प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट एक जरिये हम आपको 19 जून 2023 को दिये ये सन्देश की जानकारी देने जा रहे हैं.
“मीठे बच्चे – मुख में मुहलरा डाल लो अर्थात् अपने शान्ति स्वधर्म में स्थित हो जाओ तो माया कुछ भी कर नहीं सकती”
प्रश्नः- एक शिवबाबा ही भोलानाथ है, दूसरा कोई भी भोलानाथ नहीं हो सकता – क्यों?
उत्तर:- क्योंकि एक शिवबाबा ही है, जिसे अपने लिए कोई भी तमन्ना (इच्छा) नहीं। वह आकर बच्चों का सेवाधारी बनते हैं। बच्चों को माया की गुलामी से छुड़ाते हैं। हर बच्चे को आप समान मास्टर ज्ञान सागर बनाते हैं। ज्ञान रत्नों से झोली भरते हैं। ऐसा निष्काम सेवाधारी दूसरा कोई भी हो नहीं सकता इसलिए भोलानाथ एक शिवबाबा को ही कहेंगे।
गीत:- भोलानाथ से निराला …
ओम् शान्ति। भक्ति मार्ग में जो होकर गये हैं, उनकी महिमा गाते हैं कि ऐसा था। जो यहाँ हैं, उनको कहेंगे कि ऐसे हैं। शरीर छोड़ गये तो कहेंगे-ऐसा था। जरूर परमात्मा की भी महिमा करते हैं। नहीं तो महिमा क्यों होती। अभी प्रैक्टिकल में हैं। सब भक्तों का भगवान एक है। भक्तों का रक्षक वा भक्तों को सद्गति देने वाला, उसको ही जादूगर कहेंगे। गाया भी जाता है सर्व का सद्गति-दाता। सर्व को सद्गति अभी मिलती है। नम्बरवार जो वैराइटी धर्म वाले मनुष्य हैं, सबको गति-सद्गति देते हैं जरूर। सब मनुष्यमात्र मुक्तिधाम में जाते हैं जरूर। फिर आते हैं सतोप्रधान में। नम्बरवार ही आयेंगे ना। पहले देवतायें, फिर क्षत्रिय, फिर वैश्य… आयेंगे। वर्ण बदलेंगे जरूर। कोई अच्छा काम करके जाते हैं तो उनकी महिमा करेंगे। वह तो अल्पकाल के लिए महिमा चलती है क्योंकि बच्चे जानते हैं – विनाश सामने खड़ा है। सबसे जास्ती महिमा उनकी होती है, जो पहले-पहले आते हैं। भक्ति मार्ग में पहले-पहले शिवबाबा की ही पूजा शुरू होती है। अभी होकर जाते हैं। इनका गायन पूजन फिर भक्ति-मार्ग में होता है। सतयुग में तो भक्ति होती नहीं। उन्हों को यह भी पता नहीं होता कि पहले क्या था अथवा सतयुग के बाद त्रेता होगा। इसमें बुद्धि से काम लेना होता है। भक्ति मार्ग शुरू होता है द्वापर से। जो बुद्धिवान बच्चे हैं वह अच्छी रीति समझ सकते हैं। जिनको ज्ञान की कण्ठी पड़ी हुई है। हैं सब पैरट्स (तोते)। कोई को अच्छी कण्ठी रहती है, कोई तो कुछ भी समझते नहीं हैं। कबूतर हैं। तोते को सिखलाया जाता है, वह रिपीट करते हैं। कबूतर सीख नहीं सकते हैं। अमरनाथ में कबूतर दिखाते हैं। कबूतर सिर्फ पैगाम पहुँचाते हैं। तोते जो सुना वह रिपीट करते हैं। कबूतर रिपीट नहीं कर सकते। यहाँ भी ऐसे हैं जो सुनकर रिपीट नहीं कर सकते, उनको कबूतर कहेंगे। इस समय अनुसार ह्यूमन तोते भी हैं और ह्यूमन कबूतर भी हैं। इस समय के जो भी मनुष्य हैं, जो कुछ बोलते हैं – वह कोई काम का नहीं।
बाप है रूप-बसन्त। बाबा ने समझाया है इनका कोई बड़ा रूप नहीं है। कोई पूछे शिव बाबा का रूप क्या है? तो समझाना चाहिए – शिवबाबा का रूप ऐसे है जैसे आत्मा का है। जैसा बाप वैसे बच्चे। आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं होती है। न बाप कोई बड़ा है। वह है परमपिता परम आत्मा। वही हमको समझाते हैं। उनका नाम ही है भोलानाथ। वह बहुत भोलानाथ है। अपने लिए एक कौड़ी की भी तमन्ना नहीं रखते हैं। बच्चे निश्चय करते हैं परमपिता परमात्मा ने इस शरीर द्वारा समझाया है। आरगन्स बिगर तो आत्मा बोल न सके। बाप खुद बैठ समझाते हैं। कहते भी हैं कि परमात्मा आते हैं, उनका नंदीगण भी है। उन्होंने बैल रख दिया है। जानवर तो नहीं हो सकता। ऐसे थोड़े-ही है कि छलांग लगाकर बैल पर