19 september ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 19 सितम्बर 2023 (19 september ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – याद के पुरुषार्थ से ही कर्मातीत बनेंगे इसलिए कभी अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना, याद के बल से अन्दर में जो कमियां हैं, उन्हें निकालते रहना”
प्रश्नः-सभी बच्चों की अवस्था को मजबूत बनाने के लिए बाप कौन सी चैलेन्ज करते हैं?
उत्तर:-बच्चे, भोजन बनाते हुए पूरा समय याद में रहकर दिखाओ – यह बाप बच्चों को चैलेन्ज करते हैं। शिवबाबा की याद में भोजन बनायेंगे तो ताकत भर जायेगी, अवस्था बहुत अच्छी हो जायेगी। परन्तु बच्चे भूल जाते हैं। इसके लिए एक-दो को याद दिलाने का पुरुषार्थ करो। डबल सर्विस करनी है। कर्मणा के साथ-साथ नर से नारायण बनाने की भी सेवा करो।गीत:-धीरज धर मनुवा….. Audio Player
ओम् शान्ति। यह किसने कहा और किसको कहा? बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। भक्ति मार्ग में यह गाया जाता है। जब परमपिता परमात्मा आते हैं, वही आकर धीरज देते हैं, और कोई मनुष्य धीरज दे नहीं सकता। तुम जानते हो अब सुख के दिन आयेंगे। बाप आये हैं सुखधाम ले चलने। यह है दु:खधाम। यह सब भक्ति मार्ग के गीत हैं। यहाँ तो बाप सम्मुख बैठे हैं। बच्चों को कुछ कहने की दरकार नहीं पड़ती। बच्चे जानते हैं हमारे सुख के दिन आ रहे हैं। हम सुख की राजधानी स्वयं श्रीमत पर स्थापन कर रहे हैं, डिवाइन मत पर चल रहे हैं। 19 september ki Murli एक होती है डिवाइन मत, दूसरी होती है अनडिवाइन मत। डिवाइन मत एक ही होती है जिसे श्रीमत कहा जाता है। अनडिवाइन मत माना आसुरी पतित मत, डिवाइन मत माना दैवी पावन मत। श्रीमत और आसुरी मत को तुम समझते हो। डिवाइन कहा जाता है पावन को। अनडिवाइन कहा जाता है पतित को। यह है ही पतित दुनिया। कोई भी पावन मनुष्य है नहीं। पावन मत देने वाला एक ही पतित-पावन बाप है। उनको सब याद करते हैं। पावन सृष्टि सतयुग को, पतित सृष्टि कलियुग को कहा जाता है। यहाँ सब हैं ही अनडिवाइन। डिवाइन फादर एक होता है। पतित दुनिया में कोई डिवाइन फादर होता नहीं। यह संगम का युग है। यह युग तुम्हारे लिए है, दुनिया के लिए नहीं है। दुनिया तो समझती है संगमयुग आने में बहुत वर्ष पड़े हैं। बाप आते ही हैं पतित कलियुग को पावन सतयुग बनाने। ऐसे तो वे कुमार और कुमारियां भी डिवाइन पावन हैं परन्तु फिर पतित जरूर बनना है। विकार से जन्म लेते हैं इसलिए इस विकारी दुनिया में कोई डिवाइन नहीं होते। डिवाइन निर्विकारी को कहा जाता है। निर्विकारी होते हैं निर्विकारी दुनिया में। वह है ही वाइसलेस, सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। जबकि सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया है तो सम्पूर्ण विकारी दुनिया भी होगी। यह है सम्पूर्ण अनडिवाइन दुनिया। सम्पूर्ण डिवाइन दुनिया सतयुग को कहा जाता है।
