"मेरे पिता ने मेरी जान लेने की कोशिश की", जातिवादी हिंसा की दिल दहलाने वाली कहानी…

"मेरे पिता ने मेरी जान लेने की कोशिश की", जातिवादी हिंसा की दिल दहलाने वाली कहानी…

बीसवीं सदी में आकर भी आज भले ही देश ने आर्थिक और तकनीकी रूप से मजबूती बना ली है, एक राष्ट्र के तौर पर भले ही एक अलग पहचान बनी ली हो लेकिन जब बात देश में जाति व्यवस्था पर आती है तो उसकी कुरीतियों पर अंकुश के नाम पर मात्र संविधान का एक टुकड़ा बना हुआ है इससे ज्यादा कुछ नहीं. क्योंकि नियम कानून तो देश भर में हर एक हिंसा के खिलाफ बने हुए हैं लेकिन उसपर अमल कैसे करा जाए ये सवाल बहुत गंभीर है. ऐसी ही एक  एक सामाजिक कुरीति का नाम है ‘जातिगत हिंसा’. नाम बहुत पुराना है लेकिन इसका असर हमेशा ताजा होता रहता है . जो अब भी कहीं होती है तो उसे सामुदायिक हिंसा का रूप दे दिया जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि संविधान की नज़र में जाती आधारित भेदभाव देश से खत्म हो चुका है. ठीक ऐसी ही एक हिंसा का शिकार हुई हैं तमिलनाडु में रहने वाली कीर्ति. जिनकी गलती बस इतनी थी की वो एक पिछड़े समुदाय के लड़के से प्यार कर बैठी थी और साथ में शादी करना चाहती थी. इस लेख में हम आपको बताएंगे कीर्ति के साथ आखिर उसके घर वालों ने क्या-क्या किया?

अभी भी कांप उठती है रूह

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, वान्नियार समुदाय से संबंध रखने वाली कीर्ति (बदला हुआ नाम) आज भी 2018 के उस दिन को याद करके कांप उठती हैं, जिस दिन उन्होंने अपने घरवालों को ये बताने की कोशिश की थी कि वो एक दलित लड़के सौंदर (बदला हुआ नाम) से शादी करना चाहती हैं.

कीर्ति की बात सुनकर उनके मां-बाप ग़ुस्से से भड़क उठे थे ऐसा इसलिए क्योंकि तमिलनाडु में वान्नियार समुदाय को सबसे पिछड़ा वर्ग का दर्जा हासिल है. कीर्ति कीइतनी बात से इनके माँ बाप को इससे कीर्ति के मां-बाप के जातिगत ग़ुरूर को झटका लगा और फिर, साल 2018 के अगले छह महीनों तक कीर्ति को भयंकर जज़्बाती और शारीरिक ज़ुल्म झेलना पड़ा था.

अपने ही मां-बाप के ऐसे बर्ताव को झेलना कीर्ति के लिए बहुत बड़ा सदमा था. लेकिन हालात तब और भयानक हो गए जब एक दिन सौंदर कीर्ति के परिवार के पास शादी करने की इजाज़त लेने आए.

ALSO READ: कंधार हाइजैक : जब 190 यात्रियों के बदले आतंकियों ने भारत से की थी 35 उग्रवादियों की रिहा करने की डिमांड.

“रेलवे लाइन पर खून से लथपथ मरना चाहते हो”

बीबीसी को अपनी आपबीती बताते हुए सौंदर्य कहते हैं कि, “उसके पिता ने मुझसे पूछा कि क्या मैं न्यूज़ चैनल देखता हूं और पूछा कि क्या मैं भी खुली सड़क या रेलवे लाइन में ख़ून से लथपथ मौत मरना चाहता हूं.”

कीर्ति बताती हैं कि सौंदर के लौट जाने के बाद उनके पिता ने उनकी मां से वो कुर्सियां घर से बाहर फेंक देने को कहा जिस पर सौंदर और उसके पिता बैठे थे. वो लोग जो फल, फूल और मिठाइयां लेकर आए थे, उन्हें भी कचरे के डब्बे में डाल दिया गया.

इसके बाद वो कीर्ति पर सुसाइड नोट लिखने का दबाव डालने लगे.

सौंदर उस वक़्त को याद करके बताते हैं, ”कीर्ति के मां-बाप ने सोचा था कि वो इन चिट्ठियों को बाद में इस्तेमाल कर लेंगे. कीर्ति को महसूस हुआ कि हम बचेंगे नहीं और अपनी जान बचाने का एक ही रास्ता था कि दोनों शादी कर लें.”

इन सारी वारदातों को देखकर कीर्ति और सौन्दर्य दोनों को अपनी मौत का डर सताने लगा था.

