17 November ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 17 नवंबर 2023 (17 november ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – बाप के गले का हार बनने के लिए ज्ञान-योग की रेस करो, तुम्हारा फ़र्ज है सारी दुनिया को बाप का परिचय देना”
प्रश्नः-किस मस्ती में सदा रहो तो बीमारी भी ठीक होती जायेगी?उत्तर:-ज्ञान और योग की मस्ती में रहो, इस पुराने शरीर का चिन्तन नहीं करो। जितना शरीर में बुद्धि जायेगी, लोभ रखेंगे उतना और ही बीमारियां आती जायेंगी। इस शरीर को श्रृंगारना, पाउडर, क्रीम आदि लगाना – यह सब फालतू श्रृंगार है, तुम्हें अपने को ज्ञान-योग से सजाना है। यही तुम्हारा सच्चा-सच्चा श्रृंगार है।गीत:-जो पिया के साथ है……
ओम् शान्ति। जो बाप के साथ है…, अब दुनिया में बाप तो बहुत हैं परन्तु उन सभी का बाप रचयिता एक है। वही ज्ञान का सागर है। यह जरूर समझना पड़े कि परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है, ज्ञान से ही सद्गति होती है। सद्गति मनुष्य की तब हो जब सतयुग की स्थापना होती है। बाप को ही सद्गति दाता कहा जाता है। जब संगम का समय हो तब तो ज्ञान का सागर आकर दुर्गति से सद्गति में ले जाए। सबसे प्राचीन भारत है। भारतवासियों के नाम पर ही 84 जन्म गाये हुए हैं। जरूर जो मनुष्य पहले-पहले हुए होंगे वही 84 जन्म लेते होंगे। 17 november ki Murli देवताओं के 84 जन्म कहेंगे तो ब्राह्मणों के भी 84 जन्म ठहरे। मुख्य को ही उठाया जाता है। इन बातों का किसी को भी पता नहीं है। जरूर ब्रह्मा द्वारा ही सृष्टि रचते हैं। पहले-पहले सूक्ष्म लोक रचना है फिर यह स्थूल लोक। यह बच्चे जानते हैं – सूक्ष्म लोक कहाँ है, मूल लोक कहाँ है? मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन – इसको ही त्रिलोक कहा जाता है। जब त्रिलोकीनाथ कहते हैं तो उसका अर्थ भी चाहिए ना। कोई त्रिलोक होगा ना। वास्तव में त्रिलोकीनाथ एक बाप ही कहला सकते हैं और उनके बच्चे कहला सकते हैं। यहाँ तो कई मनुष्यों के नाम हैं त्रिलोकीनाथ, शिव, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि…….. यह सब नाम भारतवासियों ने अपने ऊपर रखा दिये हैं। डबल नाम भी रखाते हैं – राधेकृष्ण, लक्ष्मी-नारायण। अब यह तो किसको पता नहीं, राधे और कृष्ण अलग-अलग थे। 17 november ki Murli वह एक राजाई का प्रिन्स था, वह दूसरी राजाई की प्रिन्सेज थी। यह अभी तुम जानते हो। जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं उन्हों की बुद्धि में अच्छी-अच्छी प्वाइन्ट्स धारण रहती हैं। जैसे डॉक्टर जो अच्छा होशियार होगा उनके पास तो बहुत दवाइयों के नाम रहते हैं। यहाँ भी यह नई-नई प्वाइन्ट्स बहुत निकलती रहती हैं। 17 november ki Murliदिन-प्रतिदिन इन्वेन्शन होती रहती है। जिन्हों की अच्छी प्रैक्टिस होगी वह नई-नई प्वाइन्ट्स धारण करते होंगे। धारण नहीं करते हैं तो महारथियों की लाइन में नहीं लाया जा सकता। सारा मदार बुद्धि पर है और तकदीर की भी बात है। यह भी ड्रामा में है ना। ड्रामा को भी कोई नहीं जानते हैं। यह भी समझते हैं कर्मक्षेत्र पर हम पार्ट बजाते हैं। परन्तु ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त को नहीं जानते तो गोया कुछ भी नहीं जानते। तुमको तो सब कुछ जानना है।
