15 October ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 15 अक्टूबर 2023 (15 October ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“सदा समर्थ रहने की सहज विधि – शुभचिंतन करो और शुभचिंतक बनो”
आज स्नेह सम्पन्न स्मृति दिवस है। चारों ओर के बच्चों के स्नेह का, दिल का आवाज़ बापदादा के पास पहुँच गया है। यह स्नेह सुख स्वरूप स्नेह है। बापदादा इस दिवस को स्मृति दिवस के साथ-साथ समर्थी दिवस कहते हैं क्योंकि ब्रह्मा बाप ने अपने साकार स्वरूप में सर्व कार्य करने की समर्थियाँ अर्थात् शक्तियाँ साकार रूप में बच्चों को अर्पण किया। इस दिवस को सन शोज़ फादर के वरदान का दिन कहा जाता है। साकार रूप में बच्चों को आगे किया और फरिश्ता रूप में अपने बच्चों की और विश्व की सेवा आरम्भ किया। ये 18 जनवरी का दिवस ब्रह्मा बाप के सम्पूर्ण नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप का रहा। जैसे गीता के 18 अध्याय का सार है – भगवान ने अर्जुन को नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनाया। तो ये 18 का यादगार है कि ब्रह्मा बाप कितना ही बच्चों के प्रति अति स्नेही रहे, जो बच्चे अनुभवी हैं कि सदा सेवा के निमित्त बच्चों को कितना याद करते – अनुभव है ना! मोह नहीं रहा लेकिन दिल का प्यार रहा क्योंकि मोह उसको कहा जाता है जिसमें अपना स्वार्थ हो। तो ब्रह्मा बाप का अपना स्वार्थ नहीं रहा, लेकिन बच्चों में सेवा अर्थ अति स्नेह रहा। फिर भी साथ रहते, बच्चों को सामने देखते भी कोई देह के रूप में याद सताई नहीं। एकदम न्यारा और प्यारा रहा इसलिए कहा जाता है स्मृति स्वरूप नष्टोमोहा। कोई मेरापन नहीं रहा, देहभान से भी नष्टोमोहा। तो ये दिवस ऐसे फॉलो फादर का पाठ पढ़ाने का दिवस रहा।
ये अव्यक्त दिवस दुनिया की अन्ज़ान आत्माओं को परमात्म कार्य की तरफ जगाने का रहा क्योंकि मैजारिटी लोग ब्रह्मा बाप को देखकर यही सोचते या समझते थे कि इन्हों का परम आत्मा ब्रह्मा है। ये ब्रह्माकुमारियाँ, ब्रह्मा को ही भगवान मानती हैं। और ब्रह्मा ने साकार में पार्ट परिवर्तन किया तो क्या सोचने लगे कि अभी तो ब्रह्माकुमारियों का भगवान चला गया और ये ब्रह्माकुमारियों का कार्य आज नहीं तो कल समाप्त हो जायेगा। लेकिन आप जानते हैं कि इन्हों का करावनहार ब्रह्मा द्वारा भी परम आत्मा था, है और अन्त तक रहेगा। तो ये परमात्म कार्य है, व्यक्ति का कार्य नहीं है। ये पहचान ब्रह्मा बाप के साकार पार्ट परिवर्तन होने के बाद समझते हैं कि इन्हों को कोई शक्ति चला रही है, अभी भी बिचारे परम आत्मा को नहीं जानते। लेकिन कोई शक्ति कार्य करा रही है, वो कौन सी शक्ति है, उसको भी देख रहे हैं, सोच रहे हैं और आखिर तो समझना ही है। तो किसका कार्य है? ब्रह्मा बाप का या परम आत्मा का ब्रह्मा द्वारा? किसका कार्य है?
