Dalit Poet Malkhan Singh – हिंदी दलित साहित्य को नई ऊंचाई देने वाले साहित्यकार मलखान सिंह को हिंदी दलित साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है। दलित होने के कारण उनके साथ होने वाले भेदभाव को उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए दुनिया के सामने इस तरह पेश किया कि कुछ कवि उन्हें आक्रामक कवि की उपाधि देने लगे, वहीं कुछ लोग उनकी कविताओं से इस कदर जुड़ गए कि उन्हें हिंदी साहित्य का शेक्सपियर कहने लगे। मलखान सिंह की सबसे प्रसिद्ध रचना ‘सुनो ब्राह्मण’ कविता है जिसने कविता की एक नई शैली को जन्म दिया। इसके अलावा भी उनकी कई ऐसी कविताएं हैं जिन्होंने समाज में तहलका मचा दिया। आज हम आपको उनकी लिखी पांच ऐसी ही कविताओं के बारे में बताने जा रहे हैं।
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मलखान सिंह और दलित
कवि मलखान सिंह का जन्म 30 सितंबर 1948 को उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में हुआ था। कवि मलखान सिंह ने जीवन भर समाज के शोषितों और दलितों को आवाज दी। हालांकि, लंबे समय से कैंसर से पीड़ित चल रहे कवि का 9 अगस्त 2019 को निधन हो गया। उनके निधन के बाद भी उनकी लिखी कविताएं आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। उन्होंने अपना लेखन तब शुरू किया जब दलित जीवन पर कविताएं आकार ले रही थीं। यही कारण है कि उनकी अभिव्यक्ति में मौलिकता और ताजगी महसूस होती है। ऐसा नहीं है कि उनकी कविताएँ दलित विमर्श के सिद्धांतों से जन्मी हैं, बल्कि उनकी कविताओं को पढ़कर दलित विमर्श के सिद्धांतों को समृद्ध किया जा सकता है। वे हिन्दी दलित विमर्श के शुरुआती कवियों में से एक हैं।
मलखान सिंह की 5 प्रमुख कविताएं – Dalit Poet Malkhan Singh
Dalit Poet Malkhan Singh – वैसे तो मलखान सिंह ने अपने पूरे जीवनकाल में कई ऐसी कविताएं लिखीं जो काफी लोकप्रिय हुईं, लेकिन उन्होंने कुछ मात्र ऐसी कविताएं भी लिखीं जिनके कारण मलखान सिंह हिंदी कविता के अमिट हस्ताक्षर बन गए। वे अपने काव्य संग्रहों में हिंदी दलित लेखन का घोषणापत्र लेकर आये और उन्होंने ओमप्रकाश वाल्मिकी, जयप्रकाश कर्दम, मोहनदास नैमिशराय और कंवल भारती जैसे लेखकों के साथ तालमेल बिठाया। ‘हमारे गांव में’, ‘सुनो ब्राह्मण’, ‘मुझे गुस्सा आता है’, ‘छत की तलाश’, ‘मैं आदमी नहीं हूं’ उनकी लिखी कुछ चुनिंदा कविताएं हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य कि दुनिया में तहलका मचा दिया। मलखान सिंह की सबसे लोकप्रिय कविता “सुनो ब्राह्मण” है।
‘सुनो ब्राह्मण’ में व्यक्त हुई दलितों की दुर्दशा
मलखान सिंह का कविता संग्रह “सुनो ब्राह्मण” प्रकाशित किया था, उसमें कुछ सोलह कविताएँ थीं. पुस्तक का पेपर बहुत ही साधारण था लेकिन पुस्तक असाधारण हो गई। दरअसल, उस समय कई दलित कवि अलग-अलग स्तर की कविताएं लिख रहे थे लेकिन मलखान सिंह को कविताओं की वह शैली और शिल्प पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने नई शैली और शिल्प की कुछ कविताएं लिखीं जो समय के साथ लोकप्रिय हुईं और आज जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं।
उन्होंने यह कविता दलित समाज के प्रारंभिक संघर्ष को समझने के लिए लिखी थी और यह कविता दलितों के संघर्ष को विस्तार से उजागर करती है। उनकी इस कविता की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं…
सुनो ब्राह्मण,
हमारे पसीने से बू आती है, तुम्हें।
तुम, हमारे साथ आओ
चमड़ा पकाएंगे दोनों मिल-बैठकर।
शाम को थककर पसर जाओ धरती पर
सूँघो खुद को
बेटों को, बेटियों को
तभी जान पाओगे तुम
जीवन की गंध को
बलवती होती है जो
देह की गंध से।
Dalit Poet Malkhan Singh – इसके अलावा ‘मैं आदमी नहीं हूँ’ शीर्षक से लिखी गयी उनकी दोनों कविताओं में यह संघर्ष व्यक्त हुआ है। इन दोनों कविताओं की शुरुआत इन्हीं पंक्तियों से होती है –
“मैं आदमी नहीं हूँ स्साब
जानवर हूँ
दो पाया जानवर”
आदमी से कमतर समझे जाने का दर्द ‘मुझे गुस्सा आता है’ शीर्षक कविता में भी व्यक्त हुआ है,
“मरते समय बाप ने
डबडबाई आँखों से कहा था कि बेटे
इज्ज़त, इन्साफ़ और बुनियादी हकूक़
सबके सब आदमी के आभूषण हैं
हम जैसे गुलामों के नहीं”
‘मुझे गुस्सा आता है’ कविता में वह बताते हैं कि मेरी मां मैला कमाती थी और मेरे पिता बेगारी करते थे और मैं मजदूरी से बचा हुआ खाना इकट्ठा करके खाता था। अब इतना बदलाव आ गया है कि जोरू कमाने चली गई है और बेटा स्कूल चला गया है और मैं कविता लिख रहा हूं। इस तरह से कवि (Dalit Poet Malkhan Singh) ने राजनीति की भाषा का अनुसरण किये बिना अपने जीवन के परिवर्तन की वास्तविक तस्वीर प्रस्तुत की।