जानिए भारतीय हॉकी टीम के 16 'सुपरहीरोज' की कहानी…जिन्होंने 41 साल बाद दिलवाया मेडल

Table of Content

5 अगस्त के दिन की शुरुआत करोड़ों देशवासियों के लिए बेहद ही खास रही। लंबे समय से देश के लोग अपनी हॉकी टीम से मेडल की आस लगाए हुए थे। ये इंतेजार कुछ ज्यादा ही लंबा रहा। 4 दशकों का, जो अब आखिरकार खत्म हो गया। वो लोग जो ये सोचने लगे थे कि हॉकी में भारत का अंत हो गया। ओलंपिक में 41 साल बाद मेडल जीतकर भारतीय हॉकी टीम ने ऐसे लोगों के मुंह पर करारा तमाचा मारा। जर्मनी को कड़े मुकाबले में हराकर ब्रॉन्ज जीतकर भारत ने हॉकी ने फिर से एक जबरदस्त वापसी की और पूरे देश में खुशियों, जश्न का माहौल छा गया। 

जीत के साथ भारतीय हॉकी की गूंज एक बार फिर दुनिया में गूंजने लगी है। लोगों को अब अपनी टीम से उम्मीदें और ज्यादा बढ़ गई हैं। ऐसे में आज वक्त है उन ‘हीरोज’ और उनकी कहानी के बारे में जानने का, जिन्होंने भारत का 41 साल लंबे इंतेजार को खत्म किया। आइए आज हम आपको ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली हॉकी टीम के सभी खिलाड़ियों के बारे में कुछ खास बातें बताते हैं…

मनप्रीत सिंह की शानदार कप्तानी 

सबसे पहले बात करते हैं भारतीय हॉकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह की। 29 साल के मनप्रीत ने अपनी कप्तानी में इतिहास रच दिया। वैसे उनकी कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम का प्रदर्शन लगातार बेहतर हो रहा है। 

भारतीय टीम ने एशिया कप और एशियन चैम्पियंस ट्रॉफी में गोल्ड, चैम्पियंस ट्रॉफी में सिल्वर और 2018 एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल मनप्रीत की कप्तानी में ही जीता। वहीं  2019 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (FIH) ने मनप्रीत को ‘प्लेयर ऑफ द ईयर’ भी घोषित किया गया था। जब मनप्रीत 10 साल के थे, तब ही उन्होंने हॉकी थाम ली थी। 19 साल की उम्र में उन्होंने भारतीय टीम के लिए डेब्यू किया था। हॉकी में मनप्रीत की प्रेरणा पूर्व कप्तान परगट सिंह रहे हैं। 

टीम की ‘दीवार’ श्रीजेश

गोलकीपर श्रीजेश ओलंपिक में भारत के मेडल जीतने के बाद हर तरफ छा गए हैं। टीम इंडिया की ‘दीवार’ श्रीजेश पहले कप्तानी भी कर चुके हैं। श्रीजेश ने हॉकी में 2006 में डेब्यू किया था। जर्मनी के खिलाफ मैच में श्रीजेश ने कई गोल बचाए और मैच जिताने में एक बड़ी भूमिका निभाई। 

पेनाल्टी कॉर्नर एक्सपर्ट हरमनप्रीत सिंह 

हरमनप्रीत को पेनाल्टी कॉर्नर एक्सपर्ट माना जाता है। 2016 में जूनिवर वर्ल्ड जीतने वाले हरमनप्रीत को इससे पहले रियो ओलंपिक में भी मौका दिया गया था। हरमनप्रीत सिंह अमृतसर के जंडियाला गुरु के छोटे से गांव के रहने वाले हैं। जर्मनी के खिलाफ मैच में पेनाल्टी कॉर्नर को उन्होंने गोल में बदला और भारत को 3-3 की बराबरी पर लाकर खड़ा कर दिया था और इसके बाद ही मैच में टीम इंडिया ने बढ़त बनाई। इसलिए इस जीत में उनका भी एक बहुत बड़ा योगदान रहा। 

बीरेंद्र लाकरा 

9 सालों से बीरेंद्र भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा है। वो 2012 की ओलंपिक टीम में शामिल थे। हालांकि 2016 ओलंपिक में वो खेल नहीं पाए थे। वजह थी घुटने में चोट लगता और सर्जरी। फिर इसके बाद बीरेंद्र ने एक बार फिर टीम में वापसी की। बीरेंद्र अब तक तकरीबन 200 मैच खेल चुके हैं। वे डिफेंस के साथ मिडफील्ड भी संभालते हैं।

पैसे बचाने के एक समय खाना नहीं खाते थे रुपिंदर

डिफेंडर रुपिंदर को भारत के बेस्ट ड्रैग फ्लिकर्स में से एक माना जाता है। इसके अलावा उनकी खासियत मजबूत डिफेंडिंग भी है। ब्रिटेन, अर्जेंटीना और जर्मनी समेत कई स्ट्रॉग टीमों के खिलाफ उन्होंने शानदार डिफेंस दिखाया थी। रुपिंदर की हाईट लंबी है, जिसका उन्हें फायदा मिलता है। जिस रुपिंदर ने आज देश का नाम दुनिया में ऊंचा किया, वो एक वक्त में आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे थे। एक वक्त ऐसा था रुपिंदर पैसा बचाने के लिए एक ही समय का खाना खाते थे। तमाम समस्याओं के बावजूद वो लड़े और भारत के लिए मेडल जीतकर भी दिखाया। 

