टोक्यो ओलंपिक के बाद अब चीन के बीजिंग में विंटर ओलंपिक का आयोजन हो रहा है। इन ओलंपिक में 91 देशों के खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं। भारत की तरफ से इस ओलंपिक में केवल एक ही खिलाड़ी हिस्सा ले रहा है, जिनका नाम हैं आरिफ खान। शुक्रवार को विंटर ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में आरिफ खान ने चार सदस्यीय भारतीय दल की अगुवाई की। विंटर ओलंपिक के उद्घाटन समारोह का आयोजन बर्ड्स नेस्ट स्टेडियम में हुआ, जहां स्कीयर मोहम्मद आरिफ खान हाथ में तिरंगा थामे देश का प्रतिनिधित्व करते नजर आए।
विंटर ओलंपिक खेलों के एक सीजन में दो स्पर्धाओं में क्वालिफाई करने वाले आरिफ पहले भारतीय बने हैं। आरिफ खान जम्मू कश्मीर से हैं। वो 13 फरवरी को विशाल स्लैलम इवेंट और 16 फरवरी को स्लैलम इवेंट में पार्टिसिपेट करेंगे। कश्मीर से ओलंपिक तक पहुंचने का आरिफ का सफर काफी दिलचस्प रहा। आरिफ ने भारतीय सैनिकों के साथ ट्रेनिंग की। इतना ही नहीं उन्होंने इन ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए अपनी शादी तक टाल दी। आइए कश्मीर से ओलंपिक तक पहुंचने के आरिफ खान के पूरे सफर पर नजर डालते हैं…
आरिफ का ऐसे शुरू हुआ सफर…
आरिफ खान 31 साल के हैं। 3 मार्च 1990 को आरिफ का जन्म उत्तरी कश्मीर के गुलमर्ग में हुआ। गुलमर्ग एक मशहूर टूरिस्ट प्लेस भी है, जिसे अपने बर्फीले मौसम के लिए जाना जाता हैं। आरिफ यहीं पर पले-बढ़े।पहाड़ों के बीच रहने वाले आरिफ खान को फुटबॉल और क्रिकेट जैसे खेलों में दिलचस्पी थीं। लेकिन इन खेलों को खेलने के लिए मैदान की जरूरत पड़ती थीं, जो वहां आसपास मौजूद नहीं थे। जब आरिफ महज 4 साल के थे, तब उनका स्कीइंग से परिचय हुआ था। आरिफ के पिता स्कीइंग के ही उपकरण बेचने का काम करते थे।
जब आरिफ 4 साल के थे, तो वो अपने पिता के साथ उनकी स्कीइंग उपकरण की दुकान पर जाते थे। दुकान उनके घर से 500 मीटर की दूरी पर ही थी। हालांकि वहां तक पहुंचने के लिए उनको और उनको पिता को मोटी बर्फ से भरा रास्ता तय करना पड़ता था। पिता के साथ दुकान जाने के बाद ही आरिफ ने भी स्कीइंग करने का मन बनाया। वहीं अपने बच्चे के सपने को पूरा करने के लिए आरिफ के पिता ने दुकान के बाहर एक छोटा स्की ढलान बनाया। आरिफ ने वहीं पर स्कीइंग करने की शुरूआत की और बस यहीं से आरिफ का सफर शुरू हुआ, जो अब तमाम रास्ते तय करता हुआ ओलंपिक तक जा पहुंचा।
इन प्रतियोगिताओं में लिया हिस्सा…
धीरे-धीरे आरिफ ने स्कीइंग सीखीं। जब आरिफ 10 साल के थे, तो उन्होंने खेल से जुड़ी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। 12 साल की उम्र में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। 16 साल में आरिफ ने जापान में जूनियर इंटरनेशनल स्कीइंग फेडरेशन के इवेंट में पार्टिसिपेट किया। ये आरिफ का स्कीइंग में इंटरनेशनल डेब्यू था। इस प्रतियोगिया में वो जाइंट स्लैलम में 23वें स्थान पर रहे थे।
साल 2011 आरिफ खान के लिए बेहद ही खास रहा। इस दौरान उत्तराखंड में आयोजित हुए दक्षिण एशियाई शीतकालीन खेलों में शानदार प्रदर्शन करते हुए स्लैलमम और जाइंट स्लैलम स्पर्धाओं में दो स्वर्ण पदक हासिल किए। उनके इस प्रदर्शन ने काफी सुर्खियां बटोरीं थीं। इसके बाद आरिफ ने 2013 में एफ आई एस वर्ल्ड स्की चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया। भारतीय अल्पाइन स्कियर स्लैलम में वो 59वें स्थान पर रहे और जाइंट स्लैलम में 91वें स्थान पर रहे।
