये हो। जब भक्ति का अन्त होता है तब भक्तों को फल देने बाप आते हैं। बाप ने समझाया है – सभी भक्तों को मुक्ति-जीवनमुक्ति देता हूँ। तुम जानते हो सतयुग में एक ही धर्म होता है, उसको वन-नेस कहेंगे। कहते हैं सभी मिलकर एक हो जाएं। परन्तु सभी धर्म तो एक हो नहीं सकते। जब एक राज्य हो जाता है तो पवित्रता, सुख, शान्ति रहती है। भारत में रामराज्य था जरूर। अभी यह रावण राज्य है, इसलिए रावण को जलाते रहते हैं। तो दो बाप का राज़ समझाने से झट समझ जायेंगे। अविनाशी बाप तो जरूर है, नई दुनिया रचने वाला बाप ही है। नई दुनिया में बरोबर देवी-देवतायें ही थे फिर वही दुनिया नई से पुरानी होती है। नई दुनिया में कितने जन्म लेते, पुरानी दुनिया में कितने जन्म लेते यह तुम जानते हो। ऐसे भी नहीं कि 84 जन्मों के आधा होने चाहिए, 42 जन्म पुरानी दुनिया में, 42 जन्म नई दुनिया में। नहीं। भारतवासियों की आयु पहले 100 वर्ष, 125 वर्ष थी, अभी तो 40-50 वर्ष भी मुश्किल चलती है। तो आधा-आधा हो न सके। 84 जन्मों का हिसाब तो चाहिए ना। बाप कहते हैं तुम्हारा 84 जन्मों का चक्र अब पूरा हुआ। तुम नहीं जानते हो, हम समझाते हैं, 84 जन्मों का राज़ सिवाए परमपिता परमात्मा के और कोई समझा न सके। तुम बाप से सुनकर खुश होते हो और फिर नई दुनिया के लिए पुरुषार्थ करते हो।
2 september ki Murli अब यह बच्चों को सिद्ध कर बताना है कि हम अभी बेहद के पारलौकिक बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं। वह बाप आते ही तब हैं जब स्वर्ग की स्थापना करते हैं। उनको कहा ही जाता है हेविनली गॉड फादर। जब नये घर की स्थापना होती है तब पुराने घर को तोड़ा जाता है। लिखा हुआ भी है स्थापना फिर विनाश। स्थापना जब पूरी हो जायेगी तब विनाश होगा। स्थापना करने वाला है परमपिता परमात्मा, इस ब्रह्मा द्वारा। यह भी बाबा ने समझाया है सूक्ष्मवतनवासी को तो प्रजापिता नहीं कहेंगे। वहाँ प्रजा होती नहीं, तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ होगा। वही फिर अव्यक्त सम्पूर्ण बनेगा। वह तो है अव्यक्त, जरूर व्यक्त भी चाहिए जो फिर अव्यक्त होना है। दोनों अभी दिखाई पड़ते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ भी है, सूक्ष्मवतन में भी है। प्रजापिता तो यहाँ चाहिए, जरूर प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे भी यहाँ ही हैं। प्रदर्शनी में दो बाप का राज़ समझाना है। कायदा तो है एक-एक को अलग-अलग समझाया जाता है। अब वहाँ किसको कैसे समझायेंगे? समझाने के लिए तो एकान्त चाहिए। वहाँ तो बहुत हंगामा होता है। यहाँ तो तुमको एक डेढ घण्टा लग जाता है समझाने में। वहाँ इतनी भीड़ में तो समझाना बड़ा मुश्किल हो जायेगा। अनेक प्रकार के धर्म वाले हैं। कोई क्या कहेंगे, कोई क्या। चुपकर तो बैठेंगे नहीं। तुम सुनायेंगे एक लौकिक जिस्मानी बाप है, दूसरा पारलौकिक रूहानी बाप है। वह है परमपिता परमात्मा। अब ब्रह्मा द्वारा स्थापना कर रहे हैं स्वर्ग की। नर्क का विनाश भी सामने खड़ा है। महाभारी लड़ाई है ना। बरोबर यह राजयोग भी है, राजाई प्राप्त करने की गीता पाठशाला है। भगवानुवाच – सभी को दो बाप हैं। श्रीकृष्ण को सभी आत्माओं का बाप नहीं कहेंगे। आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा कहते हैं कि मामेकम् याद करो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
2 september ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वयं में ज्ञान का घृत डालते सदा जागती ज्योत रहना है। बाप की याद में रह राहू का ग्रहण उतार देना है।
2) रूहानी और जिस्मानी दो बाप हैं, यह पहचान हर एक को देकर बेहद के वर्से का अधिकारी बनाना है।
वरदान:-प्रवृत्ति में रहते एक बाप के साथ कम्बाइन्ड रहने वाले देह के संबंधों से निव्रृत भवप्रवृत्ति में अगर पवित्र प्रवृत्ति का पार्ट बजाना है तो देह के संबंधों से निव्रृत रहो। मैं पुरूष हूँ, यह स्त्री है-यह भान स्वप्न में भी नहीं आना चाहिए। आत्मा भाई-भाई है तो स्त्री पुरुष कहाँ से आये। युगल तो आप और बाप हो। यह तो निमित्त मात्र सेवा अर्थ है, बाकी कम्बाइन्ड रूप में आप और बाप हो। ऐसा समझकर चलो तब कहेंगे हिम्मतवान विजयी आत्मा।स्लोगन:-सदा सन्तुष्ट और सदा खुश रहने वाले ही खुशनसीब, तीव्र पुरुषार्थी हैं।
Also Read- बागेश्वर महाराज के प्रवचन: लाभ किसमें है? अमृत या भागवत, बाबा जी ने बता दिया उपाय.