अमित रोहिदास ने की टीम में वापसी

अमित का करियर उतार चढ़ाव से भरा रहा। एक समय पर उन्हें लंबे वक्त तक टीम से बाहर तक रहना पड़ा था। हालांकि 2017 के बाद से अमित लगातार टीम का हिस्सा बने हुए हैं। 28 साल के अमित ने टीम के लिए 100 से भी ज्यादा मैच खेले। ओडिशा के सुंदरगढ़े के उस गांव के ही अमित रहने वाले हैं, जहां पूर्व कप्तान दिलीप टर्की का जन्म हुआ था। उनको देखकर ही अमित ने हॉकी को अपना करियर चुना। 

पड़ोसी ने खरीदकर दी थी सुरेंद्र को हॉकी स्टिक

हरियाणा के कुरुक्षेत्र के रहने वाले सुरेंद्र कुमार भी टीम का हिस्सा हैं। इससे पहले वो एशियन गेम्स और रियो ओलिंपिक में भी खेल चुके हैं। सुरेंद्र के बचपन का हॉकी से जुड़ा एक किस्सा है। दरअसल, सुरेंद्र ने बचपन में अपने पिता से हॉकी स्टिक की मांग की थीं, जिसे उन्होंने माना नहीं। इसके बाद सुरेंद्र के पड़ोसी से 500 रुपये की हॉकी खरीदकर दी थी, जिससे उन्होंने खेलना शुरू किया और आज वो इतिहास रचने वाली टीम का हिस्सा हैं। 

17 साल में विवेक ने किया था टीम में डेब्यू

2018 में केवल 17 साल की उम्र में विवेक ने इंटरनेशनल डेब्यू किया था। वो टीम में सबसे कम उम्र के खिलाड़ियों की लिस्ट में शामिल हैं। वो टीम में मिडफील्डर के रूप में खेलते हैं।  टोक्यो में उन्हें फॉरवर्ड लाइन का जिम्मा सौंपा किया था, जिसमें उन्होंने टीम का बखूबी साथ निभाया।

नीलकांत ने 16 साल की उम्र में छोड़ा था घर 

2016 जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप में कमाल का प्रदर्शन करने के बाद नीलकांत को सीनियर टीम में जगह मिली। नीलकांत ने हॉकी खेलने के लिए 16 साल की उम्र में अपना घर तक छोड़ दिया था। तब उन्होंने ये फैसला लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए वो खाली हाथ वापस नहीं आएंगे। नीलकांत के पिता पंडित थे और उनके घर में बहुत तंगी रहती थी।

3 साल की उम्र में हॉकी के मैदान में जाते थे दिलप्रीत 

2018 में पंजाब के दिलप्रीत सिंह को टीम में जगह दी गई थी। इसके बाद से ही वो हर बड़े टूर्नामेंट में जबरदस्त प्रदर्शन करते नजर आ रहे हैं। दिलप्रीत 2018 एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली टीम का हिस्सा रहे हैं। दिलप्रीत के पिता उन्हें महज तीन साल की उम्र से ही हॉकी के मैदान पर ले जाने लगे और यही से खेल में उन्हें दिलचस्पी आई। 

गुरंजत सिंह ने ऐसे खेलना शुरू किया हॉकी 

स्टार फॉरवर्ड गुरजंत सिंह का टोक्यो ओलिंपिक में प्रदर्शन शानदार रहा। उन्होंने ब्रिटेन के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में जीत में अहम भूमिका निभाई थी। जूनिवर वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में मिली जीत के बाद ही गुरजंत सिंह एक बड़े स्टार बन गए थे और इसके बाद उनकी टीम इंडिया में एंट्री हुई। गुरजंत सिंह के परिवार में तो कोई हॉकी नहीं खेलता था, लेकिन उनके ननिहाल में हॉकी पसंद किया जाता था। जब भी वो अपने ननिहाल बाटाला जाया करते थे, तो अपने भाईयों के साथ इस खेल को खेला करते थे। एक बार उन्होंने वहां तीन महीने रहकर हॉकी खेला, जिसके बाद इस खेल को अपना करियर बना लिया। 

मनदीप ने 2012 में किया था डेब्यू 

2012 में डेब्यू करने वाले मनदीप सिंह ने हॉकी इंडिया लीग में जबरदस्त प्रदर्शन कर अपनी पहचान बनाई थी। वो अब तक 150 से भी ज्यादा मुकाबलों का हिस्सा रह चुके हैं। उन्हें टीम में फॉरवर्ड पॉजिशन की शान माना जाता है। 