आरिफ ने इसके बाद तीन और वर्ल्ड चैंपियनशिप में पार्टिसिपेट किया। जिसमें से उनका सबसे बेहतर प्रदर्शन इटली में 2021 में हुई विश्व चैम्पियनशिप में था। यहां आरिफ जाइंट स्लैलम में 45वें स्थान पर रहे। साथ ही पहली बार उन्होंने किसी विश्व चैंपियनशिप के फाइनल के लिए जगह बनाई थीं। आरिफ ने अब तक 127 अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। अब विंटर ओलंपिक 2022 में आरिफ का प्रदर्शन कैसा रहता है, ये देखना होगा।
जब पैसों की कमी के चलते ओलंपिक में हिस्सा नहीं ले पाए आरिफ
स्कीइंग को एक महंगा खेल बताया जाता है। इस खेल में करियर बनाने के लिए काफी पैसों की जरूरत होती है। आरिफ के पिता स्कीइंग की अपनी दुकान से होने वाली कमाई से उनकी मदद किया करते थे। यही नहीं आरिफ ने स्कीइंग इंस्ट्रक्टर की भूमिका निभाकर भी पैसे कमाए।
हालांकि पैसे की कमी के चलते ही आरिफ 2018 के पियोंग चैंग विंटर ओलिंपिक्स में हिस्सा नहीं ले पाए थे। दरअसल, उन्हें ट्रेनिंग के लिए स्विट्जरलैंड जाना था, लेकिन इस दौरान डेढ़ लाख रुपयों की कमी के चलते वो हिस्सा लेने से रह गए। हालांकि इस बार आरिफ विंटर ओलंपिक में पार्टिसिपेट करने में कामयाब हुए हैं और इस बार वो पूरी तरह से तैयार हैं।
कश्मीर के युवाओं को प्रेरित करना चाहते हैं आरिफ
आरिफ विंटर ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन कर कश्मीर के लोगों को प्रेरित करना चाहते हैं। आरिफ ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मेरा लक्ष्य है कि मैं कश्मीर के युवाओं की छवि बदल सकूं। मैं ये दिखाना चाहता हूं कि कश्मीरी युवा सिर्फ पत्थरबाज नहीं है। मुझे याद है जब 2010 में शाह फेजल ने UPSC में टॉप किया था। कई लोगों को इससे प्रेरणा मिली और फिर वो भी शिक्षा की क्षेत्र में आगे बढ़े। वहीं जब क्रिकेट में भी कुछ खिलाड़ियों को IPL का करार मिला, तो वादी के बाकी युवाओं पर भी इसका असर देखने को मिला।
नीरज चोपड़ा और अभिनव बिंद्रा ने की सपोर्ट करने की अपील
आरिफ के ओलंपिक में पहुंचने तक के सफर पर इस वक्त पूरा देश गर्व महसूस कर रहा है। समर ओलंपिक में गोल्ड मेडल देश को दिलाने वाले निशानेबाज अभिनव बिंद्रा और जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने आरिफ खान को सपोर्ट करने की अपील की है। नीरज चाहते हैं कि आरिफ को भी उसी तरह का समर्थन मिले जैसा उन्हें मिला था।
नीरज ने कहा कि हमारे अपने आरिफ खान ने बीजिंग 2022 शीतकालीन ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया है। मैं उन्हें बधाई देना चाहता हूं और बस उन्हें बीजिंग में अपने देश के लिए अपना सब कुछ देने के लिए कहना चाहता हूं। वहीं अभिनव बिंद्रा ने कहा कि कश्मीर से ओलंपिक तक! बीजिंग 2022 में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले एकमात्र एथलीट आरिफ खान को देखकर वाकई गर्व महसूस होता है। बता दें कि अभिनव बिंद्रा ने देश को 2018 के ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाया था। वहीं नीरज चोपड़ा ने पिछले साल ही हुए टोक्यो ओलंपिक में जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीतकर देशभर का नाम रौशन किया।
क्या है विंटर ओलंपिक?