जो बच्चे साकार के बाद में आये हैं वो सोचते हैं कि ब्रह्मा बाबा ने अपना साकार पार्ट इतना जल्दी क्यों पूरा किया? हम तो देखते ना! हम तो मिलते ना! सोचते हो ना? लेकिन कल्प पहले का भी गायन है कि कौरव सेना के निमित्त बने हुए महावीर का कल्याण किस द्वारा हुआ? शक्ति द्वारा हुआ ना! तो शक्तियों का पार्ट ड्रामा में साकार रूप में नूँधा हुआ है। और सब मानते भी हैं कि मातृ शक्ति के बिना इस विश्व का कल्याण होना असम्भव है। तो ब्रह्मा बाप फरिश्ता क्यों बना? साकार पार्ट परिवर्तन क्यों हुआ? अगर ब्रह्मा बाप फरिश्ता रूप नहीं धारण करता तो आप इतनी आत्मायें यहाँ पहुँच नहीं पाती क्योंकि वायुमण्डल की भ्रान्तियाँ इस विश्व क्रान्ति के कार्य को हल्का कर रही थी। तो ब्रह्मा बाप का फरिश्ता बनना आप ज्यादा से ज्यादा बच्चों के भाग्य खुलने का कारण रहा। अभी फरिश्ते रूप में जो सेवा की फास्ट गति है वो देख रहे हो ना! फास्ट गति हुई या कम हुई है? फास्ट हुई है ना! तो फास्ट गति हुई तभी आप यहाँ पहुँचे हो। नहीं तो सोये हुए थे अच्छी तरह से। तो आज का दिवस ऐसा नहीं है जैसे लोग मनाते हैं – चला गया, चला गया। लेकिन उमंग-उत्साह आता है कि फॉलो फादर, हम भी ऐसे स्मृति स्वरूप नष्टोमोहा बनें। ये प्रैक्टिकल पाठ पढ़ने का दिवस है।
आज आप किसी के भी दिल से दु:ख के आंसू निकले? निकले या अन्दर-अन्दर थोड़ा आया! जिसको दु:ख की थोड़ी भी लहर आई वो हाथ उठाओ। दुख हुआ? नहीं हुआ? आज के दिन तो ब्रह्मा बाप को सेवा का साथी बनने का दिन है। आप सब साथी हो कि साक्षी हो? सेवा में साथी और माया के परिस्थितियों से साक्षी। माया को तो वेलकम किया है ना कि घबराते हो-हाय, क्या हो गया! थोड़ा-थोड़ा घबराते हो? माया के हल्के-हल्के रूपों को तो आप भी जान गये हो और माया भी सोचती है कि ये जान गये हैं लेकिन जब कोई भी विकराल रूप की माया आवे तो सदा साक्षी होकर खेल करो। जैसे वो कुश्ती का खेल होता है ना, देखा है कि दिखायें? यहाँ बच्चे करके दिखाते हैं ना! तो समझो कि ये कुश्ती का खेल, खेल रहे हैं, अच्छी तरह से मारो। घबराओ नहीं, खेल है। तो साक्षी होकर खेल करने में मज़ा आता है और माया आ गई, माया आ गई तो घबरा जाते हैं। कुछ भी ताकत अभी माया में नहीं है। सिर्फ बाहर का शेर का रूप है लेकिन बिल्ली भी नहीं है। सिर्फ आप लोगों को घबराने के लिए बड़ा रूप ले आती है फिर सोचते हो पता नहीं अब क्या होगा! तो यह कभी नहीं कहो – क्या करुँ, कैसे होगा, क्या होगा.., लेकिन बापदादा ने पहले भी यह पाठ पढ़ाया है कि जो हो रहा है वो अच्छा और जो होने वाला है वो और अच्छा। ब्राह्मण बनना अर्थात् अच्छा ही अच्छा है। चाहे बातें ऐसी होती हैं जो कभी आपके स्वप्न में भी नहीं होती और कई बातें ऐसे होती हैं जो अज्ञान काल में नहीं होगी लेकिन ज्ञान के बाद हुई हैं, अज्ञानकाल में कभी बिज़नेस नीचे-ऊपर नहीं हुआ होगा और ज्ञान में आने के बाद हो गया, घबरा जाते हैं – हाय, ज्ञान छोड़ दें! लेकिन कोई भी परिस्थिति आती है उस परिस्थिति को अपना थोड़े समय के लिये शिक्षक समझो। शिक्षक क्या करता है? शिक्षा देता है ना! तो परिस्थिति आपको विशेष दो शक्तियों के अनुभवी बनाती है – एक सहनशक्ति, न्यारापन, नष्टोमोहा और दूसरा सामना करने की शक्ति का पाठ पढ़ाती है जिससे आगे के लिए आप सीख लो कि ये परिस्थिति, ये दो पाठ पढ़ाने आई है। और जो कहते रहते हो हम तो ट्रस्टी हैं, मेरा कुछ नहीं है, ठगी से तो नहीं कहते! दिल से कहते हो? ट्रस्टी हो कि थोड़ा गृहस्थी हो? कभी गृहस्थी बन जाते कभी ट्रस्टी बन जाते?
