प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट एक जरिये हम आपको 13 जून 2023 को दिये ये सन्देश की जानकारी देने जा रहे हैं..
“मीठे बच्चे – गृहस्थ व्यवहार सम्भालते हुए पढ़ाई का कोर्स उठाओ, यह देवी-देवता बनने का कॉलेज है, तुम्हें भगवान-भगवती (देवी-देवता) बनना है”
प्रश्नः- शिवबाबा की बलिहारी किस कर्त्तव्य के कारण गाई हुई है?
उत्तर:- शिवबाबा सभी बच्चों को वर्थ नाट पेनी से वर्थ पाउण्ड बनाते हैं। तमोप्रधान से सतोप्रधान, पतित से पावन बनाते हैं इसलिए उनकी बलिहारी गाई जाती है। अगर शिवबाबा न आते तो हम बच्चे किसी काम के नहीं थे। गरीब-निवाज़ बाप आये हैं गरीब कन्याओं-माताओं को दासीपने से छुड़ाने, इसलिए गरीब-निवाज़ कहकर बाप की बलिहारी गाते हैं।
गीत:- माता ओ माता…ओम् शान्ति। बच्चों ने अपने माँ की महिमा सुनी। यूँ तो हर एक को अपनी माँ है। यह फिर है जगदम्बा। तुम तो जानते हो यह किसकी महिमा है। जगत अम्बा का कितना बड़ा मेला लगता है। जगत अम्बा कौन है – यह कोई नहीं जानते। परमपिता अथवा ब्रह्मा-विष्णु-शंकर अथवा लक्ष्मी-नारायण आदि जो सबसे ऊंच हैं उन्हों की जीवन कहानी कोई मनुष्य मात्र नहीं जानते। अभी तुम जानते हो जगत अम्बा है ब्रह्माकुमारी सरस्वती। जगत-अम्बा को जितनी भुजायें आदि दिखाई हैं वह तो हैं नहीं। देवियों को भुजायें देते हैं। वास्तव में भुजा तो मनुष्य को दो होती हैं। परमपिता परमात्मा निराकार है। बाकी मनुष्य की हैं दो भुजायें। स्वर्ग के लक्ष्मी-नारायण की भी दो भुजायें हैं। सूक्ष्मवतन में तो ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं। प्रवृत्ति मार्ग होने कारण चतुर्भुज दिखाया गया है। सूक्ष्मवतन में भी मम्मा-बाबा हैं। विष्णु का भी साक्षात्कार होता है। दो भुजायें लक्ष्मी की, दो भुजायें नारायण की। बाकी मनुष्य को कोई चार भुजायें होती नहीं। यह तो सिर्फ समझाने के लिए विष्णु को 4 भुजायें दिखाई हैं। देवियों को इतनी भुजायें देते हैं। वह हैं नहीं। सरस्वती, काली आदि-आदि अनेक चित्र बनाये हैं। वास्तव में है कुछ नहीं। यह सब भक्ति मार्ग के अलंकार है। अभी तुम भक्त नहीं हो। तुम हो गॉड फादरली स्टूडेण्ट। पढ़ाई पढ़ रहे हो। भगवान आकर भक्तों को भक्ति का फल देते हैं। भक्त तो हैं अन्धश्रद्धा वाले। सबके चित्र रखते रहेंगे। श्रीकृष्ण का भी रखेंगे, लक्ष्मी-नारायण का भी रखेंगे, राम-सीता का भी रखेंगे। गुरू नानक आदि का भी रखेंगे। चों चों का मुरब्बा होता है ना। आक्यूपेशन कोई का भी जानते नहीं। मालूम होना चाहिए कि इन्हों को हम क्यों पूजते हैं? भला उनमें ऊंच ते ऊंच कौन हैं? भक्तों में मुख्य शिरोमणि भक्त नारद दिखाया है और फीमेल्स में शिरोमणि भक्त रखा है मीरा को। कहानी लिखी है – जब लक्ष्मी का स्वयंवर होता था….। अब स्वयंवर तो सतयुग में होता है। यह है नर्क। यह सब दृष्टान्त बनाये जाते हैं। वास्तव में कोई एक की बात नहीं है। इस समय के सब मेल-फीमेल्स द्रोपदियाँ और दुर्योधन हैं। द्रोपदियाँ पुकारती हैं – हे भगवान, नंगन होने से बचाओ। चित्रों में दिखाते हैं भगवान साड़ियां देते जाते हैं। कहते हैं 21 जन्म नंगन होने से बचाया। अभी बाप आया है – सब द्रोपदियों की रक्षा करने। श्रीमत पर चलेंगे तो 21 जन्म कभी नंगन