Sonu Khatoon Jharkhand News: झारखंड, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और प्रतिभाशाली युवाओं के लिए प्रसिद्ध है, आज खेल प्रतिभाओं की अनदेखी और उनके संघर्षों के कारण चर्चा में है। जहां एक ओर राज्य की राजनीतिक पार्टियां ‘मंईया सम्मान योजना’ और ‘गोगो दीदी योजना’ जैसे अभियानों के जरिए महिलाओं को लुभाने में जुटी हैं, वहीं खेल का मुद्दा नजरअंदाज हो रहा है। राज्य के खिलाड़ी, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर चुके हैं, दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर का कठिन सफर- Sangeeta soren Jharkhand News
दरअसल हम बात कर रहे हैं धनबाद जिले की संगीता सोरेन की, जिन्होंने अंडर-17, अंडर-18 और अंडर-19 स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है, आज वह गरीबी और बदहाली में अपना जीवन जी रही हैं। संगीता ने अंडर-17 फुटबॉल चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता, लेकिन आज उन्हें अपने परिवार की मदद के लिए ईंट भट्टे में काम करना पड़ रहा है।
झारखंड के धनबाद जिले के बाघमारा की अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर संगीता सोरेन आज पत्तल बनाकर अपने और परिवार का भूख मिटाने को मजबूर है। संगीता 2018 में भूटान सहित एशिया के कई देशों में अपने राज्य और देश का नाम रौशन किया। पर आज इनका सुध लेने वाला कोई नहीं। @HemantSorenJMM pic.twitter.com/cth8Yp92ay
— Sohan singh (@sohansingh05) August 6, 2020
संगीता के पिता नेत्रहीन हैं और उनकी मां और दोनों भाई मजदूरी करते हैं। सीमित आमदनी और बढ़ते खर्चों के कारण संगीता को भी मजदूरी करनी पड़ती है। 2020 में जब उनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो झारखंड सरकार ने उन्हें आर्थिक सहायता दी, लेकिन यह सहायता उनके जीवन को स्थिर करने के लिए पर्याप्त नहीं थी।
.@dc_dhanbad कृपया संगीता बेटी और उनके परिवार को जरूरी सभी सरकारी मदद पहुँचाते हुए सूचित करें।
खेल-खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार कृतसंकल्पित है और जल्द ही नीति और कार्यप्रणाली के साथ जनता के समक्ष आने वाली है। https://t.co/BJBEPAj5Jn— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) August 6, 2020
सरकारी वादे और अधूरी उम्मीदें
जब संगीता का संघर्ष सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें तीन लाख पचास हजार रुपये की सहायता दी और खेल विभाग में नौकरी का वादा किया। लेकिन समय बीतने के साथ यह वादा अधूरा रह गया।
संगीता ने “द मूकनायक” से बातचीत में कहा, “जब मैं टूर्नामेंट में खेलती थी, लोग मेरी तारीफ करते थे। लेकिन अब मुझे और मेरे संघर्ष को सब भूल गए हैं।”
राष्ट्रीय स्तर की तीरंदाज की दयनीय स्थिति- Sonu Khatoon Jharkhand News
धनबाद की ही सोनू खातून, जो राष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी में मेडल जीत चुकी हैं, आर्थिक तंगी के कारण सड़कों पर सब्जी बेचने को मजबूर हो गई थीं। 2020 में उनका वीडियो वायरल होने के बाद सरकार ने उन्हें बीस हजार रुपये की सहायता दी और एक अस्पताल में नौकरी दी। लेकिन यह मदद भी उनके संघर्ष को पूरी तरह समाप्त नहीं कर पाई।
धनबाद,राष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी प्रतियोगिता में मेडल जीत चुकी झरिया जेलगोरा की सोनू खातून के अरमान रह गए अधूरे
आर्थिक तंगी के कारण सोनू सड़क किनारे सब्जी बेचने पर है मजबूर।
तैयारी करने के लिए चाहिए धनुष @KirenRijiju @MundaArjun @purnimaasingh @HemantSorenJMM @scribe_prashant pic.twitter.com/ChIL69sMYt— Dhananjay Mandal (@dhananjaynews) June 3, 2020
तीरंदाज सोनू खातून को आज एशियन द्वारकादास जालान सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में नियुक्ति का पत्र प्रदान किया गया है। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने पर अस्पताल प्रबंधन द्वारा स्पांसर भी किया जाएगा।
जिला प्रशासन इनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।@HemantSorenJMM @JharkhandCMO pic.twitter.com/yyBZiyTVRh
— DC Dhanbad (@dc_dhanbad) June 12, 2020
खेलों में भारत की स्थिति और झारखंड का योगदान
झारखंड, जहां फुटबॉल और तीरंदाजी जैसे खेलों का गहरा जुड़ाव है, संसाधनों की कमी और प्रशासनिक अनदेखी के कारण अपने खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने में विफल हो रहा है।
भारत, जो 1.4 बिलियन की आबादी के साथ विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, ओलंपिक जैसे अंतरराष्ट्रीय खेलों में अपेक्षाकृत कम प्रदर्शन करता है। 2021 में टोक्यो ओलंपिक में जहां भारत ने सात पदक जीते, वहीं अमेरिका और चीन ने क्रमशः 126 और 91 पदक अपने नाम किए।
खेल विश्लेषक बोरिया मजूमदार ने कहा, “भारत में 1.4 बिलियन लोगों में से अधिकांश को खेल सुविधाओं तक पहुंच नहीं है। यह समस्या केवल झारखंड तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश की है।”
“खेलो इंडिया” और सरकार की पहल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में “खेलो इंडिया” योजना की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की पहचान और उन्हें समर्थन देना है। हालांकि, झारखंड जैसे राज्यों में यह योजना जमीन पर सही ढंग से लागू नहीं हो पाई।
संगीता और सोनू जैसे खिलाड़ियों के संघर्ष यह बताने के लिए काफी हैं कि देश में खेल प्रतिभाओं के लिए संसाधनों और समर्थन की कितनी कमी है। यदि सरकार और समाज खेलों को बढ़ावा देने के लिए सही कदम उठाएं, तो यह प्रतिभाएं न केवल भारत का नाम रोशन करेंगी, बल्कि अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बनेंगी।
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