अफ़ग़ानिस्तान को “साम्राज्यों का कब्रिस्तान” (Graveyard of Empires) इसलिए कहा जाता है क्योंकि कई शक्तिशाली साम्राज्यों और देशों ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया और इसे अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश की, लेकिन अंततः विफल रहे। वहीं, अफ़ग़ानिस्तान में स्थानीय प्रतिरोध और बाहरी आक्रमणकारियों की विफलताओं ने इसे एक ऐसी जगह बना दिया है जहाँ प्रमुख शक्तियों को बार-बार हार का सामना करना पड़ा है। दूसरी ओर, देश अपनी कठिन भौगोलिक, सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के कारण आक्रमणकारियों के लिए एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र रहा है। आइए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।
अफ़ग़ानिस्तान प्राचीन काल – History of Afghanistan
आर्य सभ्यता: अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास प्राचीन काल से शुरू होता है, जब यहाँ आर्य जातियाँ बसीं। यह क्षेत्र प्राचीन वेदिक आर्य सभ्यता का हिस्सा था।
हख़ामनी साम्राज्य (ईरानी साम्राज्य): लगभग 6वीं सदी ईसा पूर्व में यह क्षेत्र ईरानी हख़ामनी साम्राज्य के अंतर्गत आया। अफ़ग़ानिस्तान की भूमि इस साम्राज्य के लिए व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण केंद्र थी।
अलेक्ज़ेंडर का आक्रमण: 4वीं सदी ईसा पूर्व में, अलेक्ज़ेंडर महान ने अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया और इसे अपने साम्राज्य में शामिल किया। अलेक्ज़ेंडर के आक्रमण (Alexander’s Invasion) के बाद यहाँ ग्रीक प्रभाव देखा गया और कुछ समय के लिए ग्रीको-बैक्ट्रियन साम्राज्य स्थापित हुआ।
अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी काल- Afghanistan Islamic period
7वीं शताब्दी में इस्लाम का आगमन हुआ और अफ़ग़ानिस्तान धीरे-धीरे इस्लामी शासन के अधीन आ गया। 10वीं सदी में ग़ज़नी का महमूद अफ़ग़ानिस्तान के प्रमुख शासक बने, जिन्होंने भारत पर कई आक्रमण किए और ग़ज़नवी साम्राज्य स्थापित किया। ग़ज़नवी साम्राज्य के बाद ग़ोरी वंश ने अफ़ग़ानिस्तान में शासन किया। ग़ोरी शासकों ने भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह तो हुई इतिहास की बात लेकिन अब आइए जानें कि अफगानिस्तान को “साम्राज्यों का कब्रिस्तान” क्यों कहा जाता है।
अफगानिस्तान “साम्राज्यों का कब्रिस्तान” – Afghanistan “Graveyard of Empires”
अफ़गानिस्तान का भूभाग पहाड़ी और दुर्गम है, जिससे इसे जीतना और नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है। पहाड़ों से घिरे इस देश में पारंपरिक सैन्य रणनीतियाँ अक्सर काम नहीं करती हैं, क्योंकि यह क्षेत्र लड़ाई के लिए अनुकूल नहीं है और स्थानीय लोग इस इलाके को बेहतर तरीके से जानते हैं।
स्थानीय उग्रवादियों का प्रतिरोध
अफगानिस्तान कुछ समय तक मुगलों के नियंत्रण में था, लेकिन इसे पूर्ण नियंत्रण में रखना उनके लिए कठिन साबित हुआ। इसके बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने 19वीं शताब्दी में कई बार अफगानिस्तान पर आक्रमण किया, लेकिन तीन एंग्लो-अफगान युद्धों (British-Afghan War) (1839-1842, 1878-1880 और 1919) के दौरान ब्रिटिश सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा और वे इस क्षेत्र पर कभी भी पूर्ण नियंत्रण नहीं कर पाए। फिर, 1979 में, सोवियत संघ ने अपने सैनिकों को अफगानिस्तान भेजा, लेकिन उन्हें 1989 में अफगान मुजाहिदीन और अन्य प्रतिरोध समूहों से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। आखिरकार, सोवियत संघ को वापस लौटना पड़ा और इसका एक बड़ा कारण अफगानिस्तान में हार थी।
तालिबान को हटाने के उद्देश्य से 2001 में अफगानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व में सैन्य हस्तक्षेप हुआ। हालांकि, 20 साल की लड़ाई के बाद तालिबान ने फिर से सत्ता हासिल कर ली और 2021 में अमेरिकी सेना और नाटो को वापस लौटना पड़ा। यह संघर्ष “साम्राज्यों के कब्रिस्तान” की छवि को और मजबूत करता है।
विदेशी हस्तक्षेप के दीर्घकालिक परिणाम
अफगानिस्तान में बाहरी हस्तक्षेप ने देश में अस्थिरता को बढ़ा दिया और बार-बार युद्धों ने इसे और कमजोर कर दिया। यह आक्रमणकारियों के लिए “कब्रिस्तान” साबित हुआ क्योंकि उन्होंने यहाँ बड़े संसाधनों का इस्तेमाल किया, लेकिन अंततः देश पर स्थिर नियंत्रण हासिल नहीं कर सके।
और पढ़ें: पाकिस्तान का वो गांव जो 1971 के युद्ध में उसने खो दिया था और अब बन चुका है भारत का हिस्सा