विंटर ओलंपिक जैसे नाम से ही साफ हो रहा है, इनका आयोजन बर्फीले माहौल में ही आयोजित होता है। यानी उन देशों को इन ओलंपिक की मेजबानी करने का जिम्मा दिया जाता है, जहां ठंड और बर्फ पड़ती हैं। साथ ही बर्फ से जुड़े इवेंट्स को इसमें शामिल किया जाता है। जिसमें आइस स्केटिंग, आइस डॉकी, फिगर स्केटिंग, स्कीइंग और स्नोबोर्डिंग जैसे खेल शामिल रहते हैं।
अब बात करते हैं कि आखिर ओलंपिक और विंटर ओलंपिक में फर्क क्या होता है? वैसे तो इन दोनों का ही आयोजन इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी (IOC) करती हैं। ये दोनों दो साल के अंतर में होते हैं। समर ओलंपिक की ही तरह इन ओलंपिक का भी आयोजन दो से तीन हफ्तों में होता है।
विंटर ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन?
बात भारत की करें तो इस इवेंट में इंडिया की खास मौजूदगी नहीं रही। इंडिया को अब तक एक भी मेडल इन गेम्स में नहीं मिला।
- 1964 विंटर ओलंपिक में 1091 एथलीट्स ने हिस्सा लिया था। तब भारत से केवल एक ही खिलाड़ी ने पार्टिसिपेट किया था। जेरेमी बुजाकोव्स्की ने तब पुरुषों की अल्पाइन स्कीइंड डाउनहिल में हिस्सा लिया। वो इसमें जीतने में कामयाब नहीं हो पाए थे।
- इसके बाद 1968, 1972 और 1984 विंटर ओलंपिक में भारत के किसी खिलाड़ी ने हिस्सा नहीं लिया था।
- फिर 1988 में अल्पाइन स्कीइंग में 3 एथलीट ने हिस्सा लिया। इसमें दो पुरुषों में गुल देव और किशोर राय ने पार्टिसिपेट किया और महिलाओं में शैलजा कुमार ने हिस्सा लिया। गुल देव पहली ही रेस में डिस्क्वालीफाई हुए और किशोर राय ने 49वां रैंक हासिल की। वहीं शैलजा 28वें रैंक पर रही थीं।
- इसके बाद 1992 में लाल चूनी, नानक चंद ने स्लैलम और जाइंट स्लैलम में हिस्सा लिया था। वो भी जीत नहीं पाए।
- 1994 में भी एक भी भारतीय ने हिस्सा नहीं लिया।
- 1998 और 2002 लगातार दो बार शिवा केशवन ने एकल लुग प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। 1998 में उनकी रैंक 28 थी, जबकि 2002 में 33 रैंक थीं।
- 2006 में 3 पुरुष और एक महिला एथलीट ने हिस्सा लिया था। शिवा केशवन ने इस बार भी ओलंपिक में पार्टिसिपेट किया। इस बार उनकी रैंक 29वीं रहीं।
- 2010 में तीन एथलीट विंटर ओलंपिक का हिस्सा बने, लेकिन मेडल नहीं जीता।
- 2014 में भारत की तरफ से एक भी एथलीट विंटर ओलंपिक में नहीं भेजा गया।
- इसके बाद 2018 में भारत की तरफ से 2 एथलीट्स ने इनमें हिस्सा लिया। इस दौरान फ्री स्टाइल में जगदीश सिंह और लुग में शिवा केशवन ने पार्टिसिपेट किया। दोनों ही मेडल जीतने में कामयाब नहीं हुए।