इज्ज़त बचाने के नाम पर कत्ल

आपको याद दिलाते हैं की साल 2006 में लता सिंह बनाम उत्तरप्रदेश सरकार वाले मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “ऑनर किलिंग में सम्मान वाली कोई बात नहीं है”.

अदालत ने ऑनर किलिंग को ‘सामंती सोच वाले क्रूर लोगों द्वारा हत्या की शर्मनाक करतूत’ क़रार देते हुए कहा था कि ऐसा करने वालों को सख़्त सज़ा दी जानी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि अंतरजातीय पति-पत्नी को धमकी देने वाले किसी भी शख़्स के ख़िलाफ़ सख़्त से सख़्त कार्रवाई की जाए.

लेकिन सबसे चौकाने वाली बात ये है कि उस ऐतिहासिक फैसले के 17 साल बाद आज भी अंतरजातीय शादियां करने वालों को धमकियां देने, डराने और उनके साथ निर्मम हिंसा की घटनाएं पूरे देश में आम हैं.

ख़ुद को बचाने के लिए कीर्ति और सौंदर ने रजिस्ट्रार के दफ़्तर जाकर अपनी शादी का पंजीकरण कराने का फ़ैसला किया. इसके बाद दोनों अपने दफ़्तर लौट आए और पहले की तरह नौकरी करने लगे. उन्होंने अपनी शादी के बारे में किसी को भी नहीं बताया.

ALSO READ: अंबेडकर ने भारत की आजादी का श्रेय सिर्फ सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज को क्यों दिया?

लेकिन, आज के ज़माने में कोई चीज़ छुपाये कहां छुपती है और हुआ भी वही, इनके शादी की ख़बर बाहर आ गई और उन्हें इसके गंभीर नतीजे भुगतने पड़े.

बीबीसी को अपनी दुर्दशा बताते हुए कीर्ति कहती हैं कि,  “मेरे पिता मुझे लोहे के रॉड से पीटते थे और कई कई घंटे मेरा ख़ून बहता रहता था.”

कीर्ति से कहा गया कि वो एक चिट्ठी लिखें जिसमें वो ये लिखें कि अगर उनकी शादी नाकाम होती है, तो वो कभी भी अपने मां-बाप की संपत्ति पर दावा नहीं करेंगी और न ही उनसे मिलने की कोशिश करेंगी.

कीर्ति को केवल 100 रुपए के एक नोट के साथ घर छोड़ने को मजबूर किया गया. सौन्दर्य और कीर्ति, दोनों सरकारी नौकरी करते थे. पैसों के मामले में अपने पैर पर खड़े होने से उन्हें ये क़दम उठाने में काफ़ी मदद मिली.

दोनों बच निकले

उनका हाल कण्णगी, मुरुगेसन, विमलादेवी, शंकर और इलावारासन जैसा नहीं हुआ… तमिलनाडु में जाति की इज़्ज़त और सम्मान के नाम पर मार दिए गए लोगों की लिस्ट बहुत लंबी है, 

अंतरजातीय शादियां करने वाले उन जोड़ों को हमले और हिंसक बर्ताव का सामना ज़्यादा करना पड़ता है, जब पति या पत्नी में से कोई एक दलित समुदाय से ताल्लुक़ रखता है.

आत्म-सम्मान आन्दोलन के गढ़ में जातिवादी हिंसा

2015 में प्रकाशित किए गए एक अध्ययन के मुताबिक़, ये देखा गया कि तमिलनाडु में केवल 3 फीसदी लोग ही ऐसे थे जिन्होंने अपनी जाति से बाहर शादी की थी.

जबकि, वरिष्ठ विद्वान और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ पॉपुलेशन साइंस के पूर्व निदेशक, के. श्रीनिवासन द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक़, राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्जातीय विवाह का अनुपात काफ़ी अधिक यानी 10 प्रतिशत है.

रोचक बात ये है कि ये जातिवादी हिंसा वहां हो रही थी जो शुरू से ही पेरियार के जाती विरोधी आन्दोलन का इतिहास रहा है. इस समतावादी आंदोलन के दौरान सबको समान अधिकार देने की मांग करते हुए समाज के जातिवादी ढांचे को ख़त्म करने का प्रयास किया गया था.

ALSO READ: भारत में किस हाल में जी रहा है आज का दलित समाज?

आत्म-सम्मान आंदोलन के दौरान जातिवादी भेदभाव ख़त्म करने के लिए अंतरजातीय विवाह करने को बढ़ावा दिया गया था. 1968 के हिंदू विवाह अधिनियम (तमिलनाडु संशोधन) के तहत आत्म-सम्मान या अंतरजातीय विवाहों को क़ानूनी मान्यता दी गई थी.

आज तमिलनाडु में बहुत से लोग, सदियों पुराने ब्राह्मणवादी रीति रिवाजों को ख़ारिज करके आत्म-सम्मान विवाह करते हैं.