अब तुम बच्चों को डिवाइन फादर ने धैर्यवत बनाया है। 19 september ki Murli डिवाइन जीव आत्मा कहा जाता है, सिर्फ आत्मा को डिवाइन नहीं कह सकते। आत्मायें तो निराकारी दुनिया में रहती हैं। डिवाइन मनुष्य होते हैं पवित्र दुनिया में। यह है ही अपवित्र दुनिया। अपवित्र दुनिया को पवित्र दुनिया बनाना – यह निराकार डिवाइन फादर का ही काम है। तुम बच्चों को अब धीरज मिलता है – बच्चे, अब सतयुग आ रहा है। सुखधाम स्थापन करने में समय तो लगता है। फट से तो दु:खधाम विनाश हो सुखधाम स्थापन नहीं हो जायेगा। तुमको भी देखो, कितना टाइम लगा है! पतित सृष्टि कितनी बड़ी है! तुम भी जब लायक बनो ना। तुम खुद ही कहेंगे हम अभी स्वर्ग में जाने के लिए पूरे लायक नहीं बने हैं। पूरे लायक बन जायें फिर तो कर्मातीत अवस्था हो जाए। परन्तु देह-अभिमान बहुतों में होने के कारण समझते हैं हम तो सम्पूर्ण बन गये हैं। हमको श्रीमत की दरकार ही नहीं इसलिए याद नहीं करते। बाप की याद से ही तो श्रेष्ठ बनेंगे। कोई कह न सके कि हम निरन्तर बाप को याद करते हैं। अन्दर में कोई यह न समझे कि हम तो निरन्तर याद में रहते हैं। याद में रहते रहे तो बाकी क्या चाहिए। सारा दिन भी कोई याद में रहे तो कर्मातीत अवस्था हो जाए। बड़ा मुश्किल है बाबा की याद में रहना। तुम पुरुषार्थ कर रहे हो – सुखधाम में राज्य-भाग्य लेने लिए। अपने को देखना है अगर हमारे में बहुत विकार हैं, कमियां हैं तो हम इतना ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। निरन्तर याद की दौड़ी लगा नहीं सकेंगे। अपने को मियां मिट्ठू नहीं समझना है कि मैं तो सम्पूर्ण हूँ। सम्पूर्ण होते ही हैं शिवालय सतयुग में। सारा भारत शिवालय बन जाता है। लक्ष्मी-नारायण का राज्य चलता है। मन्दिर में राज्य तो नहीं करते हैं ना। शिवालय सतयुग में सब देवी-देवतायें राज्य करते हैं फिर पूजा के लिए मुख्य लक्ष्मी-नारायण का चित्र बनाए उनका मन्दिर बनाते हैं। पहले नम्बर वाले की ही पूजा होती है। अभी उन्हों के जड़ मन्दिर हैं। चैतन्य में जब राज्य करते हैं तो विश्व के मालिक हैं। भल हैं भारत में ही परन्तु हैं तो विश्व के मालिक ना। और कोई राजाई ही नहीं। हम अभी फिर से अपना डिवाइन राज्य स्थापन कर रहे हैं।
पावन दुनिया में जाने लिए पहले जरूर पावन बनना पड़े। मेहनत लगती है। जहाँ तक जीना है, याद में रहना है और ज्ञान की वर्षा तो होती ही रहती है।19 september ki Murli भिन्न-भिन्न प्रकार से समझाया जाता है। वास्तव में लक्ष्मी-नारायण के सिवाए डिवाइन अथवा पवित्र किसको कह नहीं सकते। बाप स्वर्ग स्थापन करते हैं फिर भी नर्क बन ही जाता है। ड्रामा ही सुख और दु:ख का बना हुआ है। शंकराचार्य आकर अपने धर्म की स्थापना करते हैं फिर भी डाल-डालियां पुरानी तो होंगी ना। संन्यासियों की महिमा है। रामतीर्थ, विवेकानंद आदि गाये जाते हैं क्योंकि शंकराचार्य के पिछाड़ी वाले हैं। नये-नये आते हैं तो वह अपना शो करते हैं। परन्तु इनको शिवालय तो नहीं कहेंगे। शिव का स्थापन किया हुआ सतयुग एक ही है। मनुष्य इन बातों को बिल्कुल नहीं जानते। ऐसे ही सिर्फ सुनने से कोई समझ न सकें। पहले तो 7 रोज़ आकर एम आब्जेक्ट को समझना है। और कोई पढ़ाई के लिए ऐसे नहीं कहा जाता कि पहले 7 रोज़ समझो। यह एक ही पाठशाला है जहाँ लक्ष्य दिया जाता है। पहले-पहले तो फादर को समझो।