नहीं होंगे। वह है सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। पूछते हैं – बाबा, हम लक्ष्मी को वर सकेंगे? बाप कहते हैं दिल दर्पण में देखो कि हम लायक हैं? इस समय हर एक मनुष्य-मात्र में 5 विकार प्रवेश हैं। भारत में सम्पूर्ण निर्विकारी देवी-देवतायें थे। अभी तो सम्पूर्ण विकारी हैं। सतयुग में एक बच्चा होता है, सो भी योगबल से। पहले से साक्षात्कार होता है। जैसे तुम साक्षात्कार करते हो – हम प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे। प्रिन्स-प्रिन्सेज का आपस में रास का भी साक्षात्कार होता है कि हम भविष्य में ऐसे श्रीकृष्ण के साथ रास करेंगे। बाबा ने समझाया है – इतनी भुजाओं वाली देवियाँ होती नहीं। लक्ष्मी-नारायण को दो भुजायें हैं। उनको विष्णु का अवतार कहा जाता है। विष्णु डिनायस्टी…. उनको महालक्ष्मी वा नारायण कहते हैं। नर-नारायण के मन्दिर में चतुर्भुज रूप दिखाते हैं। महालक्ष्मी का भी दिखाते हैं। लक्ष्मी को जगत अम्बा नहीं कहेंगे। लक्ष्मी कोई ब्रह्माकुमारी नहीं है। ब्रह्माकुमारी यहाँ है। सरस्वती भी गाई हुई है – ब्रह्मा की मुख वंशावली सरस्वती। ब्रह्माकुमारी सरस्वती को जगत-अम्बा कहा जाता है। बरोबर तुम जानते हो प्रजापिता के मुख वंशावली हम हैं। एक हैं कलियुगी ब्राह्मण, दूसरे तुम हो संगमयुगी ब्राह्मण। वह ब्राह्मण हैं जिस्मानी यात्रा कराने वाले कुख वंशावली, तुम बने हो मुख वंशावली। तुम रूहानी यात्रा कराने वाले हो। तुम सब ब्रह्मा मुख वंशावली जाकर मनुष्य से देवता बनते हो। इनमें मुख्य है मम्मा, जिसकी इतनी महिमा है। वह है स्वर्ग की सब मनोकामनायें पूर्ण करने वाली। तुम भी उनकी सन्तान ठहरे। जगत अम्बा राजयोग सिखाती है, जिससे 21 जन्म स्वर्ग के मालिक बनते हो इसलिए उनका गायन है शिव शक्ति सेना। लक्ष्मी है महारानी, उनको एक बच्चा होता है। प्रजापिता ब्रह्मा और जगत अम्बा को कितने ढेर के ढेर बच्चे हैं। तो जगत अम्बा को दो भुजायें हैं। वैसे ही लक्ष्मी-नारायण को भी दो भुजा हैं। चित्रों में बहुत हंगामा कर दिया है। नारायण को काला, लक्ष्मी को गोरा बना देते हैं। ऐसे तो हो नहीं सकता – नारायण सांवरा हो और लक्ष्मी गोरी हो वा श्रीकृष्ण सांवरा हो और राधे गोरी हो। बाप बैठ समझाते हैं – इस समय सब सांवरे हैं। तुम स्वर्ग में पवित्र थे तो गोरे थे। फिर काम चिता पर बैठने से काले हो गये हो। श्रीकृष्ण को श्याम-सुन्दर कहते हैं। सुन्दर हैं सतयुग-त्रेता में फिर 84 जन्म भोगते-भोगते अन्त में आकर श्याम बने हैं। श्रीकृष्ण की आत्मा पुनर्जन्म लेती रहती है। फिर वह नाम थोड़े-ही रहता है। इस समय वह आत्मा तमोप्रधान अवस्था में है। सतयुग आदि में हैं देवी-देवतायें। वही 84 जन्म लेंगे। यह है 84 जन्मों का चक्र।
तुम बच्चों ने मम्मा की महिमा सुनी। मम्मा की महिमा अलग, लक्ष्मी की महिमा अलग है। चित्र कैसे-कैसे बनाये हैं। काली की ऐसी जीभ दिखाते हैं। ऐसा तो कोई मनुष्य होता नहीं। सूक्ष्मवतन में भी ऐसी काली तो है नहीं। ब्रह्म