बाप आये हैं बच्चों को मालूम पड़ा तो बच्चों का फ़र्ज है औरों को भी परिचय देना। सारी दुनिया को बतलाना फर्ज़ है। जो फिर ऐसे ना कहें कि हमको मालूम नहीं था। तुम्हारे पास बहुत आयेंगे। लिटरेचर आदि बहुत लेंगे। बच्चों ने शुरू में साक्षात्कार भी बहुत किया है। यह क्राइस्ट, इब्राहम भारत में आते हैं। बरोबर भारत सबको खींचता रहता है। असुल तो भारत ही बेहद के बाप का बर्थ प्लेस है ना। परन्तु वे लोग इतना कुछ जानते नहीं हैं कि यह भारत भगवान् का बर्थप्लेस है। भल कहते भी हैं शिव परमात्मा परन्तु फिर सबको परमात्मा कह देने से बेहद के बाप का महत्व गुम कर दिया है। अभी तुम बच्चे समझाते हो – भारत खण्ड सबसे बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। बाकी और सब जो भी पैगम्बर आदि आते हैं, वह आते ही हैं अपना-अपना धर्म स्थापन करने। उनके पिछाड़ी फिर सब धर्मों वाले आते-जाते हैं। अभी है अन्त। कोशिश करते है वापिस जायें। परन्तु तुमको यहाँ लाया किसने? क्राइस्ट ने आकर क्रिश्चियन धर्म स्थापन किया, उसने तुमको खींच कर लाया। अभी सब तंग हुए हैं वापस जाने के लिए। 17 november ki Murli यह तुमको समझाना है, सब आते हैं अपना-अपना पार्ट बजाने। पार्ट बजाते-बजाते दु:ख में आना ही है। फिर उस दु:ख से छुड़ाकर सुख में ले जाना – बाप का ही काम है। बाप का यह बर्थप्लेस भारत है, इतना महत्व तुम बच्चों में भी सभी नहीं जानते। थोड़े हैं जो समझते हैं और नशा चढ़ा हुआ है। कल्प-कल्प बाप भारत में ही आते हैं। यह सबको बताना है। निमंत्रण देना है। पहले तो यह सर्विस करनी पड़े। लिटरेचर तैयार करना पड़े। निमंत्रण तो सबको देना है ना। रचयिता और रचना की नॉलेज कोई भी नहीं जानते। सर्विसएबुल बनकर अपना नाम बाला करना चाहिए। जो तीखे बच्चे हैं, जिनकी बुद्धि में बहुत प्वाइन्ट्स हैं, उनकी मदद सब मांगते हैं। उनके नाम ही जपते रहते। एक तो शिवबाबा को जपेंगे फिर ब्रह्मा बाबा को फिर नम्बरवार बच्चों को। भक्तिमार्ग में हाथ से माला फेरते हैं, अभी फिर मुख से नाम जपते हैं – फलाने बहुत अच्छे सर्विसएबुल हैं, निरहंकारी हैं, बड़े मीठे हैं, उनको देह-अभिमान नहीं है। कहते हैं ना मिठरा घुर त घुराय (मीठे बनो तो सब मीठा व्यवहार करेंगे)। बाप कहते तुम दु:खी बने हो, अब तुम बच्चे मुझे याद करेंगे तो मैं भी मदद करूँगा। तुम ऩफरत करेंगे तो मैं क्या करूँगा। यह तो गोया अपने ऊपर ऩफरत करते हैं। 17 november ki Murliपद नहीं मिलेगा। धन कितना अथाह मिलता है। किसको लॉटरी मिलती है तो कितना खुश होते हैं। उनमें भी कितने इनाम आते हैं। फर्स्ट प्राइज़, फिर सेकेण्ड प्राइज़, थर्ड प्राइज़ होती है। 17 november ki Murliहूबहू यह भी ईश्वरीय रेस है। ज्ञान और योग बल की रेस है। जो इनमें तीखे जाते हैं वही गले का हार बनेंगे और तख्त पर नज़दीक बैठेंगे। समझाया तो बहुत सहज जाता है। अपने घर को भी सम्भालो क्योंकि तुम कर्मयोगी हो। क्लास में एक घण्टा पढ़ना है फिर घर में जाकर उस पर विचार करना है। स्कूल में भी ऐसे करते हैं ना। पढ़कर फिर घर में जाकर होम वर्क करते हैं। बाप कहते एक घड़ी, आधी घड़ी…….. दिन में 8 घड़ियाँ होती हैं। उनसे भी बाप कहते एक घड़ी, अच्छा आधी घड़ी। 15-20 मिनट भी क्लास अटेन्ड कर, धारणा कर फिर अपने धन्धेधोरी में जाकर लगो। आगे बाबा तुमको बिठाते भी थे कि याद में बैठो, स्वदर्शन चक्र फिराओ। याद का नाम तो था ना। बाप और वर्से को याद करते-करते स्वदर्शन चक्र फिराते-फिराते जब देखो नींद आती है तो सो जाओ। फिर अन्त मति सो गति हो जायेगी। फिर सवेरे उठेंगे तो वही प्वाइन्ट्स याद आती रहेंगी। ऐसे अभ्यास करते-करते तुम नींद को जीतने वाले बन जायेंगे।