बाप कहते हैं मैं बच्चों की सेवा करने आया हूँ। जो कल्प पहले वाले हैं, वही आयेंगे। जब तक निश्चयबुद्धि नहीं बने हैं, तब तक बुद्धि में आयेगा नहीं इसलिए बाबा पूछते हैं कहाँ तक निश्चय हुआ है? यह कोई गांवड़े का सतसंग नहीं है। और सतसंगों में तो कहेंगे फलाना महात्मा गीता सुनाते हैं, फलाना वेद सुनाते हैं। यहाँ कोई महात्मा आदि नहीं है। यहाँ तो बाप बैठ समझाते हैं। पहले जब तक निश्चय नहीं तब तक क्या समझें। वहाँ सतसंगों आदि में समझेंगे यह तो फलाना वेद सुनाते हैं, राज-विद्या पढ़ाते हैं। यहाँ तो वेदों-शास्त्रों अथवा राज-विद्या की कोई बात नहीं। तुम जानते हो बाबा इन द्वारा पढ़ा रहे हैं। जब तक यह नहीं समझा है तो क्या करेंगे? और ही वायुमण्डल को खराब कर देंगे। यहाँ तुम्हारे में भी ऐसे नहीं है कि सब शिवबाबा की याद में सुनते हैं और समझते हैं शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा पढ़ाते हैं। नहीं, शिवबाबा की पढ़ाई है…. यह कुछ भी समझते नहीं। बड़ा मुश्किल कोई यथार्थ रीति समझते हैं। पढ़ाने वाला शिवबाबा है – यह याद हो और सारा दिन बुद्धि में रहे कि हम स्टूडेन्ट हैं तो नम्बरवन चले जायें। परन्तु तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। बाबा कहते हैं मुझ पढ़ाने वाले को याद करो। मैं ही बाप, टीचर, गुरू हूँ। तीनों को इकट्ठा याद करना है। लौकिक संबंध में तो बाप अलग, टीचर अलग, गुरू अलग होते हैं। यहाँ एक को ही याद करना है और है बहुत सहज। परन्तु माया याद रहने नहीं देती। घड़ी-घड़ी बुद्धियोग तोड़ देती है। तुम बच्चे आपस में बैठते होंगे। समझो, कोई मशीन चलाते हैं अथवा मक्खन निकालते हैं तो शिवबाबा को याद कर मशीन चलाते हैं? शिवबाबा की याद में बाबा के यज्ञ के लिए मक्खन निकाल रहा हूँ। कितनी खुशी की बात है। यज्ञ के लिए भोजन बनाता हूँ। खुशी होती है ना। परन्तु फिर घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं फिर पुरुषार्थ करना पड़े खुद का। एक-दो को याद कराने का पुरुषार्थ कराने वाला चाहिए। फिर भी शिवबाबा को याद कर भोजन बनायेंगे तो ताकत भर जायेगी। तुम्हारी अवस्था बहुत अच्छी हो जाए परन्तु ऐसे होता नहीं है। ब्रह्मा भोजन की तो बहुत महिमा है, परन्तु जब आत्मा शिवबाबा की याद में रह बनाये। शक्तियों का ऐसा भण्डारा हो। याद में रह भोजन बनायें तब तो शक्ति मिले। वह भी शक्तियों की बुद्धि में नहीं आता है। नहीं तो पुरुषार्थ करें। बाबा को तो दिल होती है अपने हाथ से शिवबाबा को याद करते भोजन बनाऊं। प्रैक्टिस करनी है। देखें, याद ठहर सकती है? 19 september ki Murliबाबा चैलेन्ज देते हैं जो भी भण्डारे में हैं, कोशिश करो। बाबा जानते हैं कि एक घण्टा भी याद नहीं कर सकते। याद वाले ज्ञानवान हों तो डबल सर्विस में लग जाएं। जब तक कांटे को फूल न बनायें तो कुछ काम के नहीं हैं। राजाई के लायक वह बनते जो नर को नारायण बनाने की सर्विस करते। जितना तकदीर में है वह अपने पुरुषार्थ से तकदीर को पाते रहते हैं। बाप तो सबको कहते हैं जितना करेंगे, जो करेंगे, सो पायेंगे।
अपने मोस्ट बील्वेड बाप को याद करना है। याद की ही मेहनत है। बाबा भी बतलाते हैं मैं बहुत उपाय करता हूँ परन्तु हो नहीं सकता। बहुत मेहनत है। मेहनत करते-करते अन्त में कर्मातीत अवस्था होगी। फिर साक्षात्कार करते रहेंगे। माया नहीं आयेगी। यहाँ बैठे-बैठे सब दिव्य दृष्टि में देखते रहेंगे। अभी तो टेलीवीज़न में देखते हैं। टेलीवीज़न कोई दिव्य दृष्टि नहीं है। विनाश का साक्षात्कार, वैकुण्ठ का साक्षात्कार टेलीवीज़न में नहीं देख सकेंगे। जितना जो ज्ञानी और योगी है उनको तो वैकुण्ठ की राजधानी देखने में आती रहेगी। बिगर टेलीवीजन रखे तुम जर्मनी, लण्डन आदि देखते रहेंगे। टेलीवीज़न से यह दिव्य चक्षु का साक्षात्कार