सुमित वाल्मिकी ऐसे पहुंचे यहां तक 

सुमित वाल्मीकि 2016 में पुरुष हॉकी जूनियर विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम का रह चुके हैं। सुमिता का यहां तक पहुंचने का सफर मुश्किलों से भरा रहा। सोनीपत के गांव में रहने वाले सुमित के घर में एक समय खाने तक के पैसे नहीं होते थे। 2004-2005 के दौरान उनके बड़े भाई अमित ने जूते मिलने का लालच दिया और उनको गांव में ही चल रही हॉकी अकादमी के ग्राउंड तक लेकर चले गए। तब कोच ने उनको जूते, हॉकी स्टिक देने का वादा किया। जिसके लालच में सुमित रोजाना ग्राउंड जाने लगे। इसके बाद देखते ही देखते वो हॉकी को अपना सबकुछ दे बैठे। 

पंजाब से हैं शमशेर सिंह 

शमशेर हॉकी में फॉरवर्ड के रूप में खेलते हैं। उनके पिता एक किसान थे और मां ग्रहिणी। शमशेर पंजाब के अटारी बॉर्डर के पास बसे गांव से हैं। उन्होंने शौक के तौर पर हॉकी खेलना शुरू किया था और धीरे धीरे ये खेल उनका जुनून बन गया। उन्होंने भारत के लिए अब तक 10 मैच खेले हैं। 

हार्दिक ने ओलंपिक में जबरदस्त प्रदर्शन किया 

22 साल के हार्दिक ने टोक्यो ओलिंपिक में गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने ब्रिटेन, बेल्जियम और जर्मनी के खिलाफ खेले गए मैच में गोल दागे। 2018 में हार्दिक ने टीम में अपना डेब्यू किया था। वो पंजाब के जालंधर के रहने वाले हैं। 

सिमरनजीत सिंह ने दागे गोल

सिमरनजीत सिंह ने जर्मनी के खिलाफ पहला गोल दागकर टीम को बराबरी दिलवाई। उनका नाता वैसे तो बटाला के रहने वाले, लेकिन सिमरजीत का परिवार अब यूपी में रहता है।  

vickynedrick@gmail.com

vickynedrick@gmail.com https://nedricknews.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News

Trending News

Editor's Picks

Is AI Replacing Tech Jobs? Exploring the Impact of Artificial Intelligence on the Workforce

  Introduction: The Rise of AI in Technology Artificial Intelligence (AI) has emerged as a transformative force within the technology sector, fundamentally altering how businesses operate and innovate. Over recent years, we have witnessed a remarkable surge in AI applications, ranging from machine learning algorithms to natural language processing systems, that are now integral components...

Kanpur News: एक जैसे चेहरे ही नहीं, फिंगरप्रिंट भी सेम! कानपुर का अनोखा मामला, विज्ञान हैरान

Kanpur News: उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले से एक ऐसा हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जिसने आम लोगों के साथ-साथ विज्ञान के जानकारों को भी सोच में डाल दिया है। विज्ञान अब तक यही मानता आया है कि दुनिया में किसी भी दो इंसानों के फिंगरप्रिंट और आंखों की रेटिना एक जैसी नहीं...

UP BJP New President: यूपी भाजपा को मिला नया चेहरा, संगठन की कमान अब पंकज चौधरी के हाथ

UP BJP New President: उत्तर प्रदेश भाजपा को आखिरकार नया प्रदेश अध्यक्ष मिल गया है। शनिवार को एकमात्र नामांकन होने के बाद जिस नाम पर पहले ही सहमति बन चुकी थी, उस पर रविवार को औपचारिक ऐलान कर दिया गया। लखनऊ के राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय परिसर स्थित सभागार में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय पर्यवेक्षकों...

राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख सूत्रधार Dr Ramvilas Das Vedanti का निधन, अयोध्या और संत समाज में शोक की लहर

Dr Ramvilas Das Vedanti: राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख नेता और अयोध्या से पूर्व सांसद डॉ. रामविलास दास वेदांती का सोमवार सुबह मध्य प्रदेश के रीवा में निधन हो गया। वे 75 वर्ष के थे। जानकारी के अनुसार, वे 10 दिसंबर को दिल्ली से रीवा पहुंचे थे, जहां उनकी रामकथा चल रही थी। इसी दौरान...

Bhim Janmabhoomi dispute: रात में हमला, दिन में फाइलें गायब! भीम जन्मभूमि विवाद ने लिया खतरनाक मोड़

Bhim Janmabhoomi dispute: महू स्थित संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की जन्मभूमि से जुड़ा राष्ट्रीय स्मारक एक बार फिर बड़े विवाद के केंद्र में है। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर मेमोरियल सोसायटी, महू में कथित तौर पर हुई गंभीर वित्तीय अनियमितताओं, फर्जीवाड़े और सत्ता हथियाने के आरोपों ने इस ऐतिहासिक और अंतरराष्ट्रीय महत्व के स्मारक की गरिमा...

Must Read

©2025- All Right Reserved. Designed and Developed by  Marketing Sheds