जो करेगा वो पायेगा। करने वाले का देखने में आता है। उसकी चलन ही प्रत्यक्ष होती है। ना करने वाले की चलन ही और होती। देखा जाता है यह बच्चे विचार सागर मंथन करते हैं, धारणा करते हैं। कोई लोभ आदि तो नहीं है। यह तो पुराना शरीर है। यह शरीर ठीक भी तब रहेगा जब ज्ञान और योग की धारणा होगी। धारणा नहीं होगी तो शरीर और ही सड़ता जायेगा। नया शरीर फिर भविष्य में मिलना है। आत्मा को प्योर बनाना है। यह तो पुराना शरीर है, इनको कितना भी पाउडर, लिपिस्टिक आदि लगाओ, श्रृंगार करो तो भी वर्थ नाट ए पेनी है।17 november ki Murli यह श्रृंगार सब फालतू है। अब तुम सबकी सगाई शिवबाबा से हुई है। जब शादी होती है तो उस दिन पुराने कपड़े पहनते हैं। अब इस शरीर को श्रृंगारना नहीं है। ज्ञान और योग से अपने को सजायेंगे तो फिर भविष्य में प्रिंस-प्रिंसेज बनेंगे। यह है ज्ञान मान सरोवर। इसमें ज्ञान की डुबकी मारते रहो तो स्वर्ग की परी बनेंगे। प्रजा को तो परी नहीं कहेंगे। कहते भी हैं कृष्ण ने भगाया, फिर महारानी, पटरानी बनाया। ऐसे तो नहीं कहेंगे कि भगाकर फिर प्रजा में चण्डाल आदि बनाया। भगाया ही महाराजा-महारानी बनाने के लिए। तुमको भी यह पुरुषार्थ करना चाहिए। ऐसा नहीं जो पद मिले सो ठीक……। यहाँ मुख्य है पढ़ाई। यह पाठशाला है ना। गीता पाठशाला बहुत खोलते हैं। वह बैठ सिर्फ गीता सुनाते हैं, कण्ठ कराते हैं। कोई एक श्लोक उठाकर फिर आधा पौना घण्टा उस पर बोलते हैं। इससे फ़ायदा तो कुछ भी नहीं। यहाँ तो बाप बैठ पढ़ाते हैं। एम-ऑब्जेक्ट क्लीयर है। और कोई भी वेद-शास्त्र, जप-तप आदि करने में कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। बस, पुरुषार्थ करते रहो। परन्तु मिलेगा क्या? जब बहुत भक्ति करते हैं तब भगवान् मिलते हैं सो भी रात के बाद दिन जरूर आना है। समय पर होगा ना। कल्प की आयु कोई क्या बतलाते, कोई क्या बतलाते हैं। समझाओ तो कहते हैं शास्त्र कैसे झूठे होंगे? भगवान् थोड़ेही झूठ बोल सकता। समझाने की सिर्फ ताकत चाहिए।
तुम बच्चों में योग का बल चाहिए। योगबल से सब काम सहज हो जाते हैं। कोई काम नहीं कर सकते हैं तो गोया ताकत नहीं है, योग नहीं है। कहाँ-कहाँ बाबा भी मदद करते हैं। ड्रामा में जो नूंध है वह रिपीट होता है। यह भी हम समझते हैं और कोई ड्रामा को समझते ही नहीं। सेकेण्ड बाई सेकेण्ड जो पास होता जाता, 17 november ki Murliटिक-टिक होता जाता है, हम श्रीमत पर एक्ट में आते हैं। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो श्रेष्ठ कैसे बनेंगे। सब एक जैसे बन नहीं सकते। यह लोग समझते हैं हम एक हो जाएं। एक का अर्थ नहीं समझते। एक क्या हो जाएं? क्या एक फादर हो जाना चाहिए वा एक ब्रदर हो जाना चाहिए? ब्रदर कहें तो भी ठीक है। श्रीमत पर बरोबर हम एक हो सकते हैं। तुम सब एक मत पर चलते हो। तुम्हारा बाप, टीचर, गुरू एक ही है। जो पूरा श्रीमत पर नहीं चलते तो वह श्रेष्ठ भी नहीं बनेंगे। एकदम नहीं