Why Afgani women accept sikhism: भारत दुनिया का सबसे बड़ा धर्म निरपेक्ष देश है और यहां लगभग सभी धर्मों के लोग एक दूसरे के धर्म का सम्मान करते है, उनके त्योहारों को एक साथ मिल कर मनाते है, लेकिन क्या हो जब एक ऐसे देश जहां इस्लाम को लेकर लोग कट्टरपंथी है। वहां कि महिलाएं इस्लाम छोड़कर सिख धर्म अपना लें, इतना ही नही उन्होंने सिख धर्म के पुरुषों से शादी तक की। जी हां, आज हम बात करेंगे एक ऐसे इस्लामिक समुदाय की, जिसके पुरुषों के अत्याचारों से तंग आकर सैकड़ों अपगानी महिलाओं ने एकसाथ इस्लाम छोड़ कर सिख धर्म अपना लिया।अब सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके कारण इन महिलाओं ने सिख धर्म को अपना कर कट्टरपंथियों के मुंह पर करारा तमाचा लगाया था।
क्या है इतिहास: Hari Singh Nalwa Story
ये बात है सन 1840 के आसपास का, जब पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह जी (Maharaja Ranjeet Singh) का शासन था। इस दौरान वो काफी बीमार हो गए थे, जिसका फायदा अफगानी कबीला युसुफजई के लोगों ने इसे सुनहरा अवसर समझ कर महाराज के अटक के किलों पर हमला कर दिया। लेकिन अफगानों का सामना हुआ सरदार हरि सिंह नलवा (Sardar Hari Singh Nalwa से, जिसने अफगानों को मंसूबों को पानी में मिला दिया। ये वो समय था जब कश्मीर के मुसलमान ज्यादा संख्या में नहीं रहते थे लेकिन उन्होंने धर्मिक भेदभाव के बिना गुरुद्वारों में सेवा देना शुरु कर दिया था। इस दौरान पेशावर पर युसुफजई, अफरीदी, खलील और खटक जैसे कबीलों का पेशावर के अलग-अलग हिस्सों पर कब्जा था। हरि सिंह नलवा ने पेशावर को जीतने का फैसला किया।
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क्या हुआ मिचनी के किले में?
1823 में अफगानी सेना और सिखों के बीच लड़ाई हुई थी, जिसे इतिहास में बैटल ऑफ नौसेरा के नाम से जाना जाता है। इस युध्द के दौरान हरि सिंह नलवा एक के बाद एक अफगानी कबीलों को हराते हुए आगे बढ़ने लगे थे। हरि सिंह इसके बाद पहुंचे मिचनी। मिचनी में अफगानी कबीलों द्वारा हिंदू औरतों का अपहरण करके उन्हें शोषित करना, काफी आम हो रहा था, जिसके कारण वहां हिंदू काफी त्रस्त हो गए थे। इसी मिचनी में एक हिंदू ने पहली बार अपनी नई दुल्हन को बचाने की गुहार हरि सिंह नलवा से की थी। हरि सिंह अपने 100 लड़ाको के साथ अफगानी सेना से भिड़ गए और उनके सरदार को मार गिराया।
क्यों अपनाया सिख धर्म?
मिचनी में पहली बार ऐसा हुआ था जब केवल हिंदू औरतों को ही नहीं बल्कि कई सौ अफगानी महिलाओं को भी वहां से बचा कर आजाद कराया गया था। अफगान महिलाओं ने देखा कि किस तरह से सिख धर्म में महिलाओं के साथ बराबरी का व्यवहार होता है। सिख धर्म में औरतों के सम्मान के लिए युध्द तक हुए, जिनसे वे अफगानी महिलाएं काफी प्रभावित हुई और अपनी मर्जी से सिख धर्म को अपनाने का फैसला किया। इन अफगानी महिलाओं ने न सिर्फ सिख धर्म अपनाया बल्कि सिख धर्म के पुरुषों से शादी भी की थी।
अफगानी महिलाओं द्वारा इतनी भारी तादाद में सिख धर्म अपनाना और शादी करने की घटना आज भी इतिहास में दर्ज है और साथ ही दर्ज है हरि सिंह नलवा की वीरगाथा। उनकी वीरगाथा को आज भी पंजाब और कश्मीर के कई इलाकों में कविताओं के तौर पर सुनाया जाता है। सिख धर्म को मानने वाले हरि सिंह नलवा जैसे लड़ाकों के कारण ही अफगानी महिलाओं का सिख धर्म के प्रति लगाव और सम्मान बढ़ा था, जिसके बाद वो इस्लाम छोड़ कर सिखनी बन गई, ऐसा सुनहरा और वीरतापूर्ण है सिख धर्म का इतिहास।