ा, विष्णु, शंकर हैं। विष्णु तो है ही युगल। ब्रह्मा-सरस्वती को भी तुम सूक्ष्मवतन में दिखाते हो। फिर काली भयंकर कहाँ से आई। काली का रूप बड़ा भयानक दिखाते हैं। ऐसी कोई शक्ति थोड़ेही होगी – वायोलेन्स (हिंसा) करने वाली। हर एक बात के लिए बाप समझाते रहते हैं। किस्म-किस्म के चित्र हैं। परन्तु मनुष्य तो मनुष्य ही होते हैं। सूक्ष्मवतन में हैं ब्रह्मा-विष्ण-शंकर…. उसके ऊपर मूलवतन, जहाँ शिव और सालिग्राम रहते हैं। बस और कुछ भी नहीं है। बाकी सब इतने चित्र आदि भक्ति मार्ग की सामग्री है। सतयुग-त्रेता में यह होती नहीं। ज्ञान और भक्ति – ज्ञान अर्थात् दिन, भक्ति अर्थात् रात। ब्रह्मा का दिन ज्ञान और ब्रह्मा की रात भक्ति। सतयुग-त्रेता है दिन, द्वापर कलियुग है रात। अब है घोर अंधियारी रात। फिर दिन होता है। बाप कहते हैं मेरा जन्म संगम पर होता है। कलियुग का अन्त घोर अंधियारा, सतयुग का आदि घोर सोझरा। संगम पर ही आकर मैं तुमको समझाता हूँ। अब इतने जो भक्ति-मार्ग में चित्र हैं – मुख्य है पतित-पावन शिवबाबा। इस समय सभी मनुष्य-मात्र पतित हैं। यह है पतित दुनिया। अगर शिवबाबा नहीं आता तो सब वर्थ नाट ए पेनी होते। बलिहारी शिवबाबा की जो पतितों को पावन बनाते हैं। इस समय सब तमोप्रधान पतित हैं, सब दु:खी हैं। पहले पावन आत्मायें आती हैं तो सतोप्रधान हैं, फिर सतो, रजो, तमो में आना पड़ता है। हर चीज़ का ऐसे होता है। छोटा बच्चा भी सतोप्रधान होता है इसलिए कहते हैं ब्रह्म ज्ञानी और बालक एक समान होते हैं। फिर सतो, रजो, तमो में आना ही है। फिर चेन्ज करना ही है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना ही है। दुनिया भी सतोप्रधान थी, अब तमोप्रधान है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बाप बना सकते हैं। बाप को न जानने कारण सबको याद करते रहते हैं। कितने चित्र बनाते रहते हैं। परन्तु उनमें भी हर एक का कोई मुख्य देवता जरूर होता है। जैसे बाबा के पास भी बहुत चित्र रहते थे। उनमें भी मुख्य श्री नारायण का था। सिक्ख धर्म का होगा तो भल शिव का, लक्ष्मी-नारायण आदि का रखा होगा तो भी गुरुनानक को अधिक याद करेगा। ऊंच ते ऊंच भगवान तो एक है। उनकी महिमा भी लिखी हुई है। सतनाम, कर्ता पुरुष, अकालमूर्त… सतयुग आदि सत है, है भी सत अर्थात् यह जो चक्र है सत है। फिर यह चक्र जरूर लगायेंगे। यह सब बाप बैठ समझाते हैं। भक्तिमार्ग में गोरे श्रीकृष्ण का मन्दिर अलग, सांवरे श्रीकृष्ण का मन्दिर अलग दिखाते हैं। कहाँ फिर शिव का भी रखते हैं। लक्ष्मी-नारायण का भी रखते हैं। आक्यूपेशन को तो जानते नहीं। बाप आकर तुम बच्चों को सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाकर, स्वदर्शन चक्रधारी बनाए चक्रवर्ती राजा बनाते हैं। भल तुम सब हो गृहस्थी, फिर भी पढ़ाई का कोर्स उठाते हो। बुढ़ियों से पूछो – तुम कहाँ जाती हो? तो कहेंगे – हम भगवान के कॉलेज में जाती हैं। भगवानुवाच – हम तुमको सो देवी-देवता बनाता हूँ। भगवान पढ़ाते हैं, भगवान-भगवती बनाते हैं। परन्तु ऐसे नहीं कि सतयुग में कोई भगवान-भगवती का राज्य कहेंगे। नहीं, वह है आदि सनातन देवी-देवताओं का राज्य। विलायत वाले कहते हैं लार्ड कृष्णा। अमेरिकन लोग जब देखते हैं कि ये देवताओं के चित्र हैं तो एक का दाम लाख दो लाख दे देते हैं। प्राचीन चीज़ देखते हैं तो लाख रूपया देने को तैयार हो जाते हैं। तो भी देते नहीं हैं। पुरानी चीज़ है ना। पुरानी तो 5 हजार वर्ष की बात है। सबसे पुराने