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क्या आर्य विदेशी हैं? जानिए बाबा अंबेडकर के विचार

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हिंदू दक्षिणपंथियों का मानना है कि भारतीय संस्कृति की शुरुआत आर्यों के रूप में पहचाने जाने वालों से हुई। वे घुड़सवारी और पशु चराने वाले योद्धाओं और चरवाहों की एक खानाबदोश जनजाति थे जिन्होंने हिंदू धर्म के सबसे पुराने पवित्र ग्रंथ वेद लिखे। कुछ लोगों का दावा है कि आर्यों की उत्पत्ति भारत में हुई और उनका विस्तार पूरे एशिया और यूरोप में हुआ। इसके परिणामस्वरूप आज यूरोप और भारत में बोली जाने वाली इंडो-यूरोपीय भाषाओं का विकास हुआ। हालांकि, इस बात पर अक्सर बहस होती रहती है कि आर्य कहां से आए थे। वहीं, इसी विषय पर बाबा साहब अंबेडकर ने भी अपने विचार व्यक्त किये थे।

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किसने कहा आर्यन विदेशी है?

पहले जानते हैं कि आर्यों को विदेशी कहा किसने। बीबीसी के मुताबिक, एडॉल्फ हिटलर और उन्नीसवीं सदी के दौरान मानव इतिहास का अध्ययन करने वाले कई यूरोपीय लोगों का मानना था कि आर्य यूरोप पर विजय प्राप्त करने वाली प्राथमिक जाति थे। हालांकि, एडॉल्फ हिटलर ने दावा किया कि आर्य नॉर्डिक थे, जिसका अर्थ है कि उनकी उत्पत्ति उत्तरी यूरोप में हुई थी।

वहीं, महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण बाल गंगाधर तिलक ने ‘द आर्कटिक होम इन वेदाज’ में लिखा कि आर्य भारत के नहीं हैं। इसके लिए उन्होंने वेदों का प्रमाण दिया। उन्होंने कहा कि वेद ऐसे स्थान पर लिखे गए जहां छह महीने तक दिन और छह महीने तक रात होती है। दुनिया में अगर कहीं ऐसी जगह है तो वह उत्तरी ध्रुव है। वहां से आर्य भारत आये।

इसके अलावा प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन ने भी आर्यों को विदेशी बताया। राहुल सांकृत्यायन उत्तर प्रदेश के एक ब्राह्मण थे। उनका चरित्र साम्यवादी था। उन्होंने वोल्गा से गंगा लिख स्थापित किया कि आर्य विदेशी थे। उनके मुताबिक आर्यों ने भारत पर आक्रमण करके उसे जीता था।

इन तीन लोगों के अलावा और भी कई लोग थे जिन्होंने आर्यों के भारतीय होने पर सवाल उठाए और उनमें से ज्यादातर इस बात से सहमत हैं कि आर्यों ने भारत पर आक्रमण करने के बाद भारत में रहना शुरू कर दिया। हालांकि, आर्यों के प्रति बाबा अंबेडकर के विचार बिल्कुल अलग थे।

आर्यों पर बाबा अंबेडकर के विचार

ब्रिटिश औपनिवेशिक इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास साहित्य के वर्गीकरण को लोकप्रिय बनाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए। उन्होंने भारत के इतिहास को दो भागों में विभाजित किया: आर्यों के आक्रमण से पहले और उसके बाद। भारतीय इतिहासकारों ने उनका अनुकरण किया और उसी तरह से इतिहास लिखना शुरू किया, जो आज भी लिखा और पढ़ाया जाता है। बाबा साहेब अंबेडकर ने पहली बार 1946 में अपनी पुस्तक “शुद्र कौन”? Who were shudras? से इस ऐतिहासिक आख्यान पर विवाद किया।

डॉ. अंबेडकर के लेखन और भाषण, खंड 7, पृष्ठ 7 में अम्बेडकर ने लिखा है कि आर्यों की उत्पत्ति (भारत के बाहर) का सिद्धांत वैदिक साहित्य से मेल नहीं खाता है। वेदों में गंगा, यमुना और सरस्वती के प्रति भाव है। कोई भी विदेशी इस तरह नदी के प्रति आत्म-स्नेह व्यक्त नहीं कर सकता।

डॉ अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक “शुद्र कौन”? Who were shudras? में स्पष्ट रूप से विदेशी लेखकों की आर्यों के बाहर से आकर यहां पर बसने सम्बंधित मान्यताओं का खंडन किया है। डॉ अंबेडकर लिखते है-

“वेदों में आर्य जाति के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है। वेदों में ऐसा कोई प्रसंग उल्लेख नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि आर्यों ने भारत पर आक्रमण कर यहाँ के मूलनिवासियों दासों दस्युओं को विजय किया। आर्य, दास और दस्यु जातियों के अलगाव को सिद्ध करने के लिए कोई साक्ष्य वेदों में उपलब्ध नहीं है। वेद में इस मत की पुष्टि नहीं की गयी कि आर्य, दास और दस्युओं से भिन्न रंग के थे।”

यहां तक कि डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से शूद्र को भी आर्य कहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि आर्यों पर आक्रमण वाली थ्योरी भी गलत है। उन्होंने ये भी कहा था कि इस बात का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है कि आर्यों ने भारत पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया।

और पढ़ें: अंग्रेजों से मिलने वाली पूरी आज़ादी के खिलाफ थे अंबेडकर, भारत छोड़ो आंदोलन में भी नहीं लिया हिस्सा 

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