लेकिन, इन तमाम कोशिशों के बावजूद अंतरजातीय जोड़ों को हिंसा का शिकार होने से नहीं बचाया जा सका है.

अंतरजातीय शादियों को दर्ज कराने में मदद करने वाले वकील रमेश के मुताबिक़, समाज में ऐसे जोड़ों के असुरक्षित रहने के तमाम कारणों में से एक ये भी है कि वो अपनी शादियां आधिकारिक रूप से दर्ज नहीं कराना चाहते हैं. अपने परिवारों के ग़ुस्से से बचने के लिए बहुत से जोड़े दूसरे शहरों और क़स्बों में जाकर मंदिर में शादी कर लेते हैं.

बीबीसी से बात करते हुए वकील रमेश बताते हैं, “लेकिन, इसका नतीजा ये होता है कि जब ऊंची जाति की युवती के मां-बाप उसके गुमशुदा होने की शिकायत दर्ज कराते हैं, तो पुलिस अक्सर शादीशुदा जोड़े का पता लगाकर, उस लड़की को उसके मां-बाप के पास भेज देती है. क्योंकि उनकी शादी क़ानूनी रूप से वैध नहीं होती.”

अंतरजातीय शादियों की बढ़ोतरी में MATRIMONIAL वेबसाइट का साथ

अंतरजातीय शादियों का रजिस्ट्रेशन कराना भी आसान नहीं है. रमेश कहते हैं कि शादी का पंजीकरण करने वाले अधिकारी अक्सर शादी करने वाले जोड़ों को अपने मां-बाप को रजिस्ट्रार के दफ़्तर ले आने को कहते हैं, जिससे शादी के लिए उनकी सहमति ली जा सके. जबकि शादी के क़ानून के तहत इसकी कोई अनिवार्यता नहीं है.

सूचना के अधिकार के तहत हासिल सरकारी जवाबों के सबूत के साथ रमेश अधिकारियों को इस बात के लिए राज़ी करने की कोशिश कर रहे हैं कि क़ानून के तहत ऐसी शादियों को दर्ज करने के लिए मां-बाप की रज़ामंदी ज़रूरी नहीं है. इसके साथ साथ वो अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़ों को ये थका देने वाली प्रक्रिया पूरी करने में मदद भी करते हैं.

लेकिन, अंतरजातीय शादियों को बढ़ावा देने और जोड़ों की सुरक्षा के लिए ये तो बहुत छोटा-सा क़दम है. रमेश और भी बहुत कुछ करना चाहते हैं जिससे अलग-अलग जातियों के लड़के-लड़कियां एक दूसरे से मिलें-जुलें और अपना जीवनसाथी तलाश सकें. ठीक उसी तरह जैसे आम लोग अपनी जाति के भीतर शादियां करते हैं.

इसीलिए, रमेश ने दो महीने पहले मनिदम नाम से एक मैट्रिमोनियल वेबसाइट भी बनाई है. मनिदम का मतलब मानवता होता है.

ALSO READ: भारत की पहली महिला IAS जिन्होंने पहले अटेम्प्ट में पास किया UPSC का एग्जाम.

इसमें लगभग सौ लोग अपना रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं. एक बड़ी समस्या के समाधान के लिए ये वेबसाइट, एक छोटा-सा क़दम है.

पांचवें नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) 2019-21 के मुताबिक़, तमिलनाडु की 28 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि उनकी शादी अपने ही ख़ून के रिश्ते वालों के साथ हुई है. तमिलनाडु का ये औसत पूरे देश में सबसे ज़्यादा है.

लेकिन, इन अपराधों के लिए दर्ज किए गए मुक़दमों की तादाद बहुत कम है. राज्य के क्राइम ब्यूरो रिकॉर्ड के मुताबिक़, 2013 से अब तक ‘ऑनर किलिंग’ के केवल दो मामले दर्ज हुए हैं. और ये दोनों ही घटनाएं 2017 में दर्ज की गई थीं.

लेकिन, दलितों के अधिकारों के लिए और ‘ऑनर किलिंग’ के ख़िलाफ़ काम करने वाले NGO, एविडेंस द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक़, 2020 से 2022 के बीच तमिलनाडु में ऑनर किलिंग की 18 घटनाएं हुई थीं.

पेरियार के बाद भी इन्साफ की लम्बी लड़ाई

तमिलनाडु के छुआछूत उन्मूलन मोर्चे (TNUEF) के महासचिव, सैमुअल राज कहते हैं कि ‘ऑनर किलिंग’ की ज़्यादातर घटनाएं इसलिए होती हैं क्योंकि अंतरजातीय शादियां करने वाले जोड़ों के लिए सरकार की तरफ़ से रहने और सुरक्षा के सुरक्षित ठिकाने नहीं बनाए गए हैं.