चलेंगे तो ख़त्म हो जायेंगे। रेस में उनको ही निकालते हैं जो लायक होते हैं। जब कोई बड़ी रेस होती है तो घोड़े भी अच्छे फर्स्टक्लास निकालते हैं क्योंकि लॉटरी बड़ी रखते हैं। यह भी अश्व रेस है। हुसैन का घोड़ा कहते हो ना। उन्होंने हुसैन को घोड़े पर लड़ाई में दिखाया है। अभी तुम बच्चे तो डबल अहिंसक हो। काम की हिंसा है नम्बरवन। इस हिंसा को कोई जानते ही नहीं। सन्यासी भी ऐसे नहीं समझते हैं। सिर्फ कहते हैं यह विकार है। बाप कहते हैं – काम महाशत्रु है, यही आदि, मध्य, अन्त तुमको दु:ख देता है। तुमको यह सिद्ध कर बताना है कि हमारा प्रवृत्ति मार्ग का राजयोग है। तुम्हारा हठयोग है। तुम शंकराचार्य से हठयोग सीखते हो, हम शिवाचार्य से राजयोग सीखते हैं। ऐसी-ऐसी बातें समय पर सुनाना चाहिए।
कोई तुमसे पूछे कि देवताओं के 84 जन्म हैं तो भला इन क्रिश्चियन आदि के कितने जन्म है? बोलो, यह तो तुम हिसाब करो ना। पांच हजार वर्ष में 84 जन्म हुए। क्राइस्ट को 2 हजार वर्ष हुए। हिसाब करो – एवरेज कितने जन्म हुए? 30-32 जन्म होंगे। यह तो क्लीयर है। जो बहुत सुख देखते हैं, वह दु:ख भी बहुत देखते हैं। उन्हों को कम सुख, कम दु:ख मिलता है। एवरेज का हिसाब निकालना है। पीछे जो आते हैं वह थोड़े-थोड़े जन्म लेते हैं। बुद्ध का, इब्राहम का भी हिसाब निकाल सकते हैं। करके एक-दो जन्म का फ़र्क पड़ेगा। तो यह सब बातें विचार सागर मंथन करना चाहिए। कोई पूछे तो क्या समझायें? फिर भी बोलो – पहले तो बाप से वर्सा लेना है ना। तुम बाप को तो याद करो। जन्म जितने लेने होंगे उतने लेंगे। बाप से वर्सा तो ले लो। अच्छी रीति समझाना है। मेहनत का काम है। मेहनत से ही सक्सेसफुल होंगे। इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। बाबा से और बाबा के धन से बहुत लव चाहिए। कोई तो धन ही नहीं लेते। अरे, ज्ञान रत्न तो धारण करो। तो कहते हैं हम क्या करें? हम समझते नहीं। नहीं समझते हो तो तुम्हारी भावी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
17 november ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी से भी ऩफरत नहीं करनी है। सबसे मीठा व्यवहार करना है। ज्ञान-योग में रेस करके बाप के गले का हार बन जाना है।
2) नींद को जीतने वाला बन सवेरे-सवेरे उठ बाप को याद करना है। स्वदर्शन चक्र फिराना है। जो सुनते हैं उस पर विचार सागर मंथन करने की आदत डालनी है।
वरदान:-बुद्धि को डायरेक्शन प्रमाण श्रेष्ठ स्थिति में स्थित करने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव
कई बच्चे जब योग में बैठते हैं तो आत्म-अभिमानी होने के बदले सेवा याद आती है, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि लास्ट समय अगर अशरीरी बनने के बजाए सेवा का भी संकल्प चला तो सेकण्ड के पेपर में फेल हो जायेंगे। उस समय सिवाए बाप के, निराकारी, निर्विकारी, निरंहकारी – और कुछ याद न हो। सेवा में फिर भी साकार में आ जायेंगे। इसलिए यह अभ्यास करो कि जिस समय जिस स्थिति में स्थित होना चाहें, स्थित हो जाएं – तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिमान, कन्ट्रोलिंग और रूलिंग पावर वाले।स्लोगन:-किसी भी परिस्थिति को सहज पार करने का साधन है – एक बल, एक भरोसा।
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