टोक्यो ओलपिंक पर इस वक्त दुनियाभर की नजरें टिकी हुई हैं। खेलों का महाकुंभ शुरू होने में अब बहुत कम वक्त बचा हुआ है। ऐसे में इसको लेकर चर्चाएं जोरों पर है। टोक्यो ओलपिंक का आयोजन कोरोना के बीच कराया जा रहा है। ओलपिंक में मेडल जीतने और अपने देश के नाम को ऊंचा करने का सपना कई लोग देखते हैं, लेकिन इसमें सफल सिर्फ कुछ ही हो पाते हैं।
आपने कभी ना कभी तो एक बार पर गौर जरूर किया होगा कि जब कोई भी एथीलट जब मेडल जीतता है, तो वो मेडल को अपने दांतों से चबाता है। इसको लेकर कभी आपके मन में सवाल आया है कि ऐसा क्यों किया जाता है? क्यों मेडल जीतने के बाद खिलाड़ी इसे अपने दांतों से चबाकर पोज करते है? इसकी शुरूआत कब, कैसे और क्यों हुई? आइए आज आपके इस सवाल का जवाब हम देने की कोशिश करते हैं…
ये बताई जाती है वजह
इसके पीछे की वैसे तो कई वजहें बताई जाती है, जिनमें से एक ये भी कि फोटोग्राफर्स खिलाड़ियों से ऐसा करने के लिए कहते हैं। वहीं कुछ खिलाड़ी ऐसा मेडल जीतने के बाद पोडियम पर खड़े होकर पोज देने के लिए भी करते हैं।
वैसे सिर्फ ओलंपिक ही नहीं और भी कई प्रतियोगिताओं में मेडल जीतने के बाद खिलाड़ियों को ऐसा करता हुआ देखा जा चुका है। मेडल जीतने के बाद इसे दांतों से चबाना एक प्रथा बन चुका है, लेकिन इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई? आइए इस पर भी एक नजर डाल लेते हैं…
कब और कैसे हुई इसकी शुरुआत?
बात दशकों पुरानी है। जब चीजों की खरीद-फरोख्त के लिए करेंसी नहीं बल्कि सोने-चांदी के सिक्कों का इस्तेमाल होता था। सिक्का असली है या नहीं, ये देखने के लिए दांतों से इसे चबाया जाता था। दरअसल, सोना ज्यादा नरम होता है और जब उस पर दांत गड़ाए जाते हैं तो उस पर निशान बन जाते थे। इसलिए तब सिक्कों के असली या फिर नकली होने की पहचान दांत गड़ाकर की जाती थी। बाद में ये ही चलन ओलंपिक की परंपरा में जुड़ गया और एक प्रथा बन गया, जो आज तक चली आ रही है।