1928 में पहली बार महिलाओं को ओलंपिक में रनिंग ट्रैक पर दौड़ने की अनुमति दी गई थी। इसके बाद महिलाओं ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज वे रनिंग, जेवलिन, हैमर थ्रो, वेट लिफ्टिंग, रेसलिंग या बॉक्सिंग में चैंपियन बन रही हैं। महिलाओं ने हर खेल में अपना हुनर साबित किया है लेकिन फिर भी उनके साथ भेदभाव कम नहीं हो रहा है। दरअसल, हाल ही में पेरिस ओलंपिक में हुए जेंडर विवाद के बाद ऐसी बातें सामने आने लगी हैं। वैसे तो पेरिस ओलंपिक को जेंडर न्यूट्रल के तौर पर प्रचारित किया गया था लेकिन अल्जीरियाई मुक्केबाज इमान खलीफ के जेंडर एलिजिबिलिटी टेस्ट से जुड़ा विवाद शांत नहीं हो रहा है। आइए आपको बताते हैं कि पूरा विवाद क्या है।
क्या है DSD, जिस पर होता रहा है विवाद
अगर अल्जीरियाई मुक्केबाज इमान खलीफ के बारे में बात की जाए तो वह ट्रांससेक्सुअल एथलीट नहीं हैं। उनके डीएनए में पुरुष एथलीटों के समान ही उच्च टेस्टोस्टेरोन स्तर और XY गुणसूत्र (Chromosome) हैं, जबकि वह डिसऑर्डर ऑफ सेक्स डेवलपमेंट (DSD) के कारण महिला के रूप में पैदा हुई थीं। महिलाओं के टूर्नामेंट में इमान की भागीदारी इसलिए विवादास्पद है क्योंकि यह हार्मोन पुरुषों में अधिक प्रचलित है।
इस बारे में हमेशा से जेंडर इलिजिबिलिटी विवाद रहा है। लोगों का कहना है कि ऐसे लोगों को महिला कैटेगरी में खेलने से रोका जाना चाहिए क्योंकि वे प्रतिद्वंद्वी महिला खिलाड़ियों पर भारी पड़ते हैं। ऐसी महिलाओं में टेस्टोस्टेरोन का स्तर काफी अधिक होता है। ऐसे लोगों में आम महिलाओं से ज़्यादा ताकत होती है।
The IOC has legitimized male violence against women as entertainment.
Get men out of women’s sports.#IStandWithAngelaCarini who should never have been made to enter a boxing ring with Imane Khelif.#SaveWomensSports@Olympics @iocmedia @Marq pic.twitter.com/3PLxDmf4e0
— Genevieve Gluck (@WomenReadWomen) August 1, 2024
DSD पीड़िता खिलाड़ियों को लेकर क्या है नियम?
1 नवंबर 2018 को IAAF ने DSD से पीड़ित लोगों के लिए एक नया नियम लागू किया। इसमें कहा गया कि 400 मीटर, 800 मीटर, 1 मील और हर्डल रेस में हिस्सा लेने वाली DSD से पीड़ित महिला एथलीटों को महिला वर्ग में खेलने की अनुमति दी गई। इसमें टेस्टोस्टेरॉन लेवल के आधार पर खेलने की अनुमति दी गई। अगर किसी महिला एथलीट या इंटरसेक्स को महिला वर्ग में खेलना है तो उसके शरीर में टेस्टोस्टेरॉन का स्तर पिछले 6 महीने से 5 नैनोमोल प्रति लीटर से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। अब यह सीमा 2.5 नैनोमोल प्रति लीटर कर दी गई है।
क्या है IOC का मानक?
IOC के पास जेंडर टेस्ट के लिए काफी आसान तरीका है। मुक्केबाजों के पासपोर्ट में दर्ज जेंडर IOC के अपने मानकों के लिए आधार के रूप में काम करता है। आयोजकों के अनुसार, एथलीटों की उम्र और जेंडर उनके पासपोर्ट के आधार पर निर्धारित किए गए थे, ठीक वैसे ही जैसे पिछले ओलंपिक मुक्केबाजी मुकाबलों में हुआ था। अतीत में, पुरुष से महिला एथलीट केवल तभी प्रतिस्पर्धा कर सकते थे जब उनका टेस्टोस्टेरोन स्तर 10 नैनोमोल से कम हो।
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