चढ़ते हैं। कहते भी हैं भागीरथ, भाग्यशाली रथ। परन्तु कोई को भी पता नहीं है। वह पतित-पावन कैसे आते हैं, नर्क को स्वर्ग बनाने जरूर आया होगा, तब गाते हैं। भक्ति भी पहले-पहले शिवबाबा की करेंगे। नम्बरवन वास्तव में सच्ची महिमा उनकी ही है। अब तो कुत्ते-बिल्ली आदि सबकी महिमा करते रहते हैं। नंदीगण बनाते हैं। बैल को लेकर घूमते हैं। अब यह शिवबाबा इस नंदीगण में आकर तुमको ज्ञान सुना रहे हैं। ज्ञान दूध दे रहे हैं। उनकी महिमा कितनी है! भोलानाथ भगवान है सबकी झोली भरने वाला। शिव के आगे नहीं कहेंगे कि झोली भर दो क्योंकि समझते हैं वह निराकार है। शंकर के आगे झोली ले जाते हैं भरने लिए। विष्णु और ब्रह्मा के पास नहीं जाते हैं। शंकर के पास जाते हैं क्योंकि शिव और शंकर को मिला दिया है। समझते हैं कि शिव, शंकर का रूप है। पूजा करने वाले कुछ भी आक्यूपेशन को नहीं जानते हैं क्योंकि पहले-पहले जो पुजारी बना है, उनको ही कुछ पता नहीं था। इनको कहेंगे आपही पूज्य देवी-देवता, आपही पुजारी। अभी तुम समझते हो हम ही पूज्य देवी-देवता थे। हम ही पुजारी बनते हैं। शिव तो है मूलवतन वासी। परन्तु मन्दिर तो हैं ना। सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा-विष्ण-शंकर का भी पार्ट है क्योंकि आते तो हैं ना। शिव को भी आना तो पड़ता है। शंकर का यहाँ काम नहीं। त्रिमूर्ति मार्ग भी नाम रखते हैं। त्रिमूर्ति का स्टैम्प भी बनाते हैं। उसमें फिर शेर दिखाते हैं। नीचे लिखा है – ‘सत्यमेव जयते’। ऐसे ठीक है। सिर्फ शिव का नाम-निशान नहीं रखा है। ‘सत्यमेव जयते’ – जानवर के नीचे नहीं लिखा जाता है। सत्य तो एक बाप ही है। जो सच्ची कथा सुनाकर हमको विजयी बनाते हैं। सब बातें अच्छी रीति समझाते हैं। तुम मास्टर नॉलेजफुल बनते जाते हो। जब से नॉलेज सुनना शुरू किया है, इनकी सब मुरलियां रखें तो सारा मकान ही भर जाये। कितने कागज खलास करते होंगे और फिर खलास करते रहेंगे। मुरली बच्चों के पास जरूर जायेगी। बहुत कापियाँ निकलेंगी। झाड़ वृद्धि को पाता रहता है।
बच्चे जानते हैं माया के तूफान तो बहुत आते हैं। मुहलरा मुख में पड़ा हुआ हो तो माया कुछ नहीं कर सकती है। बाबा को याद करना बहुत सहज है। हम आत्मा हैं, आत्मा कहती है – मेरा स्वधर्म है शान्त। हम सब परदेशी हैं। इस माया के देश में आते हैं। एक गीत है ना – ओ दूर देश के रहने वाले….. सब आत्मायें दूर देश की रहने वाली हैं। तुम अब जान गये हो – बरोबर हम परदेश में हैं। बहुत दूरदेश से आते हैं, जिसको निराकारी दुनिया कहा जाता है। दुनिया में तो बहुत होंगे ना। तुम जानते हो हम सब परदेशी हैं। भक्ति मार्ग में भक्त भदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने शान्त स्वधर्म में स्थित रहना है। माया से बचने के लिए मुख में मुहलरा डाल लेना है।
2) पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य रखना है, विनाश के पहले अपना सब कुछ सफल कर लेना है।
वरदान:- अपनी हिम्मत के आधार पर उमंग-उत्साह के पंखों से उड़ने वाले श्रेष्ठ तकदीरवान भव
कभी कुछ भी हो लेकिन अपनी हिम्मत नहीं छोड़ना। दूसरों की कमजोरी देखकर स्वयं दिलशिकस्त नहीं होना। पता नहीं हमारा तो ऐसा नहीं होगा – ऐसा संकल्प कभी नहीं करना। तकदीरवान आत्मायें कभी किसी भी प्रभाव वा आकर्षण में नीचे नहीं आती, वे सदा उमंग-उत्साह में उड़ने के कारण सेफ रहती हैं। जो पीछे की बातें, कमजोरी की बातें सोचते हैं, पीछे देखते हैं, तो पीछे देखना अर्थात् रावण का आना।
स्लोगन:- हरेक की राय को सम्मान देना ही सम्मान लेना है, सम्मान देने वाले अपमान नहीं कर सकते।