ओलंपिक खेलों का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। शुक्रवार 23 जुलाई से खेलों के महाकुंभ ओलंपिक की शुरुआत होने जा रही है। वैसे तो इसका आयोजन पिछले साल ही होना था, लेकिन कोरोना महामारी के चलते एक साल के लिए ओलंपिक को टाला गया। इस बार कोरोना के खतरे के बीच ही इस प्रतियोगिता का आयोजन कराया जा रहा है।
ओलंपिक खेलों पर इस वक्त दुनियाभर की नजरें टिकी हुई है। कौन सा खिलाड़ी किस खेल में मेडल जीतकर अपने देश का नाम ऊंचा करेगा, ये जानने के लिए हर कोई उत्साहित है। ओलंपिक में मेडल जीतने का सपना कई एथलीट देखते हैं, लेकिन कुछ का ही ये ड्रीम पूरा हो पाता है।
भारत के भी कई खिलाड़ी अब तक ओलंपिक में कई मेडल जीतकर देश के नाम को रोशन कर चुके हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं उन शख्स के बारे में जानते हैं, जिन्होंने ओलंपिक में आजाद भारत को पहला व्यक्तिगत मेडल जिताया था? आइए आज हम आपको उस खिलाड़ी की पूरी कहानी के बारे में बताते हैं…
कुश्ती में दिलाया था पहला मेडल
ये तो सभी को मालूम है कि 1952 से पहले ओलंपिक में भारत ने अपना दबदबा बनाया हुआ था। 1928 से लगातार 6 बार भारतीय टीम ने ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर अपना वर्चस्व कायम किया था। लेकिन ये तो बात पूरी टीम की थी। हम आपको आज उन शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने व्यक्तिगत तौर पर आजाद भारत को ओलंपिक में पहला मेडल दिलाया।
वो शख्स थे खाशाबा दादासाहेब जाधव (KD Jadhav)। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव गोलेश्वर में जन्मे केडी जाधव ने कुश्ती में स्वतंत्र भारत को पहला व्यक्तिगत ओलंपिक मेडल दिलाया था। बचपन से ही उन्हें कुश्ती का काफी शौक था। जिसकी वजह से उन्होंने रेसलिंग की दुनिया में नाम कमाया।
केडी जाधव को लोग पॉकेट डायनमो के नाम से भी पुकारते थे, क्योंकि उनकी हाइट छोटी थी। उनका सपना था कि वो भारत को कुश्ती में ओलंपिक का मेडल जिताएं। हालांकि ये उनके लिए ऐसा करना उतना भी आसान नहीं था।
1948 में खाली हाथ लौटे थे वापस
1948 में लंदन ओलंपिक के दौरान केडी जाधव ने फ्री रेसलिंग में हिस्सा लेने के बारे में सोचा, लेकिन तब आर्थिक समस्याएं बीच में आ गई। इसके लिए उनके पास पैसों की कमी थी। उस दौरान कोल्हापुर के महाराजा उनकी मदद के लिए आगे आए। उन्होंने केडी जाधव को ओलंपिक के लिए लंदन भेजा। लेकिन 1948 के लंदन ओलंपिक के दौरान उनको निराशा हाथ लगी। वो देश को मेडल दिलाने में कामयाब नहीं हो पाए।
हालांकि इसके बाद भी केदी जाधव ने घुटने नहीं टेके। अगले ओलंपिक के लिए वो जी-जान से तैयारियों में जुट गए। 4 सालों तक मेहनत करने के बाद 1952 के फिनलैंड में हुए हेलसिंकी ओलंपिक में भी उन्होंने हिस्सा लेने का फैसला किया।
ओलंपिक जाने के लिए घर रखा गिरवी
तब भी पैसों की कमी का सामना उन्हें करना पड़ा। फिनलैंड जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। तब राज्य सरकार से उन्हें थोड़ी बहुत मदद मिली, लेकिन वो भी काफी नहीं थी। जिसके बाद परिवारवालों की सलाह पर उन्होंने अपने घर को गिरवी रख दिया।
आखिरकार मिल ही गई सफलता
इस बार उन्हें आखिरकार मेडल जीतने में कामयाबी हासिल हुई। हालांकि वो गोल्ड मेडल जीतने के इरादे से गए थे, लेकिन तब उन्हें ब्रॉन्ज मेडल से ही संतुष्ट होना पड़ा। लेकिन उन्होंने ओलंपिक में पहला व्यक्तिगत मेडल जीतकर इतिहास के अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करा लिया।
मेडल जीतने के बाद देश में हुआ जोरदार स्वागत
जब देश के लिए पहला मेडल जीतकर वो वापस लौटे तो उनका जबरदस्त स्वागत किया गया। तब उन्हें देखने के लिए काफी भीड़ उमड़ी थीं। 101 बैलगाड़ियों की जोड़ी के साथ उनको जोरदार स्वागत हुआ। भारत आते ही सरकार की मदद से उनके गिरवी घर को छुड़ाया गया। फिर उन्हें मुंबई पुलिस में नौकरी भी दी गई थीं।
1984 में केडी जाधव का निधन हो गया था। वो एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस दौरान उन्होंने बचाया नहीं जा सका। जब वो जिंदा थे, तब उन्हें सरकार की तरफ से वो सम्मान नहीं मिल पाया, जिसके वो हकदार थे। बाद में 2001 में उन्हें मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2010 में दिल्ली के इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुश्ती स्टेडियम का नामकरण उनके नाम से हुआ।