तो देवी-देवताओं के चित्र हुए। भक्तिमार्ग में कितने चित्र बनाते हैं। भक्तिमार्ग जब शुरू होता है, तब सोमनाथ का मन्दिर बनाते हैं। बाप समझाते हैं भारतवासी कितने साहूकार थे, अब तो भारत कितना नर्क बन गया है! बिल्कुल भिखारी कंगाल बन गये हैं। ऐसे भारत की फिर से हिस्ट्री रिपीट होनी चाहिए। तुम बच्चों को सारे बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी का पता है। सतयुग में देवताओं को पता नहीं होगा। यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। वहाँ कोई पतित होता नहीं, जो ज्ञान दिया जाये। यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। फिर गीता कहाँ से आई। वह सब भक्तिमार्ग के शास्त्र बने हुए हैं। नई दुनिया के लिए नई नॉलेज चाहिए। इस्लामी नॉलेज थी क्या? इब्राहम आया तो आकर इस्लाम धर्म स्थापन किया, नॉलेज दी। नई बात हुई ना। यहाँ यह गीता, रामायण, भागवत आदि में बहुत झूठे कलंक लगाये हैं। बाप कहते हैं मेरी ग्लानि नम्बरवन करते हैं – सर्वव्यापी कह देते हैं। जब ऐसी ग्लानि होती है, भारतवासी महान दु:खी बन जाते हैं, तब मैं आता हूँ। इस समय सब पतित हैं। सबको सारी विश्व को पावन बनाने मैं ही आता हूँ इसलिए पतित दुनिया का विनाश कराए पावन दुनिया की स्थापना कराता हूँ। इस पुरानी दुनिया को भूल जाओ। मन्मनाभव। बाप और वर्से को याद करो। तुम यह राजयोग सीखकर सो देवी-देवता बनते हो। यह है राजयोग सीखने की गॉड फादरली युनिवर्सिटी। इतनी बड़ी कॉलेज है, हॉस्पिटल है परन्तु तुमको तीन पैर पृथ्वी के नहीं मिलते! बाप कहते हैं मैं तुमको सारे विश्व का मालिक बना रहा हूँ। यह है हॉस्पिटल-कम-युनिवर्सिटी। हॉस्पिटल से हेल्थ और युनिवर्सिटी से वेल्थ मिलती है। बाप कहते हैं मैं पढ़ाने आया हूँ, परन्तु तीन पैर पृथ्वी के नहीं मिलते! मैं हूँ गरीब निवाज। कन्यायें मातायें बिल्कुल गरीब हैं, उनके हाथ में कुछ भी नहीं रहता है। बाप का वर्सा बच्चों को मिलता है। वास्तव में स्त्री को हाफ पार्टनर कहा जाता है। भारत में हिन्दू नारी को कहते हैं – तुम्हारा पति, गुरू-ईश्वर सब कुछ है। परन्तु हाफ पार्टनर को ऐसे थोड़ेही कहते हैं मैं गुरू ईश्वर और तुम दासी हो। बाप आकर दासीपने से छुड़ाते हैं। पहले लक्ष्मी फिर नारायण। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रूहानी यात्रा करनी और करानी है। सृष्टि चक्र का ज्ञान बुद्धि में रख स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।
2) देवी-देवता बनने के लिए इस पुरानी दुनिया को भूल बाप और वर्से को याद करना है। नई नॉलेज पढ़नी और पढ़ानी है
वरदान:- मैं-पन के दरवाजे को बन्द कर माया को विदाई देने वाले निमित्त और निर्मानभव
सेवाधारी अगर सेवा करते कभी यह संकल्प भी उठाते हैं कि मैंने किया, तो यह मैं-पन आना माना सारे किये हुए कार्य पर पानी डाल देना। सेवाधारी अर्थात् करावनहार बाप कभी नहीं भूले, वह करा रहे हैं, हम निमित्त बन कर रहे हैं। जहाँ निमित्त भाव है वहाँ निर्मान भाव स्वत: होगा। निमित्त हूँ, निर्मान हूँ तो माया आ नहीं सकती। मैं-पन के दरवाजे को बन्द कर दो तो माया विदाई ले लेगी।
स्लोगन:- जो होलीहंस हैं उनकी विशेषता स्वच्छता है, स्वच्छ बन सबको स्वच्छ बनाना ही उनकी सेवा है।