भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने एक बार फिर ओलंपिक में इतिहास रच दिया। जिस पल का इंतेजार भारत पिछले 4 दशकों से कर रहा था, वो आखिरकार पूरा हुआ और एक बार फिर हमारी हॉकी टीम ने देश को एक मेडल दिलाया। जिस तरह से टोक्यो ओलंपिक में टीम जबरदस्त प्रदर्शन कर रही थी, उनसे करोड़ों देशवासी गोल्ड की उम्मीद लगा रहे थे। वो सपना तो भले ही पूरा नहीं हो पाया, लेकिन ब्रॉन्ज मेडल जीतकर ही पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल के सूखे को जरूर खत्म किया।
4 दशक बाद मिला मेडल
भारत ने हॉकी में पिछला मेडल 1980 में जीता था। उसके बाद से ही हॉकी टीम का परफॉर्मेंस लगातार गिरता रहा और वो टीम जो अब तक हॉकी में सबसे ज्यादा गोल्ड मेडल जीती थी, उसे अपना अगला मेडल जीतने के लिए 41 सालों का लंबा इंतेजार करना पड़ा।
हॉकी में 1980 तक जीते कुल 11 मेडल
हॉकी में भारत की विजय गाथा आजादी से पहले ही शुरू हो गई थी। साल 1928 में ब्रिटिश हुकूमत वाली भारतीय टीम ने पहली बार गोल्ड मेडल जीत अपना नाम हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज कर लिया। इसके बाद हॉकी टीम ने जो प्रदर्शन किया, उसकी पूरी दुनिया कायल हो गई। बार बार ओलंपिक आते और हर बार भारतीय टीम अपने साथ ‘सोना’ लेकर ही वापस लौटती थी।
1947 में भारत को आजादी मिलीं। 1948 में हॉकी टीम ने आजाद भारत का पहला ओलंपिक जीता। भारत ने 1956 तक लगातार 6 बार गोल्ड मेडल जीतकर अपना नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करा लिया था। इसके बाद 1960 के ओलंपिक में भारत स्वर्ण पदक जीतने से चूक गया था। इसके अलावा हॉकी टीम ने 2 और स्वर्ण पदक देश को दिलाएं, जो उन्होंने 1968 और 1980 के ओलंपिक में जीते। गोल्ड के अलावा ओलंपिक में हॉकी टीम एक सिल्वर और दो ब्रॉन्ज मेडल भी जीत चुकी है। इस तरह कुल मिलाकर अब तक 11 मेडल हॉकी में भारत ने जीते। अब हॉकी टीम ने जर्मनी को हराकर एक और मेडल देश की झोली में डाल दिया।
फिर आया हॉकी में भारत का ‘काला अध्याय’
1980 में जब भारत ने आखिरी बार गोल्ड जीता था, इसके बाद से ही हॉकी में देश का सबसे बुरा दौर शुरू हो गया था। 1980 के बाद से 2016 के ओलंपिक तक तो भारत सेमीफाइनल तक में जगह बनाने में कामयाब नहीं हो पा रहा था। इस दौरान भारतीय पुरुष हॉकी टीम के लिए सबसे खराब समय था 2008 के बीजिंग ओलंपिक का।
इस ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम क्वालिफाई तक करने में कामयाब नहीं हो पाई थीं। जी हां, वो भारतीय टीम जो कभी हॉकी के खेल में अपना दबदबा बनाई हुई थी, वो इस ओलंपिक में अपनी मौजूदगी तक दर्ज नहीं करा सकी। ऐसा पहली बार हुआ था जब हॉकी के ओलंपिक में भारतीय टीम क्वालिफाई ना कहीं कर पाई थीं। ये ओलंपिक को भारतीय हॉकी के इतिहास में काला पन्ना थे।
इसके बाद 2012 और 2016 के ओलंपिक में भी टीम का प्रदर्शन काफी खराब रहा था। 2012 में भले ही टीम क्वालिफाई कर गई हो, लेकिन एक भी मैच नहीं जीतने की वजह से बारहवें स्थान पर रहीं। वहीं 2016 में 8वें नंबर पर। लगातार खराब प्रदर्शन के चलते ऐसा लगने लगा था कि अब भारत कभी हॉकी में कमबैक नहीं कर पाएगा। हॉकी का देश में कोई भविष्य नहीं रहा।
अब जोरदार वापसी की
और फिर इसके बाद आया टोक्यो ओलंपिक और भारतीय हॉकी टीम ने दुनिया को एक बार फिर अपना कमाल दिखा दिया। टीम ने बता दिया कि कुछ समय के लिए भारत का दौर जरूर खराब चल रहा था, लेकिन हॉकी टीम खत्म नहीं हुई थीं। 1980 के बाद हॉकी टीम पहली बार सेमीफाइनल में पहुंचने में कामयाब हुई थीं। एक बार फिर हॉकी में जान फूंकी और देश की उम्मीद अपनी टीम से जगी।
सेमीफाइनल में भारत की एंट्री होते ही करोड़ों लोग ये उनके मेडल जीतने की दुआएं करने लगे। देशवासी चाह रहे थे कि भारत गोल्ड लेकर आए। हालांकि सेमीफाइनल में बेल्जियम ने इस सपने को तोड़ दिया। तब भी मेडल जीतने की उम्मीद बरकरार रही। इसके बाद भारत का मैच था जर्मनी से, जिसमें जीतने पर टीम ब्रॉन्ज जीतने देश की झोली में आना था। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। जर्मनी को भारत ने 5-4 से हराकर 41 सालों बाद हॉकी में मेडल जीता।
पुरुष की तरह महिला टीम भी रचेगीं इतिहास?
वैसे टोक्यो ओलंपिक में पुरुष हॉकी टीम ने ही नहीं महिला हॉकी टीम ने कमाल कर दिखाया। पहली बार महिला हॉकी टीम भी सेमीफाइनल में जगह बनाने में कामयाब रही। हालांकि उन्हें भी सेमीफाइनल के मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा। भले ही महिला हॉकी टीम सेमीफाइनल हार गई, लेकिन देश को उनसे भी अभी ब्रॉन्ज मेडल जीतने की उम्मीद है। अगर वो ये कमाल कर देती हैं तो ये ओलंपिक में उनका पहला मेडल होगा। देखना वाली बात तो ये होगी कि अब महिला हॉकी टीम भी कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचने में कामयाब हो पाती हैं या नहीं?