न्यु इयर में बापदादा को दो-चार खिलौने दिये थे, उसमें क्या था कि एक तरफ करो तो भाई है, दूसरे तरफ करो तो फीमेल है, एक ही खिलौना बदल जाता था। एक सेकेण्ड में वो हो जाता, एक सेकेण्ड में वो हो जाता। तो आप ऐसे खिलौने तो नहीं हो, अभी-अभी गृहस्थी, अभी-अभी ट्रस्टी। थोड़ा-थोड़ा, कभी-कभी तो हो जाता है? घबराते हो ना तो माया समझ जाती है कि ये घबरा गया है, मारो अच्छी तरह से, इसलिए घबराओ नहीं। ट्रस्टी हैं अर्थात् पहले से ही सब कुछ छूट गया। ट्रस्टी माना सब बाप के हवाले कर दिया। मेरा क्या होगा! – बस गा गा आता है ना तो गड़बड़ होती है। सब अच्छा है और अच्छा होना ही है, निश्चिन्त है – इसको कहा जाता है समर्थ स्वरूप। तो आज का दिन कौन सा है? समर्थ बनने का, नष्टोमोहा होने का। सिर्फ बाबा बहुत याद आये, गीत गाने का नहीं है। तो ब्रह्मा बाप का फरिश्ता रूप होना ड्रामा में परमात्म कार्य को प्रत्यक्ष करने का निमित्त कारण बना। ब्रह्मा बाबा है या है नहीं? (है) दिखाई तो देता नहीं!
देखो, आप जो पीछे आये हो वो बहुत लक्की हो। क्यों? अभी सेवा के बने बनाये साधनों के समय पर आये। मक्खन निकाला 60 वर्ष वालों ने और मक्खन खाने वाले आप आ गये। आज हिस्ट्री सुनी होगी ना, इतनी मेहनत आप करते तो भाग जाते। और वर्तमान समय सेवा का वायुमण्डल बना हुआ है। अभी चाहे प्रेजीडेन्ट है, चाहे प्राइम मिनिस्टर है, चाहे कोई भी नेता है, मैजॉरिटी ये तो मानते हैं ना कि कार्य अच्छा है, हम कर सकते हैं या नहीं, वो बात अलग है। हरेक का पार्ट अपना है। लेकिन अच्छा कार्य है और ये कार्य और आगे बढ़ना चाहिये ये तो कहते हैं ना! पहले क्या कहते थे कि ब्रह्माकुमारियों की शक्ल भी नहीं देखना। अगर शुरू में निमंत्रण देने जाते भी थे ना तो दरवाजा बन्द कर देते थे। तो आप तो अच्छे टाइम पर आये हो ना! सेवा का चांस बहुत है। जितनी सेवा करने चाहो उतनी कर सकते हो। अभी सभी समझते हैं कि साकार ब्रह्मा के बाद भी ब्रह्माकुमारियों ने सिल्वर जुबली भी मना ली, गोल्डन भी मना ली, अभी डायमण्ड तक पहुँच गये हैं क्योंकि कोई भी बड़ा गुरू चला जाता है तो गड़बड़ हो जाती है। यहाँ गड़बड़ है क्या? यहाँ तो और ही वृद्धि है, बढ़ता जाता है। तो इससे सिद्ध है कि ये कार्य कराने वाला बाप परम आत्मा है, निमित्त माध्यम ब्रह्मा बाप है। अभी भी माध्यम ब्रह्मा बाप है। ये पार्ट अलग चीज़ है लेकिन माध्यम ड्रामा में पहले साकार ब्रह्मा रहा और अभी फरिश्ता रूप में ब्रह्मा है। ब्रह्मा को पिता कहेंगे, रचता तो ब्रह्मा है ना। ये तो पार्ट बीच-बीच में बच्चों की पालना करने के लिए निमित्त है। बाकी रचता ब्रह्मा है और रचना के कार्य में अभी भी अन्त तक ब्रह्मा का ही पार्ट है।
