जातिगत भेदभाव का सामना करने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर के लिए शुरुआती जीवन में पढ़ाई करना आसान नहीं था। 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू नामक छोटे से गांव में जन्मे डॉ. भीमराव अंबेडकर महार जाति के थे। इसलिए लोग उन्हें निचली जाति का समझते थे। उन्हें अछूत मानते थे। उनके साथ भेदभाव की कई ऐसी घटनाएं घटीं, जिसके बाद ऊंच-नीच का भेद मिटाने के उनके संघर्ष की नींव पड़ी। संघर्ष के तमाम पड़ावों से गुजरने के बाद वही बाबा साहेब देश के पहले कानून मंत्री बने। मंत्री बनने के बाद उनकी जिंदगी बदल गई। अब वो अपने अतीत को भूलकर एक नई शुरुआत कर रहे थे। इसी कड़ी में उन्होंने महाराष्ट्र के पुणे जिले की मावल तहसील में स्थित तलेगांव से अपनी एक नयी जिंदगी शुरू की। इस जगह से बाबा साहेब की कई खास यादें जुड़ी हैं। बाबा साहेब इस जगह पर करीब 4 से 5 साल तक रहे थे। बताया जाता है कि इस जगह पर उनकी काफी जमीन भी थी, जिसे उनके निधन के बाद उनके स्मारकों में बदल दिया गया था। जब बाबा साहेब तलेगांव में रहते थे, तो जिस घर में वो रहते थे, वो आज भी बरकरार है। आज इस लेख में मैं आपको उस घर और बाबा साहेब के तलेगांव से जुड़े कुछ रोमांचक किस्से बताऊंगी।
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बाबा साहब का तलेगांव वाला घर
बाबा साहेब अपने जीवन के कुछ समय के लिए तलेगांव में बस गए थे। यहां उन्होंने करीब 45 एकड़ जमीन खरीदी थी और इस जमीन पर एक खूबसूरत घर बनवाया था। जो आज भी मौजूद है। बाबा साहेब के जन्मदिन पर लोग दूर-दूर से उनके घर के दर्शन करने आते हैं। उनके घर में उनसे जुड़ी कई खास चीजें आज भी मौजूद हैं। जैसे उनकी पुरानी तस्वीरें और उनके द्वारा लिखी गई कुछ किताबें, उनका कमरा और भी बहुत कुछ। दरअसल, हाल ही में ‘तथागत लाइव’ नाम के एक यूट्यूब चैनल ने बाबा साहेब के इस घर के बारे में जानकारी दी थी। इस वीडियो में बताया गया था कि बाबा साहेब ने तलेगांव में 41 एकड़ से ज्यादा जमीन खरीदी थी… उस वक्त उनका मकसद यहां घर बनवाना नहीं था, वो बस यहां एक विध्यापिठ बनवाना चाहते थे। वहीं, बाबा साहेब के निधन के बाद अब उनकी आधी से ज्यादा जमीन बिक चुकी है। जो जमीन बची है, उस पर बाबा साहेब के अनुयायी रहते हैं और वो बाबा साहेब की याद में उनकी विरासत को संजोए हुए हैं।
तलेगांव की दादी बाबा साहब के लिए बनाती थी खाना
मिली जानकारी के अनुसार, जब बाबा साहेब तलेगांव में एक कॉलेज खोलने की योजना बना रहे थे, तो वे एक भरोसेमंद व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जिसके साथ वे कॉलेज बनाने के अपने सपने को पूरा कर सकें। इस दौरान उनकी मुलाकात तात्रे लिंबाजी गायकवाड से हुई। लिम्बाजी गायकवाड़ पेशे से एक व्यापारी थे, उनके साथ मिलकर बाबा साहेब ने यहां की जमीन पर एक कुआं और एक घर बनवाया। यहां तक कि बाबा साहेब ने अपना घर भी उनसे ही बनवाया, बाबा साहेब उनकी मेहनत और ईमानदारी से बहुत प्रभावित हुए। जब भी बाबा साहेब मुंबई से पुणे आते, तो वे लिम्बाजी गायकवाड़ के घर पर जरूर रुकते और यहां खाना खाते थे। दरअसल लिम्बाजी की बहू काशीबाई गायकवाड़ बाबा साहेब अंबेडकर के लिए खाना बनाती थीं।
बाबा साहब का पसंदीदा भोजन
93 वर्षीय काशीबाई गायकवाड़ का डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर से घनिष्ठ संबंध था। एक खास बातचीत में काशीबाई ने डॉ. आंबेडकर को पसंद आने वाले खाने के बारे में बात की और कहा कि बाबासाहेब को भाजी और भाकरी खाना बहुत पसंद था। काशीबाई कहती हैं कि उन्हें डॉ. आंबेडकर को खाना परोसकर संतुष्टि मिलती थी। उन्होंने बाबासाहेब को बहुत ही नरम स्वभाव का व्यक्ति बताया। उन्होंने यह भी कहा कि बाबासाहेब ने उनके ससुर को ईमानदारी का एक सर्टिफिकेट दिया था। जिसमें उन्होंने लिखा था कि लिम्बाजी गायकवाड़ बहुत मेहनती और ईमानदार व्यक्ति हैं और वे सड़क निर्माण और बिल्डिंग का काम बहुत अच्छे से जानते हैं। यह सर्टिफिकेट आज भी गायकवाड़ परिवार के पास सुरक्षित है।
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