एक दलित युवक दिलीप कुमार से शादी करने वाली कल्लार महिला विमला देवी की मौत के बाद, अप्रैल 2016 में मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया था कि वो हर ज़िले में स्पेशल सेल बनाए. 24 घंटे चलने वाले हेल्पलाइन नंबर जारी करे. और, अंतरजातीय शादियां करने वाले जोड़ों को शिकायत दर्ज कराने के लिए मोबाइल ऐप और ऑनलाइन सुविधा भी मुहैया कराए.

इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग ये आरोप भी लगाते हैं कि पुलिस अक्सर अंतरजातीय संबंधों की जांच के मामलों में लापरवाही बरतती है.

ALSO READ: वृंदावन से जुड़े इन रहस्यों के बारे में नहीं जानते होंगे आप…

सैमुअल राज कहते हैं कि, “जब मां-बाप पुलिस के पास जाते हैं, तो पुलिसवाले अक्सर ‘कट्टा पंचायत’ के ज़रिए मामले को अनौपचारिक रूप से रफ़ा-दफ़ा कर देते हैं और जोड़ों को अलग कर देते हैं. ऊंची जाति की महिलाओं को अक्सर उनके परिवारों के साथ वापस भेज दिया जाता है, और अक्सर ऐसी महिलाएं फिर ज़िंदा नहीं बच पाती हैं.”

विमला देवी की मौत 2014 में हुई थी. लगभग एक दशक बाद आज भी वो मुक़दमा चल ही रहा है. जब हमने दिलीप कुमार से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि उन्हें जाति के कारण जान गंवाने वाली अपनी पत्नी के लिए अभी भी इंसाफ़ की आस है. ऐसे मामलों में सज़ा मिलने की दर कम होने के कई कारण हैं.

सैमुअल राज बताते हैं, “आम तौर पर जब क़त्ल की घटना होती है, तो इंसाफ़ की लड़ाई पीड़ित का परिवार करता है. लेकिन जातिवादी हत्या के मामले में अक्सर परिवार के सदस्य ही हत्यारे होते हैं. ऐसे में दोषी को सज़ा दिलाना तो दूर, इंसाफ़ की लड़ाई शुरू करने की इच्छाशक्ति भी नहीं होती है.”

उम्मीद की किरण

जब कीर्ति ने सौंदर से शादी करने की ख़्वाहिश जताई थी तो उनकी उम्र 25 साल थी और वो पैसों के मामले में सेल्फ डिपेंडेंट थीं. लेकिन, उनके मां-बाप को नहीं लगता था कि कीर्ति इतनी अक़्लमंद हैं कि अपनी ज़िंदगी के फ़ैसले ख़ुद कर सकें. 

कीर्ति बताती हैं, “मुझे बरगलाने के लिए मेरी मां ने मुझे कई बार भाषण दिया. एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि दलित तो रोज़ाना इस बात की क़सम उठाते हैं कि वो ऊंची जाति कि महिलाओं को तलाशकर उन्हें अपने साथ शादी के लिए राज़ी करेंगे. ये सबसे हास्यास्पद बात थी जो मैंने किसी से सुनी थी और मैंने सोचा कि कोई स्कूल टीचर इस तरह की सोच कैसे रख सकता है.”

उनकी लड़ाई मुश्किल और बेहद लंबी है, जो अभी भी जारी है.

2022 में जाति विरोधी कार्यकर्ताओं और संगठनों के समूह, दलित मानव अधिकार रक्षक नेटवर्क ने मिलकर ‘दि फ़्रीडम ऑफ़ मैरिज ऐंड एसोसिएशन ऐंड प्रोहिबिशन ऑफ़ क्राइम्स इन द नेम ऑफ़ ऑनर एक्ट 2022’ नाम के एक विधेयक का मसौदा तैयार किया था.

इस बिल में इज्ज़त के नाम पर ज़ुल्म ढाने से बचाव करने और ऐसे अपराध करने वालों को सज़ा देने के प्रावधान के साथ साथ पीड़ितों को मुआवज़ा देने और उनके पुनर्वास की व्यवस्था किए जाने का भी प्रस्ताव है.

कीर्ति अब दो बरस के एक बच्चे की मां हैं. पिछले चार सालों के दौरान उनकी मां ने केवल दो बार उनसे बात की है और वो भी नाती के जन्म के बाद.

शादी के बाद से कीर्ति के पिता अब तक उनसे नाराज़ हैं और उन्होंने कभी भी कीर्ति से बात करने की कोशिश नहीं की है.

कीर्ति कहती हैं, “मुझे उम्मीद है कि एक दिन वो मुझे समझेंगे.”

*कुछ लोगों की पहचान छुपाने के लिए उनके नाम बदल दिए गए हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here