तो आज सारे दिन में किसके पास माया आई? कोई पोत्रा-धोत्रा याद नहीं आया? तो सदा ऐसे समर्थ रहो और इसकी सबसे सहज विधि है दो शब्द याद रखो। दो शब्द याद रह सकते हैं ना? सारी मुरली भूल जाये लेकिन दो शब्द याद रखो और प्रैक्टिकल में करते चलो। वो दो शब्द, जानते भी हो, कोई नई बात नहीं है, एक है शुभ चिन्तन, निगेटिव को भी पॉजिटिव करो, इसको कहते हैं शुभ चिन्तन। निगेटिव पॉजिटिव हो सकता है और बदल सकते हो सिर्फ चेक करो कि कर्म करते भी शुभ चिन्तन चला? और दूसरा सभी के प्रति शुभ चिन्तक तो शुभ चिन्तन और शुभ चिन्तक दोनों का सम्बन्ध है। अगर शुभ चिन्तन नहीं है तो शुभ चिन्तक भी नहीं बन सकते इसलिए इन दो बातों का अटेन्शन रखना। समझा? क्या करेंगे? यहीं नहीं भूल जाना, क्योंकि अभी देखा गया है कि बहुत ऐसी समस्यायें हैं, लोग हैं जो आपके वाणी से नहीं समझते लेकिन शुभ चिन्तक बन शुभ वायब्रेशन दो तो बदल जाते हैं। और एक बात से मुक्त भी होना है। इस ब्राह्मण जीवन में मुक्त होने वाले हो ना, मुक्त होने की 9 बातें बता दी, अगर इन नौ बातों से मुक्त हो गये तो नौ रत्न बन सकते हैं। तो आज बापदादा एक बात की स्मृति दिला रहे हैं – कभी भी कोई भी शारीरिक बीमारी हो, मन का तूफान हो, तन में हलचल हो, प्रवृत्ति में हलचल हो, सेवा में भी हलचल होती है तो किसी भी प्रकार के हलचल में दिलशिकस्त कभी नहीं होना। बड़ी दिल वाले बनो। बाप की दिल कितनी है, छोटी है क्या! बाप बड़ी दिल वाले हैं और बच्चे छोटी दिल कर देते हैं, बीमार हो गये तो रोना शुरू कर देंगे। दर्द हो गया, दर्द हो गया। तो दिलशिकस्त होना दवाई है? बीमारी चली जायेगी कि बढ़ेगी? जब हिसाब-किताब आ गया, दर्द आ गया तो हिसाब-किताब आ गया ना, लेकिन दिलशिकस्त से बीमारी को बढ़ा देते हो इसलिए हिम्मत वाले बनो तो बाप भी मददगार बनेंगे। ऐसे नहीं, रो रहे हैं – हाय क्या करुँ, क्या करुँ और फिर सोचो कि बाबा की तो मदद है ही नहीं। मदद उसको मिलती है जो हिम्मत रखते हैं। पहले बच्चे की हिम्मत फिर बाप की मदद है। तो हिम्मत तो हार ली और सोचने लगते हो कि बाप की मदद तो मिली नहीं, बाबा भी टाइम पर तो करता ही नहीं है! तो आधे अक्षर याद नहीं करो, बाबा मददगार है लेकिन किसका? तो आधा भूल जाते हो और आधा याद करते हो कि बाबा भी पता नहीं महारथियों को ही करता है, हमको तो करता ही नहीं है, हमको तो देता ही नहीं है। पहले आप, महारथी पीछे। लेकिन दिलशिकस्त नहीं बनो और मन में अगर कोई उलझन आ भी जाती है तो ऐसे समय पर निर्णय शक्ति चाहिये और निर्णय शक्ति तब आ सकती है जब आपका मन बाप के तरफ होगा। अगर अपने उलझन में होंगे तो हाँ-ना, हाँ-ना, इसी उलझन में रह जायेंगे इसलिए मन से भी दिलशिकस्त नहीं बनो। और धन भी नीचे-ऊपर होता है, जब करोड़पतियों का ही नीचे-ऊपर होता है तो आप लोग उसके आगे क्या हो। वो तो होना ही है। लेकिन आप लोगों को निश्चय पक्का है कि जो बाप के साथी हैं, सच्चे हैं तो कैसी भी हालत में बापदादा दाल-रोटी जरूर खिलायेगा। दो-दो सब्जी नहीं खिलायेगा, दाल-रोटी खिलायेगा। लेकिन ऐसे नहीं करना कि काम से थक करके बैठ जाओ और कहो बाबा दाल-रोटी खिलायेगा। ऐसे अलबेले या आलस्य वाले को