वन्डरफुल है। सच्ची दिल से बाप की सर्विस में लगना है तब मज़ा है। बुद्धि भी कहती है बाबा अन्त में बहुत ख़ातिरी करेंगे। घुमाना, फिराना, बहलाना यह ख़ातिरी है ना। ऐसा बनने के लिए लायक भी बनना चाहिए ना। लायक बनाने वाले को याद करने से ही लायक बनते जाते हैं। जितना याद करेंगे और स्वदर्शन चक्र फिरता रहेगा तो फ़ायदा है। बीज को याद करने से झाड़ भी याद आयेगा। यह बातें सिवाए तुम्हारे कोई भी समझ न सके। इस याद और ज्ञान से हम इतना जमा करते हैं। वहाँ यह पता नहीं होगा कि यह कहाँ से वर्सा मिला है। यह थोड़ेही समझते हैं कि यह हमारे संगम की कमाई है। बादशाही मिल जाती है। तुम सदा सुखी रहते हो। बड़ी भारी मंज़िल है। अभी तुम डिवाइन बनते हो। सारी दुनिया अनडिवाइन है। तुम मनुष्य से देवता डिवाइन बन रहे हो। मनुष्य को देवता बनाने वाला एक ही गॉड फादर है। फादर अक्षर कहना बड़ा सहज है। कोई भी बूढ़ा बुजुर्ग देखेंगे तो उनको बाबा वा पिता जी कहेंगे। बूढ़ा, बूढ़े को देखेंगे तो भाई समझेंगे। छोटे, बड़े को देखेंगे तो बाप समझेंगे। निराकार बाप का तो कोई को पता नहीं है। सिर्फ कह देते हैं गॉड फादर। यह नहीं समझते हैं कि हम आत्मा हैं, हमारा बाप वह है। बाप जरूर वर्सा देता होगा। अभी तुम जानते हो हमारा बाप हमको वर्सा दे रहे हैं। इस वर्से के लिए ही हम बार-बार पुकारते थे, प्रार्थना करते थे। अब वही पढ़ा रहे हैं। अभी हम प्रार्थना अथवा भक्ति करने से छूटे। बड़े मजे की नॉलेज है। कहते हैं आप हमारे बेहद के बाप हो फिर हमको छोड़ लौकिक बाप के पास बुद्धि क्यों जाती है? परन्तु किसकी तकदीर में नहीं है तो बुद्धि में बैठता नहीं। खुद ही कहते हैं हमारी तकदीर में राजयोग की बादशाही नहीं है, तो बाबा क्या करे? क्यों नहीं तकदीर बनाते हो? तकदीर बनाने में तो कोई को मना नहीं है। तकदीर में नहीं है तो बाबा को छोड़ देते। फिर माया बिल्ली बुद्धि में घोटाला डाल देती है। बाप भी क्या करे? माया बिल्ली पर जीत पानी है। काम-काज करते शिवबाबा की याद रहे तो बहुत फ़ायदा हो जाए। एक मिनट भी याद करने से बड़ा फ़ायदा हो सकता है। एक-दो को सावधान करो। फिर कोई माने या न माने। बाबा युक्तियां बहुत बतलाते हैं। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
19 september ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एक-दो को बाप की याद दिलाने का पुरुषार्थ करना है। बाप, टीचर, सतगुरू तीनों को साथ-साथ याद करना है। भोजन बनाते वा खाते समय याद में जरूर रहना है।
2) सच्चे दिल से बाप की सर्विस में लगना है। कांटों को फूल, मनुष्य को देवता बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:-व्यक्त भाव से ऊपर रह फरिश्ता बन उड़ने वाले सर्व बन्धनों से मुक्त भव
देह की धरनी व्यक्त भाव है, जब फरिश्ते बन गये फिर देह की धरनी में कैसे आ सकते। फरिश्ता धरती पर पांव नहीं रखते। फरिश्ता अर्थात् उड़ने वाले। उन्हें नीचे की आकर्षण खींच नहीं सकती। नीचे रहेंगे तो शिकारी शिकार कर देंगे, ऊपर उड़ते रहेंगे तो कोई कुछ नहीं कर सकता। इसलिए कितना भी कोई सुन्दर सोने का पिंजड़ा हो, उसमें भी फंसना नहीं। सदा स्वतंत्र, बंधनमुक्त ही उड़ती कला में जा सकते हैं।स्लोगन:-असम्भव को सम्भव कर सफलता की अनुभूति करने वाले ही सफलता के सितारे हैं।
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