नहीं मिलेगा। बाकी सच्ची दिल पर साहेब राजी है। और परिवार में भी खिटखिट तो होनी है। जब आप लोग कहते हो कि अति के बाद अन्त होना है, कहते हो! अति में जा रहा है और जाना है तो परिवार में खिटखिट न हो, ये नहीं होना है, होना है! लेकिन आप ट्रस्टी बन, साक्षी बन परिस्थिति को बाप से शक्ति ले हल करो। गृहस्थी बनकर सोचेंगे तो और गड़बड़ होगी। पहले बिल्कुल न्यारे ट्रस्टी बन जाओ। मेरा नहीं। ये मेरापन – मेरा नाम खराब होगा, मेरी ग्लानि होगी, मेरा बच्चा और मुझे…, मेरी सास मेरे को ऐसे करती है… ये मेरापन आता है ना तो सब बातें आती हैं। मेरा जहाँ भी आया वहाँ बुद्धि का फेरा हो जाता है, बदल जाते हैं। अगर बुद्धि कहाँ भी उलझन में बदलती है तो समझ लो ये मेरापन है, उसको चेक करो और जितना सुलझाने की कोशिश करेंगे उतना उलझेगा इसलिए सभी बातों में क्या नहीं बनना है? दिलशिकस्त नहीं बनना है। क्या नहीं बनेंगे? (दिलशिकस्त) सिर्फ कहना नहीं, करना है। भगवान के बच्चे हैं ये तो पक्का वायदा है ना, इसको तो माया भी नहीं हिला सकती। जब ये पक्का वायदा है, निश्चय है तो भगवान के बच्चे भी दिलशिकस्त हो जायें, तो बड़ी दिल रखने वाले कौन होंगे? और कोई होंगे? आप ही हो ना! तो क्या करेंगे? अभी समर्थ बनो और सन शोज़ फादर का पाठ पक्का करो। कच्चा नहीं करो, पक्का करो। सभी हिम्मत वाले हो ना? हिम्मत है? अच्छा।
चारों ओर के सर्व समर्थ आत्माओं को, सर्व माया जीत, प्रकृति जीत आत्माओं को, सदा सन शोज़ फादर करने वाले बच्चों को, सदा दिल खुश रहने वाले बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
आज विदेश वाले बच्चे भी बहुत याद आ रहे हैं। चारों ओर मधुबन से मन की लगन लगी हुई है। बापदादा भी सभी बच्चों को सामने देख विशेष याद और सेवा का याद-प्यार दे रहे हैं।
बापदादा ने नौ रत्नों में आने के लिए जिन 9 बातों से मुक्त बनने का इशारा दिया है वह निम्नलिखित हैं: – 1. क्रोध मुक्त 2. व्यर्थ संकल्प मुक्त। 3. लगाव मुक्त। 4. परमत, परचिंतन और परदर्शन मुक्त। 5. अभिमान व अपमान मुक्त। 6. झमेला मुक्त। 7. व्यर्थ बोल, डिस्टर्ब करने वाले बोल से मुक्त। 8. अप्रसन्नता मुक्त। 9. दिलशिकस्त मुक्त।
वरदान:-डबल लाइट स्थिति द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले सर्व बन्धनमुक्त भव
चलते फिरते यही स्मृति रहे कि मैं डबल लाइट स्थिति में रहने वाला फरिश्ता हूँ। फरिश्ता अर्थात् उड़ने वाला, लाइट चीज़ सदा ऊपर जाती है, नीचे नहीं आती। आधाकल्प तो नीचे रहे अब उड़ने का समय है इसलिए चेक करो कि कोई भी बोझ वा बंधन तो नहीं है? अपने कमजोर संस्कार का, व्यर्थ संकल्प का, देहभान का बन्धन वा बोझ बहुत समय चलता रहा तो अन्त में नीचे ले आयेगा, इसलिए बन्धनमुक्त बन डबल लाइट स्थिति में रहने का अभ्यास करो।स्लोगन:-मन्सा सेवा वही कर सकते जिनके पास शुद्ध संकल्पों की शक्ति जमा है।
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